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विदाई

अंतिम विदाई


...उसका मन आशंका से घिर गया।

जैसे ही गली में कदम रखा उसे चाची के घर के सामने भीड़ दिखाई दी । वह चिन्ता में पड़ गई कि इतनी भीड़ किसलिए ? हठात् उसने सोचा कहीं सोनू ...। फिर अपने आप ही बड़बड़ा उठी ....नहीं ...नहीं ।

कल रात ऐक्सीडेंट की खबर मिली , और आज सुबह वह ट्रेन में बैठकर यहाँ आ गयी। उसने अपनी याद्दाश्त पर जोर डाला तो याद आया कि चाचा जी ने फोन पर यही कहा था -‘‘ चोट मामूली है , सोनू के जीवन को कोई खतरा नहीं हैं। ’’

फिर उसने घर पर भी फोन लगाकर बात की थी तो पापा ने भी यही कहा था - ’’ चिन्ता की कोई बात नहीं हैं, लेकिन तुम आकर देख जाओ तो अच्छा रहेगा ,उसे ग्वालियर रैफर कर दिया है। ’’

यह तो वह अन्दाजा लगा रही थी कि ग्वालियर भेजने का मतलब हैं, चोट ज्यादा ही होगी। गली में प्रवेश कर घर की ओर चलते -चलते उसने अपने मन को समझाया कि एक्सीडेंट की खबर सुन आस -पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गये होगें और आज कल हो रहे ऐक्सीडेण्टस पर चर्चा हो रही होगी...।

उधेड़बुन में वह घर के निकट आ गयी ।

चाचा के घर की दीवार से ही कामना के घर की दीवार लगी हुयी थी । वह पहले अपने घर में जाकर सारी जानकारी लेना चाहती थी, लेकिन जाने क्या हुआ कि किसी भीतरी प्रेरणा से अनायास उसके पैर चाचाजी के घर के चबूतरे की ओर ही मुड़ गये।

बाहर ढेर सारे मर्द इकट्टा थे। उसे तेज झटका लगा। अन्दर हिचकियों में डूबा गमजदा माहौल था । बैठक का कमरा महिलाओं से भरा हुआ था । सबके चेहरे दुःखी और उतरे हुऐ। कई की आँखों से आँसू बह रहे थे । बिलख रहीं चाची के रूदन के स्वर कानों में पड़े तो उसने उन्हे ताका। वे कामना को देख कर दहाड़ मारकर रोने लगी और उठकर कामना की ओर लपकी । चाची की हालत खराब थी, सदा सिर पर पड़ा रहने वाला पल्ला एक ओर गिरा पड़ा था । कामना अब भी माजरा पूरी तरह समझ नहीं पा रही थी लेकिन उसका मन अनिष्ट की आशंका से भर उठा। उसने शिद्दत से चाची को संभाला और जमीन पर बैठ गयी । पड़ोस की अम्मा जी ने रूदन भरे स्वर में बताया - ‘‘ उसकी संास तो सुबह चार बजे ही उखड़ गयी थी । उसका पोस्टमार्टम होना था इसलिए घर पर भनक तक नहीं लगने दी । अभी थोड़ी देर पहले ही खबर आयी है कि उसको लेकर आ रहे हैं - तैयारी कर लो ।’’

अम्माजी का अंतिम ष्शब्द ‘‘तैयारी कर लो ’’ कामना को अन्दर तक सिहरा गया । थेाड़ी देर तक तो वह अपने आप को संभाले रही रूक नहीं पायी तो बेसाख्ता फूट -फूटकर रोने लगी।

कुछ देर बाद कामना की निगाहें रश्मि को खोजने लगी । सोच रही थी कि उस पर क्या बीत रही होगी ? पंद्रह दिन ही तो हुए थे दोनों के विवाह को ।हाथ की मेंहदी भी नही ंछूटी होगी अभी। उसने देखा चाची की दोंनों बड़ी बहुएँ महिलाओं के बीच बैठी थी।फिर नजर आया नीचा सिर किए रश्मि भी उन्हीं के पास बुत सी बनी बैठी थी । इच्छा हुई कि उसके पास पहूुंचू। लेकिन किनशब्दों से दिलासा देगी वह रश्मि को ? यह नहीं याद कर पाई तो रश्मि से बात करने का ख्याल उसने भीतर ही दबा लिया। वह भी गमजदा चेहरा लिए पहले से बैठी नाते गोते की औरतों के बीच बैठ गई।

