Yaarbaaz - 16 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

यारबाज़ - 16 - अंतिम भाग

यारबाज़

विक्रम सिंह

(16)

घर के अंदर प्रवेश करते ही जैसे ही मैं अपने जूते के तसमें खोलने लगा कि मां ने रसोई से ही मुझे कहना शुरू किया," अरे फिर तुम चले गए थे इंटरव्यू देने। पापा ने तुम्हे मना किया है ना इधर उधर फालतू की भटकने के लिए।" पर मैं बिना कुछ जवाब दिए चुपचाप जूते तसने खोलता रहा। फिर मां ने कहा," कैसा रहा इंटरव्यू ठीक गया है ना अपने बारे में सब ठीक से बता दिया है कंप्यूटर वगैराह सब आता है।"

" हां बता दिया है सब कुछ।" मां प्यार से समझाने की कोशिश करने लगी ठीक है, मुंह-हाथ धो लो मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं। वैसे तो पापा तुम्हारे बीएड की तैयारी और सरकारी नौकरी की तैयारी करने को कहते हैं तुम हो कि बस हर जगह नौकरी ढूंढने चले जाते हो। बीएड की भी तैयारी करनी है। अगर इसी तरह नौकरी के लिए भटकते रहोगे तो पढ़ोगे कब?"

मां ने रसोई में चाय बनाते हुए ही कहा, "तुम्हारा कोई लेटर आया है"

"एडमिट आया होगा देख लूंगा।" क्योंकि हर बार ऐसे ही एडमिट आया करता था और मां मुझे बता देती थी कि तुम्हारा कोई लेटर आया है । वह भी यह जानती थी कि इसके सारे लेटर नौकरी के एडमिट कार्ड ही होते हैं । मां ने फिर कहा,"नहीं श्याम का लेटर आया है"

"क्या?" मैं उत्साहित होकर झट पट बाथरूम से मुंह हाथ धो कर तोलिए से पूछते हुए अंदर आ गया। और लेटर को हाथ में उठा लिया फटाफट उसे फाड़ कर पढ़ने लगा यह पत्र श्याम का था पत्र में लिखा था

"कैसे हो मेरे दोस्त तुम्हारा लंबे समय से कोई फोन नहीं आया फिर मैंने भी तो तुम्हें कभी फोन नहीं किया लेकिन अब मुझे तुम्हारी याद बहुत आ रही है तुम्हारे साथ कुछ पल बिताना चाहता हूं एक खास बात तुम्हारा दोस्त श्याम एम.एल.ए बन गया है मैं चाहता हूं जीवन के आखिरी समय एक साथ मिलकर काम करें क्या तू मेरे साथ सेक्रेट्री के तौर पर काम करना चाहोगे आशा है तुम मुझे ना नहीं करोगे तुम्हारे इंतजार में तुम्हारा दोस्त।" मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था मैंने कभी ऐसा सोचा ही नहीं था । श्याम मुझे इस तरह याद करेगा सही मायनों में मैंने भी श्याम को लंबे समय से कभी फोन नहीं किया था अपनी पढ़ाई घर में बहन की शादी की तैयारी इन सब चीजों में उलझा रहा। मेरा भी तुरंत मन किया कि आज की ट्रेन पकड़ के उसके पास पहुंच जाऊं और मैंने किया भी ऐसा ही सप्ताह भर में ही मैंने बिना किसी से पूछे तुरंत टिकट करा लिया हां मुझे इस बार डायरेक्ट मऊ का टिकट नहीं मिला मैंने बनारस तक का टिकट ले लिया। क्योंकि बनारस से मऊ इंटरसिटी पकड़ जाने का सोच लिया था। टिकट होने के बाद बस एक दिन मैंने पापा से कहा कि मैं श्याम के पास जा रहा हूं। इस बार मां ने भी मुझे नहीं टोका क्योंकि वह यह जानती थी कि श्याम तो अब नेता है। मगर ना जाने सब कुछ हो जाने के बाद भी मेरा मन मुझे ना जाने के लिए गवाही देने लगा मेरा मन को जैसे ही को हर्ट हुआ कि मैं पढ़ लिख कर एक नौकरी नहीं ले पा रहा हूं। एक नेता बेशक वह मेरा मित्र ही था मुझे लगा कि मुझे एक नेता अब नौकरी के लिए बुला रहा है। मगर दिल में अपने मित्र की एक छोटी सी जगह थी फिर सोचा चलो कम से कम उसकी उपलब्धि को तो देखकर आओ उसे बधाई तो दे कर आओ। मैंने एक दिन ट्रेन पकड़ ली। ट्रेन पकड़ कर निकल गया। बनारस मुझे ट्रेन ने रात दो बजे ही उतार दिया था। हल्की हल्की मुझे नीद अा रही थी। पर मुझे इंटर सिटी पकड़ने की चिंता थी। मैंने एक सज्जन से पूछा,इंटर सिटी कितने नम्बर प्लेटफार्म पर लगेगी?"

