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लघुकथाएँ - 2

लघुकथाएँ

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1)फिक्र

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बेटू इधर आना ,गौरी के पिताजी ने बड़े प्यार से पुकारा ।

जी पिताजी, गौरी अपना काम छोड़कर पिताजी के पास आकर खड़ी हो गई ।

"कुछ चाहिए पिताजी ? माँ बस अभी थोड़ी देर में ही बाजार से आ जाएगी ।" गौरी ने हंस कर कहा ।

पिताजी ने बड़े प्यार से गौरी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा " थोड़े दिनों के बाद तुम्हारी शादी हो जाएगी । तुम अपने ससुराल चली जाओगी । फिर कहाँ तुम्हें अपने पिताजी से बात करने का मौका मिलेगा ? आज जी भर कर तुम से बात करना चाहता हूँ । पिताजी ने उदास होते हुए कहा ।

"नहीं ऐसा नहीं है पिताजी, मैं आप से रोज फोन पर बात किया करुँगी । हाँ, ये जरूर है कि आपका स्नेह भरा हाथ सिर पर नहीं होगा ?" गौरी ने रुआंसी होकर कहा ।

आभा दवे

मुंबई

2)अस्तित्व
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मनमोहक नृत्य चल रहा था । सभी दर्शक ताली बजा -बजाकर बच्चों का उत्साह बढ़ा रहे थे । ये साधारण नहीं असाधारण बच्चे थे जिन्हें समाज दयनीय दृष्टि से देखता है । ये मंदबुद्धि बालक, बालिका आज मंच की शोभा बढ़ा रहे थे ।
रीता की बारह वर्षीय बेटी भी इन्हीं बच्चों में शामिल थी । जो नृत्य कर ताली बटोर रहे थे । रीता अपनी बेटी को नृत्य करते देखकर फूली नहीं समा रही थी । आज उसने मंच पर अपनी बेटी में नया परिवर्तन देखा था । सभी बच्चों के साथ वह बहुत खुश लग रही थी । रीता को सभी बच्चे नृत्य करते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए नज़र आ रहे थे । माँ की परछाई से दूर अपना अस्तित्व बनाते हुए यह बच्चे माता-पिता के परिश्रम को सार्थक कर रहे थे ।
रीता की आँखों में अपनी बेटी के लिए भविष्य के सपने सजने लगे उसके अस्तित्व पर अब कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता ।

आभा दवे

3) बदहाली
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नीलू को जैसे ही चार बजे शाम को एक अनजान फोन आया वैसे ही वह ऑफिस का सारा काम छोड़कर घर की ओर भागी । उसने ऑफिस में किसी से कुछ नहीं कहा । सभी की नजरें भागती हुई नीलू पर गई । रीना ने भागती हुई नीलू से पूछा -"कहाँ भागी जा रही हो ऐसे ?" नीलू ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया "घर" ..

नीलू जैसे ही घर पहुँची वह अवाक रह गई उसका बेटा जो कुछ दिन पहले ही अमेरिका से घर आया था वह अपने दोस्तों के साथ बैठकर शराब पी रहा था और उन दोस्तों के साथ लड़कियाँ भी शराब पीकर सिगरेट का धुआँ उड़ा रही थी। सभी *बदहाली* की अवस्था में थे ।

नीलू को पहले तो कुछ समझ नहीं आया । फिर उसने सभी से अपनी वाणी को नियंत्रित करते हुए कहा-"अब तुम लोग अपने -अपने घर जा सकते हो । शायद मैं ही गलत थी मैंने अपने बेटे पर इतना भरोसा किया।" गला रुँध जाने पर वह और कुछ न कह पाई आँखों से अश्रु धारा निकल पड़ी।

आभा दवे

4)परिवर्तन
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आज सुबह से ही विकास बहुत उदास था उसे अपनी नौकरी खो जाने की चिंता थी । घर में माँ और बहन के अलावा कोई नहीं था। रुपए-पैसे की तंगी उसे चैन से बैठने नहीं दे रही थी । उसकी बहन रीता इस वर्ष बारहवीं कक्षा में थी उसकी परीक्षा के दिन नजदीक थे । उसकी परीक्षा खत्म हो जाने के बाद उसके एडमिशन की चिंता विकास को सताए जा रही थी ।

रीता पढ़ने में बहुत होशियार थी इसलिए विकास चाहता था कि उसकी पढ़ाई जारी रहे । उसके पिताजी को दुनिया छोड़े एक ही साल हुआ था । इस लिए माँ भी हमेशा गुमसुम सी रहती थी । विकास के आफिस वालों ने उसे हिदायत दे दी थी कि वह दूसरी जगह नौकरी ढूंढ ले आफिस में ज्यादा लोगों की जरूरत नहीं है । पिताजी के चले जाने के बाद विकास ने बी.काम करने के बाद तुरंत नौकरी कर ली थी । आगे की पढ़ाई उसे छोड़नी पड़ी ।

