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समर्पण


क्या तुम्हे पता है राधिका इस समय हम कहां है ? नहीं! और मै जानना भी नहीं चाहती मोहन, क्योंकि मै इतना जानती हूं कि जहां तुम हो वहां मै हूं, तो इससे मुझे कोई मतलब नहीं है कि हम कहां है और कहां नहीं। राधिका क्या तुम मेरे साथ हर पल हर जगह मौजूद रह सकती हो ? मै तुम्हारे साथ हर पल, हर घड़ी और धरती के हर उस कण - कण में बस सकती हूं मोहन, जहां तुम्हारा निवास हो। तुम मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा हो मोहन मै तुम्हारे साथ नहीं तो मै अधूरी हूं मोहन इसलिए मैंने तुम्हे अपने मन मंदिर में बसा लिया है, जहां केवल तुम हो और तुम पर मात्र मेरा अधिकार है।
अधिकार की बात मत किया करो राधिका मै इस अधिकार तले दबना नहीं चाहता क्योंकि संसार का यह नियम है कि हर व्यक्ति किसी ना किसी के अंदर रहकर ही जीवनयापन करता है। तुम कहना क्या चाहते हो मोहन ? स्पष्ट कहो मै समझ नहीं पाई।
मेरे कहने का अर्थ यह है राधिका की मै एक पुत्र हूं तो पहला अधिकार माता - पिता का है भाई - बहन का है, गुरु का है, मित्र का है तत्पश्चात तुम्हारा अधिकार है। मतलब ? तुम्हारे जीवन पर मेरा कोई अधिकार नहीं ? तुम्हारे हृदय में मेरे लिए कोई स्थान नहीं ? ऐसा बात नहीं है राधिका मेरे जीवन पर माता - पिता के बाद सबसे अधिक - अधिकार तुम्हारा ही होगा। पता है क्यों - क्योंकि तुम सबसे अंत में मेरे जीवन में आई हो और जो अंत में आता है वह शेष भाग के साथ संपूर्ण हो जाता है। तुम्हारी बातें तुम्हीं जानो, मै तो बस इसी तरह हर रोज इसी पीपल के नीचे ठंडी छांव में नदी के तट पर तुम्हारे साथ शाम कर देना चाहती हूं। और सूरज की लालिमा में खुद को सराबोर करके एक नये रंग का अनुभव प्राप्त करना चाहती हूं। क्या तुम मेरे साथ प्रतिदिन यहां आओगे मोहन ? इस एकांत वातावरण में जहां केवल मै और तुम और पक्षियों की मनमुग्ध आवाज और कोई नहीं। राधिका तुम इतने समय एक साथ व्यतीत करके भी ऐसे प्रश्न कर रही हो जबकि मै प्रतिदिन तुमसे पहले यहां आकर तुम्हारे आने की राह देखा करता हूं। मै जानती हूं मोहन तुम मुझसे बहुत प्रेम करते हो किन्तु एक स्त्री को सदैव अपने मन की इच्छा को दूसरे से सुनकर एक सुंदर अहसास मिलता है। राधिका इस संध्या का अवलोकन अंतर्मन से करके देखो जिस लालिमा की बात कर रही थी तुम उससे अधिक मिठास तुम्हें इस झिलमिल नदी में मिलेगा। उस तरफ देखो राधिका बिल्कुल तुम्हारे आंखों के जैसी चमक और अधरों पर बसी लालिमा एक साथ होकर नवीन रंग दर्शाते हुए नजर आ रही हैं। रवि की किरणें एक सिंदूरी रंग से ओत - प्रोत मानो इस नदी में सम्लित होकर खुद को समर्पित कर देना चाहती हों। मोहन इन्हीं किरणों की भांति मेरा मन भी यही कहता है कि मै तन - मन और जीवन को तुम्हे समर्पण कर तुममें है मिल जाऊं। राधिका आज तुम्हें जीवन का एक सुंदर रहस्य बता रहा हूं इसपर विचार करना क्या जीवन इससे अलग और कुछ हो सकता है। जिस तरह सूरज का उदय होता है और वह एक तेज के साथ सारे संसार को दिन भर के लिए प्रकाशित करता है किन्तु जैसे - जैसे उसका तेज कम होता है वह संध्या को अपना पल समर्पित कर देता है और फिर पूरी तरह उसी में विलीन हो जाता है। किन्तु अगले दिन फिर वह एक नई दिशा और नये प्रकाश के साथ उदय होता है, ठीक उसी प्रकार मै तुमसे मिलकर एक नई शुरुआत करूंगा और इसी संध्या के साथ तुम और मै एक दूसरे को समर्पण कर प्रेम में संलग्न हो जाएंगे। किन्तु अभी हमे अपने घरों को लौटना चाहिए वहां सब हमारी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। हां मोहन तुम ठीक कह रहे हो चलो अब घर जाना अतिआवश्यक हो गया है।
