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आबरू

आज उसके यहाँ पंचायती बैठी थी | हालाँकि उसके श्वसुर जी अपनी जाति के पाँच पंचों में से एक थे | ज़िन्दगी भर दूसरों के घर पंचायती करते रहे लेकिन आज दुर्भाग्य ने उनके घर को घेर लिया |

उसकी बेटी यानि श्वसुर जी की पौती ने अन्तर्जातीय युवक से विवाह कर लिया था | उसके श्वसुर और पति ने बहुत ढूँढा | मिल जाती तो उस कलंक को सदैव के लिए मिटा देते परन्तु मिली नहीं | श्वसुर और पति दोनों बहुत दुखी थे पर बहु के चेहरे पर पीड़ा की कोई लकीर नहीं | इसीलिए बाप बेटा दोनों को शक था कि बेटी की माँ को बेटी की जानकारी हैं | थक हार कर आखिरी प्रयास करते हुए झोंपड़े की देहरी के बाहर खड़े श्वसुर ने बड़े दुखी मन से उसके पति यानि अपने बेटे की और मुखातिब होकर कहा,

बहु से कह दे अभी भी समय है बता दे कि बेटी कहाँ है ? मिल जाए तो उस कलंक को मिटा दें | नाक तो कट ही गई पर आज पंच मिलकर उसे जाति बाहर करने का फरमान सुनाएंगे, सारे समाज के सामने घर परिवार की जो इज्जत आबरू उछालेंगे उससे तो बच जाएँगे |

भीतर की तरफ खड़ी बहु सब सुन रही थी परन्तु उस पर कोई असर नहीं हुआ | उलटे ही उसे तेज हँसी आ गई | बाप बेटे को लगा जैसे पिघलता सीसा कानों में डाल दिया हो |

वृद्ध समझ गया | निःश्वास लेकर बोला बेटा इसे समझाने का कोई फायदा नहीं | पूछ ले चाय पानी का सामान है या नहीं ? नहीं हो तो जरुरत का सामान अभी जाकर सेठजी से उधार ले आए | लोग पहुँचते ही होंगे |

इतने में ही सुरेश आ गया |

राम राम ‘बा’ |

वह अमल ( अफ़ीम ) की अवैध सप्लाई करता है | उसे भनक लग गई थी कि आज इनके यहाँ पंचायती है | पंचायती बिना अमल के हो नहीं सकती |

अच्छा हुआ तू आ गया | घर पर अमल देते जाना | हम कोटड़ी ( पुरुषों की बैठक का स्थान ) जा रहे है | लोग पहुंचने वाले होंगे |

सुरेश कई बार अमल पहुंचा चुका था | इतनी महंगी वस्तु उधारी में क्यों पहुंचाता है ? वह भी जानता है और बाप बेटे भी | तभी दोनों घर पर देने का कह कर कोटड़ी के लिए निकल गए |

बहु पहली बार विवाह करके इस घर में आई थी तभी उसे पता लग गया कि बाप बेटा दोनों अमल के बंधाणी ( नशेड़ी ) है | पति को समझाने के लिए उसने कहा भी था यह नशा तन को खोखला कर देगा | मुश्किल से दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने वाले हम लोग आर्थिक रूप से भी बर्बाद हो जाएंगे | श्वसुर जी को मैं नहीं कह सकती पर आप तो स्वयं को संभालो | अभी पूरी उम्र पड़ी है | आपको कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा ?

तुम भूखे नंगे घर से आई हो तुम नहीं समझोगी | कोटड़ी में आए लोगों को अमल की मनुहार भी न करें, न खाएं न खिलाएं तो समाज की पंचायती कौन करने देगा ? मुफ्त में ही बनाते तो तेरा बाप भी पंच बन जाता | मर्दों को सलाह देने वाला काम आगे से यहाँ मत करना |

अक्सर खेती से पैदा होने वाले बाजरा, ग्वार, तिल, मूंग, मोठ या तो कम बारिश व अकाल की भेंट चढ़ जाते या मंडी में भावों की वजह से आमदनी कम होती गई | जबकि अमल के भाव आसमान छूने लगे | एक दो बार की उधारी के बाद सुरेश ने अमल देने से इनकार कर दिया |

अमल का नहीं मिलना यानि बंधाणी की मौत | काफ़ी मिन्नतों के बाद उसने अगले दिन कोटड़ी की बजाय घर पर देने की स्वीकारोक्ति दी | साथ में दो और पंचों के नाम भी बताए जिनके यहाँ घर पर पहुंचाता हैं |

अगले दिन बाप बेटा खेत जाने का बहाना कर निकल गए | सुरेश आया और अमल दिया तो बहु ने रख लिया |

चाय का नहीं पूछोगी ?

आप बैठो अभी बनाती हूँ | चाय बनाकर ले आई |

पी चुका तो बोला बहुत महंगा है अमल परन्तु तुम्हारे पति और श्वसुर की जिंदगी के लिए जरुरी | उधारी में कोई देता नहीं है | मुझे तुम्हारे सुहाग पर दया आ गई इसलिए दे रहा हूँ |

आपकी मेहरबानी |

यह मेहरबानी नहीं लेन देन का मामला है | बदले में मुझे भी तो कुछ मिलेगा कह कर उसने बांहों भर लेने का प्रयास किया | मुश्किल से छुड़ाते हुए भाग कर झोंपड़े से बाहर आ गई | हाँफते हुए बोली, घर से निकलते हो की चीख कर पूरे गाँव को बुलाऊं ?

