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टेबल नम्बर सत्रह...

टेबल नम्बर सत्रह...

अपने दोस्तों के साथ जब संदीप ने भरी दोपहरी में तालाब के किनारे बने खूबसूरत रेस्तराँ विंड एंड वेव्स के एक हॉल में प्रवेश किया तो कुछ देर तक आँखें अंधेरे में झपक गयीं। वेटर ने एक खाली टेबल की तरफ इशारा किया और संदीप अपने दोस्तों के साथ बैठ गया। टेबल खिड़की के पास थी और वहाँ से दूर तक फैला तालाब दिखाई दे रहा था। आज हवा अच्छी चल रही थी तो तालाब में भी लहरें उठ रही थीं। इक्का-दुक्का नावें तैर रही थीं और बाकी किनारों पर बंधी हुई थी।

जब आँखें उस रौशनी की अभ्यस्त हो गई तो संदीप ने उत्सुकतावश हॉल में नजर घुमाई। हॉल के एक तरफ महिलाओं की किटी पार्टी चल रही थी। चार टेबलों को जोड़कर एक लंबी टेबल बना दी गई थी। करीब पंद्रह महिलाएँ होंगी जो उस वक्त कोई गेम खेल रही थी। उनकी तरफ के कोने में अच्छी खासी रौनक थी।

बिसलरी रखकर वेटर ने खाने का आर्डर लिया और चला गया। संदीप दोस्तों से बातें करते हुए फिर हॉल में नजरें घुमाने लगा। दोपहर का वक्त था तो रेस्तराँ में ज्यादा भीड़ नहीं थी। किटी पार्टी वाली महिलाएँ न होती तो हॉल लगभग खाली ही था।

नजरें घुमाते हुए संदीप की निगाहें बाएँ हाथ के कोने वाली एक टेबल पर ठिठक गयीं। वहाँ एक अकेली लड़की बैठी थी। उसे न जाने क्यों बड़ा अजीब लगा। अकेली लड़की का बैठे होना नहीं लेकिन भरी दोपहरी में लड़की का रेस्तराँ में बैठकर बियर पीना।

लड़की का ग्लास खाली हो चुका था उसने वेटर को बुलाकर एक बॉटल और लाने को कहा। वेटर ने खाली बॉटल उठा ली और नई बॉटल रख गया। अपने दोस्तों से गप्पों में मगन संदीप का ध्यान रह रहकर उस लड़की पर चला जाता। जल्दी ही वेटर ने खाना सर्व कर दिया। वे लोग खाने में जुट गए। लड़की बदस्तूर बॉटल खाली करने में लगी हुई थी। जब तक इन लोगों का खाना खत्म हुआ लड़की ने बियर खत्म करके एक और बॉटल का आर्डर दे दिया।

खाना खत्म करके संदीप को सिगरेट की तलब लगी तो वह बाहर ओपन रेस्तराँ में चला आया और रेलिंग से टिककर सामने तालाब की खूबसूरती को निहारते हुए उसने एक सिगरेट सुलगा ली।

"आपके पास लाइटर है?"

अपने पीछे एक लड़की की आवाज सुनकर संदीप ने चौंककर पीछे देखा। वही लड़की हाथ में सिगरेट लिए खड़ी थी। संदीप ने चुपचाप लाइटर आगे बढ़ा दिया। लड़की ने सिगरेट सुलगाकर एक लंबा कश लिया और लाइटर लौटा कर थोड़ी दूरी पर रेलिंग से टिककर खड़ी हो गई।

संदीप कनखियों से उसे देख रहा था। लड़की की भाव भंगिमाएँ बड़ी अजीब थी। उसका बार-बार पहलू बदलना उसके मानसिक रूप से विचलित होने का प्रमाण दे रहा था। जिस तरह से वह इस महँगे रेस्तराँ में बैठकर बियर पी रही थी और महंगी ड्रेस पहनी हुई थी उसे देखकर सहज ही अंदाजा हो जाता है कि वह किसी अच्छे अमीर घराने की है।

फिर क्या कारण है उसका यहाँ अकेले होने का। संदीप उसके बारे में जानने को उत्सुक हो उठा। उसकी छठी इंद्री कह रही थी कि इस लड़की के साथ कुछ तो अजीब है। इसकी मनःस्थिति ठीक नहीं लग रही। वह उससे बात करने के बहाने ढूँढने लगा।

