Kaidi Number 306 - Milan books and stories free download online pdf in Hindi

कैदी नंबर 306 - मिलन

‘कैदी नंबर 306’ , ‘कैदी नंबर 306 रिटर्न्ड’ एवं ‘कैदी नंबर 306 - बेगुनाह अपराधी’ मैं आपने पढ़ा की रामखिलावन निहायत ही शरीफ आदमी था और अपनी जीविका चलाने के लिए प्रेस मैं रिपोर्टर का काम कर रहा था। पुलिस द्वारा दर्ज़ किये गए एक फ़र्ज़ी मामले को जान, रामखिलावन सच पुलिस के सामने खोलने का प्रयास करता है तब पुलिस रामखिलावन को भी फ़र्ज़ी मामले मैं फसा देती है। रामखिलावन खुद को निर्दोष साबित करने का प्रयास करता है, परन्तु पुलिस अपनी नाकामी छुपाने के लिए प्रयासरत है, इसीलिए रामखिलावन के निर्दोष होने के साक्ष्य कोर्ट मैं नहीं पहुँच पाते और रामखिलावन को सजा हो जाती है। रामखिलावन हार नहीं मानता और हाई कोर्ट मैं अपील करता है। हाई कोर्ट रामखिलावन की अपील को स्वीकार करती है और पुलिस जाँच में ख़ामियों एवं रामखिलावन के खिलाफ साज़िश को स्वीकार करते हुए उसे बाइज़्ज़त बरी कर देती है | बरी होने के पश्चात रामखिलावन अपने पुराने मकान में आ जाता है जहां वह अपनी परिवार के साथ जेल जाने से पहले रहा करता था | उसका परिवार उस मकान को बहुत पहले खाली करके जा चुका है परन्तु अभी रामखिलावन को उसी मकान में रहना है क्योंकि उसे अपने परिवार को तलाश करने के लिए एक जगह की आवश्यकता थी इसके अलावा उसके पास रहने की कोई अन्य जगह भी नहीं थी | कोर्ट ने रामखिलावन को बाइज़्ज़त बरी कर दिया परन्तु इससे रामखिलावन का सामाजिक सम्मान वापिस नहीं मिल पता जिस कारण उसे अपने ही मोहल्ले में बहुत बेइज़्ज़त महसूस होना पड़ता है | अंततः रामखिलावन शहर छोड़ देने का फैसला कर लेता है


अब आगे :


रामखिलावन अपने पुराने मकान में रहते हुए समाज में अपनी खोई इज़्ज़त वापिस हासिल करने की लड़ाई शुरू कर देता है परन्तु इस लड़ाई में उसे किसी का सहयोग हासिल नहीं होता | मोहल्ले में रामखिलावन के पुराने परिचित जो किसी वक़्त उससे मुलाकात करना उससे बातचीत करना अपने लिए सौभाग्य की बात समझते थे आज उसके खिलाफ प्रचार में व्यस्त थे | उनकी नज़र में रामखिलावन एक ऐसा अपराधी था जिससे किसी भी प्रकार का संपर्क रखना उनके एवं उनके परिवार के लिए नुकसानदायक था | जब रामखिलावन किसी काम से गली में खड़ा होता या गली में से गुजर रहा होता तब अक्सर गणेश अपनी पत्नी से तेज़ आवाज़ में कहा करता की अभी कुछ देर बाहर न आये गली का माहौल ठीक नहीं है अभी | गुप्ता जी ने तो सोसाइटी की मीटिंग में मंच पर खड़े होकर कह दिया था की मोहल्ले में खरपतवार बहुत बड़ी हो गयी है जल्दी ही काटनी पड़ेगी | पड़ोस में रहने वाली भाभी अक्सर तेज़ आवाज़ में कहा करती थी की यह मोहल्ला अब शरीफ महिलाओं के रहने लायक नहीं रहा | एक दिन रामखिलावन ने भाभी को जवाब दे दिया |


भाभी : अब ये मोहल्ला शरीफ लोगों के रहने लायक नहीं रहा | गुंडे बदमाशों का अड्डा बन गया है

