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भू........त - Bhoooooot


भूत का अस्तित्व है या नहीं

यह सवाल अपने आप में बहुत उलझाने वाला है | जितनी उत्तेजना इस सवाल से पैदा होती है उससे कम जवाब सुनकर नहीं होती | अधिकांश भारतीयों से यदि सवाल पूछा जाये तो ज्यादातर निसंकोच कहेंगे की वह भूत के अस्तित्व को नहीं मानते | परन्तु सवाल अधिकांश लोगों का नहीं मेरा है क्या मैं भूत के अस्तित्व को मानता हूँ | और उससे भी रोचक है की क्या मेरी मान्यता से कुछ फर्क पड़ता है

कुछ समय पहले की अगर बात की जाये तो मेरा जवाब बड़ा ही सामान्य एवं संतोषपरक था जैसा की अधिकांश लोग भूत के अस्तित्व को नहीं मानते मैं भी नहीं मानता | ऐसा मशीनी जवाब देकर मैं स्वयं को वैज्ञानिक मान्यता का दावेदार मानता रहा हूँ | परन्तु क्या मेरे मानने या न मानने से भूत पर कोई फरक पड़ जाता है |

मुख्य रूप से इसे इस तरह देख सकते है की अचानक मैं पृथ्वी को गोल मानने से इंकार कर देता हूँ और पृथ्वी के प्लेट नुमा होने की घोषणा कर देता हूँ | बड़े बड़े वैज्ञानिक अपने तर्कों के साथ मुझे मनाने के प्रयास मैं लग जाते है उपग्रह से खींची हुई तस्वीरों को देख कर मैं उपग्रह के अस्तित्व को भी नकार देता हूँ बाकी सारे के सारे तर्क भी नकार देता हूँ | सब वैज्ञानिक हार मान जाते है मेरी ज़िद्द के सामने परन्तु इससे क्या पृथ्वी प्लेट नुमा हो जाएगी ? नहीं पृथ्वी गोल ही रहेगी | कुछ ऐसा ही भूत के बारे मैं है मेरे नकार देने से भूत का होना या नहीं होना प्रभावित नहीं होता यह तो बस मेरी ज़िद मात्र है |

बहुत पुरानी बात है जब मैं छोटा बच्चा था एक दिन अचानक डर गया | डर के मारे अँधेरे मैं सोने से इंकार कर दिया अकेले कहीं आने जाने से मना कर दिया ख़ास तौर पर अँधेरे मैं | माँ बाप ने बताया की भूत काल्पनिक संज्ञा है वास्तव मैं भूत नहीं होता, बार बार बताया, लगातार बताया और आखिर मैंने मान लिया | उन्होंने बताया परन्तु उनको कुछ साबित करने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि न तो मैंने उनसे साबित करने के लिए कहा और न ही उनकी जानकारी के सोर्स एवं सत्यता पर कोई सवाल नहीं उठाया बस उन्होंने कहा और मैंने मान लिया | थोड़ा बड़े होने पर जब स्कूल जाना शुरू किया वहां भी पता चला की भूत नहीं होता एक बार फिर मैंने मान लिया बिना सोर्स की सत्यता पर सवाल उठाये |

बस ऐसे ही माहौल मैं बड़े होते होते मैंने यूनिवर्सिटी मैं कदम रखे | यह पहला अवसर था जब घर के अनुशासन से बाहर होस्टल मैं रहने का अवसर प्राप्त हुआ | होस्टल की घटना है | एक बुधवार की शाम को अपने रूम के सामने खड़े होकर नाख़ून काट रहा था तभी एक दोस्त ने कह दिया की बुधवार की शाम को नाख़ून नहीं काटे जाते वरना कुछ बुरा हो जाता है | मैंने दोस्त की बात को अनसुनी करते हुए अपने नाख़ून काट लिए | बॉयज होस्टल के माहौल को शब्दों मैं व्यक्त करना नामुमकिन है इसका आनंद बस वही ले सकता है जो होस्टल मैं रहा हो |