"काफी अच्छी जगह है ये। मैं अपने दोस्तों के साथ अक्सर यहाँ आता हूँ।" संदीप ने कहा।

"हूँ" लड़की हामी भरकर चुप हो गई।

"आप भी अक्सर यहाँ आती रहती हैं?" संदीप ने अगला सवाल किया।

"हूँ" लड़की फिर इतना ही बोली।

"आप अकेली आयीं हैं, आपके फ्रेंड्स क्या देर से आएँगे?" संदीप ने फिर कुरेदा।

"हाँ मैं अकेली आयी हूँ। और मेरा कोई फ्रेंड-व्रेन्ड नहीं। सब साले...." लड़की होंठ चबाकर बोली और उसने सिगरेट का एक लंबा कश लेकर ढेर सारा धुआँ उगल दिया मानों अपने भीतर का गुबार बाहर फैंकना चाहती हो।

ओह... संदीप ने मन ही मन सोचा तो यह नाराज है अपने दोस्तों से किसी बात पर वरना ऐसा हो ही नहीं सकता कि किसी का कोई दोस्त ही न हो दुनिया में।

"फ्रेंड्स न हो ये बात तो मैं मान ही नहीं सकता। और फ्रेंड्स के बीच झगड़ा-वगड़ा तो चलता ही रहता है। किसी भी फ्रेंड को बुला लेती" संदीप ने कहा।

"किसे परवाह है मेरी। किसी के पास टाइम नहीं है मेरे लिए। सब रीना की बर्थडे पार्टी में बिजी हैं। बस मैं ही फालतू हूँ।" लड़की भुनभुनाई।

"तो आप नहीं गयीं पार्टी में?"

"नहीं। नहीं जाना मुझे कहीं। और क्यों जाऊं। ये आखरी पल मैं बस अपने आपके साथ जीना चाहती हूँ। एन्जॉय करना चाहती हूँ खुद के साथ।" लड़की के होंठों पर बड़ी रहस्यमयी मुस्कान छा गई।

संदीप बुरी तरह चौंक गया "आखरी पल? क्यों कल क्या शहर से बाहर जाने वाली हैं आप?"

लड़की के चेहरे पर पागलपन वाली चौड़ी मुस्कुराहट आ गई "शहर से बाहर नहीं, मैं दुनिया से बाहर जा रही हूँ। आज की रात मेरी आखरी रात है इस दुनिया में।"

"ये क्या कह रही हो। ऐसा क्या हो गया?" संदीप ने धड़कते दिल से पूछा।

"जब इस दुनिया में किसी को मेरी जरूरत ही नहीं, मेरा कोई भी नहीं तो मैं जी कर क्या करूँगी?" लड़की ने लाइटर लेकर दूसरी सिगरेट सुलगा ली।

"क्यों तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहन?"

"मैं इकलौती हूँ। मेरा कोई भाई-बहन नहीं। और माता-पिता को मुझसे ज्यादा अपने-अपने प्रोफेशन से प्यार है।" लड़की उपेक्षा से बोली। उसकी आवाज में अपने माता-पिता के लिए आक्रोश छलक रहा था।

'ओह तो यह बात है। यह अकेलेपन और उपेक्षा का शिकार है' संदीप कुछ-कुछ उसकी परेशानी समंझ रहा था।

"कोई बॉयफ्रेंड...?" बड़ी हिम्मत करके संदीप ने पूछा।

लड़की ने पहली बार संदीप की आँखों में सीधे घूरकर देखा फिर कहा "था, ब्लडी ....उसने भी छोड़ दिया।" वह गाली देकर बोली।

"पूछ सकता हूँ क्यों?"

"शादीशुदा था साला, बस मन भर गया उसका भी। सब साले धोखेबाज हैं, सब के सब। बीवी होते हुए भी साले कमीने कुँवारी लड़कियों को फँसाते हैं और शादी का बोलो तो किनारा करके बीवी के पल्लू में छुप जाते हैं। " लड़की फिर बहुत उद्विग्न हो गई "मुझे एक बात समंझ नहीं आती जब बीवी से इतना प्यार होता है कि आप उसे छोड़ नहीं सकते तो किसी लड़की की भावनाओं से खेलना क्यों?" लड़की के चेहरे पर क्षोभ भरा गुस्सा और आँखों मे आँसू झिलमिलाने लगे।

