Mannato ka ghar books and stories free download online pdf in Hindi

मन्नतों का घर

मन्नतों का घर

मंदिर तक ऊपर अब तो गाड़ी आज आने लगी है। एकदम मंदिर के सामने तो नहीं लेकिन नीचे के मोड़ तक। पहले तो बड़ी सड़क के पास मैदान में ही गाड़ी खड़ी करके मंदिर तक पैदल आना पड़ता था। पर यह तो बरसों पुरानी बात हो गई है, अब तो बड़ी सड़क से एक पतली घुमावदार सड़क मंदिर तक बन गई है। निचले मोड़ पर सड़क के साथ ही एक सपाट सी जगह है वहां गाड़ियां खड़ी हो जाती है आजकल। इस मोड़ के बाद फिर कहीं इतना सपाट स्थान नहीं था जहां गाड़ियां खड़ी हो सकती इस मोड़ के बाद पैदल ही चलना होता था मंदिर तक पहुंचने के लिए। एक सफेद कार मोड़ तक आकर धीमी हुई और एक खाली जगह पर खड़ी हो गई ड्राइविंग सीट पर बैठा लड़का बाहर निकला और उसने आकर बगल वाला दरवाजा खोल दिया एक खूबसूरत छुईमुई सी लड़की बाहर आई उसके हाथों में एक डलिया थी जिसमें पूजा का सामान रखा हुआ था। लड़के ने दरवाजा बंद करके कार लॉक की और दोनों मंदिर की सड़क पर आगे बढ़ गए। यहां से मंदिर कोई 300 मीटर की दूरी पर था। सड़क पतली मगर पक्की थी।

यह मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर बना था जो मध्यम ऊंचाई की थी। आसपास झाड़ियां और ऊंचे पेड़ लगे थे जिनमें पलाश, साल, बेर और दूसरे जंगली पेड़ थे मझोले आकार के। एकाध जामुन आदि का भी पेड़ था। लड़की बड़े चाव से आसपास देख रही थी, उसे ऐसे शांत सुरम्य प्राकृतिक स्थल बहुत पसंद थे जहां तरह-तरह के पेड़ पौधे लगे हो। दोनों धीरे-धीरे बढ़ रहे थे क्योंकि वहां चढ़ाई थी, अधिक तो नहीं थी लेकिन थी तो। लड़के ने लड़की के हाथ से पूजा की डलिया ले ली। लड़की ने मुस्कुरा कर उसे देखा मानो आभार प्रकट करना चाहती हो। उसका चेहरा बड़ा मीठा सा था, मुस्कुराते हुए उसके गालों में बड़े प्यारे से गड्ढे पढ़ते थे। उसे खुश देखकर लड़का भी मुस्कुरा दिया। लड़की इसलिए खुश थी कि लड़का उसे सचमुच में ही बहुत प्यार करता था और उसका सारा बोझ उठाना चाहता था, एक पूजा की डलिया भी ताकि लड़की आराम से चल सके।

दो घुमावदार मोड़ पार करके अब वे दोनों जालपा देवी के मंदिर के सामने थे। आज छुट्टी का दिन नहीं था तो मंदिर में भीड़ नहीं थी वरना सुना है छुट्टी वाले दिन यहां मन्नत मांगने वालों की बहुत भीड़ रहती है। कहते हैं यहां की मन्नत कभी खाली नहीं जाती, जालपा देवी से जो भी मांगो अवश्य मिलता है। तभी यहां बहुत लोग आते हैं, मन्नत भी मांग लेते हैं और परिवार के साथ पिकनिक भी मना लेते हैं। लड़की ने भी किसी से इस मंदिर की मान्यता सुनी थी तभी से उसे यहां आने का बहुत मन था। मंदिर के प्रांगण के दरवाजे पर लड़का- लड़की ने अपने जूते चप्पल एक कोने में उतारे, पास लगे नल के नीचे हाथ- पैर धोए और मंदिर परिसर में चले आए। छोटे से आंगन में लकड़ी की कुछ बेंचे रखी थी उसके बाद मंदिर था। बड़े से कमरे में एक ओर दर्शनार्थियों के बैठने का स्थान था और उसी के सामने स्टील की रेलिंग के उस पार जालपा देवी की पत्थर की मूर्ति थी जिस पर आंखें बनी हुई थी। कहते हैं देवी की यह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई है इसलिए अनगढ़ है। लड़की ने चुनरी सर पर ओढ़कर जालपा माता को प्रणाम किया और डलिया पुजारी जी को दे दी। पुजारी जी ने रेलिंग का दरवाजा खोल दिया और उन्हें अंदर ही बुला लिया

