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उलझन - 12

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

बारह

सोमू की दादी की पहल पर सौमित्र और अंशिका के साथ हेमन्त रोज एक घण्टा हिन्दी पढ़ने लगा। सौमित्र के मैथ्स और साइंस के टीचर अभी पढ़ा ही रहे होते कि हेमन्त चुपके से आकर बरामदे में बैठ जाता। सर के जाने के बाद क्लासरूम बदल जाता। अब सर की कुर्सी पर दादी होतीं और सामने तीन विद्यार्थी। शुरू-शुरू में तो हेमन्त को एक घण्टा बैठना बोझिल लगा लेकिन जैसे-जैसे पढ़ाई आगे बढ़ने लगी उसे मजा आने लगा। रोज आध्ज्ञा घण्टा वे काव्य पढ़ते और उसके बाद गद्य या संस्कृत। काव्य की पुस्तक में सूर, कबीर, तुलसी, बिहारी, मीरा की पंक्तियों के अर्थ पढ़ते समय जब कभी हेमन्त कुछ गलत उच्चारण करता तो दादी किताब से देखकर उसे ठीक कर देतीं। साथ ही वे तीनों बच्चों को होमवर्क भी देतीं। जिन पदों की व्याख्या पढ़ी जाती उनको ईमानदारी से बिना देखे लिखना होता जिसे अगले दिन दादी चेक करतीं। होमवर्क की काॅपी जाँचने में दादी ने देखा कि तीनों बच्चे ‘कि’ और ‘की’ के प्रयोग में गलती करते हैं। इसी तरह ‘स’, ‘श’ व ‘ष’ का अन्तर नहीं समझ पाते। कहाँ ‘चन्द्र बिन्दु’ लगेगा और कहाँ ‘अनुस्वार’ ( ) कहाँ आध्ज्ञा ‘न’ (न्) होगा कहाँ आधा ‘म’ (म्) में भी बच्चों को भ्रम था।

दादी ने क्लास का समय दस मिनट बढ़ा दिया। इस बढ़े समय में वे एक पन्ने का डिक्टेशन (इमला) बोलतीं और उसे तुरन्त ही जाँचतीं जिसकी काॅपी जँच जाती उसे भूल सुधार कर घर जाने की इजाजत होती। सबसे पहले अंशिका की काॅपी जाँची जाती फिर हेमन्त की बाद में सौमित्र की। एक दो दिन बाद से हेमन्त की काॅपी सबसे पहले जाँची जाने लगी क्योंकि उसमें गल्तियाँ अधिक होतीं और उसे भूल सुधार करने में ज्यादा समय लगता। दादी का भी समय अच्छा बीतने लगा और बच्चों में हिन्दी भाषा पढ़ने व लिखने के प्रति रुचि बढ़ने लगी। विशेषकर हेमन्त का डगमगाया आत्मविश्वास पुनः दृढ़ होने लगा। खेल-खेल में पढ़ाई करने के कारण बच्चों को भी बोझ का अनुभव नहीं हुआ। एक हफ्ता बीतने के बाद अगले सण्डे को सुबह की चाय देते हुए सोमू ने दादी से ‘थैक्यू’ कहा और उनके पैर छू लिये। दादी ने प्यार से खींचकर उसे अपनी गोद में लिटा लिया और उसके बाल सहलाने लगीं। सोमू कुछ भावुक होने लगा।

‘दादी! जब हम उस घर में रहते थे तब आप दूसरी थीं यहाँ आकर बदल गयीं।’

‘नहीं बेटा! मैं तो वैसी हूँ जैसी तब थी हाँ यह अलग बात है कि तब हमारे बीच संवाद नहीं था, समन्वय की भावना नहीं थी सौहार्द नहीं था।’

‘दादी....रुकिये दादी! इतनी कठिन हिन्दी मत बोलिये जरा ठीक से समझाइये हाँ हमारे बीच क्या नहीं था?’

‘संवाद यानि बातचीत।’

‘कैसे? हम बातचीत तो तब भी करते थे।’

‘सच है कि हम तब भी बातचीत करते थे लेकिन याद करो हमारी बातचीत कितनी सतही होती थी। आज की तरह क्या तब तुम अपनी हर बात मुझसे बताना चाहते थे?’