अब संदीप को साफ-साफ समंझ आया कि यह अपना रिश्ता टूट जाने की वजह से और घरवालों की उपेक्षा से टूटी हुई है। यह शायद बहुत अकेलापन महसूस कर रही है और अपने दिल की बात किसी से कह नहीं पाने के कारण मन ही मन घुट रही है। अगर इसे थोड़ी हमदर्दी मिल जाए तो शायद यह मरने का इरादा त्याग दे। क्योकि वास्तव में यह मरना नहीं चाहती।

"ऐसे रिश्ते तो टूटते ही रहते हैं। ऐसे लोग छोड़ देने के लिए होते हैं। इस तरह के धोखेबाज आदमी के लिए अपनी जान क्यों देना। तुम नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करो। लात मारो उसे और आगे बढ़ो।" संदीप ने दोस्ताना सलाह दी।

"लात तो मैं भी मारना चाहती हूँ लेकिन कमबख्त मेरा कॉल ही नहीं उठाता। ब्लॉक कर दिया है मुझे" लड़की बोली।

"लो मेरे फोन से लगा लो। अननोन नम्बर देखकर शायद उठा ले।" संदीप ने अपना फोन आगे बढ़ा दिया।

लड़की ने क्षण भर के लिए अविश्वास की दृष्टि से उसे देखा फिर फोन ले लिया और अपने बॉयफ्रेंड का नम्बर डायल करके स्पीकर ओन करके जैसे ही उधर से हेलो सुनाई दिया उसे गालियाँ देने लगी। जल्द ही उस आदमी ने फोन काट दिया।

"इससे पहले की वह इस नम्बर को ब्लॉक करे उसे व्हाट्सएप पर जो गालियाँ देनी है दे दो जल्दी से।" संदीप बोला।

लड़की बड़ी उद्विग्नता से टाइप करने लगी। जल्दी ही उसने मेसेज सेंड कर दिया। उसके माथे पर पसीना छलछला रहा था, साँसे तेज चल रही थीं लेकिन चेहरे पर हल्की सी राहत के भाव थे। संदीप को मन में कहीं आश्वस्ति सी लगी कि शायद अब ये मरने का ख्याल छोड़ दे।

"थैंक्स...." लड़की ने फोन वापस करते हुए कहा।

"तो अब तुम आत्महत्या नहीं करोगी न?" संदीप ने पूछा।

"हम्म, क्या पता। लेकिन मैं जियूँ भी तो किसके लिए?" लड़की असमंजस में बोली।

"अपने लिए और किसके लिए। तुम्हे पैसों की कोई कमी नहीं। जो मर्जी चाहे कर सकती हो। फिर किसी धोखेबाज के लिए अपनी जान देकर अखबार की सनसनी खबर क्यों बनना। पता है न मरने, खास तौर पर सुसाइड करने के बाद सारे के सारे अखबार किस तरह से उस मौत को भुनाते हैं। क्या-क्या अटकलें लगाते हैं। मुझे तो सोचकर भी झुरझुरी होती है।" संदीप ने कहा।

लड़की सोच वाली मुद्रा में आ गई "पता है इतना प्यार करती थी मैं उससे। लेकिन उसने मुझे सिर्फ यूज़ किया। मेरी भावनाओं का खिलवाड़ किया।" लड़की विस्तार से बताने लगी। मिलने से लेकर अलग होने तक कि कहानी सुना दी उसने। अब उसके चेहरे पर राहत के भाव थे। भीतर का गुबार निकल गया था।

"तुम्हारे जैसी बोल्ड, मैच्योर और खूबसूरत लड़की के पीछे तो कोई भी लड़का दीवाना हो जाएगा। इसे एक बुरा सपना समझकर भूल जाओ और नए सिरे से जिंदगी शुरू करो।" संदीप ने स्वर में हमदर्दी भरकर दोस्ताना लहजे से कहा। इसी की तो उसे जरूरत थी।

लड़की कुछ पलों तक उसे देखती रही फिर सिर झटककर मुस्कुराई और एक और सिगरेट सुलगा ली उसने।

संदीप के दोस्त हॉल से बाहर निकल कर उसे इशारा करके कार की तरफ बढ़ गए।

"अब मैं चलूँगा। शहर में डांस कॉम्पिटिशन का एक इवेंट है उसी के लिए जज बन कर शाम को जाना है। तुम क्यों नहीं आ जाती वहाँ। तुम्हारा भी मन बहल जाएगा। बेटर फील करोगी।" संदीप ने कहा।