खेर जब मैं नाख़ून काटने मैं व्यस्त था तब दोस्त लोग मेरे खिलाफ साजिश को आखिरी रूप देने की कोशिश कर रहे थे | उसी रात जब सभी दोस्तों के साथ पढाई कर रहा था तभी खिड़की पर कुछ आवाज़ हुई | हमारा कमरा 1st फ्लोर पर था और कमरों के पीछे का खिड़की कुछ इस तरह बना हुआ था की कोई बहुत साहसी व्यक्ति ही खिड़की तक पहुँच सकता था | खिड़की के पीछे की तरफ जहाँ तक नज़र जाये कांटेदार झाड़ियां से भरा हुआ खाली मैदान, वहीं खिड़की की ज़मीन से ऊंचाई तकरीबन 20 फ़ीट | किसी का भी 1st फ्लोर की खिड़की तक पहुँच पाना संभव नहीं कोई अतिसाहसी ही ऐसा कर सकता था | तेज़ हवा के कारण खिड़की पर अक्सर कुछ आवाज़ें आती रहना सामान्य बात थी |

ऐसे मैं पढ़ाई करते हुए खिड़की पर खट्ट खट्ट की आवाज़ का आना सामान्य बात थी उसकी तरफ ध्यान का न जाना उससे भी सामान्य बात थी परन्तु दोस्त लोग तो साज़िश किये ही थे | मुझे बार बार खट्ट खट्ट की तरफ ध्यान दिलवा रहे थे | आखिर मैं उनकी साज़िश मैं फस गया और खिड़की खोल बैठा | जैसे ही खिड़की खोला बाहर के छज्जे पर पहले से छिपा हुआ दोस्त अचानक झपट पड़ा | अप्रत्याशित हमले के कारण न केवल मैं पीछे उछल पड़ा बल्कि बुरी तरह चीख भी पड़ा |

अगले कुछ दिनों तक साज़िश होस्टल मैं चर्चा का विषय बनी रही और शायद मेरे आत्मसम्मान पर भी कुछ चोट जैसी महसूस हो रही थी शायद इसी चोट का परिणाम था की एक बार फिर से खुद को बहादुर साबित करने की चुनौती मेरे सामने आ खड़ी हुई | कई दिन बाद जब अवसर सामने आया तो दोस्तों से शर्त बदकर शमशान मैं रात गुजरने को भी तैयार हो गए | अमावस की काली अँधेरी रात सर्दी का मौसम जब सब मित्र अपने अपने कमरों मैं सो रहे थे तब मैं एक छोटी टोर्च के सहारे श्मशान की तरफ जा रहा था |

आज उस घटना को गुज़रे बहुत साल हो गए परन्तु आज जब उस घटना पर विचार करता हूँ तो हर तरफ अपनी मूर्खता ही दिखाई देती है | बहुत ही भयानक रात थी सर्दी का कोहरा, अंधेरे रात और ठंडी हवा के झोंके टोर्च की रोशनी अगर आगे की तरफ करो तो पीछे का अंधेरे डर दिखाए और पीछे करो तो आगे का अंधेरा कई भूत प्रेत खड़े कर दे | और ऐसे मैं रात गुजरने के लिए एक बैंच और चार खंबों पर टिक्की हुई टीन की छत्त | आज लगता है की कैसी मूर्खता थी जो सिर्फ दोस्तों मैं खुद को बहादुर साबित करने के लिए बिना सांप, बिच्छू, सर्दी, बीमारी आदि की परवाह के शमशान मैं रात गुजार दी | एक सच यह भी है की उस रात ने मेरा सोचने का पूरा नज़रिया ही बदल दिया | पूरी रात डर डर कर गुजार दी तब एक सवाल पैदा हुआ की अगर मैं भूत को नहीं मानता तो फिर डर किससे रहा हूँ | खुद को तसल्ली देने की बहुत कोशिश कर चुका पर हर बार जवाब एक ही मिला की वह डर अगर भूत का नहीं तो किसी और का भी नहीं था | सारी दुनिया को भरमाया जा सकता है स्वयं को नहीं आखिर मानना पड़ा की मैं कहीं ना कहीं भूत के अस्तित्व को स्वीकार करता हूँ | इसका कारण सिर्फ इतना है की मैं मानता हूँ भूत नहीं होता परन्तु जानता नहीं हूँ |

शायद मानने और जानने मैं यही फर्क है मानने के लिए तर्क का होना आवश्यक नहीं परन्तु जानने के लिए तर्क का होना अवस्यम्भावी है | अधिकांश लोग मानते है की भूत नहीं होता परन्तु जानते नहीं |