"आ जाओ बेटी भीतर आकर माताजी को स्वयं चुनरी चढ़ा दो" शायद इसलिए कि आज इस वक्त वहां भीड़ नहीं थी एक दो लोग ही थे जो बाहर बैठे थे।

लड़की का रोम-रोम खिल उठा वह लड़के के साथ भीतर आ गई। पुजारी जी ने डलिया से एक-एक सामग्री निकालकर लड़का-लड़की से माताजी की पूजा-अर्चना करवाई।

"अब आंखें बंद कर सच्चे मन से जो इच्छा हो माता जी से मांग लो, माता अवश्य देंगी और लड़का लड़की ने आंखें बंद करके सच्चे मन से माता जी से एक दूसरे का साथ मांगा।

वहां से बाहर आकर दोनों आगे बढ़े सामने थोड़ी ही दूरी पर एक और मंदिर था। दोनों वहां गए। यह हनुमान जी के बाल रूप की मूर्ति थी मूर्ति के आगे मंदिर का द्वार नहीं था। 20-22 फीट पर रेलिंग लगी हुई थी और आगे पहाड़ी खत्म हो गई थी। सामने नीचे घाटी थी दूर-दूर तक फैली हुई और उस घाटी के किनारों पर छोटी-छोटी पहाड़ियां थी। दोनों रेलिंग पकड़ कर खड़े हो गए। हवा घाटी से ऊपर आकर पहाड़ी को छू कर इधर-उधर उड़ रही थी। हवा में लड़की के बालों की लट उसके चेहरे पर डोल रही थी। लड़के ने बहुत प्यार से उसे देखा उसकी आंखों में लड़की के लिए सारे जहां का प्यार भरा हुआ था

"क्या मांगा माँ जालपा माता से?" लड़के ने प्यार से पूछा।

"क्या मांगती तुम्हारे सिवाय, वही मांगने तो आई हूँ।" लड़की ने संजीदा आवाज में कहा।

"मैं तो पहले ही तुम्हारा हूँ मांगने की क्या जरूरत थी।" लड़के ने मीठी सी शरारती अंदाज में कहा।

"हो तो लेकिन रिश्ते को भी मांग लिया। अभी हम दोनों के बीच प्यार है हम दोनों ही प्यार को मानते हैं लेकिन समाज तो नहीं मानता ना प्यार को, समाज तो रिश्ते को ही मानता है तो मैंने समाज के सुख के लिए माताजी से रिश्ता मांग लिया।" लड़की की आवाज में दर्द झलक रहा था जो उसके दिल से उठता हुआ महसूस हो रहा था। लड़के ने उसे तसल्ली देने के लिए उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे अपने पास खींच लिया। लड़की के चेहरे पर मुस्कान और आंखों में आंसू आ गए।

लड़का सोच में पड़ गया तीन-चार वर्षों से उसे जानता है बहुत ही संजीदा और भली लड़की है वह। पढ़ाई में होशियार चाल चलन की अच्छी, जितनी खूबसूरत है उतना ही उसका दिल भी खूबसूरत है। लड़का तीन साल से उसे प्यार करता है और तीन सालों में उसे सब तरह से आजमा चुका है। वह यकीनन एक बहुत ही नेक, प्यार करने वाली और परिवार को संभालने वाली पत्नी साबित होगी, एक ऐसी पत्नी जिसकी कामना उसकी उम्र का हर लड़का करता है।

