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फिर महकेगा जीवन

उपहार

सतीश ने बिस्तर पर लेटे - लेटे दीवार घड़ी पर नजर डाली सात बज गये थे । आज बिरजू नहीं आया वर्ना बर्तनों की आवाज आने लगती । सतीश अलसाये हुए बिस्तर पर ही लेटे रहे। चाय पीने की ललक मन में उठ रही थी । सर्दी ने हाथ पैर इस कदर जकड दिए कि वे हिल डुल भी नहीं पा रहे थे ।

रोज सुबह पाँच बजे उठकर दैनिक कार्यों से फारिग होते और साढे पाँच बजे जो घूमने जाते तो साढे छः तक लौटते। दस पन्द्रह मिनिट आराम से बैठते फिर बाबा रामदेव का योग करते। तब तक बिरजू आ जाता वह वर्तन साफ करता, झाडू लगाता, फिर चाय बनाता। सतीश चाय पीने के साथ साथ अखबार पढ़ते । बिरजू ऑल इंण्डिया रेडियो के समान मौहल्ले भर के ताजा समाचार सुनाता।

शाम की चाय वे स्वयं बनाते और अपनी पत्नी की यादों में खो जाते ।

सतीश गुबरेले - जी हॉ यही पूरा नाम था उनका । लेकिन उनकी कॉलोनी गुबरं जी के नाम से ही परिचित थी। बेटा बारह वर्श का और बेटी दस वर्श की थी तब ही उनकी पत्नी संध्या की मृत्यु हो गयी । बच्चों कंे पालन पोशण में वे इतने व्यस्त रहे कि कभी अकेला जीवन दुःखदायी न बना । बेटा विदेश में नौकरी कर रहा था और परदेशी बन गया था। बेटी का विवाह हो गया तो जिन्दगी ही बेमानी लगने लगी..... किसके लियंे जियें...... लेकिन जीवन है...... सांसें हैं........ धडकने हैं...... रोजमर्रा की आवश्यकताये हैं........। मधुमेह और उच्च रक्त चाप ने उनकी काया में प्रवेश कर लिया था । किसके लिए कमाये प्रश्न उन्हें रोज परेशान करता इसलिए पचास वर्श की उम्र में ही बैंक से कम्पलसरी रिटायरमेन्ट ले लिया ।

तीन कमरों के इस फ्लैट को उन्होंने तीन वर्श पहले खरीदा था । घर में भरा पूरा सामान था लेकिन खाने का टिफिन बँधा हुआ था। जब कभी हल्का फुल्का खाने का मन करता तो खिचडी बना लेते क्योंकि इसके अलावा कुछ और बनाना ही नहीं आता था ।

उन्होंने लिहाफ हटाकर उठना चाहा तो खिडकी से आयी सर्द हवा उनके प्रौढ़ चेहरे को कँपकँपाती चलीं गयी वे फिर से लिहाफ में दुबक गए। इस ठण्ड ने उन्हें पच्चीस साल पहले ले जाकर खडा कर दिया । इस ठण्ड ने ही तो उन्हें और संध्या को पहले ही रात में इतने करीव ला दिया था कि दोनों की गर्म साँेसे आपस में टकराकर जलतरंग पैदा कर रहीं थीं ।


अचानक मोबाइल की घंटी ने ध्यान भंग कर दिया। घूमकर आने के बाद मोबाइल चार्ज होने लगा दिया था। मजबूरी में उन्हें उठना पडा । कॉल देखी। जयपुर से छोटी बहन राजरानी का फोन था।

हलो हाँ राज बोलो कैसी हो................

भैया मैं ठीक हूँ..............आप सनडे को जयपुर आ जाओ................

क्यों.........

यहीं आ जाओ तब बताऊगीं................बहुत अर्जेंन्ट काम है.....................

तुम्हारी तबियत तो............

नहीं मैं व सभी लोग ठीक हैं.......... बस आपसे कुछ काम था।.........

...........अच्छा

..........जरूर आना, अभी से रिजर्वेशन करवा लेना।

ओके.........