राधिका की मां - मिल आई उस मोहन से जिसे घर का एक काम तक नहीं होता वह तुम्हारे लिए क्या करेगा बिटिया तुम जानती हो कि वह जिम्मेदार नहीं है वह तुम्हे कोई सुख नहीं दे सकता।
राधिका - मां मुझे मोहन से कोई अपेक्षा नहीं है मुझे उससे और कुछ नहीं चाहिए शिवाय प्रेम के। और जहां प्रेम - स्नेह मिले वहां किसी और चीज की इच्छा करना मेरी सोच से परे है मां।
मां - ठीक है यदि तुझे और कोई सुख नहीं चाहिए तो मै तेरा विवाह उस मोहन से जरूर करा दूंगी। द्वापर में राधिका मोहन से नहीं मिल पाई थी फिर भी वह प्रेम का प्रतीक बन अमर है। और इस युग में राधिका - मोहन से मिलकर कितना सुखी और संपूर्ण हो पाती है। जीवित रही तो अवश्य देखूंगी।
राधिका - हां मां तुम ही नहीं पूरी दुनिया द्वापर कि राधिका को देवी मानती है क्योंकि वह राधिका भी एक सच्चे प्रेम में खुद का समर्पण कर चुकी थी और आज यह राधिका भी विश्वास दिलाती है कि यह मोहन सिर्फ मेरा है और मेरे प्राण भी उसी दिन निकलेंगे जिस दिन मोहन इस दुनिया से जाने के लिए कह देगा।
मां - हां हां बहुत हो गया तेरा प्रेम प्रसंग अब रात हो रही है खाना बनाना बाकी है। तू खाना बना मै सुबह के लिए चावल निकाल लेती हूं।
राधिका - ठीक है मां जरा रेडियो चालू कर देना आज शनिवार है विविध भारती पर " जयमाला आने वाला है देशभक्ति गीत सुनुंगी।
मां - अरे वाह दिन भर प्रेमभक्ति और अब देशभक्ति पूजा - भक्ति भी किया कर भाग्य उदय होगा तेरा भी और उस मोहन का भी। ( जयमाला कार्यक्रम का पहला गीत बजा - जिंदगी की ना टूटे लड़ी, प्यार कर ले हो... ओ प्यार करले घड़ी दो घड़ी।) राधिका भी साथ में गुनगुनाने लगी।
उधर मोहन घर पहुंचा तो बड़ी भाभी पूछ बैठी - कहां थे अब तक राधिका के मोहन ? मोहन भी इशारों - इशारों में बोल दिया - भाभी राधिका का है मोहन तो राधिका के पास ही रहेगा न और कहां जाएगा। अब ये बताओ पिता जी कहां है ? उन्होंने कुछ पूछा तो नहीं ना मेरे बारे में ?
भाभी - नहीं कुछ पूछे तो नहीं पर उन्हें अब तुम्हारे विवाह की चेष्टा होने लगी है बस इसी विषय पर कल चर्चा होने वाली है। और बहुत ही जल्द वह शुभ घड़ी भी आने वाली है जब तुम्हारे सिर पर भी पगड़ी बंधेगी। और हां मुझे ही नहीं अब तो बाबू जी को भी सबकुछ पता चल गया है, कल राधिका की मां आने वाली हैं विवाह की तिथि तय करने अब तुम्हे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
अगले दिन सुबह हुई और मोहन सबसे पहले उठकर घर का सारा काम अकेले ही निबटा लिया और नदी में स्नान करने चला गया। मोहन को बड़ी बेसब्री से दोपहर का और राधिका से मिलने का इंतजार था। दोपहर को प्रतिदिन की तरह आज भी मोहन पहले ही पहुंच चुका था। राधिका के आते ही वह एक गीत गुनगुनाने लगा - बहारों फूल बरसाओ मेरा मेहबूब आया है, मेरा मेहबूब आया है। राधिका हस्ते हुए बोली क्या बात है आज बड़े खुश लग रहे हो कुछ मिल गया है क्या ?