‘नहीं, दादी! मैं आपको अपनी सब बातें नहीं बताता था और न ही बता सकता था क्योंकि तब आप अकेले मेरी दादी नहीं थीं आप निक्की और मिक्की की भी दादी थीं। तब मुझे लगता था कि आप उनका ही पक्ष लेती हैं उनकी ही बात सुनती हैं आपको न मेरी परवाह है और न ही आप पापा और मम्मी को प्यार करती हैं।’

यह सच नहीं है सोमू! मैं तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार करती थी- तुम मेरे बेटों की बगिया के पहले फूल थे। तुमसे पहले मेरी नातिन कलिका दुनिया में आ चुकी थी लेकिन वह मेरे साथ नहीं रहती थी, और सच मानो तो वह कभी मुझे अपने अधिक निकट लगी भी नहीं हमेशा उसे मैंने मेहमान माना। लेकन तुम मेरी आँखों के आगे पल-बढ़ रहे थे। तुम्हारी मम्मी जब तुम्हें क्रैश में छोड़ने जाती थीं तब मेरा मन करता था कि तुम्हें रोक लूँ कह दूँ तुम मेरे पास रहोगे लेकिन तब मैं सोचती थी - जब तुम्हारी माँ को तुम्हारी परवाह नहीं तो मुझे क्या? मेमसाहब बनकर नौकरी करने चल देती है बच्चे के बारे में नहीं सोचती, घर के बारे में नहीं सोचती। कितनी गलत थी मैं उस समय। तुम्हारी माँ जितना तुम्हारा ध्यान रखती थी तुम्हारे बारे में सोचती थी उतना तो शायद ही कोई माँ सोचती होगी। वह पढ़ी-लिखी दुनियादारी की समझ रखने वाली लड़की है मैंने उसे गलत समझा या यों कहो अपनी पूर्वाग्रहग्रस्त मानसिकता के कारण हमेशा नौकरी करने वाली बहू को नीचा दिखाती रही। लेकिन उसने मुझे कितने ऊँचे सिंहासन पर बैठाया। उस बच्चे को इतने अच्छे संस्कार दिये कि जिसकी मैंने हमेशा उपेक्षा की वही मुझे कितना अपना समझता है कितना आदर-सम्मान देता है।’ दादी मानो कहीं और से बोल रहीं थीं।

‘दादी आप ऐसी बात क्यों सोचती हैं ? हम तो आपके ही बच्चे हैं आप जिस तरह हमें रखना चाहती थीं या हैं हम उसी तरह रहने को तैयार हैं। अच्छा दादी, आपको निक्की और मिक्की की याद आती है। जब से आप यहाँ आयी हैं तब से आपने उनके बारे में कोई बात नहीं कहीं।’ सोमू आज सारी बातें जान लेना चाहता था।

‘सोमू ! जब तुम मुझसे दूर थे तब तुम याद आते थे अब वे दूर हैं तो वे याद आते हैं मैं दादी हूँ तुम सब बच्चे मेरी आँख के तारे हो।’ कहकर दादी ने सोमू को प्यार से भींच लिया।

‘आज बड़ी गुपचुप बातचीत हो रही है दादी-पोते में।’ कहते हुए पापा-मम्मी कमरे में आ गये।

‘मम्मी! हम लोग आज शाम को घूमने चल सकते हैं।’ सोमू ने कहा।’

‘हाँ क्यों नहीं कहाँ जाना चाहते हो?’ पापा ने प्रश्न किया।

‘पापा! हम सब आज अपने पुराने घर चले चाचा-चाची के पास।’ सोमू ने कहा।

‘बेटा सोमू! हम चल तो सकते हैं लेकिन आज छुट्टी के दिन तुम्हारी दादी को शाम का समय अकेले बिताना पड़ेगा।’ मम्मी ने समस्या बतायी।

‘क्यों मम्मी! दादी भी हमारे साथ चलेंगीं। क्यों है न दादी।’ सोमू ने दादी की ओर बड़ी आशा से देखा।

