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गोविंद दियो मिलाय

गोविंद दियो मिलाय

गुरु गोविंद दोऊ खड़े
काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने
गोविंद दियो मिलाय।

अब पाय तो गोविंद के ही लगना पड़ेगा ना, उसके बिना तो स्कूल चल ही नहीं सकता।अरे अरे, लगता है आप गलत समझ लिए। ये द्वापर वाले गोविंद नहीं, कलयुगी गोविंद हैं - हमारे चेयरमैन के बेटे। जिन्होंने अवतार लिया हम जैसे शिक्षकों के कल्याणार्थ एवम् पृथ्वी से अशिक्षा का अंधकार दूर भगाने के लिए। तभी तो उनके जन्म लेते ही चहुं दिशा में शंख बजने लगे, दुदंभी नगाड़े की आवाज आने लगी, वैसे भी जैसे बुद्ध के गर्भ में आते ही एक दैविक सुगंध आने लगी थी माता मायादेवी के शरीर से, देवकी वसुदेव के बंधन कट गए थे, कुछ ऐसा ही यहां भी होने लगा। अब अवतरण होने वाला था एक ऐसे शिष्य का, जिसके आते ही सारे द्रोणाचार्यों का कष्ट निवारण होने वाला था, उनकी बेड़ियां कुछ पल के लिए कटने वाली थी।

सारे दरबारी गण उपस्थित थे जन्मोत्सव में। नाना व्यंजन के सुगंध से दूर बैठे लोगों के भी नथुने फड़क रहे थे। एक से एक कार्यक्रम चल रहे थे, व्यंजनों का आस्वादन करते , खीसे निपोरते दरबारी गण एक से एक सलाह दे रहे थे। उन बहुत से सलाहों में जो सलाह अटकी श्री श्री १०८ के मनों मस्तिष्क में, वो थी अपने सुपुत्र के नाम पर विद्यालय खोलने की।

वैसे भी बचपन से शौक था उन्हें पढ़े लिखों के बीच बैठने बोलने का और इससे बेहतर क्या होता कि देश के सर्वोत्तम शिक्षा प्राप्त पी एच डी , मास्टर्स किए हुए बड़ी डिग्रियां लगाए व्यक्ति उनके आगे पीछे ना सिर्फ घूमेंगे बल्कि सारा काम उनसे पूछ कर करेंगे। उन विद्वान जनों की मीटिंग लेने का सौभाग्य उन्हें मिलेगा और उनकी उंट पटांग बातों को सब बहुत गंभीरता से ना सिर्फ सुनेंगे बल्कि अमल भी करेंगे। वैसे भी लक्ष्मी जी चाहे उल्लू पर बैठे, सरस्वती जी के वाहन को मात देते अाई है हर युग में। तो तय हो गया गोविंद जी के आगमन के उपलक्ष्य में स्कूल खुलेगा।

अब गोविंद जी की महिमा से कार्य प्रारंभ हो गया। शानदार बिल्डिंग, रजिस्ट्रेशन अन्य कार्यों के बाद शिक्षकों की नियुक्ति प्रारंभ हुई। सारे बड़े समाचार पत्रों में विज्ञापन दिए गए। प्राचार्य पद के लिए पूरे भारत वर्ष के नौकरी एजेंसियों से संपर्क किया गया। हमारे चेयरमैन जी का मानना है गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं। इंटरव्यू प्रारंभ था। पहला राउंड में हरेक को जांचने का कार्य था उनके प्रिय पात्र नेमि जी का।

नेमि जी ठहरे आजकल के आदमी। सौंदर्य बोध कुछ ज्यादा ही प्रखर है। उनका मानना है कि आजकल अंदर चाहे औसत सामान हो, पैकेजिंग अच्छी होनी चाहिए क्योंकि जनता पैकेजिंग से आकृष्ट होती है।

तो इस क्लास वन स्कूल में टिप टॉप टीचर ( अरे छोड़िए गुरु जी को , उनको पूछता कौन है आजकल) की नियुक्ति आरंभ हो गई। रैपर अच्छा होने पर ही दूसरे चरण तक कोई पहुंच सकता था। फिर आपके पढ़ाई इत्यादि को अच्छी तरह परखा जाएगा। वैसे भी थोक के भाव से टीचर भरे पड़े हैं तो ज्ञान में भी समझौता क्यों करना। हिंदी संस्कृत भी अगर अंग्रेजी में पढ़ा सकें तो ये विशेष योग्यता मानी जाएगी। अन्य विषयों के लिए विषय ज्ञान के साथ अंग्रेजी ज्ञान आवश्यक है। चुनाव के लिए आपका पहनावा, आपका विषय ज्ञान, अंग्रेजी ज्ञान - सब क्लास वन होना चाहिए। चलिए अब आते हैं इनकी सैलरी पर। अब यहां मांग पूर्ति का नियम लागू होगा।