वे कुछ देर वही बैठ गए। जयपुर बुलाये जाने का कारण ढँूढ़ने लगे। दूर-दूर तक नौकाविहार की लेकिन कोइ किनारा नहीं दिखा।

वे उठकर किचिन की ओर चल दिए। चाय चढ़ाई, शक्कर-पत्ती, पानी.............जीवन में सब कुछ था बस दूध के बिना चाय...................खदक रही थी..............वहीं के वहीं................दूध डालने पर कैसा उफान आता है.............।

चाय सिप करते हुए वे सोच रहे थे काश ! कोई होता जिससे बात करके मन हल्का कर सकते। शाम के समय सारे हमउम्र दोस्त बैठकर बातें करते हैं गप्पे लगाते हैं, फिर भी कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें कुछ खास लोगों में ही बाँटी जा सकती हैं।

शनिवार की रात वे जयपुर पहुँच गए। रेल्वे स्टेशन पर उनके बहन-बहनांेई लेने आ गये । गुबरेले जी की खोजी निगाहें कई बार सुशमा सेे प्रश्न कर चुकी थी। सुशमा आँखों से उन्हें इशारा कर देती कि अभी बताऊँगी।

भोजन के बाद सुशमा ने उन्हें एक पॅम्पलेट लाकर दिया जिसमें लिखा था -

‘‘वृद्ध महिला -पुरूश सम्मेलन’’

स्थानीय लोगों की अनूठी पहल - वृद्ध महिलाओं -पुरूशों के विवाह को प्रोत्साहन.............। युवावस्था में अकेले हो गये महिला/पुरूश सामाजिक प्रतिश्ठा, मर्यादा, सर्विस के कारण या पारिवारिक उत्तरदायित्वों के कारण विवाह नहीं कर पाते जीवन साथी के बिना अकेले रह जाते हैं। युवावस्था तो व्यस्ता में निकल जाती है। प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में व्यक्ति को जीवन साथी की सबसे अधिक जरूरत होती है।जिसे वह अपना अन्तरंग साथी बना सके। सन्तान की अपनी अलग व्यस्ततायें है। जब शरीर भी शिथिल होने लगता है तब एक हमदर्द, हमसफर, और एक हमराज की जरूरत होती है।

आईये और जीवनसाथी का चयन करें जिसे रविवार.....................


वे एक साँस में ही पूरा पॅम्पलेट पढ़ गये। स्थान और समय को अनदेखा करते हुए वे सुशमा को प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे।

............भैया मेैं चाहती हूँ आप भी अच्छा सा साथी देखकर विवाह कर लें।

गुबरेले जी चौंक गए और हँसकर बोले -‘‘इस उम्र में............

हाँ इसी उम्र में तो जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

................नहीं.............इतने दिन तुम्हारी भाभी के बिना गुजार दिए। उसकी जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता।

.................उनके स्थान पर किसी और को बिठाने की बात नहीं कहती। जो स्थान अब सूना है उसमें तो किसी का प्रवेश हो सकता है।

...................बेटा विदेश में सैटल हो गया। बेटी का विवाह हो गया अब क्या करूँगा.............यह सब करके।

...................आप अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गये हैं। तब तो और अधिक सुगमता है। अपने स्वयं के जीवन के लिए भी कोई धर्म होता है। यों घुट-घुटकर जीवन जीने से मानव जीवन को शाप लगता है।

..................लेकिन लोग क्या कहेगें ? बुढ़ापे में विवाह । सब कहेगे बुड्ढा सठिया गया है।

...................भैया शादी शरीर की तुश्टि मात्र नहीं है । साथी की सबसे ज्यादा जरूरत इसी उम्र्र में पड़ती है। एक ऐसे साथी की आवश्यकता होती है जिससे हम अपना दुःख-सुख बाँट सकें। और फिर हमें भी आपकी चिन्ता लगी रहती है।

...................अरे अब क्या करना है। बात करने दो दोस्त यार हैं। घर में नौकर हैं काम के लिए। बिल्डिंग में कई लोग हैं सब सहयोग कर देते है अब क्या करना है

........अब तक सुषमा के पति नवीन मौन थे दोनों की बातें सुन रहे थे । वे बात काटते हुए बीच में बोले ..........भैया-सुषमा ठीक कह रही है नौकर काम कर जायेगा। दोस्तों के साथ भी कितना समय गुजारेंगे जिंदगी की मंजिल पहाड़ के रास्ते तय मत करो भैया................. उसमें सीढ़ियाँ बना लो।

उन लोेगों की जिद और उनके तर्को के आगे झुकना पड़ा गुबरेले जी को । सहमति देते हुए वे संकोच से बोले-लेकिन अप्पू क्या सोचेगी? वरूण क्या सोचेगा?