अब इस घटना को बहुत लम्बा समय गुजर चुका है विज्ञान की उच्चतम पढ़ाई करके मैं वैज्ञानिक के तौर पर कार्य कर रहा हूँ परन्तु भूत के बारे मैं मेरे विचार आज भी कुछ ख़ास नहीं बदले | शमशान की उस रात के बाद से मैं भूत को अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता परन्तु अस्वीकार भी नहीं कर पाता | शायद वक़्त को मेरी यह दुविधाग्रतः स्थिति स्वीकार नहीं थी और इसीलिए एक बार फिर से मुझे चुनौती देने की साज़िश रची जा रही थी और इस बार साज़िश रचने वाले कोई दोस्त नहीं बल्कि स्वयं समय था और मैं हर साज़िश से अंजान अपने मैं ही व्यस्त था | और फिर आखिर वह दिन आ ही गए जब मैंने भूत से सामना किया |

किस्सा कुछ यूं शुरू हुआ की मैं ट्रांसफर होकर एक नए शहर मैं आ गया | नए शहर को सुविधा के लिए हैदराबाद कह लेते है | तो नए शहर मैं जैसी भी व्यवस्था हो सकी एक फ्लैट किराये पर ले लिया | तकरीबन 6 महीने उसी फ्लैट मैं रहा और आखिर ऑफिस के नज़दीक एक अन्य फ्लैट का इंतज़ाम हो गया और मैं नए फ्लैट मैं रहने के लिए आ गया |

नए फ्लैट माँ वातावरण बहुत बढ़िया था परन्तु वहां आने के तकरीबन 4 महीने के अंदर ही मेरे पिता की मृत्यु हो गयी | और यही से मेरी लाइफ पूरी तरह बदलनी आरंभ हुई | अब मैं फ्लैट मैं अकेले रह रहा था | अकेले इसीलिए क्योंकि पिता की मृत्यु हो चुकी थि और माता जी होम टाउन छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी | शादीशुदा था परन्तु बच्चे वगैरह नहीं थे | तो सवाल पैदा होता है की अकेले क्यों पत्नी मेरे साथ होनी चाहिए |

तो हुआ यूं की मुझे तो नौकरी करनी ही थी और माता जी अभी साथ आने के लिए तैयार नहीं थी और पत्नी माता जी के साथ रहने के लिए तैयार नहीं थी | जैसे तैसे 2 महीने गुजरे उसके बाद माताजी को साथ लेन के लिए टिकट वगैरह बुक किये तो पत्नी ने घर छोड़ दिया क्योंकि माताजी भी साथ आ रही थी | मतलब यह की मेरे सामने माँ या पत्नी दोनों मैं से एक को चुनने का वक़्त आ खड़ा हुआ | अपने राम ठहरे आज़ाद ख्यालों के व्यक्ति सो गुलामी तो करने से रहे इसीलिए पूरी तरह आज़ाद हो गए गुलामी को हमेशा के लिए दूर कर दिया | पत्नी को निराशा हुए परन्तु वकीलों ने उसे आश्वासन दिया की दहेज़ एवं डोमेस्टिक वायलेंस आदि के केस दर्ज़ करवा दिए जाये तो आज़ाद पंछी दुबारा पिंजरे मैं आ जायेगा | कुल मुलकर 5 केस दर्ज़ कर दिए गए | मैंने 10 साल कोर्ट मैं केस लड़ते हुए व्यतीत कर दिए परन्तु आज़ाद पंछी दुबारा पिंजरे मैं नहीं आया | तो पूरा मामला इन्ही 10 मैं से शुरूआती 8 सालों का है |

जैसे की मैंने बताया मैं अकेले फ्लैट मैं रह रहा था शुरू के 1 साल तक ठीक ठाक रहा (कम से कम मुझे ऐसा ही याद आता है ) उसके बाद नींद मैं सपने दिखाई देने लगे कोई बड़ी बात नहीं नींद मैं सपने आते ही है | समस्या पैदा हुई जब मुझे अहसास हुआ की मुझे जो सपने दिखाई दे रहे है वह सच है | अहसास होने के बाद मैंने सपनों की डेरी मैं लिखना शुरू कर दिया नतीजा अगले 2 - 3 महीने मैं यह साफ़ हो गया की जो भी सपने मैं देख रहा था वह सब सच हो रहे थे | जैसे की आज कोई सपना देखा तो अगले 15 - 20 दिन मैं सपना सच हो गया | दिखाई दिए सपनो मैं छोटो छोटी घटनाओं जैसे को गाडी का चालान , मोबाइल स्क्रीन टूटना , मैड का छुट्टी कर देना से लेकर बड़ी घटनाएं जैसे की गाडी का एक्सीडेंट , कोर्ट केस का नतीजा मेरे खिलाफ आना , माताजी का गंभीर रूप से बीमार हो जाना आदि सब दिखाई दे रहा था | और हर सपना सच हो रहा था |