रामखिलावन : अच्छी बात है आप किसी शरीफ मोहले में शिफ्ट हो जाइये |


और जैसे रामखिलावन ने मधुमख्हियों के छते को छेड़ दिया | भाभी के पति ने रामखिलावन की गर्दन पकड़ ली और भाभी के देवर ने रामखिलावन को गलियों के साथ साथ धक्का मुक्की आरम्भ कर दी | नतीजा रामखिलावन के कपडे फट गए और उसे कुछ मामूली चोटें भी आ गयी |

समस्या सिर्फ मोहल्ले में ही नहीं बल्कि नज़दीकी डिपार्टमेंटल स्टोर वाले उसको जरूरी सामान नहीं बेच रहे थे इसीलिए उसे छोटे से छोटे सामान के लिए भी 10 से 15 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा था और उसे रोज़गार मिलने में भी समस्या का सामना करना पद रहा था | अभी तक रामखिलावन अपनी जमा पूँजी के भरोसे लड़ रहा था परन्तु अब जमा पूँजी भी लगभग ख़त्म हो रही थी | रामखिलावन को पता था की उसे अग्नि 2 महीने में ही रोज़गार की कुछ व्यवस्था नहीं हो सकी तो उसके सामने भूखे मरने की समस्या आ जाएगी | और रोज़गार उससे लुका छिपी खेल रहा था | अंततः रामखिलावन ने शहर छोड़ने का निश्चय कर लिया | और एक दिन सुबह सुबह अपना थोड़ा सा सामान लेकर बस स्टैंड की तरफ चल पड़ा | उसकी कोई निश्चित मंज़िल नहीं थी उसका इरादा इतना ही था की जो भी बस मिलेगी उसी में सफर करेगा और शाम तक जहाँ भी पहुँच सके वही आराम करेगा |

दिन भर बस में सफर करने के बाद रामखिलावन ने एक छोटे से कस्बे में आराम किया | एक गन्दी सी धर्मशाला के कमरे में रामखिलावन सुकून से लेटा हुआ था उसे यह सुकून कई वर्षों पश्चात् हासिल हुआ था | कई वर्षों तक उसने लड़ाई लड़ी थी जो अब भी जारी थी | अभी दो लड़ाइयों के बीच का शांतिकाल था जिसे रामखिलावन सुकून से बिता रहा था | उसे ढाबे वाले सरदार जी ने पूरी इज़्ज़त के साथ खाना खिलाया था धर्मशाला के मुनीम जी ने उसे पूरी इज़्ज़त के साथ कमरा दिया था और अब रात के आखिरी पहर में जब वह एक बहुत प्यारी से नींद ले चुका था उसे निश्चय करना थे की सुबह उसे क्या करना है | रामखिलावन को यह क़स्बा पसंद आया था परन्तु यहाँ रोज़गार के साधन नहीं हो सकते थे इसीलिए उसे यहाँ से जाना ही था | सुबह जब सरदार जी के ढाबे से छोटू चाय देने आया तब रामखिलावन निश्चय कर चुका था उसे जयपुर की बस पकड़नी थी जहाँ से उसे अपने परिवार के वर्तमान पते के मिलने की उम्मीद थी |

जिस वक़्त रामखिलावन जयपुर के बस स्टैंड पर उतरा उस वक़्त रात के 11 बज रहे थे | यदि कुछ साल पहले रामखिलावन जयपुर आया होता तो रात के 11 बजे ही अपने लंगोटिया यार के घर की घंटी बजा देता परन्तु पिछले कुछ सालो के अनुभव को प्रमुख मानते हुए रामखिलावन एक धर्मशाला में रात गुजरने चला गया और अगली सुबह 9 बजे ही अपने लंगोटिया यार रणदेव सिंह की दुकान पर पहुंच गया | रणदेव सिंह रामखिलावन को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ उसने रामखिलावन को बढ़िया चाय नाश्ते से स्वागत किया | रणदेव सिंह रामखिलावन का लंगोटिया यार था परन्तु देर रात घर ना आने के फैसले का उसने स्वागत भी किया | रणदेव सिंह आज भी रामखिलावन का लंगोटिया यार था परन्तु रणदेव सिंह के बच्चे और बीवी रामखिलावन के खिलाफ थे | सारा दिन रामखिलावन और रणदेव सिंह दोनों दुकान पर ही रहे देर रात तक दोनों अपने दुःख सुख साझा करते रहे और देर रात रामखिलावन को ट्रैन में बैठने के बाद ही रणदेव सिंह अपने घर गया |