वह हँसते हुए बिना कुछ बोले निकल गया |

यह कोई ऐरों गैरों का नहीं पंचों का घर है | आज तो पति के आते ही सुरेश की शिकायत करुँगी | देखती हूँ फिर से इस घर में पैर कैसे रखता है |

पति के आने पर वह कुछ बोलती उससे पहले वे ही बोलने लगे तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ? हाथाजोड़ी करने पर सुरेश अमल देने आया था और तुमने लड़ झगड़ कर भगा दिया ? ऐसे क्या मोती मांग लिए थे तुमसे ?

आगे से ध्यान रखना नहीं तो पंचायती बुलाकर तुझे तेरे बाप के घर भेज देंगे | बाकि पंचों के घर पहुंचाता है उन्हें तो कोई आपत्ति नहीं बस तेरे बाप ने ही ज्यादा इज्जत पहना कर भेजा है |

माँ बाप तो चारपाई पर दिन गिन रहे थे | भाई था नहीं | पढाई के नाम पर साक्षरता वालों ने नाम लिखना सिखा कर पढ़ी लिखी घोषित कर दी थी | उसका कोई महत्त्व नहीं है वह जानती थी | ऐसे में कहाँ जाती ? फिर भी मन ने पति के सिवाय किसी और पुरुष के सामने आत्मसमर्पण को स्वीकार नहीं किया बल्कि अब तो ऐसे पति को समर्पण में भी उसे लज्जा का अनुभव होता |

अपनी लाचारगी लेकर माँ बाप के पास पहुंची |

बीमार बूढ़े- बुढ़िया से जितना सम्भव हो सकता था किया | जंवाई को बुला कर चेतावनी दी | हम पंच सरपंच नहीं है, गरीब जरुर है पर हमारी भी इज्जत है | घर में कभी धान नहीं था तो भूखे सो गए होंगे परन्तु किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया |

आप बड़े घर से भी है और उससे भी बढ़कर जंवाई है | अब मेरी बेटी इस घर से अधिक उस घर की इज्जत आबरू है मेरी हाथ जोड़कर विनती है उसे नीलाम मत कीजिए | आखिरी शब्दों के साथ ही बूढ़े का कंठ अवरुद्ध हो गया | आँखें छलछला आई |

थोड़ी देर बाद आँसू पोंछकर गला खंखारते हुए बोला नहीं तो इस गरीब को भी पंचायत बुलानी पड़ेगी | सांवरिया इस कळजुग में किसी को तो गरीब का न्याय करने के लिए भी भेजेंगे |

जंवाई पंचायती की धमकी से डर गया | उसे लगा उनके विरोधी पंच जरुर इस बुढ़े की बात सुनेंगे और हमारी इज्जत भी उछालेंगे | हालाँकि उन पंचों के घरों के भीतर की बातें वह जानता था और सुरेश ने भी बताया था परन्तु वे सार्वजनिक नहीं हुई थी | उनके साक्ष्य किसी के पास नहीं थे | वे सब दुष्कृत्य घरवालों के द्वारा ही ढके हुए थे | यहाँ तो उसकी लुगाई ही बखिया उधेड़ने में लगी थी |

बात बिगड़ती देख उसने माफ़ी मांगी और भविष्य में गलती न दोहराने का कह कर पत्नी को घर ले गया |

निर्मम भाग्य इतने में ही कैसे मान जाता उसे तो कुछ और ही स्वीकार था | बीमार बूढा और बुढ़िया दोनों छः महीने में ही रामजी को प्यारे हो गए | अवसर मिलते ही नशेड़ी बाप बेटे ने फिर फ़तवा जारी कर दिया कल सुरेश से अमल ले लेना नहीं तो इस घर में रहने की जरुरत नहीं | बाप की तरह पंचायती बुलाने की मन में हो तो बुला लेना हम भी देखते है कौनसा पंच तुम्हे अपने घर रखता है ?

उसे समझ आया ये नहीं रखेंगे तो पंच क्या कर लेंगे ? वह किसके घर जाएगी ? उसका तो इस दुनिया में कोई भी नहीं |

उसने बहुत सोचा और सोच कर फैसला लिया कि अपनी इज्जत की बजाय पंच बाप और बेटे के घर की इज्जत बचाए रखने में ही समझदारी है | अगले दिन चुपचाप सुरेश आया और अमल देकर चला गया | बदले में जो लेकर गया उसके लिए बंद झोंपड़े में वह अकेली घंटों रोटी रही लेकिन समाज में उनकी इज्जत बनी रही |

उस बात को वर्षों बीत गए पर क्रम चले आ रहा था | सुरेश आज भी घर के भीतर गया | थोड़ी देर बाद अफ़ीम देकर जाने लगा | बिस्तर की चद्दर और अपने कपड़े ठीक करते हुए बहु ने पूछा

कहाँ से होते हुए आ रहे हो ?

अभी तुम्हारी बेटी की पंचायती में आने वाले इज्जत आबरूदार दो पंचों के घर अमल पहुंचाते हुए |

हा हा हा...झोंपड़े के भीतर जोरदार ठहाका हुआ | वह ठहाका नहीं अट्टहास था जो पास स्थित कोटड़ी के झोंपड़े तक भी पहुंच तो गया पर पंचों को उसे अनसुना करना उचित लगा |