सपनों का सच होना या सच्चे सपने एडवांस मैं देखना कोई चिंता की बात नहीं परन्तु चिंता की बात है जब सपना बुरा हो और पता हो की अगले 15 - 20 दिन मैं यह बुरा होने जा रहा है | जैसे की गाडी का चलन काटना है तो कटेगा ही परन्तु यदि 15 दिन पहले से पता हो तो यह 15 दिन परेशानी मैं गुजरना स्वाभाविक ही है | इसीतरह परेशानी भरी ज़िन्दगी गुजरते हुए तकरीबन 3 साल गुजर गए | इन 3 सालों मैं अच्छे पल भी आये और बुरे पल भी आये और बुरे पलों की टेंशन एडवांस मैं दिखाई दी सपनो मैं |

खेर कुछ किया नहीं जा सकता था इसीलिए इग्नोर करना शुरू कर दिया | फिर एक दिन की बात है देर रात एक हॉरर मूवी (मुझे पसंद है) देख रहा था और अंत मैं TV पर नोट दिखाई दिया की उपरोक्त फिल्म सत्य घटना पर आधारित है | गूगल सर्च मैं जिस घटना पर आधारित फिल्म थी उसका डिटेल प्राप्त किया | जैसे जैसे सर्च करता गया मेरे कान खड़े होते गए | फिल्म मैं जिस तरह का घटना क्रम दिखाया गया या जिक्र किया गया लगभग वैसी ही घटनाक्रम मेरे साथ फ्लैट मैं भी हो रहा था | ऐसे मैं घटनाक्रम पर सोच विचार और रिसर्च की आवश्क्य महसूस होने लगी | और मैंने रिसर्च किया भी | उद्धरण के तौर पर दो घटनाओं का जिक्र करना चाहूंगा |

पहली घटना : फिल्म मैं दिखाया गया की भूतिया घर मैं कुछ हिस्से मैं रोटॉन स्मेल आती है | अब मैंने महसू किया की फ्लैट मैं पिछले 2 सालों से राटन स्मेल आ रही थी | यह स्मेल हमेशा नहीं आती बल्कि 7 से 10 दिन बाद आती थी और तकरीबन 5 या 7 मिनट मैं समाप्त हो जाती थी | मैं इस स्मेल को अभी तक यह सोच कर इग्नोर करता रहा था की शायद सड़क की तरफ के नाले से आ रही है | जैसा की फिल्म मैं दिखाया गया इस तरह की स्मेल भूतिया घटना के कारन हो सकती है तो इसी बात को दिमाग मैं रखते हुए मैंने स्मेल का सोर्स तलाश करने का फैसला किया | अपने पैसे से नाले की सफाई करवाई टॉयलेट पानी के पाइप आदि साफ़ करवा दिया हर वह जगह जिसके गन्दा होने की सम्भावना हो सकती थी उसे साफ़ करवा दिया और इंतज़ार करने लगा | स्मेल नहीं आणि चाहिए थी परन्तु स्मेल आयी और इस बार मैं तैयार था सोर्स की तलाश के लिए | स्मेल का सोर्स तलाश करने के लिए नाक का इस्तेमाल किया और सिर्फ इतना ही सुनिश्चित हो पाया की स्मेल नाले मैं से नहीं आ रही थी | खेर अगले सप्ताह और फिर उसके अगले सप्ताह, कई सप्ताह की मेहनत से सिर्फ इतना निश्चित हो पाया की स्मेल का घर से बाहर नहीं अंदर ही है | फिर घर की सफाई आरम्भ की | हर संभव प्रयास किये और अंत मैं इस नतीजे पर पहुंचा की स्मेल का कोई सोर्स है ही नहीं | स्मेल एक मीटर स्क्वायर के एरिया मैं आती है ना उस एरिया के बहार स्मेल है और न ही उस एरिया के अंदर कोई ऐसा सोर्स है जिससे स्मेल आ सके | इस निष्कर्ष को निकलने मैं वैज्ञानिक उपकरणों का भी इस्तेमाल किया परन्तु नतीजा वही रहा | नतीजा तो निकला परन्तु इस नतीजे को निकलने मैं कई महीनों की कड़ी मेहनत लगी और हल कोई भी नहीं निकल सका सिर्फ नतीजा हाथ मै आया |