तल्ख आवाज में सुषमा बोली ‘‘अभी पिछले माह आप दस दिन अस्पताल में भर्ती रहे। आपने हमें खबर नहीं की। अप्पू को फोन किया तब भी वो नहीं आ पायी। रही वरूण की बात तो उसने आपसे संबंध ही कब बना रखे हैं। उसे आपकी जरूरत नहीं है। पिछले पाँच वर्षो से उसका कोई पत्र, उसका कोई कॉल, उसकी कोई खबर आपके पास आयी है? उसके हर जन्म्दिन पर आप पत्र डालते हैं उसका भी कभी उŸार आया है? बदले में पहुँचा देता है अमेरिकी डॉलर जिसे आप गुस्से में वापस कर देते हैं। ’’

गुबरेले जी अपने आपसे भी हार गये थे.........बस एक वाक्य मुहँ से निकला.........जैसा तुम चाहो..........

रातभर गुबरेले जी अहपोह की स्थिति में रहे।

बेटी...........दोस्त ..........बिल्डिंग बाले...........बच्चे सब क्या सोचेंगें। कभी-कभी मन पुलक उठता शादी के नाम से। पहली बार भी तो वे कितने प्रसन्न थे। सारी रस्में उन्होंने परम्परागत ढंग से ही निबाही थीं। अचानक उन्हंे गाने की पंक्तियाँ याद आ गयी...........बब्बा बुढ़ापे में करो न सगाई में कैसे करूँ भाई...........वे मुस्करा गये और करवट बदल सोने की कोशिश करने लग गये।

समारोह स्थल पर आकर उन्हें लगा कि वेे नाहक ही संकोच कर रहे थे। यहाँ तो उनसे भी अधिक शारीरिक दृष्टि से वृद्ध नजर आ रहे लोग बैठे थे। वे चारों तरफ का जायजा लेने लगे। एक तरफ महिलाओं की सीटें लगी थीं एक ओर पुरूषों की।

समारोह शुरू हो गया। उनके नाम की पुकार लगते ही वे सकुचाते हुए स्टेज पर आये। कई प्रतियोगिताओं में भाग लेने स्टेज पर गये हैं। उस समय कितना उत्साह रहता था। लेकिन आज पैरों में कम्पन था चेहरे पर हल्की पसीने की बूँदे झलक आयी थीं। घबराहट के कारण सीना घौंकनी के समान चल रहा था। माइक के पास आकर वे ठिठक गये। सामने की पंक्ति में बैठी अपनी बहन राजरानी की ओर देखा। उसने सिर हिलाकर उन्हें बोलने का इशारा किया। ......... आबाज हलक से बाहर ही नहीं निकल पा रही थी। वे बहुत असहाय महसूस कर रहे थे अपने आपको। यह बैंक में कामयाब अधिकारी रहे हैं। उनकी रौबदार आवाज से सभी मातहत डरते थे पर आज आवाज घुटी जा रही थी।.........जीभ तालू से चिपक कर रह गयी थी।

..........हकलाते से बोलने लगे.............मैं सतीश गुबरेले.............निवासी ग्वालियर.......... आयु पचास वर्ष.............बैंक से कम्पलसरी रिटायरमेन्ट..............पेंशन बीस हजार...........एक बेटा और एक बेटी...............दोनों विवाहित............ बेटा विदेश में, बेटी ललितपुर में............ स्वयं का फ्लैट ग्वालियर में...........मैं डायवर्टिक हूँ...........

गुबरेले जी स्टेज से उतरकर अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गये। उन्हें लग रहा था कि जिन्दगी की रील रिवर्स हो गयी है। विवाह के लिये स्वयं का परिचय देना वो भी सबके सामने कितना मुश्किल होता है।

पुरूषों का परिचय समाप्त हो गया था। अब महिलाओं का परिचय शुरू हो गया। एक-एक महिलायें आ रही थी और अपना परिचय देकर जा रही थी। एक नाम एनाउंस हुआ- माला रावत..............एक महिला अपने स्थान से उठी लेकिन वहीं कुर्सी पकड़कर खड़ी हो गयी। स्टेज तक जाने का उसमे साहस नहीं हो पा रहा था। वह फिर से बैठ गयी। उसके साथ आयी युवती ने उसे सहारा दिया.......और उसे ऊपर तक लेकर आयी।

युवती माइक के पास आयी और बोली-’’ये मेरी मौसी हैं-माला रावत.... उम्र पचास वर्ष.... बरेली में रहती थी -पति और दो बेटे थे- जिनकी एक कार एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी।’’

तब व्यवस्थापक ने कहा-कुछ उन्हें भी कहने दो। कहाँ तक पढ़ी हो आप?