"छह पर चले जाइए।"

मैं तुरंत काउंटर से टिकट ले कर प्लेटफार्म नम्बर छह पर चला गया। प्लेटफार्म पर पहुंच मैं एक बार फिर री कंफर्म होना चाहता था। मैंने प्लेटफार्म में एक पढ़े- लिखे सज्जन व्यक्ति को देखा। जिसका कद लंबा,देह दुबला,रंग गोरा,आंखो में चश्मा,बदन में पेंट शर्ट और शर्ट के पॉकेट में कलम टांग रखी थी। मैंने नवयुवक से पूछा, इंटरसिटी क्या इसी प्लेटफार्म में लगेंगी। "मुझे पता नहीं है,उस चाय वाले से पूछ लो। इशारा करते हुए कहा।

मैं चाय वाले से पूछ दुबारा वहीं आकर अटैची में बैठ गया। मेरे ठीक सामने दो गोरी मैम बैठी थी। मेरे लिए किसी गोरी को देखना पहला अवसर था। नहीं तो इसके पहले मैंने गोरी गोरो को सिर्फ फिल्मों में ही देखा था। भारतीय नवयुवक ने मुझसे पूछा," कहां जाओगे।"

"जी मऊ"

मैंने देखा जितनी उत्सुकता गोरो गोरी की प्रति मेरी थी उतनी ही उस नवयुवक की भी थी। क्योंकि वह भी बीच बीच में गोरो को देख रहा था। फिर मैंने नवयुवक से पूछा, "सर आप कहां जायेंगे?"

उन्होंने जवाब दिया, "मैं तो राजस्थान जाऊंगा। मऊ में क्या कोई इंटरव्यू, एग्जाम के लिए जा रहे हो या गांव है तुम्हारा।"

"यूं तो पहली दफा लगा कि मैं गर्व से कहूं कि मेरा दोस्त है जो एमएलए है उससे मिलने जा रहा हूं पर मुझे यह बहुत ही बचकानी से आदत लगी। मैंने बस इतना ही कहा, नहीं मेरा मित्र रहता है मैं उसके यहां घूमने जा रहा हूं।"

"क्या करते हो तुम?"

"जी फिलहाल तो एम ए फाइनल हो गया है बाकी नौकरी की तलाश में हूं कई जगह प्रयास कर रहा हूं। आप क्या करते हैं?"

"पीएचडी कंप्लीट हो गई है शास्त्र संगीत में भी पढ़ाई की है फिलहाल मैं राजस्थान में भी शास्त्र संगीत सिखा रहा हूं प्रोफेसर की नौकरी के लिए प्रयास कर रहा हूं। मैं भी धक्के खा रहा हूं । क्या है ना?आजकल बिना किसी मंत्री सोर्स के जल्दी नौकरी नहीं होती। काबिलियत होने पर भी आपको सही समय का इंतजार करना पड़ेगा। उसके लिए आपको एक धैर्य की जरूरत है। उस सही समय का इंतजार करेगा वहीं कामयाब होगा असली काबिलियत यही है।"

काफी समय तक एक ही स्थान पर बैठे -बैठे नवयुवक उब सा गया था तो उसे इस बोरियत को दूर करने की युक्ति यह सूझी कि क्यों ना थोड़ा प्लेटफार्म टहल लिया जाए।

