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कटु स्मृतियाँ

जन्म दिन मुबारक हो सुरेखा कहते हुए सुलभ ने सुरेखा को बाहों में भर लिया और बड़े प्यार से उसके गले मे एक खूबसूरत सा नैकलेस पहना दिया।"शुक्रिया जी "कहते हुए सुरेखा सुलभ की बाहों में सिमट गई। "अब जल्दी तैयार हो जाओ हम पहले मंदिर जाएँगे फिर लौटते में हम सब बाहर ही खाकर आयेंगे"।कहकर सुलभ वाशरूम चला गया ।सुरेखा ड्रेसिंग टेबल में खुद को निहारने लगी कितनी सुंदर लगने लगी है, इन चार सालों में सुलभ ने उसे दुनिया की हर खुशी दी ।सुलभ को पाकर वो पिछले अनेक बर्षों की कड़वाहट को भूल गई थी।आज वह अपने परिवार में बहुत खुश है ।दो प्यारे प्यारे बच्चे चाहने वाला पति अच्छा घरवार सभी कुछ तो है उसके पास एक औरत को इससे ज्यादा और क्या चाहिये ।लेकिन वो पिछले चौदह बर्षों की कसक आज भी उसे दुखी कर देती है।क्या कसूर था उसका ? क्या गुनाह किया था उसने जो इतनी बड़ी सजा भुगतनी पड़ी थी ?चौदह साल तक क्यों उसे बाँझ होने का लाँछन सहना पड़ा था? रेखा जैसे अतीत में पँहुच गई थी।
अठारह साल की होते ही उसकी शादी अनिल से कर दी गई थी।अनिल अपने माँ बाप इकलौता बेटा था और साथ ही एक अच्छा घर और कारोबार था। उसके घरवालों ने सोचा "इकलौती बहु है नाजों से रहेगी"। मासूम सी सुरेखा दुल्हन बनकर ससुराल आई ।पर कुछ ही समय बाद उसके सारे सपने मिट्टी में मिल गए जब उसने अपनी सासूमाँ का असली रूप देखा ।उसकी सास हर वक्त उसपर हुक्म चलाती और उसके हर काम मे मीनमेख निकालकर उसे अपमानित करती ।अनिल भी माँ का पल्लू पकड़कर चलने वाले बच्चे के समान था वह हर सही गलत बात में अपनी माँ का साथ देता और उसे अपमानित करता।सुरेखा अपने ससुराल वालों को खुश रखने की पूरी कोशिश करती पर उसकी हर कोशिश बेकार जाती।सुरेखा ने इसी तरह की जिंदगी को ही अपना भाग्य मान लिया था।इसी तरह दिन महीने साल गुजरते गए और पाँच साल का वक्त बीत गया।
लेकिन उसकी परेशानियां कम होने की वजाय और बढ़ गईं
क्योंकि उसकी गोद अभी तक खाली थी।अब तो उसकी सास उसे ताने देने लगी और उसे बाँझ कहने लगी।सुरेखा जब कभी डॉक्टर को दिखाने की कहती तो उसकी सास कहती "जब कोख ही बंजर है तो इसमें डॉक्टर क्या कर लेगा "।डरी सहमी सुरेखा में इतना साहस भी न था कि वह अनिल से कहे कि अपना डॉक्टरी परीक्षण करवा लें।वह सब कुछ अपना नसीब समझकर सहती रही।अब उसकी सास उस पर हाथ भी छोड़ने लगी थी। एक बार तो उसने सुरेखा को पीटते पीटते सीढ़ियों से गिरा दिया जिससे उसे काफी चोटें आईं।बाँझ शब्द सुनते सुनते सुरेखा खुद को बाँझ ही समझने लगी थी इसलिये अपमान का हर घूँट पीती रही ।उसी तरह चौदह बर्ष बीत गए।अब उसके पति और सास ने उसे घर से निकालने के लिये एक नई चाल चली।अनिल अब सुरेखा से अच्छा व्यवहार करने लगा और उसे फुसलाने लगा "तुम तो माँ नहीं बन सकी हो अब हमारा वंश आगे कैसे बढ़ेगा,अगर तुम्हें कोई एतराज न हो तो में दूसरी शादी कर लूँ जिससे हमारा वंश आगे बढ़ सके,लेकिन तुम चिंता मत करो में एक मकान तुम्हारे नाम कर दूँगा और तुम इस घर में रानी बनकर रहोगी। तुमने अब तक बहुत काम किया है दूसरी आएगी तो वही घर का सारा कामकाज करेगी।" फिर एक दिन कुछ पेपर लेकर आया और बोला "में अपना दूसरा मकान तुम्हारे नाम कर रहा हूँ इसलिये तुम इन पेपरों पर साइन कर दो"।