जैसी की उम्मीद थी रणदेव सिंह से रामखिलावन को अपने परिवार का ठिकाना मालूम हो गया था और अब रामखिलावन ट्रैन से अपने परिवार से मिलने जा रहा था | रणदेव सिंह अपने परिवार के विरोध के कारण मुश्किल वक़्त में रामखिलावन के परिवार को शरण तो नहीं दे पाया था परन्तु अपनी तरफ से उसने हर संभव प्रयास अवश्य किया था | रणदेव सिंह के द्वारा दी गयी आर्थिक सहायता के कारण ही रामखिलावन के लड़के ने कपड़ों का व्यापार आरम्भ किया था | रणदेव सिंह ने दुकान शुरू करने के लिए जगह एवं कपड़ों की खरीदी के लिए आरंभिक आर्थिक सहायता भी दी थी | उसके पश्चात् लड़के की मेहनत थी जो आज उसकी दुकान शहर की गिनी चुनी दुकानों में शामिल हो गयी थी | रणदेव के द्वारा दी गयी आर्थिक सहायता के कारण ही रामखिलावन का लड़का और पत्नी अहमदाबाद जैसे बड़े शहर में स्थापित हो पाए थे और अब रामखिलावन अहमदाबाद की ट्रैन में ही सफर कर रहा था |

रणदेव सिंह की आर्थिक सहायता के अतिरिक्त भावनात्मक सहायता भी थी जो रामखिलावन के परिवार को हासिल थी | हालांकि रणदेव सिंह के बच्चे और पत्नी रामखिलावन और उसके परिवार के खिलाफ थे परन्तु फिर भी रणदेव सिंह लगातार उनसे संपर्क बनाए हुए था | लिहाज़ा जिस वक़्त रामखिलावन अहमदाबाद के रेलवे स्टेशन पर उतरा उसकी पत्नी और लड़का प्लेटफॉर्म पर उसका इंतज़ार कर रहे थे | कई वर्षों पश्चात् हुआ मिलन भावनात्मक अवश्य था परन्तु अभी भी कुछ कड़िया बिखरी बिखरी सी थी |

अगले कुछ दिन रामखिलावन ने घर पर ही बिताये या कभी कभी अपने लड़के के साथ दुकान पर चला गया | लड़के की व्यापारिक तरक्की एवं मेहनत से रामखिलावन प्रसन्न था परन्तु उसका अपना परिचय कहीं खो गया था | रामखिलावन की पत्नी एवं लड़का जब अहमदाबाद आये तब रामखिलावन उनके साथ नहीं थी लिहाज़ा आस पड़ोस के लोगों ने रामखिलावन को बिना बताये ही मृत मान लिया और अब रामखिलावन का परिचय क्या हो यह तो बदला नहीं जा सकता था परन्तु परिचय कैसे दिया जाये यह समस्या बनी हुई थी | जिसे भी लड़के ने अपने पिता के रूप में परिचय करवाया उसने स्वाभाविक प्रश्न पूछ डाला की अब तक पिता जी कहाँ थे | रामखिलावन चाहते थे की उनका जो परिचय है वही दिया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने मेहनत करके खुद को बेगुनाह साबित किया था परन्तु लड़के की राय थी की असलियत को छुपाया जाना चाहिए क्योंकि लोग उन्हें कभी भी बेगुनाह नहीं मान सकेंगे | रामखिलावन का अपना अनुभव भी यही था इसीलिए वह लड़के का खुलकर विरोध नहीं कर पाए इसके अलावा मसला यह भी था की रामखिलावन नहीं चाहते थे की उनके कारण उनके लड़के के भविष्य पर किसी प्रकार का प्रश्न चिन्ह खड़ा हो |

