Amar Shaheed Veer Bhagat Singh books and stories free download online pdf in Hindi

अमर शहीद वीर भगत सिंह

अमर शहीद वीर भगत सिंह

आज बात करुगा अमर शहीद भगत सिंह की, १९०७ में उसका ज़न्म हुआ। लायलपुर नाम का गाव, लाहौर में पड़ता है,आज जोकी पाकिस्तान में है। मां विद्यामती कौर,पिता किसान सिंह , बचपन से की लाहौर में एक स्कूल हे,जोकि ब्रिटिश सरकार की हुकूमत में था, उसे ज्वॉइन नय किया। दयानंद अंगलो वैदिक स्कूल हाल में DAVसे जाना जाता हे, आर्य सामाजिक माहौल में पढ़ना चुना। सुरु से ही पढ़ाई में इतने तेज थे कि,बचपन में ५० किताबे स्कूल के दौरान है पढ़ादाली।,जोकि स्कूल से अलग थी।
जो एकांकी की भावना थी भगत सिंह में वह सीखनी चाहिए। सेलेक्टिव साभलनारा हता,हर ज़गा नहीं खड़े उठते थे। आजादी... आजादी....बचपन से ही मन में घुस गए थी।१३ अप्रैल १९१९ जलियावाल कांड में ११_१२ साल की छोटी उमर में ४० किलो मीटर दूर पैदल चले गए।वो लासे दिमाग में गौद रही थी,काफी लोग वहां पास में पड़े कुवे में डूब गए सलांग मारके,क्युकी जनरल डायर ने आदेश दिया था। कहते है आज भी कुव में से पानी निकालो रक्त की बूंदें मिलेगी। वहां से रक्त भरी मिट्टी बांध लाए,वो छोटा सा बच्चा आजादी उसके दिमाग में घुस गए थी, उनकी बहन ने पुछा बतादे - बातादे क्या लाया है , ओर बोले ए खून मेरे उन सहिदो का हे,उन देश वासियोका है जिनका में बदला लूंगा।
जब उनके पिता के साथ खेत में गए ,तब बोले आम की गुटली क्यों बोई ।बोले बेटा ,आम लगेंगे ,पेड़ लगेगें । बोले ठीक है में बंदूक बो दूंगा ,बंदूक के पेड़ लगेगें।छोटा सा बच्चा क्या सोच रहा है मुझे बंदूक क्यों चाहिए ,ताकि अंग्रेजो को भगादू।
१९२० के आसपास गांधीको देश से बड़ी ताकत ,सहयोग मिल रहा था,गांधी उस समय पावर फूल आवाज बन गए थे,जिसने आम जनता को उठाया,वो क्या कहेते थे मुझे लड़ना नहीं हे,लड़े बिना अंग्रेजो को भगा दूंगा। उसने देश में असहयोग आंदोलन चालू किया,को क्या कहते थे गौरो का लाया ,बनाया बहिष्कार करो देशसे परिसनान होके अपने आप चले जाएंगे।गांधी बोले शांति से कर दूंगा।तब भगत सिंह बड़े प्रभावित थे गांधी से ओर उससे जुड़ गए,१९२२ में पुलिस थाने के सामने चोरी - चलाव आंदोलन सरू किया , आंदोलन के दौरान लोगो ने थाने को जला दिया ओर १७ पुलिस मारे गए,तब गांधी को बुरा लगा ,बोले में अहिंसा चाहता हूं ये तुमने क्या कर दिया ओर तभी गांधी ने असहयोग आंदोलन वापिस ले लिया,भगत सिंह बड़े परेशान हो गए और दो दल बन गए एक गांधी का नरम दल ओर एक भगत सिंह का गरम दल।वो सकता था तब गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापिस न लिया होत तो जल्दी आजादी मिल जाती क्युकी असहयोग आंदोलन को पूरे देश का सहयोग मिल रहा था।
फिर भगत सिंह ने कॉलेज ज्वाइन कर लिया- लाला लाजपतराय कॉलेज जो अभी पाकिस्तान में हे।उन दिनों करीब ३०० किताबे पढ़ डाली,एकांकी भावना से स्पीड आती है इसलिए तो सहिद भगत सिंह ने २३ साल की उम्र में वो सब कर दिया ,जो आज ९० साल के बाद हम याद करते हे।
१९२४ ,वो लगभग १७ साल के थे ,मां ने कहा सादी करले बेटा , ओय कुड़ी बहोत सोनी है,ओय तेनु रोटी खिलाएगी ,ओय सादी करले तेरा ध्यान रखेगी, मां,बोलती रह गय ये बोले दुल्हन मेरी दुल्हन नहीं होगी ,आजादी मेरी दुल्हन होगी। रातों रात चिट्ठी लिखकर भाग गए।
१९२५ , उनने काकोरी का्ड की तयारी कर्ली, सफल बनाया ओर अंग्रेजी के खजाने को लूट लिया,लूट ने के बाद पकड़े गए,अशफाकुल्ला खान अोर राम प्रसाद मिसबिल दोनों को फासी हुए , ए लोग टूटने के लिऐ नहीं बने थे तोड़ने के लिऐ बने थे,उसको रामप्रसाद की याद आई और बोले " सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हे, देखना हे जोर कितना बाजू आेमे है,कातिल में है "
१८५३ में,फ्रांसी की विधानसभा के अन्दर कम तीव्रता का बम फेंका गया था,उन दिनों ये किताबे पड़ते ही थे देखते थे दुनिया में आजादी के लिए क्या कर है। बटुकेश्वर दत्त को साथ मे लिया कम तीव्रता का बम लिया और कुछ पत्ते लिखे, और अचानक सेंट्रल असेंबली पहुंच गए, खाली जगह ढूंढी और बम फेंक दिया। कोई जनहानि ना हो इसलिए कम तीव्रता का बम था। पर्चे उठाके हवा में फेंके, और प्रत्यय में लिखा था " बहरों को सुनाने के लिए आवाज जरूरी है"चाहते तो वहां से भाग के निकल सकते थे, जानबूझकर वहां खड़े रहे और चिल्लाते रहे ..इंकलाब जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद...। जानबूझकर पुलिस को पकड़ा दिया ,आज 21 साल का लड़का अपनी मौत की डिजाइन कर रहा था । क्योंकि लगता था अब माहौल ठंडा पड़ रहा है।
इन दोनों को फांसी की सजा सुनाई गई। क्या कहते थे मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद हूं । 24 मार्च फांसी की तारीख थी जैसे-जैसे तारीख नजदीक आती गई देश में दंगे बढ़ते गए, अचानक दोनों को 23 मार्च की शाम को फांसी दे दी।
गर्व है मुझे मैं इस देश में पैदा हुआ जहां अमर शहीद वीर भगत सिंह आए,पर दुख है मुझे कहीं मूर्ख इतिहासकार उन्हें शहीद का दर्जा नहीं देते, आतंकवादी कहते हैं।दुख होता हमारे देश ने गांधी को राष्ट्रपिता बनाया मुझे कोई तकलीफ नहीं है, पर क्या हम भगत सिंह को राष्ट्रपुत्र की आदि दिला सकते हैं... 545 सांसद तक आवाज पहुंचे, संसद में आवाज उठे, भगत सिंह को राष्ट्रपुत्र की उपाधि कोशिश की जाए और उन को शहीद का दर्जा मिले..आज भी अंग्रेजों की किताब में उन्हें सहीद नहीं माना जाता।