मैं और वो नवयुवक उठ कर आगे को चलने लगे मैंने अपनी अटैची उठा ली थी उसके पास जो बैग थी वह पहिये वाली थी वह आराम से रेंगा कर ले जाने लगा मेरे पास जो छोटी सी अटैची थी उसको मैंने हाथों में ले लिया।

"देखो हम दोनों की कब से बात हो रही है लेकिन मैंने तुम्हारा अभी तक नाम नहीं पूछा अपना नाम तो बताओ।"

"राजेश कुमार! सर आपका नाम?"

"अजय प्रताप सिंह!" नाम बताते हुए उसने मुझसे हाथ भी मिलाया।

अजय और मैं चलते हुए आगे को जा रहे थे कि थोड़ी ही दूर पर उसने एक नौजवान अंग्रेज को खड़ा देखा साथ ही दो नौजवान अंग्रेज लड़कियां भी देखी एक पतली दुबली दूसरी सेहत से भरपूर दोनों पास ही अपने अपने बेग पर बैठी थी अजय अचानक मुस्कुरा कर नौजवान अंग्रेज के पासआकर अटक गया आगे बढ़ने की कोशिश करते हुए मैं भी वहीं अटक गया।

"हेलो!" अजय नौजवान अंग्रेज से बोला "हेलो!" नौजवान अंग्रेज ने भी सर हिला कर जवाब दिया।

"वहां बैठा था आपको देखा तो सोचा आप से मिल लें। "

"कोई बात नहीं"

"कहां के रहने वाले हैं आप"

" कनाडा का रहने वाला हूं और आप बनारस के रहने वाले हैं।"

" मैं राजस्थान का रहने वाला हूं"

"आपने अपना नाम नहीं बताया।"

" अजय प्रताप सिंह! आपका नाम।"

" रिचर्ड!"

"रिचर्ड" ने धीरे से मेरी तरफ मुंह कर पूछा," यह आपका दोस्त है।"

अजय मुस्कुराते हुए बोला," यहीं प्लेटफार्म में इससे मेरी दोस्ती हुई है जैसे आप से।"

"अच्छा लगता है आप काफी दोस्ती करने वाले इंसान लगते हैं।"

" जी हां,मैं जहां रहता हूं, वहां कई विदेशी आते हैं घूमने और कईयों से मैंने दोस्ती की है राजस्थान में न्यूयॉर्क एक बड़ी कंपनी के डायरेक्टर आए थे उनसे भी मेरी बहुत अच्छी दोस्ती हुई थी"

"तब तो सही में आप एक दिलचस्प लड़के हैं।"

तभी एक छोटा सा बालक, नंगे बदन आया उसके बदन की एक- एक हड्डी नजर आ रही थी पेट पर हाथ रख बोला भूख लगी है कुछ खाने को मिलेगा।"

रिचर्ड उसके इशारे को देख समझ गया कि बालक कुछ खाने को मांग रहा है रिचर्ड ने अपने बैग को जैसे ही खोला अजय ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला छोड़िए सब यही मांगते फिरते हैं ऐसे ही आपको बहुत मिलेंगे।

"छोड़िए बच्चा है मांग रहा है दे देता हूं।"

"नहीं, मैं कहता हूं मत दीजिए।"

अजय ने उस बालक की तरफ मुंह कर बड़ी कड़क आवाज में कहा,"चलो भागो यहां से"

बालक यह सुन चला गया जैसे उसकी पेट में किसी ने लात मार दी हो।

अब अजय जो अब तक मुझे दिलचस्प व्यक्ति लगा रहा था अब मुझे कुछ खड़ूस सा लगने लगा मेरे मन से इस वजह से उतर सा गया।

अजय ने कहा, "अच्छा ठीक है अगली बार जब आप कभी इंडिया घूमने आएंगे तो राजस्थान जरूर आइएगा।"

"जी अच्छा जरूर आऊंगा क्या वहां सभी इंग्लिश बोलना जानते हैं।"

"हां ८० प्रतिशत लोग पढ़े लिखे हैं।"

"अच्छा।"

"ऐतिहासिक जगह है वहां कई विदेशी रहते हैं कईयों ने वहां हिंदुस्तानियों से शादी कर ली है और खेती करते हैं पगड़ी धोती कुर्ता भी पहनते हैं।"

"सचमुच"

"हां सच"

"यहां बनारस में कैसा आना हुआ?"