दूसरी घटना : दूसरी घटना मैं सपनों का जिक्र करना चाहूंगा | जैसा की मैंने बताया सपने लगातार आ रहे थे और सपने सच हो रहे थे | कई विद्वानों से संपर्क करने पर वह सपनो का अर्थ तो बताने मैं समर्थ थे परन्तु सपने क्यों आ रहे है इसका कोई सन्तुषिदायक उत्तर नहीं मिल पा रहा था | वैसे मेरी नज़र मैं सपनो का आना कोई महत्व नहीं रखता महत्व है उनके द्वारा भविष्य दिखाई देने का | जिसका आज भी मेरे पास कोई संतुष्टि दायक उत्तेर नहीं है |

इसके अलावा भी कई ऐसी घटनाएं है जिसका सामान्य तौर पर कोई उत्तर नहीं परन्तु क्या सिर्फ इसीलिए उनको परामानवीय कहा जाना उचित होगा ?

जब घटनाक्रम से मुक्ति हासिल नहीं हो पायी तो आखिर मैंने निश्चय किया की उस फ्लैट को छोड़ दिया जाये हो सकता है की जगह बदलने से घटनाक्रम से मुक्ति हासिल हो | किराये का फ्लैट था बदलना मुश्किल नहीं था | इसके बावजूद उस फ्लैट से निकल नहीं पाया | किसी ना किसी कारण से फ्लैट बदलने का निश्चय लगभग 2 साल तक टालता गया | तीन बार तो ऐसा भी हुआ की मैंने दूसरा फ्लैट फाइनल कर दिया नए माकन मालिक को कह दिया की मैं अगले महीने की एक तारीख से आ रहा हूँ | पुराने माकन मालिक को भी टाटा बाई बाई बोल दिया इसके बावजूद फ्लैट नहीं बदल सका कुछ न कुछ कारन पैदा हो गया | एक दफा तो नए फ्लैट का एडवांस किराया भी दे आया इसके बावजूद फ्लैट नहीं बदल पाया |

हर घटनाक्रम का अंत होता है मुक़दमे के फैसले का दिन नज़दीक आ रहा था और मेरे दिल मैं यह बात घर कर चुकी थी की यह फ्लैट मेरे लिए शुभ नहीं है (या यूं कहे की भूतिया है) | इसीकारण एक बार फिर से भागदौड़ शुरू की नए फ्लैट के लिए और आखिर एक फ्लैट निश्चित कर दिया | नया फ्लैट निश्चित करने से पहले की घटना है | नए फ्लैट की तलाश जारी थी परन्तु कहीं न कहीं निराशा भी थी | इसी निराशा के बिच एक स्वप्न देखा , स्वप्न मैं माकन मालिक मुझे फ्लैट खली करने के लिए कह रहा तह | इस स्वप्न ने मुझे जोश दिलवा दिया और अगले ही वीकेंड मैं मैंने जो भी फ्लैट दिखाई दिया उसे फाइनल कर दिया | एक सप्ताह और गुजरा और संडे दोपहर का आराम का वक़्त था जब फ्लैट का मालिक आ पहुंचा और ठीक वैसा ही उसने कह दिया जैसा की मैंने सपने मैं देखा था | अब क्योंकि मैंने नया फ्लैट निश्चित कर लिया था इसीलिए मैंने महीने के आखिरी सप्ताह मैं फ्लैट खाली करने का आश्वासन दे दिया |

फ्लैट के मालिक ने एक सवाल मेरे सामने रखा जिसने मुझे चौंकने पर विवश कर दिया | फ्लैट के मालिक ने मुझसे पूछा की क्या मुझे ‘इस फ्लैट मैं स्वपन आते है’ और मैंने मना कर दिया | फ्लैट मैं मुझे स्वप्न आते थे इसके बावजूद मैंने मना कर दिया मैं नहीं जनता क्यों |

महत्वपूर्ण बात सिर्फ इतनी है की फ्लैट मालिक ने मुझसे यह सवाल क्यों किया ? क्या उसे इस बात की जानकारी थी की उस फ्लैट मैं स्वपन आते है ? मैंने तो कभी किसी से जिक्र नहीं किया शायद मुझसे पहले जो रह रहा हो उसे किसी किसम की समस्या का सामना करना पड़ा हो | खेर .......