महिला ने हॉल में नज़र दौड़ाई। सभी उसी को देख रहे थे। लाज की गठरी बनी वह काँपती आवाज में बोली...........मैं ग्रेजुएट हूँ।

कोई हॉबी..........

संगीत

आपकी कोइ शर्त

दोस्त के रूप में हमसफर चाहिये जो मेरे दुःख को समझ सके। मेरा साथ दे सके।

कोई बीमारी...........

अपनी उखड़ती हुयी साँस पर काबू करते हुए बोली................बी.पी. हाई रहता है.....सर्दी में साँस उखड़ती है..............

गुबरेले जी और उनकी बहन स्टेज पर आनेवाली हर महिला को ध्यान से देख सुन रहे थे। अभी तक ज्यादातर महिलायें सर्विस वाली ही आयी थीं। हर महिला के जाते ही राजरानी आँखों से प्रश्न करती और हर बार गुबरेले जी आँखें तथा सिर हिलाकर नकारात्मक उŸार दे देते। गुबरेलेजी की निगाहें किसी जरूरतमंद को ढँूढ रहीं थी। जिसका जीवन वे सवार सकें। उन्हें लगा माला ही उनके लिये योग्य रहेगी। लौटते समय सुषमा ने पूछा.......’’भैया आपको कौन अच्छी लगी?’’

गुबरेले जी नवीन से बोले - ’’तुम अपनी राय बताओ’’

नवीन बोले-’’भैया मुझको तो न. 11 अच्छी लगी......... क्या नाम था माला?’’

राजरानी हँसते हुए बोली.............रावत। हाँ भैया मुझे भी वही पसन्द है

गुबरेले जी का चेहरा शर्म से हल्का रक्तिम हो चला था पर जल्द ही अप्पू का घ्यान आते ही चेहरे पर परेशानी छा गयी। वे धीरे से बोले- ’’ठीक है जैसा बहुमत हो।’’

सम्मेलन से मिली पत्रिका में माला का पता देखा गया। फोन पर बगीचे में मिलने का स्थान और समय तय किया गया।

दोनों परिवारों की बीच बातें हुयी कुछ समय गुबरेलेजी और माला ने साथ व्यतीत किया। विवाह के लिए रविवार का मुहूर्त निकला। राजरानी ने अप्पू को फोन लगाया । राजी खुशी के समाचार लेने के बाद राजरानी ने अप्पू से कहा- मैं सोचती हूँ भैया विवाह करलें तो अच्छा है इस समय उन्हें एक हमसफर की सबसे अधिक जरूरत है।

पापा के विवाह की बात सुनकर अप्पू चौंक गयी और बोली-ऐसी भी क्या जरूरत है , इतने साल गुज़ार दिये अब कौन सा नया तूफान आया हुआ है।

अर्पिता को फिर से समझाते हुए बताया-’’भैया अकेलापन महसूस करते हैं, कोाई उनकी देखभाल करने वला नहीं है। वैसे भी वे शुगर के मरीज है, और इस बीमारी में जितनी देखभाल होनी चाहिये वह तो कोाई घर का व्यक्ति ही कर सकता है। ऐसे में तुम्हे और भैया को किसी को भी इतनी फुरसत कहां है कि उन्हे देखो। इसलिये मैंने बहाने से भैया को यहां बुलाया है वे जयपुर आये हुये हैं। यहाँ वृद्ध महिला पुरूष का सम्मेलन था। हम लोगों के आग्रह करने पर भैया को एक महिला पसन्द भी आयी है। मुहूर्त के मुताबिक अगले रविवार को दोनों का गठजोड़ है।’’

अर्पिता बौखला गयी थी बोली-’’बुआजी आप भी क्या बकवस करती है, भला इस उम्र में भी कोई ब्याह रचाता है। अब तो भगवान का भजन करने का टाइम है। क्या इस उम्र में भी उन्हे पत्नी की आवश्यकता है?’’