लड़की के पिता शहर के जाने-माने रईस थे और लड़का भी अच्छे घर का था, एक कंपनी में ऊंची पोस्ट पर था। पढ़ा-लिखा, नेक, दिखने में दिलकश, ऐसा जैसा हर लड़की एक पति के रूप में चाहती है। लड़की को वह पहली ही नजर में बहुत अच्छा लगा था। दोनों एक ही कंपनी में थे और वह उसका बॉस था। जल्दी ही उन्हें एक दूसरे से प्यार हो गया और वे इसे एक रिश्ते में बांधने का सोचने लगे लेकिन लड़की इसी सोच में मायूस हो जाती। क्या लड़के के घरवाले उसे बहू बनाना स्वीकार कर लेंगे, यह एक बड़ा सवाल था जो उनके प्यार पर पहले ही दिन से सवार था और हर पल उसका बोझ बढ़ता ही जा रहा था। जितना उनका प्यार बढ़ रहा था वैसे ही वैसे यह सवाल भी बढ़ता जा रहा था। तभी मन को सांत्वना देने वह मंदिरों में मन्नत मांगती रहती।

लड़की भली थी, उसके पिता शहर के जाने-माने व्यक्ति थे उसकी माँ भी, माँ और पत्नी के तौर पर एक बहुत ही भली औरत थी। लेकिन इन सब भली बातों के नीचे एक स्याह हादसा छिपा था, उसकी माँ का अतीत। जब उसकी माँ सीधी-सरल कमसिन सी थी तो उसे अपने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की मदद के लिए दूसरे शहर नौकरी पर जाना पड़ा। एक दूर के रिश्तेदार ने नौकरी के बहाने माँ को गलत हाथों में बेच दिया। यह तो माँ की किस्मत थी कि एक पुलिस अफसर को इस बात की भनक लग गई और उसने माँ पर दाग लगने से पहले ही उसे वहां से छुड़ा लिया।

लेकिन समाज की बुनावट गुनहगार पुरुष को तो निकल जाने देती है मगर निर्दोष औरत को अपने जाल में फँसा कर उम्र भर उसे सूली पर टांगे रखती है। यही माँ के साथ हुआ। उस रिश्तेदार को तो समाज भूल गया लेकिन बेगुनाह माँ उसे याद रही। जब वह अफसर माँ को घर पहुंचाने गया तो घर के दरवाजों ने उसके लिए खुलने से इनकार कर दिया। तब उसने शहर में एक हॉस्टल में माँ को रखा और अपने पद के जोर पर एक नौकरी दिलवा दी। उसने बहुत कोशिश की मगर माँ को कोई लड़का अपनाने को तैयार न हुआ उल्टे समाज ने दोनों को लेकर झूठी कहानी गढ़ दी। वह कहानी कुछ इस तरह सुलगी कि बेवजह ही उस शादीशुदा अफसर का घर भी जलने लगा। आखिर तंग आकर उसने एक दिन उस कहानी को हकीकत में बदल ही दिया।