थोड़े समय बाद ही सोनू का निर्जीव शरीर लेकर दोनेां भाई आंगन मेें आ गये । वे दोनों हताश से वहीं बैठ गये। बड़ा भाई डकरा कर कहने लगा- ‘‘ हमने तो डाक्टर से कहा था हमारा सब धन -जायदाद ले लोऽऽऽऽ पर हमारा सोनू वापस कर दो । हमारा तो भाई चला गयाऽऽऽऽ ।’’

दूसरा बोला -‘‘जिन्दगी में कुछ नहीं रह जाताऽऽऽऽ । कोई अपने साथ धन सम्पत्ति कुछ नहीं ले जाता सब यहीं धरा रह गयाऽऽऽऽ ।’’

सोनू के मुँह पर पड़े कपड़े को हटा दिया गया था । चाची उससे लिपट -लिपट कर रो रही थी और विलाप कर रही थी - ‘‘ मेरा लाल तू कहाँ चला गया ऽऽऽऽ ........तू तो थोड़ी देर बाद आ रहा था.ऽऽऽऽ .........क्या इस हालत में आया हैऽऽऽऽ ............तू गया तो उसको भी ले जाता उसे कौन के भरोसे छोड़ गयाऽऽऽऽ .............अरे नाश होे वह मोटर वाले का मेरे लाल को मार डालाऽऽऽऽ ...........।’’

सोनू की देह पर चाची दहाड़ें मारती रो रही ंथी और कामना सोने को याद कर रही थी । उसके आते ही वह खातिरदारी के लिए घर सिर पर उठा लेता। चहकते हुए दो दिन का प्रोग्राम फिक्स कर लेता और जब तक बात नहीं मनवा लेता , पैर पकड़े बैठा रहता था।

पर आज कितना शान्त पड़ा था ।

उसके शरीर पर से कपड़ा हट गया था । नीचे दिखा कि उसका शरीर पॉलिथिन में लिपटा हुआ था जो खून से लथपथ हो रही थी ।फिर भी उसका हंसमुख चेहरा ज्यों का त्यों था, ऐसा लग रहा था कि अभी बोल उठेगा।

सभी लोग रो रहे थे -केवल रश्मि पत्थर की मूरत के समान चुपचाप बैठी थी । उसके चेहरे पर न कोई भाव था और न ही कोई प्रतिक्रिया । शरीर में कोई हलचल भी नहीं थी वह निर्विकार भाव से सब देख रही थी। लोगों में कानाफूसी होने लगी........ अरे इसको तो रूलाओ नहीं तो पागल हो जायेगी...............अरे पत्नी का रोना तो जरूरी है...............ये ही तो छाती पीटेगी............ उसे बताओ उसका सुहाग चला गया.................।

कुछ महिलाओं ने उसे झिझोड़ना शुरू कर दिया। कई औंरतों की आवाजें आने लगी ..............तुम्हारा सब कुछ चला गया ...............तुम रोओ ...............देखो सोनू को क्या हो गया.............।

बड़े प्रयासों के बाद वह रोयी तो नन्ही बच्च्ी की तरह हिया फाड़ कर किसी काटी जाती बछिया की तरह डकराने लगी। उसकी चीख सुन कर कामना भी संवेग शून्य होती जा रही थी । पहले ऐसा मौका कभी नहीं आया था । जब उसने पार्थिव देह को इतने पास से देखा हो । वह भी इतनी असामयिक और वीभत्स मौत । कामना ने रश्मि को देखा - उसके मासूम चेहरे पर बिन्दी और माँंग में सिन्दूर था कितना प्यारा चेहरा लग रहा था। उसे लगा अब ये सब चीजें उससे छीन ली जायेंगी । बिना सिन्दूर और बिन बिंदी के उसका चेहरा कैसा लगेगा ? चाची तो स्वयं विधवाओं को विधवाओ ंकी तरह रहने की पक्षधर हैं। याद है कि यहीं पड़ोस की एक नन्ही लड़की जब ‘‘खाली हाथ ’’ हो गयी थी और वह बिंदी लगायें चूड़ी , बिछिए पहने घूमती थी तो चाची ने ही सब में ज्यादा विरोध किया था ।