...........’’देखो अप्पू, भैया बड़ी मुश्किल से माने हैं तुम सहमत हो जायेगी तो भैया का एकाकी जीवन समाप्त हो जायेगा। मैं व तुम दोनों ही उनकी देखभाल नहीं कर पाते ऐसे में एक साथी की जरूरत है जो अकेलेपन को भर सके’’.............. ।

उधर से कोई आवाज नहीं आई।

..अब तक गुबरेले जी पास आ गये। राजरानी से रिसीवर लेकर अप्पू को समझाते हुए बोले-बेटी गुस्सा थूक दो जल्दी से परिवार सहित यहाँ चली आओ.............

..........उधर से आवाज आयी..‘‘........पापा मैं आपसेे बात करना नहीं चाहती।’’

‘‘.........इस उमर में शादी का शौक आया है आपको...............’’ कहकर अप्पू ने फोन रख दिया।

गुुबरेले जी पसोपेस मंे पड़ गये। वे एक रिश्ता तोड़कर दूसरा जोड़ना नहीं चाहते थे। बच्चों की खातिर ही तो उन्होंने अब तक अपने बारे में नहीं सोचा था। अप्पू को जब भी जरूरत पड़ी वे उसके हर फैसले में साथ खड़े थे। उसने अन्तर्जातीय विवाह किया उसके लिये भी उन्होंनेे जाति बंधन की दीवारें खड़ी नहीं की। यह सही है कि एकाकी पन अब सहा नहीं जाता। नौकर न आये तो एक गिलास पानी पिलाने वाला नहीं मिलता।

कुछ देर तक वे हताश होकर बैठे रहे। उन्होंने हिम्मत जुटाई अपने दोस्त जीवनलाल को फोन लगायाश्‘‘ हलो जीवन-मैं सतीश बोल रहा हूँ’’

उधर से भी उत्साह भरी आवाज़ आयी-’’सतीश कब आ रहे हो?

अभी कुछ दिन बाद आऊँगा.............एक खुशखबरी है

...............बता जल्दी बता...........

तेरी भाभी भी साथ में आयेंगी.........रविवार को मेरी शादी है

............क्यों मज़ाक करते हो यार? आज तो फर्स्ट अप्रैंल भी नहीं है

मैं सही कह रहा हूँ। तुम सब लोग यहाँ आ जाओ, तुम अपने ग्रुप को खबर कर देना........

’’.........’’ दूसरी तरफ एक दम सन्नाटा छा गया। गुबरेले जी सोच रहे थे जीवन उन्हें बधाई देगा तो वे कहेंगे अब तू भी जल्दी से खुशखबरी सुनाना। लेकिन उसने रिसीवर रख दिया था।

उन्हें एक बार फिर से लगाने लगा कि वे गलत फैसला कर रहे हैं। सब क्या सोचेंगे? मेरा मखौल उड़ायेंगे। रात भर उनके मन में द्वन्द्व चलता रहा।

सुबह जब वे घूमकर लौटे राजरानी किसी से फोन पर बात कर रही थी । राजरानी के चेहरे पर चिन्ता झलक रही थी-उसने बताया माला के यहाँ से फोन था। माला की ससुराल बालों ने दो वर्षो से उसकी कोई खबर नहीं ली थी। अब जैसे ही उन्हें पता चला है कि माला शादी कर रही है उन लोगों ने दवाब बनाना शुरू कर दिया। वे नहीं चाहते माला शादी करे।

गुबरेले जी नहीं चाहते थे इतनी विसंगतियों में शादी हो। उन्हें लग रहा था कि अब शादी नहीं होगी इस विचार के साथ ही उनके मन का द्वंद्व भी खत्म हो गया।

शाम को माला संगीता के साथ उनके यहाँ आयी। माला के चेहरे पर अत्यन्त चिंता थी। कुछ देर खामेशी रही। बात संगीता ने ही शुरू की।

राजरानी की ओर देखते हुए वह बोली- ’’मौसीजी आज सुबह से परेशान हैं। इनके ससुराल वालों को इनकी शादी की भनक लग गयी। वहाँ से सुबह धमकी भरा फोन आया था।........कुछ हकलाते हुए बोली..........दरअसल इनके देवर इनसे शादी करना चाहते हैं, वे तलाकशुदा हैं।’’