भोली भाली सुरेखा अनिल की चालाकी को समझ नहीं पाई,उसने मकान के धोखे में तलाक के पेपरों पर साइन कर दिए।फिर कुछ दिन बाद अनिल बोला "सुरेखा तुम बहुत दिनों से अपने मायके नहीं गई हो तुम कुछ दिनों के लिये अपने मायके घूम आओ तुम्हारा मन भी बहल जाएगा आठ दस दिन में में तुम्हें लेने आ जाऊँगा"और अनिल सुरेखा को गाड़ी में बिठा आया था।
सुरेखा के जाने के हफ्ते भर बाद ही अनिल ने दूसरी शादी कर ली थी। हफ्ते दो हफ्ते पूरा महीना बीत गया न तो अनिल सुरेखा को खुद लेने गया और न ही किसी को लेने भेजा। पति के प्रति समर्पित भाव से सुरेखा अपने माता पिता से विदा लेकर ससुराल के लिये रवाना हो गई।जब वह अपने ससुराल पहुँची तो उसके पति और सास ने उसके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया और उसे अपमानित करके घर से निकाल दिया।वह रात किसी तरह पड़ोसिन के घर बिताकर सुबह होने से पहले ही अपने मायके रवाना हो गई थी। पति और सास ने उसे दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया था। अपने घर आकर और अपनी माँ से लिपटकर वह खूब रोई थी।
कुछ समय बीतने पर उसके किसी रिश्तेदार ने एक रिश्ता बताया।'सुमित' उसकी पत्नी की किसी हादसे में मृत्यु हो चुकी थी। सुरेखा किसी भी कीमत पर दूसरी शादी करने को तैयार नहीं थी 'विवाह' नाम के इस रिश्ते से उसका विश्वास उठ चुका था। उसकी माँ और पिता ने उसे बहुत समझाया कि "हमारी कितनी जिंदगी बची है हमारे बाद तू अकेली कैसे रहेगी तेरे भाई भाभी ने हमारे बाद तेरा ख्याल नहीं रखा तो क्या करेगी" उनके बहुत समझाने पर वह तैयार हुई थी। सुमित सरकारी महकमे में लिपिक था।सुरेखा की शादी सुमित से कर दी गई।सुमित बेहद ही सुशील और अच्छे स्वभाव का युवक था।उसे सुरेखा के पिछले जीवन की सारी बातें बता दी गईं थीं। सुमित सुरेखा को हर तरह से खुश रखने की पूरी कोशिश करता था।उसने कभी सुरेखा के अतीत में झांकने की कोशिश नहीं की । इसी तरह दिन गुजरते रहे और सुरेखा दो प्यारे प्यारे बच्चों की माँ बन गई। इन चार सालों में सुमित ने उसे कितना प्यार और अपनापन दिया उसे लेकिन आज भी वह अतीत की उन कटु स्मृतियों को भुला नहीं पाती है।सोचती है काश!सुमित पहले उसकी जिंदगी में आया होता और अनिल उसकी जिंदगी में न आया होता तो वह 14 बर्ष का वनवास नहीं काटना पड़ता। अनिल के आज भी कोई औलाद नहीं थी। बाँझ सुरेखा थी या अनिल। क्या सुमित को उसकी जिंदगी में इसी तरह आना था। समय के साथ जख्म भर जाते हैं लेकिन उनके निशान रह जाते हैं जो कभी नहीं मिटते।
वह अपने खयालों में खोई हुई थी कि सुमित की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई "हो गईं तैयार सुरेखा"।वह जैसे सपने से जागी हो "जी अभी हुई "कहते हुए जल्दी जल्दी तैयार होकर बच्चों को तैयार करने लगी ।अपने पति और बच्चों के साथ अपना जन्मदिन एन्जॉय करने के लिये।