Urvashi - 23 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

उर्वशी - 23 - अंतिम भाग

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

23

उर्वशी ने उससे कई बार कहा कि वह परेशानी न उठाया करे और टिफ़िन ड्राइवर के हाथ भिजवा दिया करे, पर वह कहता कि उसे यह कर के अच्छा लगता है। कल को उसका बच्चा उससे यह न कह पाए कि जब उसकी माँ उसे अपने गर्भ में धारण करके तमाम तकलीफें उठा रही थी, तो उसका पिता क्या कर रहा था। वह दुनिया भर की हर खुशी अपनी पत्नी के दामन में भर देना चाहता था । अब वह पिता बनने वाला है । उसका या उर्वशी का छोटा सा प्रतिरूप कुछ ही समय मे उसकी बाहों में होगा। यह कितना अतुलनीय अनुभव होगा । जिसके सम्मुख संसार की हर खुशी फ़ीकी है।

उर्वशी का स्वास्थ्य अब सही हो गया था। तनाव के कम हो जाने और सबकी देखभाल से कुछ समय पूर्व उत्पन्न जटिलताएं अब दूर हो गई थी। हर दो तीन दिन में उमंग भी उससे मिलने उसके पास आ जाता था। वह अधिकतर प्रसन्न रहने का प्रयास करती, मन जब शिखर के पास उड़ान भरने लगता, तो उसे मजबूती से थाम लेती और अपने गर्भस्थ शिशु से ढेर सारी बातें करने लगती। शिखर ने उससे एक बार भी बात नहीं की थी। बस उसके मम्मी पापा या शौर्य से उसका हाल जान लेते। स्वयं को दिन रात काम मे खपा दिया था। इन दिनों उनके मुम्बई में बहुत चक्कर लग रहे थे। अब उन्होंने फिल्म वितरण के व्यवसाय में हाथ डाल दिया था।

एक नया बंगला भी खरीदा गया जिसमें इंटीरियर का काम तेजी से चल रहा था। उनके मन मे क्या चल रहा है इसकी किसी को ख़बर न थी। उनके चेहरे पर हर समय तनाव की रेखाएं छायी रहने लगी थीं। उर्वशी का चेहरा, उसकी व्यथा, उन्हें हर समय हॉन्ट करती रहती। उन्हें लगता था कि उनसे जीवन में दो बड़े पाप हो गए हैं। उन्होंने एक बहुत बड़ा पाप तो उर्वशी की मर्जी के बिना उसकी शादी करवा कर किया। दूसरा पाप फिर से उसकी इच्छा के बिना उसे शौर्य के साथ रहने को विवश करके किया। इसका प्रायश्चित कैसे करें ? पर वह कुछ भी करेंगे, उसकी खुशी के लिए ।

धारावाहिक की शूटिंग पूरी हो चुकी थी। उसके पात्र और अभिनय को बहुत सराहा जा रहा था। उसे अन्य प्रस्ताव भी मिल रहे थे, जिन्हें उसे अस्वीकार करना पड़ रहा था। उसकी डिलीवरी का समय भी अब करीब आ रहा था । शारीरिक अवस्था भी खराब होती जा रही थी। न बैठे चैन मिलता और न लेटने से। अब तो बस लग रहा था कि जल्दी वह समय आये उसके शिशु का जन्म हो जाए। उसकी मम्मी और पापा भी नवाँ महीना लगते ही उसके पास आ गए थे। शिखर की नियुक्त की गई, शहर की जानी मानी डॉक्टर समय समय पर उसकी जाँच कर रही थी और हो रही प्रोग्रेस से संतुष्ट थी।

दिये गए समय से लगभग पन्द्रह दिन पूर्व उर्वशी ने स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। उस गोरे चिट्टे, सुकोमल, सुंदर, गुलगोथने को जो देखता,प्यार किये बिना न रह पाता। हर चेहरा खुशी से दमक रहा था। शौर्य के चेहरे पर गर्व के भाव थे। माँ सा, ऐश्वर्या भाभी, शिप्रा हर कोई नन्हे राजकुमार को देखने आ गया था, बस अगर कोई नहीं था तो शिखर । उर्वशी की आँखें उनका रास्ता देख रही थीं। पर वह नहीं थे। सभी मित्र, परिचित व सम्बन्धी उसके पास आ रहे थे। उसके पुत्र को स्नेहाशीर्वाद दे रहे थे। शिखर ने शौर्य को फोन पर बधाई दी और बच्चे को दिखाने को कहा। कैमरे पर उस सुंदर, बालक को देखकर खुशी से उनकी आँखें भर आयीं, और फोन बंद कर दिया। उर्वशी की आँखे बार बार डबडबा आ रही थीं। क्या वह उससे नाराज हैं ? जो व्यक्ति सिर्फ उसे अपनी आँखों के आगे रखने के लिए उसका विवाह अपने छोटे भाई से करवा सकता है, वह उससे इतने समय से दूर कैसे रह पा रहा है ? मन कर रहा था कि उनसे खूब झगड़े, चीख चीख कर रोए। अचानक ही कितने निष्ठुर हो गए थे वह !