राजरानी ने कुछ सोचते हुए कहा- ’’यह तो और भी अच्छी बात हे। ये उसी कुटुम्ब में अपने आप को जल्दी एडजस्ट कर लेंगी।’’.............इस बार उŸार माला ने दिया, बड़े ही संयत किन्तु सहमे स्वर उसके मुँह से निकले - ’’वो मुझे नहीं मेरी सम्पŸिा प्राप्त करना चाहते हैं। सुबह तो उन्होंने यही कहा जो कुछ तुम्हारे नाम है, हमारे नाम कर दो....फिर चाहे व्याह रचाओ या.........या किसी के संग मुँह काला करो.....।

एक सन्नाटा छा गया वहाँ। किसी को समझ नहीं आ रहा था क्या करें।

चुप्पी फिर से माला ने तोड़ी..........’’देवर शराब पीते हैं और दूसरी महिलाओं से भी उनके संबंध हैं इसीलिये देवरानी ने तलाक ले लिया। दो वर्षों से किसी ने मेरी खोज खबर नहीं ली। मैं कैसी हूँू? पति व बच्चों के दुःख में किसी ने मुझे सहारा नहीं दिया। पति व बच्चों के अन्तिम संस्कार में जो खर्चा हुआ था वह भी मुझसे ले लिया था। यदि मायके वालों ने साथ नहीं दिया होता तो मैं आज.........। वहाँ जाकर मेरा दुःख और बढ़ जायेगा। और अगर शादी नहीं की तो मुझे और परेशान करेंगे। हो सकता है मुझे मरवा दें फिर सारी जायदाद स्वतः उन्हें मिल जायेगी।

गुबरेलेजी को माला का बोलाना अच्छा लग रहा था। उन्हें उससे सहानुभूति होने लगी। काफी देर चर्चाएँ चलती रहीं। समस्या का समाधान नहीं हो पाया।

रात्रि में खाना खाते समय गुबरेले जी ने राजरानी से कहा मैं कल वापस चला जाता हूँ अब क्या करना रूककर..........।

नवीन ने कहा.......अभी आप क्या करेंगे वहाँ जाकर........। यहाँ आराम से रहो.......बच्चों को भी अच्छा लग रहा है। हम सबको नयी-नयी डिशेज खाने को जो मिल रही हैं जो खासतौर पर आपके आने के कारण राजरानी बना रही है।

सभी लोग मुस्कराने लगे। बोझिल वातावरण थोड़ा हल्का हुआ। गुबरेले जी के मोबाइल पर रिंग आयी। गुबरेले जी चौंक गये राजरानी उनके चेहरे को पढ़ते हुए बोली-किसका फोन है?

अरे आज तो आकाश का फोन आया है। सब आश्चर्यमिश्रित हर्षातिरेक में आ गये। गुबरेले जी ने स्पीकर ऑन कर दिया कॉल रिसीव करके उमंगते हुए कहा - हाँ बेटा कैसे हो?

इस बात का कोई उŸार नहीं आया बल्कि उनसे ही प्रश्न पूछा गया - पापा क्या आप शादी कर रहे हैं?

वे अचकचा गये, क्या उŸार दें..........तुम्हें किसने बताया? सात समुंदर दूर मेरी बीमारी की खबर तो नहीं पहुँची अलबत्ता विवाह की खबर पहुँच गयी।

अप्पू का फोन आया था..............

और क्या कहा अप्पू ने?

उधर से झल्लाया हुआ वाक्य - पापा आप शादी-वादी नहीं करें। इस उम्र में शोभा देगा क्या? देखिए हम लोगों की भी इमेज का सवाल है?

पश्चिमी सभ्यता में रचा बसा उनका बेटा आज अच्छे बुरे की वकालात कर रहा है।

........फिर आप समझते क्यों नहीं प्रोपर्टी का क्या होगा? इस वाक्य ने उनके पैरों तले जमीन खिसका दी। अब उन्हें समझ आया कि आकाश क्यों जिद कर रहा था कि सब कुछ बेचकर उसके पास चले आओ।

गुबरेलेजी बेटे के मोह में सबइ कुछ बेचकर जाने को तैयार भी हो गये थे। अखबार के विक्रय कॉलम में विज्ञापन भी दे दिया था। उन्होंने खुशी-खुशी फोन करके बेटे को इसकी सूचना देना चाही ’’तब बातों मे पता लगा कि वो उन्हें अपने साथ नहीं वरन् ’’सीनियर सिटीजन हाऊस’’ में रखना चाहता है जो एक तरह से वृद्धाश्रम है।

उन्होंने आकाश को कोई उŸार नहीं दिया, मोबाइल बन्द कर दिया। वे कुछ फैसला नहीं ले पा रहे थे। राजरानी और नवीन भी अचंभित थे आकाश की बात सुनकर। इतने वर्षों बाद फोन, वो भी इस तरह से..........