फ्लैट मैंने बदल दिया परन्तु फ्लैट खाली करने से पहले एक आश्च्र्रयजनक घटना घटी | शुक्रवार की रात थी TV पर फिल्म रही था और मैं बेड पर तकिये के सहारे लेता हुआ फिल्म देख रहा था, अचानक राटन स्मेल आयी मुझे पता था की यह स्मेल 5 या 7 मिनट रहेगी परन्तु मैंने आदत बना ली थी की जब ऐसी स्मेल आती मैं रूम फ्रेशनर छिड़क देता | इसी इरादे से मैंने उठने का प्रयास किया | मेरे सामने TV था और मेरे पीछे वह अलमीरा थी जिसमे रूम फ्रेशनर था | तो मुझे रूम फ्रेशनर उठाने के लिए पीछे की तरफ पलटना था और मैंने ऐसा ही किया | मैं लेते लेते 180 डिग्री घूम गया | मतलब की पहले मैं बाये हाथ के सहारे तकिये पर था घूमने के बाद दये हाथ के सहारे हो गया | और जैसे ही मैं घूमा वहीँ पर वह मौजूद था | शायद वही जिसे हम भूत कहते है बिलकुल स्पस्ट आकृति कोई भ्रम नहीं |

मेरे सामने मैं खुद था ठीक वैसे ही जैसे की मैं मिरर के सामने खड़ा हूँ और खुद को ही देख रहा हूँ | मेरे सामने मैं खुद खड़ा था | मेरे दिमाग ने सामने कड़ी आकृति के बारे मैं सोचना शुरू कर दिया परन्तु दिमाग ने शरीर को कोई निर्देश प्राप्त नहीं हो रहे थे | मैं समझ ही नहीं पाया की सामने क्या है यह अवस्था करीब करीब 10 सेकंड रही होगी उसके बाद मेरे सामने वाले मैं मैं बदलाव आरम्भ हुए और उसका चेहरा गोर (मेरा रंग गोरा है) से गहरा भूरा पड़ने लगा और चहरा सिकुड़ना आरम्भ हो गया और अंत मैं मेरे सामने मैं न होकर रह गया एक गहरा भूरा चेहरा जो दिखने मैं बहुत ही ज्यादा भयानक था और यह सब हुआ सिर्फ 50 या 60 सेकंड मैं | भनक चेहरे को देखकर मैं डर गया और मैंने अपनी आँखे बंद कर ली | आँखें बंद करने के बाद भी डर नहीं भगा और लगभग तुरंत ही मैंने आँखें खोल दी (ज्यादा से ज्यादा 10 सेकंड बाद) और जब आँख खोले तब सामने खुश नहीं था अगर कुछ बचा था तो राटन स्मेल और धुंआ | शायद वह आकृति धुए मैं बदल गयी थी |

और उस रात मैं सो पाया या नहीं यह तो मुझे याद नहीं आ रहा परन्तु अगले दिन ही मैंने फ्लैट बदल लिया महीना ख़तम होने का इंतज़ार नहीं किया | नए फ्लैट मैं मुझे सपने परेशान नहीं करते | मुकदमा भी मैंने जीत लिए बाइज़्ज़त बरी हो गया , कुछ और परेशानियां भी थी जो लगभग ख़तम हो चुकी है | कभी कभी सपने आते है परन्तु सामान्य सपने जिनका सच से कोई लेना देना नहीं है |

मुझे उत्सुकता है उस फ्लैट को देखने की परन्तु फिलहाल मैं उस फ्लैट मैं जाना अवॉयड कर रहा हूँ | परन्तु उस फ्लैट को देखने कभी न कभी अवश्य जाऊँगा क्योंकि उस फ्लैट मैं कुछ रहस्य दफ़न है जिनमे मेरी उत्सुकता है |