"इंटरव्यू था वैसे आप क्या करते हैं?"

"मैं कंपनी में कार्यरत हूं।"

अब मुद्दे की बात पर आ गया था।

आपके कनाडा में तो शास्त्रीय संगीत के लिए स्कोप होगा।

"ठीक ठीक तो बता नहीं सकता पर होना जरूर चाहिए। इस तरफ कभी रुचि नहीं रखी।"

"अगर मेरे लायक कुछ काम हो तो मुझे बताइएगा।"

"श्योर, श्योर।"

"भारत देश पूरा घूम लिया कैसा लगा।"

"हां बहुत बहुत अच्छा लगा।"

"क्या सिर्फ घूमने आए थे या किसी काम से भी आए थे।"

"मैं इंडिया में कई जगह घूमने गया कुछ ऐसे इलाकों में भी गया जहां बहुत ही पिछड़े वर्ग के लोग रहते हैं जिनकी हालत बहुत ही दयनीय है मैं इंडिया आकर उन लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूं आप चाहें तो आप भी हमारे साथ जुड़कर इस अभियान में साथ दे सकते हैं।"

इतना सुनने के बाद अजय का मुंह निराशा में डूब गया उसका उत्साह जो अभी तक बना हुआ था वह जैसे किरकिरी हो गई और जैसा कि मैंने अजय के बारे सोचा था वह ऐसा ही निकला। वह भी सोर्स खोज रहा था। फिर मैं उनकी आगे की बातों से बोर होने लगा और मैं कुछ बहाना मार वहां से कहीं दूर निकल गया।

देखते देखते समय कट गया और मेरी इंटरसिटी ट्रेन भी आ गई और मैंने इंटरसिटी ट्रेन में बैठते ही आंखें मूंद ली।

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मऊ स्टेशन उतरने के बाद इस बार पहले से कुछ मुझे मऊ स्टेशन अलग अलग सा दिख रहा था। प्लेटफार्म नंबर दो पे चाय की दुकान तो जरूर थी पर बबलू वहां नहीं था वह चाय की दुकान आप किसी और को दे दी गई थी। मैंने सोचा था कि इस बार स्टेशन में श्याम मुझे बड़ी सी गाड़ी में लेने आएगा या फिर किसी ड्राइवर को मुझे लेने भेजेगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं उसी रास्ते से पैदल निकला 20 रास्ते से कभी श्याम मुझे पैदल स्टैंड तक लेकर गया था। मैंने वहां से कमांडर पकड़ लिया था।गांव ना जाकर सीधा श्याम के ऑफिस की तरफ निकला वहां जाकर मैंने देखा बाहर एक चपरासी खड़ा है मैंने चपरासी को वह पत्र थमा दिया और कहा कि अंदर जा कर दे दीजिए। वह पत्र खोलकर वाही पढ़ने लगा। उसने कहा कि साहब क्रिकेट ग्राउंड की तरफ गए हैं वह कोई कोचिंग सेंटर खोल रहे है यह मऊ के बच्चों के क्रिकेट के कोचिंग के लिए। वह पत्र लेकर अंदर चला गया। आप बैठ कर उसका इंतजार कर सकते हैं। मुझे ऑफिस के बाहर ही वेटिंग रूम में बैठा दिया। मैं सोफे में बैठा था ऐसी चल रही थी मुझे ठंडी का अहसास हो रहा था । मैं चारों तरफ नजर घुमाकर श्यामलाल की उपलब्धियों की फोटो देख रहा था । बड़े बड़े मंत्रियों के साथ उसकी फोटो टंगी थी। बैठे बैठे करीब दो घंटे का समय बीत गया था। मैंने चपरासी को फिट होगा क्या श्याम आएंगे भी कि नहीं। आएंगे आएंगे कई मीटिंग में गए होंगे भाई एमएलए हैं। करीब 4 घंटे के इंतजार के बाद शाम के वक्त कई गाड़ियों का काफिला ऑफिस के सामने रुका। मैं शीशे के अंदर से ही सारा मांजरा देख रहा था। श्याम बड़ा खुशी से बाहर आया। इनोवा गाड़ी से मैंने श्याम को बड़े खुशी पूर्वक उतारते देखा। उसने सिर पर टोपी पहन रखी थी पजामे कुर्ते के ऊपर जैकेट पहन रखा था। जैसे ही उसने केबिन में प्रवेश किया मैं उठ कर खड़ा हो गया। मुझे देखते ही श्याम ने गले लगा लिया गले लगाते हुए बोला,"कहां थे मेरे दोस्त इतने दिन। आज सब कामकाज बंद आज हम सारा दिन तुम्हारे साथ बिताएंगे। मैं जो सोचता था कि आदमी बड़ा हो जाए तो उसके आंखों में पट्टी बंद जाती है। उसके ठीक विपरीत था। क्योंकि चार घंटे के इंतजार ने तो जैसे इस बात पर मोहर लगा दी थी। श्याम जैसे पहले था अब भी वैसा ही था।और फिर मेरा लंगोटिया यार जो था।