गुबरेलेजी के हृदय में तूफान उठ रहा था। उन्हें अब समझ आ रहा था कि अब तक आकाश शान्त था, क्योंकि उनकी सारी सम्पŸिा उसी की तो थी पर अब छिनने का भय उसके मस्तिष्क पर हावी हो रहा था।

वे कमरे में चहलकदमी करने लगे। सब शान्त थे पर अन्दर हलचल लिये। उन्होंने सबके चेहरों की ओर देखा फिर मोबाइल पर कॉल करने लगे। उधर अर्पिता थी। उसनेे पापा से राजी खुशी कुछ नहीं पूँछा सबसे पहला प्रश्न था पापा आपने क्या सोचा?

.....बेटा तुम क्या चाहती हो?

पापा इतनी उम्र गुज़र गयी अब क्या करेंगे शादी करके...........।’’

’’माला को भी जरूरत है मेरी.........

दो दिन में ही आप अपने रक्त संबंधों को भूलकर दूसरे के बारे में सोचने लगे......... ’’नहीं ये बात नहीं है बेटा मुझे समझने की कोशिश करो।’’

’’तो ठीक है लुटा देना अपना पूरा पैसा उस दूसरी औरत पर’’

यह दूसरा अवसर था जब गुबरेलेजी हक्के-बक्के रह गये अब उन्हें समझ आ रहा था कि बच्चे उनकी शादी का विरोध क्यों कर रहे हैं?

वे रातभर करवटें बदलते रहे एक निश्चित किन्तु दृढ़ निर्णय लेने के लिये। जैसे दही मथने के बाद मक्खन ऊपर तैर आता है।

मैंने अपने बच्चों के सुख के लिये अपने सुख-वैभव के दिन यों ही अकेले गुज़ार दिये। जब जिसने जो इच्छा की हरसंभव पूरी की। बेटे ने विदेशी लड़की से शादी करना चाही मैंने विरोध नहीं किया। लड़की ने अन्तर्जातीय विवाह करना चाहा मैंने विरोध नहीं किया.......उन लोगों के हर सुखके आगे अपनी इच्छायें, आकांक्षाये सब कुर्बान कर दीं। संध्या की मृत्यु के बाद कितने रिश्ते आये थे.......कुँवारी लड़कियों के भी......... आखिर वे बैंक की नौकरी में थे और हर दृष्टि से योग्य भी। बच्चों को कोई असुविधा न हो या समाज उनके मन में ’सौतेला’ शब्द न उगा दे यही सोचकर के बच्चों में ही डूबे रहे। उन लोगों को सम्पŸिा से मोह है मुझसे कोई सरोकार नहीं ..............मेरे प्यार का, मेरे विश्वास का, मेरी आत्मीयता का अच्छा सिला दे रहे हैं ये लोग...............। जयपुर आने से पूर्व वे भी नहीं चाहते थे विवाह करना। पर यहाँ आकर, माला से मिलकर एक ख्बाव पलने लगा है मन में, जीवन में फिर से वो बहार लौटती लगती है। उधर माला के परिजन भी उसकी संपत्ति चाहते हैं। जरूरत दोनों को है और हम किसी की परवाह नहीं करेंगे यह विवाह जरूर करेंगे। यह तय करते ही उनके मन में उत्साह के स्फुलिंग जग उठे। उन्हे लग रहा है पतझड़ के बाद बसन्त आ रहा है। सुखद कल्पनाओं में वे विचरण करने लगे। उनके मन में एक जिद पलने लगी।

इसी उहापोह में भोर हो गई प्रातःकालीन सैर के लिए लोग निकलने लगे थे। आज गुबरेले जी ने जल्दी ही बिस्तर छोड़ दिया और नित्य कर्म से निवट गए। वे तैयार हुए और माला के घर की ओर चल दिये।


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