भव्य बिल्डिंग,मुख्य द्वार पर खड़े स्मार्ट से सुरक्षा कर्मी, फर्राटे से इंग्लिश बोलती स्टाइलिश रिसेप्शनिस्ट, झकाझक यूनिफॉर्म पहने हाउसकीपिंग स्टाफ को देख कर वैसे भी प्रवेश किए टीचर नामक प्राणी का गला सूख रहा होता है और फिर नेमि जी से साक्षात्कार - रही सही हिम्मत जवाब दे देती है सामान्य शिक्षक की।

अब बातचीत आती है सैलरी पर। सब को झेला हुआ टीचर अब बड़ी आशा से सुनने की प्रतीक्षा कर रहा है हृदय को थाम कर और अब अपनी आंखों को शिक्षक के चेहरे पर जमाए नेमि जी जिस क्षुद्र राशि की उद्घोषणा करते हैं, बेचारा शिक्षक हक्का बक्का रह जाता है इस ऊंची दुकान को देख कर।

अगला दांव नेमि जी का - तो बताएं फलाना स्कूल के टीचर का बार बार फोन आ रहा है, आप इच्छुक ना हो तो उन्हें कन्फर्म करूं। हमारा ब्रांड है ही अभी नंबर वन, लोग लाइन में लगे हैं यहां ज्वाइन करने के लिए। घुटने टेकने के अलावा अब कोई चारा नहीं बचता बेचारे टीचर के पास। वैसे भी प्राइवेट टीचर से ज्यादा गरज वाला हिंदुस्तान के किसी पेशे में व्यक्ति नहीं मिलेगा। शिक्षक वर्ग में प्रचलित एक लोकप्रिय वाक्य याद आता है उसे, अगर इतने ही स्मार्ट होते तो शिक्षक ही बनते।

तभी फोन बजता है और नेमि जी बात करते हुए अपने शीशे के केबिन से बाहर देखते हैं। बातचीत से लग रहा किसी अन्य विषय के लिए किसी शिक्षिका ने आवेदन किया है। दूर से ही अवलोकन कर नेमि जी मना कर रहे रिसेप्शनिस्ट को।" बता दीजिए, नहीं वैकेंसी है। आपको समझ में नहीं आया कि हमें लक दक टीचर ही चाहिए।"

मुखातिब होते हैं अब शिक्षक नामक प्राणी की तरफ।" हमारे चेयरमैन को सब टिप टॉप, युवा चेहरे चाहिए।देख ही रहे, प्रधानमंत्री भी युवाओं को आह्वान कर रहे। और जब इतने युवा बेरोजगार बैठे हो अपने सम्पूर्ण सामर्थ्य के साथ, तो हम समझौता क्यों करें।"

अपने सौंदर्य से पहली बार आश्वस्त होते, बड़े ब्रांड से आतंकित एवम् नेमिचंद नामक इस गरिमामय व्यक्तित्व से अत्यन्त प्रभावित, तुरंत लपक कर नौकरी थामते हैं। वैसे भी नेमिचंद जी कोई छोटे मोटे व्यक्ति थोड़े हैं, कौन सी नामालूम यूनिवर्सिटी से ना सिर्फ स्नातक हैं किसी नामालूम विषय में बल्कि सुदर्शन व्यक्तित्व के भी स्वामी हैं। यहां प्राचार्य हो या चपरासी ,मजाल जो उनके सामने किसी की चल जाए। चमचा महिमा की जय हो। अगर किसी ने जुर्रत की, तो नौकरी तो गई ही समझो उसकी।

अब आते हैं गोविंद महिमा पर। कक्षा में गोविंदों की भरमार है। ज्यादातर ठेकेदारों के सुपुत्र और बचे खुचे डॉक्टर, इंजीनियर की, जो समर वैकेशन में सिंगापुर के डिज़्नीलैंड जाते हैं । यहां शिमला, मनाली जाने वालों को कौन पूछे । वैसे भी सामान्य नौकरी वालों के बच्चों की क्या औकात जो इस माया नगरी में गेट तक आ जाए। अगर गलती से आ भी जाए, तो राम राम कर अगले साल भाग जाएगा।

सेशन शुरू होने से पहले अनुभवी प्राचार्य का संबोधन, अगला झटका होता है। ' टीचर्स, दीज स्टूडेंट्स आर आवर कस्टमर्स. यू हैव टू हैंडल देम केयरफुली. फर्गेट एबॉट ओल्ड कॉन्सेप्ट ऑफ गुरु शिष्य '।