इसमें बरसों का संघर्ष था, मानसिक तनाव भावनात्मक उथल-पुथल थी। जिसने लड़की की माँ को एक अफसर की दूसरी बीवी, जिसे अफसर के परिवार वाले रखैल कहते थे, बना दिया। समाज उनके प्यार को कभी समझ नहीं पाया। समाज के लिए प्यार नहीं रिश्ता महत्वपूर्ण है, जबकि दोनों के बीच इतना तालमेल और सामंजस्य रहा कि घर की चारदीवारी आज भी उनके प्यार से महकती रहती है और वही महक उन्होंने अपनी बेटी को दी। उसी महक से उन्होंने उसकी परवरिश की। लड़की ने सदा अपने माता-पिता को दो जिस्म एक जान देखा, मेड फॉर ईच अदर। उसकी माँ एक आदर्श पत्नी, आदर्श माँ है, एक आदर्श गृहिणी है। समाज ने उसके उस अतीत को जो कभी स्याह था ही नहीं, उनकी जिंदगी के ऊपर बहुत फैलाना चाहा लेकिन उन्होंने उसका साया तक अपनी लड़की के मन और अपने घर पर पडने नहीं दिया। तभी लड़की का मन उनकी तरफ से हमेशा उजला रहा लेकिन समाज के इस रवैये को वह बखूबी पहचानती है। उसका अपना तीन लोगों का परिवार बेहद खुशहाल है, लेकिन अब जब वह किसी दूसरे घर में जाएगी तब यही समाज क्या उस अंधेरे को उसके जीवन में भी फैलाने की कोशिश नहीं करेगा।

"मैं किसी स्याही से नहीं डरता, मैं समाज की परवाह नहीं करता शादी करूंगा तो तुमसे ही वरना घर छोड़ दूंगा।" लड़का हमेशा उसे ढांढस देता मगर लड़की के दिल में तब भी एक हॉल उठता। उसे एक परिवार भी चाहिए था अपने लिए, अपने होने वाले बच्चों के लिए। उसे लगता कि उसके बच्चों का बचपन उसके बचपन की तरह रिश्तो से खाली न रहे। तभी वह मंदिर-मंदिर मन्नत मांगती रहती एक घर की। एक रिश्ते की, जो समाज ने उसकी माँ को कभी नहीं दिया मगर उसकी माँ की शिद्दत से इच्छा है कि उसकी बेटी को जरूर मिले और लड़की हर मंदिर में अपने लिए प्यार और समाज के लिए एक रिश्ते की मन्नत मांगती रहती देवी देवताओं से।

आधा घंटा वहां खड़े रहकर वह वहां की खूबसूरती और दूर तक फैली हरियाली को देखते रहे। ठंडी हवा के झोंके बड़े भले लग रहे थे। दोपहर को दोनों ने हनुमान जी को प्रणाम किया, एक बार फिर से जालपा माता के दर्शन किए और सड़क पर आकर पहाड़ी से नीचे उतरने लगे। यहां से घंटे भर का रास्ता था उनके शहर का। शाम होने से पहले दोनों अपने ऑफिस पहुंच जाएंगे। धीरे-धीरे कदम बढ़ाती लड़की का ध्यान सड़क से लगी कच्ची जमीन पर गया, वहां पत्थर की ढेरिया लगी थी। छोटे- छोटे पत्थर एक पर एक रखे थे। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ पत्थर इस तरह से कैसे जमाए कुदरत ने, लेकिन एक जगह नहीं वहां तो बहुत सी जगह पर सड़क किनारे वैसे ही पत्थर रखे थे। उसने पूछ ही लिया

"सुनो यह पत्थर इस तरह एक पर एक कैसे रखे हैं?"

जवाब दिया पीछे से आती दो औरतों ने "जिन्हें खुद के घर की हसरत होती है वह लोग अपने घर बनने की मन्नत मांगते हैं माता रानी से और मन्नत के रूप में यहां पत्थरों का घर बनाते हैं माता रानी के दरबार में। मान्यता है कि इससे उनको अपना मनचाहा घर मिल जाता है जल्दी ही।"

"सुनो मैं भी एक घर बना दूं?" लड़की ने बहुत हसरत से लड़के से पूछा।

"हाँ बना दो।" लड़के ने मुस्कुराकर हामी भर दी।

लड़की ने बड़ी हसरत से नीचे बैठकर पत्थर चुनकर, उन्हें एक पर एक रखकर घर बनाया। पत्थरों का घर माता रानी के दरबार में मन्नत मना कर और मन्नत पूरी हो जाने की हसरतों, उम्मीदों का एक घर अपने दिल में।

डॉ विनीता राहुरीकर