रीता अपने भाई को सुबह से परेशान देख रही थी और उसकी परेशानी को समझ रही थी । उसने अपने भाई से कहा-" भईया तुम नौकरी की चिंता मत करो । मेरी सहेली के पिताजी तुम्हें नौकरी पर रख लेंगे मेरी उन से बात हो गई है । उन्हें ईमानदार और मेहनती लड़के की जरूरत है एकाउंट्स संभालने के लिए । बारहवीं के बाद मैं माँ के साथ टिफिन सर्विस शुरू कर दूंगी और प्राइवेट रुप से पढ़ाई भी जारी रखूंगी ।" इतना कह कर रीता चुप हो गई ।

विकास की आँखों में चमक आ गई । आज उसे अपनी अल्हड़ सी बहन बहुत समझदार लग रही थी । पिताजी के जाने के बाद आज उसने अपनी बहन में ऐसा परिवर्तन देखा जिसने घर की नींव को संभाल लिया है ।

आभा दवे

5)बिछड़ते लोग
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सुमेर आज सुबह से ही परेशान सा अपने घर में इधर-उधर चक्कर काट रहा था । इतना बैचैन वो कभी न था जितना आज नज़र आ रहा था । घर वाले भी उसे इधर -उधर चक्कर काटते देख रहे थे पर सभी ख़ामोश और सहमे हुए से थे ।

टीवी पर समाचार आ रहा था कि "देश में कोरोनावायरस से कई व्यक्तियों की जान चली गई है । लोग अपनों से बिछड़ने लगे हैं । सभी अपनी जिंदगी को बचाएँ अपने - अपने घरों में सुरक्षित रहें,कोई घर से बाहर न निकले "। इस समाचार को सुन कर सभी सहम से गए थे और सुमेर अत्यधिक बैचैन हो रहा था । उसकी पत्नी गर्भवती थी और उसका नौवां महीना चल रहा था । बच्चे को जन्म देने की तारीख भी नजदीक आ रही थी । उसके मन में अपनों से बिछड़ने का भय समाने लगा था ।

फोन की घंटी बजते ही सुमेर ने काँपते स्वर से "हलो" कहा । "मैं डॉ. सतीश बोल रहा हूँ दूसरी तरफ से आवाज आई "। मेरी डॉ पत्नी ही आप की पत्नी का हर महीने चेकअप कर रही थी । इस समय वह शहर में मौजूद नहीं है । लॉकडाउन की वजह से उसे हैदराबाद में ही रुक जाना पड़ा । वह कुछ जरूरी काम से हैदराबाद गई थी ।" उन्होंने बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहा -"आज सुबह ही उसका फोन आया था । आप बिल्कुल भी चिंता न करें । मैं आप की पत्नी का पूरा ध्यान रखूंगा जब भी आप की पत्नी को प्रसव पीड़ा हो , आप मुझे तुरंत फोन करिएगा मैंने यहाँ पर सारी सुविधाएँ उपलब्ध करा ली है । आप निश्चिंत रहें "।

डॉ. सतीश की बातें सुनकर सुमेर खुश हो गया । उसने सभी घर के सदस्यों को बुला कर कहा-" बिछड़ते लोगों का समाचार सुनकर मैं तो घबरा ही गया था पर डॉ. सतीश ने मेरी सारी बैचैनी खत्म कर दी । वाकई डॉ.भगवान का दूसरा रूप है । अब मुझे अपने लोगों से नहीं बिछड़ना पड़ेगा" । सुमेर की बात सुनकर परिवार के लोगों में खुशियाँ लौट आईं ।

आभा दवे

6)सम्पत्ति-
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पिता के स्वर्गवासी हो जाने के बाद से ही विकी और सनी बेचैन से हो गए थे। आज तेरहवी के समाप्त होते ही वह पिताजी की अलमारी खोल कर सब देखने लगे। हो सकता है पिताजी ने वसीयत इसी अलमारी में रखी हो। पिताजी का अचानक 55 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया था । पिताजी ने वसीयत बनाई है यह तो सनी और विकी को पता था पर कहां रखी है यह ज्ञात न था ।

वे दोनों अलमारी में छानबीन जब कर रहे थे तभी उनकी माँ वहांँ आ गई और बोली "तुम लोग यह वसीयत ही ढूंढ रहे हो न।" सनी और विकी दोनों कुछ भी ना कह पाए। माँ ने उन्हें वसीयत दे दी उसमें लिखा था -" सारी संपत्ति तुम दोनों की पढ़ाई में खर्च हो गई एक संपत्ति तुम दोनों को सौंप रहा हूँ वह है तुम्हारी "माँ " उसका ध्यान रखना।"

सनी और विकी एक दूसरे को ताकते रह गए ।

आभा दवे

7) राष्ट्रगान
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काव्य गोष्ठी एक सभागृह में आयोजित की गईं। सभी कविगण अपनी- अपनी रचनाएँ सुना रहे थे और श्रोतागण उनकी कविताओ का आंनद ले रहे थे । हर कवि की कविता में अपने प्रांत के प्रति प्रेम झलक रहा था ।