कामना की तन्द्रा भंग हुयी । चाची विलाप कर रही थी । उन्होनें अपनी बिंदी और चूड़ी उतारकर फेंक दी और कहने लगी - ‘‘ ईश्वर तुम्हें सुहाग ही चाहिये तो मेरा सुहाग ले लो पर मेरी बहू का सुहाग वापस कर दो ’’कहते हुए अपना सिर दीवार पर पटकने लगी । वे बीच -बीच में बडबड़ाती जा रही थी...............रश्मि आज से तुम हमारी सोनू हो हम तुम्हें कुछ नहीं होने देगें ............हम तुम्हें कहीं नहीं जाने देगें .........वे कुछ देर रूकती फिर बोलना शुरू कर देती थीं। वे कहने लगी ............मुझे मालूम होता कि मेरे सोनू की उमर इतनी कम है तो मैं कभी उसका ब्याह नहीं करती.........इसकी जिन्दगी तो बर्बाद नहीं होती ।’’

कामना यह सब सुनकर स्तब्ध थी । उसे लग रहा था कि चाची बहू को ही दोष देगीं कि तू मेरे बेटे को खा गयी लेकिन चाची ने ऐसा कुछ नहीं कहा बल्कि वे रश्मि के प्रति सहानुभूति दिखा रही थी । कामना को लग रहा था कि हो सकता है सब के सामने चाची रश्मि को कुछ नहीं कह रही हैं।

सोनू चाची का सबसे लाड़ला बेटा! सबसे छोटा होने के कारण लाड़ का हकदार भी। इस वजह से रश्मि भी चाची की लाड़ली बहू है। लकिन इस स्थिति में हर औरत बहू को ही डाकन बताती, सो कामना को लग रहा था कि बेचारी रश्मि !

बेचारी रश्मि ! यह वाक्य चाची ने उस दिन कहा था जिस दिन सोनू के ब्याह के बाद रश्मि ने रसोई में प्रवेश किया था और इतने बड़े परिवार के लिए खिचड़ी बनाई थी। दरअसल रश्मि अल्हड़ थी थी और अबोध भी। सुन्दर ऐसी कि प्लास्टिक की गुड़िया लगे । उसकी सुन्दरता देख दूसरी बहुये जल-भुन गई थीं स्त्री सुलभ ईर्ष्या के कारण । बचपन से मां मर गई सो मां के लाड़ की भूखी थी, चाची को देखा तो हुलस कर रो उठी । चाची भी द्रवित हो उठीं थी। फिर दूसरे दिन अपनी अटैची में से निकाल कर अपना बचपन का एलबम के फोटो सबको दिखा रही थी कि एक फोटो देख चाची काठ सी हो गई। बचपन में रश्मि को किसी ने लड़के के कपड़े पहना कर फोओ खींचा था, वह फोटो सामने था। कामना ने टहोका तो चची ने यादों में बुदबुदाते हुये कहा, ‘ ऐसी ही तो लगती थी चिम्मी, ...मेरी चिरैया !’ फिर लम्बी सांस खींच कर रश्मि को खींच कर सीने से लगा लिया था उन्होने। सब चकित थे,... जालिम सास के रूप में ललिता पंवार को लजा देने वाली चाची में यह परिवर्तन!

...और सबको याद आ गई थी चिम्मी। चाची की सबसे छोटी बेटी, जो बचपन में ही अकस्मात चल बसी थी। तबसे चाची रश्मि में बहू नही संभवतः बेटी देखने लगीं थीं।

सोनू की पार्थिव देह कफन में लपेट कर अंतिम यात्रा पर चल पड़ी। औरतें अपने क्रन्दन के क्लाइमैक्स पर थीं।

कई धण्टे ऐसे ही बीते।

घर के पुरूश अंत्येष्टि करके वापस आ गये थे । कामना ने कंधा देने वाले पुरूशों के कंधों पर तेल लगाया ,जिससे उनके कंधों से अर्थी का बोझ उतर जाये। रिवाज के अनुसार विवाहित लडकियाँ रूकती नहीं हैं । कामना भी जाने लगी तो चाची की याचक निगाहेों ने उसके पैर बाँध दिये । वे फूट -फूटकर रोने लगी फिर फुसफुसाती हुई बोली -‘‘ तुम रूक जाओ कामना ! तुम्हारी रश्मि से खूब पटती है । तुम चली जाओगी तो उसे कौन दिलासा देगा । ’