रामखिलावन का परिचय सिर्फ बड़े सेठ जी रह गया जो अभी तक गाओं में व्यापार कर रहे थे | रामखिलावन अपने इस नए परिचय से ना तो सहमत थे, और ना ही प्रसन्न, यह सिर्फ समझौता मात्र था उनको अपनी मेहनत दफ़न होती दिखाई दे रही थी | रामखिलावन ने जिस लड़ाई से अभी सिर्फ अवकाश लिया था वह ख़तम होती दिख रही थी | रामखिलावन खुद को लड़ाई से रिटायर होते हुए महसूस कर रहे थे वह लड़ने चाहते थे अभी रिटायर नहीं होना चाहते थे परन्तु नहीं चाहते थे की उनके कारण उनके लड़के की भविष्य पर प्रश्न चिन्ह खड़े हो |

राम खिलावन कई वर्षों बाद एक सुविधा पूर्ण जीवन जी रहे थे | उनके पास रहने के लिए बढ़िया मकान था जिसके पास ही सुबह शाम घूमने के लिए बढ़िया पार्क थे | यदि आवश्यकता महसूस हो तो दोपहर में जाने के लिए दुकान थी जहाँ बढ़िया तरीके से सजे हुए AC रूम में बैठ कर दुकान के स्टाफ को दिशा निर्देश दे सकते थे | यदि चाहते तो अपनी पत्नी के साथ मंदिर जाने के लिए गाड़ी की व्यवस्था भी थी | घर पर भी उन्हें सब तरह की सुविधायें थी | इस सबके बावजूद रामखिलावन शांति महसूस नहीं कर पा रहे थे और उनका शरीर कमजोर होता जा रहा था |

रामखिलावन के स्वास्थ्य की चिंता लड़के और पत्नी दोनों को थी उन दोनों ने रामखिलावन के लिए हर तरह के ड्राई फ्रूट एवं अन्य ताकत की दवाओं का इंतज़ाम किया परन्तु असली बीमारी उनकी समझ में नहीं आ सकी | रामखिलावन को अहमदाबाद में रहते हुए पूरा एक वर्ष गुजर चुका था परन्तु इस एक वर्ष में बेचैनी लगातार रामखिलावन को अंदर से खा रही थी |

आखिर एक दिन रामखिलावन ने अपने लड़के और पत्नी को वापिस अपने शहर लौटने का फैसला सुना दिया | दोनों ने रामखिलावन को रोकने का भरसक प्रयास किया परन्तु रामखिलावन अपने निश्चय पर अटल रहे | रामखिलावन लगभग 6 महीने और अहमदाबाद में रहे और इस दौरान उन्होंने अपने भविष्य की पूर्ण रूप रेखा तैयार की | रामखिलावन लगातार भागदौड़ कर रहे थे इसके बावजूद उनका स्वास्थ्य सुधर रहा था वह प्रसनचित था लिहाजा रामखिलावन की पत्नी और लड़के ने भी रामखिलावन का विरोध ना करने का निश्चय किया और हर संभव सहयोग का वचन भी दिया |

लगभग डेढ़ साल बाद जब रामखिलावन अपने पुराने मोहल्ले में अपने मकान के सामने रिक्शा से उतरे तब उनके मकान की रूप रेखा बदली हुई थी अब वह एक मकान नहीं बल्कि संजीवनी नाम की सामाजिक संस्था का ऑफिस थे और रामखिलावन की सहायता के लिए वहां 10 और रामखिलावन मौजूद थे | रामखिलावन पूर्ण उत्साह के साथ अपनी लड़ाई के मैदान में थे परन्तु इस बार वह अकेले नहीं थे उनके पास अपनी नाव (संजीविनी) के साथ सहयोगी भी मौजूद थे |