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बेचारा

#बेचारा
एक वार बादशाह ने अपने राज्य के किसानों से बड़े जोर से किसानों की आय दोगुनी करने का विगुल क्या फूंका। किसानों में अच्छे भविष्य की लहर दौड़ पड़ी। राजनैतिक गलियारों सहित गांव के नुक्कड़ और पत्राचारों में हुकूमत की वाह वाही होने लगी। हर जगह चर्चा चलो अब तो किसानों की सुध ली किसी ने, जिस उम्मीद से किसानों ने बादशाह जी को सत्ता दिलाई आखिर वो उम्मीद अब पूरी होगी।
पर करें क्या बेचारा किसान राज्य का भृष्ट तंत्र सारे कार्य धरे रह गए देखते ही देखते किसान की हालत और पतली होने लगी, कीटनाशकों, हाईब्रिड बीजों की बढ़ी कीमत, बिजली बिल में लगातार बढ़ोतरी और किसानों की फसलों के दाम कछुआ वाली चाल सब सत्यानाश होने लगा। अरे ये क्या किसान फिर से खुद को छला हुआ महसूस करने लगा।
बादशाह बड़े कुशल राजनीतिज्ञ उसने किसान को प्रतिवर्ष उपहार स्वरूप कुछ धन देने की घोषणा की और धन का वितरण शुरू हुआ इस योजना ने किसानों के चेहरे पर फिर से रौनक ला दी। मगर कमवख्त खेती में बढ़ती लागत और फसल का गिरता दाम किसानों को आत्महत्याएं करने पर मजबूर कर रहा था।
बादशाह बड़ी परेशान, ऊपर से एक आयी महामारी के तांडव ने सारा खेल चौपट कर दिया। अब विरोधियों का विधवा विलाप तो बनता ही है। गली चोहराहो, जहां विपक्षियों का दांव वहां खूब रोना हुआ। लेकिन इन चओट्टो से किसान को कतई उम्मीद ही नही थी। इन भृष्टाचारीयों ने ही तो किसान को गर्त में ले जाकर छोड़ा था।
बादशाह जी के परमर्शियों ने स्थिति भांप ली और वही हुआ जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था। #नया कृषि नियम
इसके आने से बिचौलियों का खेल खत्म और किसान को अपनी फसल कहीं भी किसी को भी बेचने का अधिकार होगा, अनुबंध खेती को बढ़ावा मिलेगा जिससे किसान को अधिक लाभ या यूं कहें कि आय दोगुनी होगी। हुकूमत द्वारा #न्यूनतम_समर्थन_मूल्य भी जारी रहेगा।
इस अध्यादेश में ऐसे अनेकों बन्धनों को तोड़ा गया है जो किसान को मजबूर बनाये हुए थे। विपक्षियों के पेट में दर्द इसलिए कि अगर बादशाह का ये दांव कारगर हुआ तो समझिए इन चिरकुट, वामपंथी, विपक्षियों की छुट्टी। अब इन्होंने किसानों को अन्य राज्य का उदाहरण देकर कि देखो वहां पहले से अनुबंध खेती होती थी वहां का अभी भी बेहाल है, बादशाह किसान के साथ छल कर रहा है। #बेचारे_किसान हताशा के सागर में इतना डूबे हुए कि इन चिरकुट विपक्षियों के षड्यंत्र को न भांप सके। कुछ किसान सड़कों पर जा उतरे और वही हुआ जो पहले से होता आया है प्रशासन की कड़क लाठी और किसान की पीठ में मुकाबला हो गया। असहाय कमर की कसक इन विपक्षियों की देन बन गयी।
यूँ तो किसानों का बड़ा तबका इस अध्यादेश को चुपचाप देख रहा है कि शायद अब कुछ सही हो और इंतजार कर रहा है। लेकिन कुछ किसान परेशान इसलिए कि उन्होंने पूर्व बादशाहों के झूठे वादे और छलावों को देखा है, वर्तमान बादशाह के कुछ कदम अब तक लॉलीपॉप ही साबित हुए इसलिए डर कि कहीं ये भी छल तो नही।।
किसानों को थोड़ा धैर्य रखना होगा और थोड़ा तो विश्वास करना ही होगा बादशाह पर चूंकि असफलता तो कई बार होती है सफलता को बस एक मौका चाहिए शायद ये वही मौका हो।
जिन्होंने राज्य को लूटा, किसानों को बन्धन में बंधे रखा, वो कैसे किसान के कल्याण की बातें करेंगे।
तो इन चिरकुट मक्कार विपक्षियों के बहकावे में किसान न आएं।।
कहानी वर्तमान पर आधारित
सरकार से एक अपील की बेचारे किसानों पर लाठी न भंजवाए वो तो बेचारे है। और ये किसान देश जलाते नही उसका पेट भरते है।
©️राजेश कुमार