उन्होंने कामना का हाथ पकड़ लिया ।

कामना ने कोई उत्तर नहीं दिया । वह चुपचाप खड़ी रही । उसके मनोभाव को ताड़ते हुए उन्होंने कहा - ‘‘ नल पर नहाकर मंदिर के दर्शन कर आओ , वापस जाने का रिवाज हो जायेगा। ’’

कामना को फिर झटका लगा, चाची जैसी रूढिवादी महिला आज इतना आधुनिक कैसे सोच रही हैं।

कामना वहीं ठहर गयी।

चाची के तीन बेटे हैं । दो बड़े बेटे है और उनकी बहुएँ भी हैं । सोनू तीसरा बेटा था । बेटी कोई नहीं थी इसलिए ताउजी की बेटी कामना को ही इस घर में बेटी का दर्जा मिला हुआ था ।

पूरे कुटुंब में चाची तेज -तर्रार और हठीली मानी जाती थी ।वे रीति-रिवाजों का बखूबी पालन करती थी यहाँ तक कि उनके चेहरे से लाज का पल्ला भी नहीं उघड़ता था । जब वे अपनी बात पर अडिग हो जाती थी तो चाचा जी भी कुछ नहीं कर पाते थे । उनके कारण ही चाचा और पापा में बंटवारा हो गया था । सभी चाची के लड़ाकू स्वभाव से परिचित थे, जिसकी खबर आस -पास के तमाम बिरदरी भाइयों में भी फैल गयी थी । फलस्वरूप कोई भी अपनी बेटी उनके घर में देने से झिझकता था।

अभी पंद्रह दिन पहले ही की तो बात है मुश्किल से एक गरीब घर मिला जब सोनू का विवाह हुआ था । दरवाजे पर बहू -बेटा लेते समय , रश्मि के मायके से आयी डलिया में गुना (मैंदे का बना गोल कंगन की आकृति का ) खेाजा गया वह नहीं मिला शायद रश्मि के घर के लोग वह रखना भूल गये होगें । तभी चाची ने हाय -तोबा मचा डाली थी । वे जिद कर रहीं थी कि गुना में होकर ही बहू का मुँह देखा जाता है ।

कामना ने उन्हें बड़ी मुश्किल से समझाया, तर्क दिया कि - ‘‘ पहले हाथ के कंगन से ही बहू का मुँह देखने का रिवाज था लेकिन उस समय सभी के पास सोने -चांदी के कंगन नही हुआ करते थे इसलिए मैंदे के बने कंगन का तरीका निकाल लिया होगा। आपके पास तो सोने के कंगन हैं , आप उसी से बहू का मुँह देख लो ।मेरी ससुराल में तो आटा-मैदा के कंगन की तरफ कोई देखता तक नहीं, वहां मेरी भी मुँह दिखायी सोने के कंगन से ही हुयी थी ।’’

चाची ने अंततः कामना की बात मान ली थी ।

आज रश्मि का श्रृंगार उतारना था । पड़ोस की महिलायें जैसे ही उसकी चूड़ियाँ उतारने लगीं चाची अरावली पर्वत की तरह बीच में आकर खड़ी हो गयी और रोते हुए बोली - ‘‘ इसका यह रूप मैं कैसे देख पाऊँगी । इसको देख -देखकर और ज्यादा याद आयेगी कि मेरा सोनू नही हैं , इसे ये सब चीजें बख्श दो........मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ ’’ कहकर वे गिड़गिड़ाने लगीं।

उनके रूदन में इतनी कसक , इतनी वेदना और इतनी तड़फ थी कि महिलाओं कंे हाथ रूक गये । उनमें से एक बोली तुम ठीक कहती हो कस्तूरी लेकिन इसका भी तो सुहाग का सामान बदलदेना चाहिये। रश्मि को भी वे सब सामान नये पहनाये गये। वह फिर से नयी - नवेली दुल्हन की तरह लग रही थी । चाची उससे लिपटकर रोने लगी ।