हां राधिका आज मुझे एक ऐसी चीज मिली है, एक ऐसा तोहफा मिला है जिसके लिए मै वर्षों से तड़प रहा था जो मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। ऐसी भी क्या चीज है मोहन जो तुमने मुझे आजतक नहीं बताया। ( राधिका के हंथों को पकड़ते हुए) हां राधिका माइंड तुम्हे आजतक इसलिए नहीं बताया क्योंकि मुझे दर था कि तुम जानोगी तो कहीं तुम्हारा प्यार दो भागों में बट ना जाये। राधिका मै तुम्हे बेहद प्रेम करता हूं और अब हम दोनों बहुत ही जल्द एक पवित्र बंधन में बंधने वाले हैं। हां मोहन आज सुबह मां ने मुझे सबकुछ बताया और मै आज बहुत खुश हूं। बहुत ही भाग्यशाली होते हैं वो लोग जिन्हें अपना प्रेम करने वाला साथी उम्र भर के लिए मिल जाता है। राधिका दो प्रेम करने वाले यदि उम्र भर के लिए मिल जाते हैं तो बहुत ही प्रसन्नता की बात है क्योंकि वह दोनों एक नए परिवार और गृहस्थ का संचार करते हैं और फिर प्रेम संक्षिप्त मात्र भर रह जाता है। किन्तु दो प्रेम करने वाले जब अलग - अलग रहते हैं तो दोनों के मन में एक - दूसरे के प्रति सदैव प्रेम बना रहता है और वह अंततः अमर हो जाता है। हां मोहन! लेकिन हमारा प्रेम एक होकर भी दुनिया के लिए उदाहरण का प्रतीक माना जाएगा। और फिर मै हर जन्म में ईश्वर से प्रार्थना करके तुम्हे ही पाना चाहूंगी। राधिका जिस दिन हमारा विवाह होगा हम संध्या के समय यहां जरूर आएंगे और फिर मै तुमसे एक वचन मांगूंगा। तुम पूरा करोगी न ? मोहन यदि तुम मेरे प्राण भी मांगोगे तो मै तुम्हे मना नहीं करूंगी। राधिका कभी - कभी इंसान को मरने से ज्यादा जीना कठिन हो जाता है और तब मनुष्य हार जाता है और अपने प्राण त्याग देता है जो किसी भी मनुष्य के लिए कायरता सिद्ध कराती है। ठीक है राधिका जिस दिन हम यहां आएंगे उस संध्या को हमारे बीच कुछ बात होगी।
समय और तिथि तय होने के साथ - साथ आखिर वह दिन भी आ गया जब दोनों का विवाह बड़े धूम - धाम से संपन्न हुआ। और फिर दोनों अपने कहनेनुसार संध्या को उसी पीपल के नीचे नदी के तट पर पहुंचते हैं। कुछ बातें हुई ही थी कि एक सर्प मोहन के पैरों में डंस कर चला गया। मोहन जमीन पर गिर पड़ा और राधिका जोर - जोर से चिल्लाने लगती हैं आवाज सुनकर लोग इकट्ठा होते हैं और फिर वैद्य को बुलाते हैं लेकिन मोहन कि हालत गंभीर होती चली जाती है। राधिका रोते हुए कहती है - क्या वचन था तुम्हारा मोहन ? क्या इसीलिए यहां ले आए थे ? आज के दिन ही तुम इस तरह का विश्वासघात मेरे साथ कैसे कर सकते हो मोहन ? बिन तुम्हारे इस दुनिया में राधिका का क्या काम है, मै भी अपने प्राण त्याग इस नदी में डूब जाऊंगी। नहीं राधिका (अपने अंतिम क्षणों में मोहन) तुम ऐसा नहीं कर सकती तुम्हे जीना होगा राधिका अपने लिए ना सही हमारे प्रेम के लिए तुम्हे जीना होगा। मैंने उस दिन एक वचन कि बात कही थी आज मुझे