डॉक्टर की सलाह के अनुसार,उसकी यात्रा करने लायक अवस्था होते ही शौर्य उसे लेकर दिल्ली आ गया। राणा पैलेस में गाड़ी के प्रवेश करते ही बैंड बाजों के साथ उसके नए वारिस का स्वागत किया गया। उसके इस्तकबाल में रायफ़ल से गोलियां छोड़ी गईं। गाड़ी से बाहर निकलने पर उनलोगों पर फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा की गई। प्रवेश द्वार पर शहनाई बज रही थी। माँ सा ने स्वयं अपने पोते की आरती उतारी और ढेर सारी न्यौछावर की। उसे याद आ रहे थे वह पल जब वह पहली बार मायके से वापस आयी थी। उस समय भी शिखर ने उसके स्वागत का शानदार इंतज़ाम किया था। उसे लगा जैसे वह उसके बगल में मुस्कुराते हुए चल रहे हैं। उसने चौंक कर देखा तो वह नहीं थे। उसकी आँखें भर आयी।

' आप कहाँ हैं ?' उसका मन पुकार उठा। आज पूरे दस माह के बाद उसने राणा पैलेस में कदम रखा था।सबकुछ था, पर कितना कुछ बदला हुआ लग रहा था! अपने बेडरूम में आयी तो देखा पूरा कमरा बहुत सुंदरता से सजा हुआ था। उसके बगल वाले कमरे को नर्सरी के रूप में सजाया गया था। एक से बढ़कर एक खिलौने, पालना, बहुत सुंदर बेड, मनभावन रंगों की सुंदर सी अलमारी। वह समझ गई कि यह सब शिखर ने करवाया है। अगले दिन बालक के नामकरण के उपलक्ष्य में एक भव्य पार्टी का आयोजन था। उसकी आँखें अब भी शिखर को ढूँढ रही थीं, पर वह न थे।

पार्टी शुरू हो गई थी, खूब सारे अतिथियों का आना जाना लगा हुआ था। काफी देर बाद उसने एक झलक शिखर की देखी। वह बहुत व्यस्त से लगे। उर्वशी बेचैन होकर उन्हें देखने लगी। उन पर निगाह पड़ते ही उसका दिल जोर से धड़क उठा। जी चाहा कि सबको भूल जाए और दौड़कर उनके पास चली जाए। कहे कि ये बेरुखी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही। पर वह उसकी ओर देख भी नहीं रहे थे। कुछ समय बाद वह फिर गायब हो गए। उर्वशी की नजरें उन्हें ढूंढती रहीं पर वह नहीं दिखे। पार्टी समाप्त हो गई, और वह अपने कमरे में आ गई। शौर्य भी जाने कहाँ गायब हो गए थे। बालक का नाम शाश्वत रखा गया था। नन्हा शाश्वत सो चुका था। तभी बहुत प्रसन्न मुखमुद्रा में शौर्य ने प्रवेश किया।

" उर्वशी, आज का दिन बहुत शुभ है। आप जानती हैं क्या हुआ ?" उसके स्वर से खुशी छलकी पड़ रही थी।

" क्या ?"

" भाई सा ने दिल्ली शहर में सारे बिज़नेस की कमान हमें दे दी है। इसका मतलब जानती हैं आप ? अब हमारा हुक्म चलेगा। "

" और आपके भाई सा ?" उसने आश्चर्य से पूछा।

" वो तो अब अधिकतर मुम्बई ही रहते हैं । उन्होंने फिल्म डिस्ट्रिब्यूशन का नया काम शुरू किया है। वहीं एक बंगला भी ले लिया है। आज भाभी सा के साथ वह हमेशा के लिए मुंबई शिफ्ट कर रहे हैं। "

" क्या ? " एक धमाका सा उसके मस्तिष्क में हुआ। उसे याद आया कि उसने ही तो कहा था कि वह राणा पैलेस इसलिए नहीं जाना चाहती कि वहाँ शिखर रहते हैं। अब वह स्वयं को न रोक पाई और फूट फूट कर रो पड़ी।

" क्या हुआ, आप क्यों रो रही हैं ?" शौर्य ने बहुत प्यार से पूछा।

" शायद आपके भाई सा अब तक नाराज़ हैं मुझसे। लखनऊ से लौटने के बाद उन्होंने एक बार भी मुझसे बात नही की । मेरे बच्चे को देखने नहीं आये, आज भी बस थोड़ी देर को दिखे थे, उसके बाद फिर गायब। क्या वह हमेशा मुझसे खफ़ा रहेंगे ?"