सभी की कविताएँ हो चुकी थी । कविता पढ़ने के लिए आखरी कवि को बुलाया गया । कवि मंच पर आए सभी का अभिवादन करते हुए उन्होंने देशभक्ति की कविता सुनानी शुरु कर दी । तालियों की गड़गड़ाहट से सभागृह गूँज उठा । सभी कवि अपने प्रांतीयता से ऊपर उठकर अपने देश के प्रति गर्व से भर उठे । अब सभागृह जन- गण- मन के राष्ट्रगान से गूंज रहा था ।

आभा दवे

8)प्रचार
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रमेश सुबह से थैला लेकर घर से बाहर निकल गए। जहाँ भी वे जाते थैले में रखे हुए पर्चे सभी को बाँट देते । पर्चे बाँटकर उन्हें आत्मिक संतोष हो रहा था ।

तभी उनकी मुलाकात अपने पुराने मित्र अजय से हो गई । अजय ने उन्हें देखते ही कहा " क्या बात है ये थैला लेकर कहाँ निकल पड़े ?"

रमेश ने गहरी साँस लेकर कहा "तुम्हें तो पता ही है जब भी होली आती है मुझे बहुत बेचैन कर जाती है ।" अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अजय से कहा "आज दस साल हो गए , मेरे बेटे सनी की आँख की रोशनी गए । अब वह बीस बरस का हो गया है ।उसकी एक आँख इसी होली ने छीन ली उन्होंने दुखी होते हुए कहा । "

हाँ ! मुझे याद है , जब सनी सभी बच्चों के साथ होली का रंग खेल रहा था । तभी उसके किसी सहपाठी ने शरारत करते हुए गुब्बारा उसे फेंक कर मारा था जिसमें पानी की जगह विषैला लाल रंग भरा हुआ था । जो जोर से सनी की आँख पर लगा था उसे तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ा था । अपने दिमाग पर जोर डालते हुए अजय ने कहा ।

रमेश ने अश्रु भरे नेत्र से हामी भरी । थैले में से कुछ पर्चे निकालकर अजय को देते हुए कहा -"इसमें मैंने अपनी बेटे की कहानी के साथ सभी को हिदायत दी है कि "होली का रंग बदरंग भी हो सकता है संभलकर खेलें । आँखें बहुत कीमती है इसे सँभाल कर रखें । " सभी को होली मुबारक ।

अजय को पर्चे देकर रमेश आगे बढ़ गए । अजय उन्हें जाते हुए देखता रहा और सोचता रहा दर्द का मौन प्रचार पहली बार देखा है ।


आभा दवे

9)उपकार
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मधु की शादी बड़ी ही धूमधाम से हुई । विदाई का वक्त आ गया उसने अपनी मम्मी - पापा को बड़े ही करुणापूर्ण नेत्रों से निहारा । उसके मम्मी- पापा का रो -रो कर बुरा हाल था । आज उनकी लाडली दूसरे घर जा रही थी ।
मधु भी अपने मम्मी- पापा से लिपट कर रोने लगी । उसके पास आज कोई शब्द नहीं थे । वह एक अमीर घर की बहू बनने जा रही थी । उसे अपने मम्मी -पापा पर गर्व हो रहा था। उसने रुंधे हुए गले से अपने मम्मी -पापा से से कहा-"आप दोनों का बहुत-बहुत उपकार है मुझ पर ,आपने एक अनाथ लड़की को सहारा देकर उसकी जिंदगी को संवार दिया ।" उसके नेत्रों से अश्रु धारा बही जा रही थी। तभी उसकी मम्मी ने उसके आँसू को पूछते हुए कहा " बेटी उपकार है तेरा हम पर ,जो तूने हम दोनों को माता -पिता बना दिया । तेरे आने से मेरी जिन्दगी को जीने का सहारा मिला ।" आगे मधु की माँ कुछ न कह पाई । माँ और बेटी की अद्भुत विदाई देख कर सभी भावुक हो रहे थे ।

आभा दवे

10)गृह प्रवेश
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नंदिनी आज सुबह से ही उतावली थी । उसने पूजा की सारी तैयारी कर ली थी बस अपने माता- पिता के आने का इंतजार कर रही थी । नंदिनी के पति और उसके दोनों बच्चे उसके काम में हाथ बँटा रहे थे ।

माता- पिता के आते ही वह उन्हें कार में बिठाकर ले गई । नंदिनी के माता -पिता को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे कहाँ जा रहे हैं ? 15 मिनट के बाद ही उनकी कार एक छोटे-से बंगले के सामने जाकर खड़ी हो गई । जिस पर यह बंगला बना था वह जमीन नंदिनी के माता-पिता ने उसके ससुराल वालों को दहेज में दी थी ।
नंदिनी ने उस बंगले की चाबी अपने पिताजी को पकड़ाते हुए कहा - "आज माँ और पिताजी आप दोनों का इस घर में गृह प्रवेश है । आपको किराए के घर में अब रहने की जरूरत नहीं है । " नंदिनी की माँ और पिताजी आश्चर्यचकित हो इकलौती बेटी को देखते रह गए उनके खुद के घर में गृह प्रवेश की इच्छा आज पूरी हो गई थी ।

आभा दवे