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उजाले की ओर - 3

उजाले की ओर -- 3

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स्नेही एवं प्रिय मित्रों

सभीको मेरा नमन

यह संसार एक बहती नदिया है जिसमें सभीको हिचकोले खाने हैं ,कोई तैर जाता है तो कोई लहरों से टकराता रहता है ,कोई डूब भी जाता है |किन्तु डूबने के भय से हम तैरना तो नहीं छोड़ सकते ! हमें अपने –अपने कर्मों के अनुसार कार्यरत रहना ही होता है,जीवन के समुद्र में तैरना ही होता है |

जीवन की इस यात्रा में न जाने कितने ऊबड़-खाबड़ मार्ग आते हैं ,सदा सीधा ही मार्ग हो ऐसा जीवन में कहाँ होता है? जब हम परेशान हो जाते हैं तब हमारा मस्तिष्क न जाने क्या-क्या नकारात्मक सोच की ओर अग्रसर हो जाता है | यह स्वाभाविक भी है , आखिर हम सब हैं तो मानव ही न ? बहुत से द्वंदों में जीते हुए हम कभी घुटने भी लगते हैं और हमें जीवन की व्यर्थता का अहसास होने लगता है | लगता है--–हम आखिर जी क्यों रहे हैं ?लेकिन जीना हमारी विवशता बन जाता है ,एक- एक श्वांस का हिसाब तो किसी और के पास है फिर इसका हिसाब रखने वाले हम आखिर कौन ?और इस प्रकार हम पुन: टूटने की कगार से आकर युद्ध के मैदान में डट जाते हैं|

सही व गलत इस पर निर्भर नहीं करता कि हम उसे परिभाषित करें ,सही या गलत की कोई परिभाषा नहीं हो सकती क्योंकि जो एक के लिए सही है वही अन्य के लिए गलत भी हो सकता है | तात्पर्य है कि मनुष्य को स्वयं ही इस बात का निर्णय लेना होता है कि उसके लिए अथवा उसके वातावरण के लिए क्या सही है और क्या गलत !यहीं पर उसकी चेतन-शक्ति का उपयोग होता है |

वास्तव में यदि कहें तो गलत न होगा कि बालपन से ही हमारे चेतन-अवचेतन मस्तिष्क में संस्कारों के साथ ही सही-गलत की शक्ति का संचालन होता रहता है | यह प्रदर्शित नहीं होता ,यह व्यवहार में प्रतिबिंबित होता है |तभी तो हम गलत करते हैं किन्तु समय की चपेट खाकर हम स्वयं में झाँकते भी हैं और पुन: अपने किए पर पश्चाताप भी करते हैं | यदि हम पूरे अंतर से पश्चाताप करते हैं तब हम पर ईश की कृपा तथा हमारे व्यक्तित्व को मांजने का अवसर हमें बेहतर ज़िन्दगी जीने का अवसर प्राप्त कराता है |बस हमें टूटने से स्वयं को बचाना आवश्यक है |यदि हम टूट जाते हैं तो कुछ भी शेष नहीं रह जाता ,हम केवल हवा में साँसें भरते रह जाते हैं |हम अन्य को दोषी ठहराते हैं और उस समस्या से उभरने के उपाय में पिछड़ जाते हैं |जब ईश्वर ने हमें यह सोचने-समझने की शक्ति व चिंतन करने का सौभाग्य प्राप्त कराया है तब हम उसके प्रति नतमस्तक और अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत हों इसीमें उसकी रज़ा व हमारे लिए सकारात्मक मार्ग का विस्तरण है |

कई बार हम पुन:-पुन: जीवन-समुद्र की लहरों में ऊपर-नीचे होते हैं ,हमारी साँस अटक जाती है ,हमारा मन भटकाव के हिंडोलों में झूलता है किन्तु क्या हम ऎसी स्थिति में एक सहज जीवन जी पाते है? प्रश्न हमें स्वयं से करना है ,उत्तर भी हमें स्वयं ही प्राप्त होगा | हमारे कई प्रश्न ऐसे होते हैं जिनके उत्तर हमारे ही पास होते हैं |सही तथा गलत का उत्तर तथा उसका निर्णय भी हमारे ही भीतर छिपा है |हमें अपने जीवन के लिए एक सूप का प्रयोग करना होता है जो ‘सार-सार को गहि रहे थोथा देई उड़ाय ‘को चरितार्थ करता हो |यह सूप एक ऐसे छाजन का काम करता है जिसमें हमें अपने कर्म भी स्वयं ही भरने हैं और उन्हें वास्तविकता की दिशा में उछालना भी स्वयं ही है जिसमें हमारे पास ‘सार-सार’ अर्थात अच्छा –अच्छा’ रह सके और खराब-खराब उड़ जाए |

जीवन जीने का इससे अच्छा तरीका भला क्या होगा जो हम स्वयं ही अपनी भीतरी शक्तियों को महसूस कर सकें ,स्वयं सही दिशा में अपने निर्णय ले सकें और स्वयं अपना सुन्दर भविष्य तैयार कर सकें ? हमें किसी पर आश्रित न रहकर ईश्वर –प्रदत्त अपनी शक्ति से स्वयं ही अपना जीवन-मार्ग चुनना है ,उसे संतुलित करना है |

छोटा सा है जीवन तेरा

मितरा ,एक कहानी कह जा

गुमनामी की दरिया में से, निकल

ज़रा कुछ मन की कह जा

लोग कहेंगे ,कहने भी दे

कुछ कर ले कुर्बानी सह जा

ज्योत जलाले मन में अपने

मुस्काकर जीवन में बह जा -------!!

डॉ.प्रणव भारती