धीरे -धीरे समय गुजरता जा रहा था ।कामना बीच में छह मासी के लिये चाची के यहाँ आयी तो पता चला कि चाची ने रश्मि के दहेज का सारा सामान एक कमरे में बंद करके रख दिया है। सब काम निवटने के बाद चाची कामना को एकांत में ले गयी और धीरे से बोली - ‘‘ कम्मों अब तो तू एक अच्छा सा लड़का देख दे । उसने सुख ही कहाँ भोगा है। हम अपने आगे रश्मि का व्याह कर दें तो हमें शान्ति मिल जायेंगी। देख इसका सारा सामान कमरे में बंद कर दिया है जिससे इसका सामान कोई न बेपरे (काम में ले) । ये यहाँ रहती है तो दोनों बहुएँ इससे बहुत काम कराती है इसलिए मैं इसे कभी - कभी मायके पहँुचा देती हूँ ।’’ कहते -कहते उनकी आवाज भर्रा गयी । वे बोली - ‘‘ मुझे मालूम होता कि मेरा सोनू एक जनम भी इसका साथ नहीं दे पायेगा तो मैं इसे ब्याह कर नहीं लाती ।’’ कहकर वे बिलखने लगी।

कामना उन्हें दिलासा देते हुए सोच रही थी कि चाची का यह विचार तो बहुत अच्छा है ।

वे पुनः बोल उठी - ‘‘ देख उसके माँ - बाप तो गरीब हैं । ये ही ब्याह उनने बड़ी मुश्किल से किया था तुम रूपये -पैसे की चिन्ता मत करना । हम करेगें शादी........... हम करेगें कन्यादान ।’’

कामना को चाची के चेहरे पर अडिग निश्चय का भाव दिखायी दिया। यह सब सुनकर वह निश्चिन्त हो गयी कि चाची रश्मि का ख्याल रखेगी और उसे कोई तकलीफ नहीं होने देंगी।

समय निकलते देर नही लगी। रश्मि का भी ग्रेजुएशन पूरा हो चुका था । चाची ने हठ करके उसे परीक्षा दिलवायी थी । जब रश्मि ने ही फोन पर पर बताया कि चाची रात को जाग -जाग कर उसे चाय पिलाती थी और परीक्षा के लिए प्रोत्साहित करती थी तो कामना भी चाची के बदलते मातृहृदय पर खुश हो गयी ।

सोनू को गुजरे पूरा एक वर्श बीत गया था । कामना रश्मि के दुख केा भूलकर अपने परिवार में व्यस्त हो गयी थी । अचानक चाची का फोन आया । उन्होंने बताया कि रश्मि की शादी तय कर दी है। लड़का बैंक में है। उसकी पत्नी भी एक ऐक्सीडेट में चल बसी थी। शादी का मुहुर्त जल्दी का निकला है इसलिए सब काम तेजी में चल रहा है । चाची का कहना था कि कार्ड का इंतजार नहीं करना ,जल्दी आ जाना ।

शादी की नियत तिथि आ गयी थी । कामना अपने परिवार के साथ वहाँ आयी ।विशाल पांण्डाल लगा हुआ था । चारों ओर रोशनी जगमगा रही थी । चाची चमकीली साड़ी पहने सामने से आती दिखाई दी । वे कामना से गले मिली अैेार बोली - ‘‘ आज मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रही हूँ ’’ कहते हुए उनकी आँखे नम हो गयी।

बारात आयी । लड़का सुशील और व्यवहारिक लगा। शादी की सभी रीति -परंपरायें चल रही थी । अचानक एक बहस का मुद्दा पंडितों के बीच चल पड़ा - कि लड़की की एक बार भाँंवर पड़ जाती है तो दूसरी बार नही पड़ती ।

कुछ देर तक तो चाची शांन्त होकर सुनती रही । वे लाज की ओट से सब देख सुन रही थी। वहाँ कई बुजुर्ग भी थे । उनके सामनंे चाची ने कभी चेहरा भी नहीं उघाड़ा था फिर मुँह कैसे खोलती । यह बहस चलते बहुत देर हो गयी ।