"नहीं मैं सोचती हूँ रीना की बर्थडे पार्टी में चली जाऊं। फ्रेंड्स से मिलना भी हो जाएगा।" लड़की बोली।

"ठीक है, मैं चलता हूँ। तुम्हे कहीं ड्राप करना है तो आओ।"

"नहीं मैं अभी एक बियर और पियूंगी फिर घर जाऊँगी। कार है मेरे पास।"

"ठीक है तो मैं चलता हूँ और ये सुसाइड का फालतू का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दो।"

"ठीक है निकाल दूँगी। अपना नम्बर दो सुबह कॉल करके बता दूँगी की जिंदा हूँ।" इस बार वह खुलकर मुस्कुराई और संदीप ने गौर किया कि वह वाकई बड़ी खूबसूरत है। उसने लड़की को अपना नम्बर दे दिया और उससे विदा लेकर कार में आ बैठा।

"कौन थी वो? बड़ी घुलमिल कर बातें हो रही थीं, पुरानी कोई थी या नई..." दोस्तों ने छूटते ही पूछा।

"अबे कमीनों नई, पुरानी कोई नहीं थी। परेशान लड़की थी आत्महत्या करने वाली थी रात में।" संदीप ने पूरी कहानी सुनाई।

तभी उसका फोन बजा। उसी लड़की का फोन था। थेंक्स कह रही थी कि उसे अब अच्छा लग रहा है संदीप से बातें करने के बाद।

"देख भाई कहीं ये लड़की सच में मर गई तो याद रखना की इसके फोन में आखरी कॉल तेरे ही नम्बर पर रहेगा। फिर रेखा भाभी का क्या होगा" राजेश ने कहा।

संदीप को ध्यान आया। ऐसा तो उसने सोचा ही नहीं था।

"लेकिन जब कोई जान पहचान ही नहीं थी तो उसने इतनी बातें तुझे बताई ही क्यों ये समंझ नहीं आ रहा। चुपचाप कर लेती सुसाइड।" वीरेंद्र ने कहा।

"कई बार होता है कि जिंदगी में इंसान से कोई गलती हो जाती है तो वो मन ही मन घुटता रहता है। रिश्तों में मिला धोखा उसे अवसाद से भर देता है। दुनिया क्या कहेगी, लोग क्या सोचेंगे, लोगों में उसकी क्या छवि रह जाएगी आदि बातें उसे किसी से भी ये घुटन शेयर करने से रोक देती हैं। नतीजा मनुष्य गहरे अवसाद में घिरकर आत्महत्या के विचारों तक पहुँच जाता है।" संदीप ने बताया।

"जो किसी से नहीं कह पाई वो तुझे कैसे बता दिया?" राजेश ने उत्सुकता से पूछा।

"इसलिए कि मैं उसके लिए अजनबी हूँ और शायद आज के बाद उसे कभी मिलूँगा भी नहीं। इसलिए मैं उसके बारे में क्या सोचूँगा, कहूँगा इसकी उसे परवाह नहीं है। एक अजनबी के सामने उसे अपनी छवि की चिंता नहीं। इसी सहजता ने उसे मुझसे बात करने को प्रेरित किया।

वह कुछ नहीं चाहती थी, वह तो बस अपने मन का तनाव, अवसाद, घुटन किसी के सामने निकालकर हल्की होना चाहती थी।" संदीप बोला।

इवेंट की जगह आ गई और संदीप कार्यक्रम में व्यस्त हो गया। देर रात जब वह फ्री होकर घर पहुँचा तो देखा व्हाट्सएप पर उस लड़की ने फोटो भेजे थे । अपनी सहेली की बर्थडे पार्टी में अपने सारे फ्रेंड्स के बीच मुस्कुराती हुई वह सहज लगी।

संदीप को सन्तोष हुआ। क्षणिक आवेग और उन्माद की नासमझ अवस्था के बीत जाने से एक जिंदगी व्यर्थ होकर अखबार की नकारात्मक खबर बनने से बच गई।

मनुष्य को क्या चाहिए, एक ऐसा साथी ही न जो उसके लिए थोड़ा समय निकालकर उसके सुख-दुख बाँट ले बस। जिसके सामने वह अपना सही-गलत सब कह सके, बस इतनी ही सी तो चाहत होती है हर व्यक्ति की।

उसने मन ही मन उस लड़की को ढेर सारी शुभकामनाएं दी जिसका नाम तक पूछना वह भूल गया था।

डॉ विनीता राहुरीकर