इस दिव्य ज्ञान से झुका शिक्षक जब कक्षा में प्रवेश करता है, तो सारे गोविंद उसके धैय की परीक्षा को तैयार मिलते हैं। आप उन्हें डांट नहीं सकते, कुछ कह नहीं सकते, खड़े नहीं कर सकते, आपको सिलेबस पूरा करवाना है,उनकी नोट बुक तैयार करवानी है, कोई गलती नहीं मिलनी चाहिए नोटबुक में, आपको उनको अच्छे अंक दिलवाना है, आपको उनको पूरी तरह पैंपर करना है। क्योंकि उनके पैरेंट्स अपना काम कर चुके अर्द्ध वार्षिक फीस दे कर। अब सारी जिम्मेदारी शिक्षक की है।

अगर गलती से किसी टीचर ने डांट दिया तो बड़ी बात नहीं कि गोविंद सुना दें - ' सर/ मैडम , आपको जितना सैलरी मिलता है, हमारे पापा स्टाफ को देते हैं उतना।' तो भैया अपनी इज्जत, अपने हाथ।

अब आता है पैरंट्स टीचर मीट। नेमिचंद जी का मैसेज आएगा - " ऑल टीचर्स आर रिक्वेस्टटेड टू कम इन फोरमल्स। साड़ी फॉर लेडीज एंड कोट सूट फॉर जेंटलमैन। " सबको पता है सिर्फ शब्दों में अनुरोध है वैसे तो यह फरमान है।

अगर आप इंग्लिश टीचर हैं तो थोड़ी इज्जत है आपकी। हिंदी को तो सरकार ने भी हिंदी दिवस के लिए छोड़ दिया है , हम तो आम जनता हैं। पैरेंट्स टीचर मीट के लिए स्पेशली खरीदे गए कपड़े और जूलरी में सजी संवरी मॉम बोलेंगी - ' मैडम बस अंग्रेजी बोलना सिखा दीजिए। पैसा तो झड़ता है हमारे घर। वैसे आप लोग को क्या मिल जाता है सैलरी।" जैसे तैसे इज्जत बचाकर मीटिंग समाप्त होगी।

गोविंद तेरे रूप अनेक। अलग अलग स्कूल में अलग अलग अवतार।

एक अन्य थोड़े छोटे ब्रांड वाले (बताइएगा नहीं कि हम बोले) स्कूल में हैं गोविंद जी की बड़ी दीदी। गोविंद के लिए क्या स्त्री क्या पुरुष। हर रूप में हैं तो वो गोविंद ही। दिल्ली में रह कर आ रही, तो दो सर्टिफिकेट है उनके पास - सबसे बड़ा तो चेयरमैन की बेटी होना और दूसरा दिल्ली से पधारना। अब थोड़ा अंग्रेजी बोल लेती हैं ये तो माता जी उनका सबसे परिचय करवा रहीं बहुत शान से। बालों को आगे झटकती, चेहरे को सीरियस बनाने की कोशिश करती ये मैडम अचानक किसी कक्षा में घुस जाएगी एक पेन पेपर सहित। उनका आक्रमण उन सब क्लास में होगा, जिन टीचर्स ने उनको भाव नहीं दिया। भौ चढ़ा कर आगे पीछे बैठ कर एक पेपर पर कुछ लिखने का ढोंग करेंगी वो, फिर एक लड़के को खड़ा कर अचानक कोई प्रश्न दाग देंगी। बेचारा हड़बड़ाया सा बच्चा।

उधर से सुबह ही चेयरमैन की अर्द्धांगिनी पधारेंगी - " बचवन को अंग्रेजीये पढ़ाईये ना, का करेगा ई लोग हिंदी पढ़ कर। आप लोग भी एक्को शब्द मत बोलिएगा हिंदी में।जो हिन्दी बोले, उस पर फाइन लगा दीजिए। हम चाहते हैं, नंबर वन दिखे हमरा स्कूल।"

स्कूल के हिसाब से प्राचार्य भी हिलते डुलते हुए उनके आगे पीछे करेंगे। नौकरी जो ना कराए। वैसे भी उनको पता है कोई सरकारी स्कूल के प्राचार्य तो हैं नहीं। प्रत्येक दिन छुट्टी के समय ज्ञान देंगे शिक्षकों को। उनका फेवरेट विषय घूम फिर कर पहुंच जाएगा वस्त्रों पर। दुनिया कहां से कहां पहुंच गई, नहीं बदला तो हमारी यह मानसिकता।

इन सबके बीच खुद को सहेजता, प्रत्येक दिन परिष्कृत करता, बच्चों को आदर्श सिखाता और अपनी तमाम कोशिशों द्वारा उन्हें सही मार्ग दिखाता, पूर्ण कर्तव्यनिष्ट दिखेगा आपको आपका अपना बेचारा/ बेचारी टीचर - जो कि सिर्फ आपकी दृष्टि में बेचारा है। वही है जो इन नौनिहालों को थामे है, संसार में बची कुछ अच्छाइयों को जीवित रखे है और गोविंद के जैसे आम होने के बावजूद विशिष्ट है अपने तरह से।

ॐ गोविन्दाय नमः।