लड़के बालों की तरफ का पंडित भी यही कह रहा था- ‘‘हाँ शास्त्रों में भी यही नियम है ।’’

चाचा शान्त मूक दर्शक बने बैठे थे पर चाची कहाँ शान्त रहने वाली थी । वे विनम्र किन्तु ऊँची आवाज में बोली -‘‘ फेरे तो पड़ेगें। फेरे से ही तो पति -पत्नी बनेगें । वचन हरेगें तभी तो शादी का महत्व समझेगें । जब लड़के के फेरे हो सकते हैं तो लड़की के फेरे क्यों नहीं हो सकते ? ’’......... उन्होंने कुछ देर तक पल्ले की ओट से सबके चेहरे तके फिर बोली - ‘‘मैं ज्यादा तो नहीं पढ़ी लेकिन शास्त्र रचे किसने हैं हम तुम ने ही ना । फिर उसमें फेर बदल भी तो कर सकते हैं ।’’ चाची का तर्क काटने की हिम्मत वहाँ किसी में नहीं थी । चाची की बात सुनकर कामना खुश हो गयी थी। अभी तक वह कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी लेकिन अब चाची की हाँ में हाँ मिलाने लगी थी ।

चाची के दोनों बड़े बेटे कामना को एक तरफ ले गये । एक बोला -‘‘ जो कुछ हो रहा है वो तो ठीक है दीदी लेकिन मम्मी के पास खर्च करने के लिए इतना रूपया कहाँ से आया । ’’

दूसरा बोला - ‘‘ हमें तो चिन्ता है कि कहीं मम्मी सब कुछ इसी पर ना लुटा दें ।’’

कामना भौचक्क सी उन दोनों कंे चेहरे तक रही थी । बाहर से खुश लगने वाले ये इंसान कितना निकृश्ट सोच रहे हैं । उस समय उस लोगों को शांन्त करने के उद्देश्य से वह बोली - सब कार्यक्रम निबट जाने दों फिर बात करेगें । ’’

रश्मि की विदा हो चुकी थी । कुछ रिश्तेदारों ने इस शादी का विरोध किया था ,फलस्वरूप वे नहीं आये थे । जो आये थे वे भी विदाई के तुरंत बाद चले गये थे।

शादी के बाद मण्डप उखाड़ने के लिए कथा होनी थी इसलिए कामना को रोक लिया गया । लेकिन मुख्य मुद्दा था कि रात्रि में घर की पंचायत होनी थी । बड़े बेंटों के मन में जो द्वंद्व चल रहा था उसका फैसला होना था ।

रात्रि होते ही कमरे में सभी लोग बैठ चुके थे । बात शुरू करते हुए कामना ने चाची की ओर मुखातिब होते हुए बेंटों की ओर इशारा करते हुए कहा - ‘‘ ये दोनों पूछ रहे हैं कि शादी में जो खर्च हुआ है इतना पैसा कहाँ से आया ?

चाचाजी कोई उत्तर देते उससे पहले ही चाची ने आँखे तरेरते हुए कहा - जायदाद में सबको हक मिलना चाहिये। अब तुम लोग अपने -अपने रहने का इन्तजाम कर लो। इस हवेली को बेचकर हमने चार हिस्से कर लिये हैं । आठ लाख में बिकी है हवेली। तुम्हें दो -दो लाख मिल जायेगें । दो लाख हम दोनो डोकर -डोकरी रखेगें।उसी में बसर हो जायेगी ।’’

सुनते ही उन लोंगों के पैरों तले जमीन खिसक गयी उन्हें लगा कि मम्मी पागल हो गयी है ।

बड़े ने हकलाते हुए पूछा - ‘‘ ..........दो लाख और कहाँ गये ? ’’

चाची लंबी सांँस खींचकर बोली - ‘‘ सोनू जिंदा होता तो उसको ये हिस्सा मिलता इसलिये रश्मि की शादी में वो रूपये लगा दिये।’’

सुनते ही दोंनों बेटे - बहुएँ पैर पटकते हुए अंदर चले गये। चाची का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी ।

चाची आराम से बैठी थी उनके चेहरे पर निश्चिंतता के भाव थे । ऐसा लग रहा था कि उन्होंने रश्मि की विदाई करके सोनू की अंतिम विदाई आज की है।