वचन दो की तुम आत्महत्या या फिर जानबूझ कर मरने कि कोशिश नहीं करोगी। वचन दो राधिका मेरे पास वक्त बहुत कम है किन्तु ईश्वर ने चाहा तो मै इस नदी से जीवित होकर लौटूंगा। मोहन मै तुम्हे वचन देती हूं की मैं सदियों तक तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी और सिर्फ तुम्हारी होकर तुम्हारे नाम में अपने आपको समर्पित करती हूं। राधिका किसी के लिए मरना बहुत सरल होता है लेकिन जीवित रहना अत्यंत कठिन हो जाता है। धैर्य मत खोना राधिका अपने मोहन पर विश्वास रखना। इतना कहते ही मोहन की सांसे थम सी गई और धड़कन कि गति भी धीरे - धीरे रुक गई। राधिका की आंखे रो - रो कर पत्थर हो चुकी थी। अब तो बस पीपल की छांव और खामोशी से बहता हुआ पानी मानो राधिका का सुख - चैन ही छीन ले गए हों और वह उनके पास अपने खुशियों को वापस पाने की गुहार लगाती बैठी रहती। ना खाने का समय ना प्यास की चिंता केवल नदी को निहारते ही रहती मानों मोहन इस नदी से अभी तैरता हुआ बाहर आने वाला ही हो।
राधिका की मां और मोहन के पिता ने राधिका को बहुत समझाया कि अब कई वर्ष बीत चुके हैं मोहन अब उसका अतीत है उसे भूल कर एक नई दुनिया में कदम रखे। किन्तु राधिका साफ इंकार कर कहती "राधिका का जीवन मोहन को समर्पण हो चुका है" अब तो वह ही मात्र उसके जीवन का आधार है और उसे अपने प्रेम पर पूरा विश्वास है कि वह जीवित है। क्या हुआ यदि हम एक नहीं हो पाए तो हमारा प्रेम सदियों तक अमर रहेगा। लगभग बीस वर्षों तक राधिका प्रतिदिन सुबह से शाम उसी पीपल की छांव में बैठकर नदी को निहारती रहती और चुपचाप आंखों से एक अश्रु रूपी नदी बहती रहती जिसे देखकर हर व्यक्ति के मन में ईश्वर को कोसने की भावना उत्पन्न हो जाती। एक दिन दोपहर के समय गांव कि और से हलचल भारी आवाज सुनाई देने लगी। गांव के कुछ बच्चे और बड़े लोग एक आदमी के पीछे चले आ रहे थे। वह व्यक्ति बड़ी - बड़ी दाढ़ी और मूंछ के साथ एक फटे- पुराने वस्त्र में चला आ रहा था। राधिका के मन में मानों आज कई वर्षों बाद किसी व्यक्ति को देखने की इच्छा जागृत हुई और वह पीछे मुड़कर देखने लगी। लोग उस व्यक्ति को नदी के तट पर आने से रोकना चाहते थे परन्तु वह दौड़ता हुआ चला आ रहा था। राधिका को देख अचानक वह रुक गया और आंखों से प्रेम की वर्षा होने लगी। किन्तु राधिका अब भी मोहन कि यादों के साथ सिमटी हुई थी।
तब उस व्यक्ति ने आ फिर से वही गीत गाना शुरू किया जो पहले कभी इसी वृक्ष के नीचे गाया था। " बहारों फूल बरसाओ मेरा मेहबूब आया है, मेरा मेहबूब आया है। " अब राधिका को पूर्ण विश्वास हो गया कि उसका मोहन उसके समक्ष खड़ा है। दोनों एक दूसरे को इस तरह भेंटते हैं जैसे चंदन के पेड़ से लिपटा हुआ सर्प। दोनों का यह मिलन देख गांव के लोगों का भी मन भर आया और सकी आंखें नम हो गई।
धन्यवाद
लेखक - ज्योति प्रकाश राय