" अरे ! खफ़ा क्यों होंगे ?हाँ पार्टी में बहुत कम समय रुके, मैं भी आज उन्हें ही खोजता रहा। " शौर्य भी थोड़ा परेशान दिखा। " पर यहाँ का चार्ज मुझे हैंड ओवर करना था। बहुत सारी फॉर्मेलिटीज़ थीं। उसी में व्यस्त रहे।"

" क्या अब मुझे और मेरे बच्चे को उनका आशीर्वाद कभी नहीं मिलेगा ?"

" उसे तो उन्होंने उसी दिन आशीर्वाद दे दिया था जिस दिन उसका जन्म हुआ था। "

" मेरा तो एक बार भी उन्होंने हाल तक नहीं पूछा। " उसका इतने दिनों का सम्हाला हुआ आवेग पानी बनकर बह निकला।

" चलिए आप खुद उनसे अपनी शिकायत कीजिये। " कहकर वह उसका हाथ पकड़कर शिखर के ऑफिस की ओर चल दिया। वह वास्तव में वहीं थे, अकेले अपनी सीट पर बैठे हुए। न जाने किन ख्यालों में खोए थे। उनदोनो को देखकर वह चौंक गए

" भाई सा, आप यहाँ हैं, और उर्वशी रो रही थीं कि आप उनसे नाराज़ हैं, इसीलिए बात नही करते। "

" बिल्कुल पागल हैं आपदोनों, हम भला क्यों नाराज़ होने लगे ?" उनके चेहरे पर फ़ीकी सी मुस्कुराहट आयी।

" वही तो समझा रहे थे हम इन्हें। आप इनकी गलतफहमी दूर करिये। उर्वशी, सारे गिले शिकवे दूर कर लीजिये, इसके बाद पता नहीं भाई सा कब हाथ आयें। तब तक हम अपने राजकुमार के पास जाते हैं। " कहकर शौर्य वहाँ से निकल गया।

शिखर ने उसे देखा तो वह आँखो में आँसू भरे उन्हें ही देख रही थी।

" आप इतने खफ़ा हो गए कि एक बार भी मेरा हाल नहीं पूछा ?" वह बिलख पड़ी।

" आपसे कैसे खफ़ा हो सकते हैं ? हमारी जान नहीं निकल जाएगी ?" उनके स्वर में बहुत पीड़ा थी। वह उनकी सीट के पास आकर कार्पेट पर बैठ गई, उनके घुटने से सिर टिकाया और रोने लगी। उनका हाथ उसके केशों को सहलाने लगा।

“ आपने ही तो हमें राह दिखाई है, ऐसे कमजोर होंगी तो कैसे काम चलेगा ?”

“ कैसे रहूँगी आपके बिना ?” वह बिलख पड़ी।

“ उस दिन बहुत सोचा, आपकी बात हमारे दिमाग मे हलचल मचा रही थी। ठीक ही तो कहा था आपने। हम दोनों एक स्थान पर नहीं रह सकते। जब तक हम यहाँ से जाएंगे नहीं, आप कभी अपने दाम्पत्य में सहज नहीं हो पाएंगी।“

“ अब कब आएंगे आप ?”

“ हमारा न आना ही सही होगा।“

“ इतनी बड़ी सज़ा ? ठीक ही तो है, आपसे जो कुछ कहा … मैं इसकी ही हक़दार हूँ। “

“ ये सज़ा नहीं, एक अवसर है, नई शुरुआत करने का। “ उन्होंने उसे समझाने का प्रयास किया। वह रोती रही।

" जाइये उर्वशी, और परीक्षा मत लीजिये हमारी। बड़ी मुश्किल से जाने की हिम्मत जुटाई है। हम बिखर जाएंगे। " उनके स्वर में बहुत वेदना थी।

उसने एक बार उन्हें देखा, कुछ कहना चाहा, फिर अपने भीतर के सैलाब को सम्हाले रखने की कोशिश में स्वयं से संघर्ष करती दिखी। कुछ पल बाद उठी और तेज कदमों से बाहर निकल गई।

" ईश्वर आपको इतनी ताकत दे कि जिस कठिन पथ का चयन किया है आपने, उस पर दृढ़ कदमो से चलती रहें। " वह धीरे से बुदबुदाए और उनकी भी आँखों से अश्रु टपक पड़े।

समाप्त।