उसके बाद जो मुझे पता चला वह यह था कि पलटन को जेल हो गई है और जिसने गोली चलाई थी वह अभी तक मिला नहीं है वह कहां गुम हो गया है इसकी जोर शोर से छानबीन चल रही है पर उसका अभी तक कुछ पता नहीं चला है।

श्याम यह सब बताते हुए मुझे एक बड़े से खाली मैदान के पास ले गया और हम दोनों वहां बैठ गए श्यामलाल के इस हुलिए को देखकर मुझे मन ही मन हंसी भी आ रही और खुश भी हो रहा था। और इस बात का गर्व भी महसूस कर रहा था कि में एम. एल. ए का दोस्त हूं। मैंने उससे पूछा,यह सब कैसे हो गया। यह लोकतंत्र का कमाल है सच तो यह है तेरा दोस्त राजनीति में नहीं आता तो मारा गया होता।

सच यह लोकतंत्र का कमाल है जहा पर अनपढ़ मंत्री शिक्षा मंत्री बन जाता है अच्छा हुआ जो नंदलाल पढ़ाई ना कर ट्रकों के बिजनेस में लग गया श्याम ने राजनीति में आकर अपना मुकाम में है नहीं तो मेरी तरह पढ़ लिख कर फाइल लेकर इंटरव्यू के लिए चक्कर लगा रहा होता अथवा कहीं ऑफिसर बनकर प्रमोशन के लिए ऐसे नेताओं के लिए खैनी बना रहा होता या उसके जूते के तसमै बांध रहा होता।

विक्रम सिंह

विक्रम सिंह

मो.: 09012275039

मेल: bikram007.2008@rediffmail.com

जन्म: १ जनवरी १९८१ कोजमशेदपुर(झारखण्ड) के एक सिक्ख परिवार में

शिक्षा: ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा

सम्प्रति: मुंजाल शोवा लिमिटेड कम्पनी हरिद्वार में बतौर अभियंता कार्यरत

संपर्क: बी-11, टिहरी विस्थापित कॉलोनी, हरिद्वार, उत्तराखंड-249407

देश भर के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित

प्रकाशित कहानी संग्रह:

  • वारिस(२०१३)
  • और कितने टुकड़े(२०१५)
  • गणित का पंडित(२०१७)
  • काफिल का कुत्ता(२०१७)
  • प्रकाशित उपन्यास:

    यारबाज़(लोकोदय प्रकाशन)

    निर्माण:

    पसंद-नापसंद(शोर्ट फिल्म)

    अभिनय:

    पी से प्यार फ से फरार(हिंदी फिल्म)

    मेरे साइनाथ(हिंदी फिल्म)

    पसंद-नापसंद(शोर्ट फिल्म)

    वजह(शौर्ट फिल्म)- लेखन और अभिनय