‘हाँ चलो तुम कहते हो चलते हैं। एक बात है अगर छोटू कुछ नाराज भी हो तो तुम सब ध्यान मत देना।’

‘कौन ध्यान देता है उसकी बातों पर, वह बेचारा बीमारी के कारण उल्टा-सीध्ज्ञा व्यवहार करता है नहीं तो क्या वह शुरू से ही ऐसा था। कितना प्यार था हम दोनों भाइयों में हमेशा बड़े भाई, बड़े भाई’ की रट लगाये रहता था।’ पापा पुराने दिन याद करने लगे।

‘सब कुछ पहले की तरह ठीक-ठाक हो जायेगा अम्मा!’ आप चिन्ता मत करें।’ मम्मी ने दादी की नम आँखों को देखकर कहा।

‘तुम्हारे रहते मुझे क्या चिन्ता? तुमने सब कुछ इतनी समझदारी से सम्हाल लिया है कि अब मैं छोटू और बहू की ओर से भी निश्चिन्त हूँ कि वे भी जल्दी सम्हल जायेंगे।’ दादी ने मम्मी के चेहरे पर नजरें टिका दीं।

सौमित्र बहुत खुश है आज उसे जैसी दादी चाहिए थी उसकी दादी वैसी ही बन गयी थीं उसकी मम्मी का सम्मान करने वालीं उन्हें अपना समझने वालीं और मम्मी-पापा पर विश्वास करने वालीं।

मम्मी ने खाने का मीनू पूछा। दादी ने झट से कहा - ‘मुग्धा! आज दोपहर का खाना मैं बनाऊँगी। भइया के पसन्द की सांभर और हाथ की पोई मोटी-मोटी रोटी।’ दादी ने प्यार से पापा की ओर देखा।

‘हुर्रे! दादी ये मीनू अकेले आपके ‘भइया’ को ही नहीं पसन्द है ये खाना तो ‘माँ बदौलत’ को भी बहुत अच्छा लगता है और मेरी डियर मम्मी को भी।’ सोमू ने कहा।

दादी बाथरूम की ओर मुड़ गयीं मम्मी ने अरहर की दाल पहले से भिगो रखी थी। इसलिए उन्होंने वाशिंग मशीन लगा ली पापा फ्रिज से निकाल कर कद्दू, कच्चा पपीता काटने बैठ गये। सोमू ने झाड़ू सम्हाल ली आज महरी ने भी छुट्टी कर ली थी।

दोपहर के खाने के समय डाइनिंग टेबिल पर बहुत दिनों बाद खाना स्वाद ले-लेकर खाया गया। गरी की चटनी, हरी खट्टी मीठी चटनी एवं सांभर में वही साउथ इंडियन स्वाद था जो लोग होटल में ढूँढ़ते हैं। मम्मी ने कुछ रवे के दोसे भी बना लिये थे। कस्टर्ड की मिठास अभी तक मुँह में थी। दो घण्टे आराम करने के बाद वे सब तैयार होकर पुराने घर के लिए निकल पड़े। जब तक पापा ने गाड़ी पार्क की तब तक मम्मी ने सामने की बेकरी से निक्की-मिक्की के लिए पेस्ट्री, केक, फ्रूटी आदि सामान खरीद लिया।

निक्की और मिक्की बाहर ही खेलते हुए मिल गये। उन्होंने बहुत घिसे हुए पुराने कपड़े पहन रखे थे। घर के दरवाजे बहुत सारा कूड़ा पड़ा था। निक्की तो तुरन्त दादी से लिपट गयी और पैर छूकर मिक्की मम्मी को बुलाने के लिए पड़ोस के घर की ओर भागा। ड्राइंग रूम का दरवाजा खोलकर जब सब अन्दर आये तब तक चाचा जो छत पर टहल रहे थे भी नीचे उतर आये। उन्होंने दादी के पैर छुये और पापा के कहने पर ‘कैसे हो छोटू?’ फूट फूटकर रोने लगे। बड़ी मुश्किल से उन्हें चुप कराया जा सका।

बहुत दिनों बाद सबने साथ बैठकर चाय पी। चाची और मम्मी ने मिलकर पकौड़ियाँ बना लीं, आलू की कुरकुरी-कुरकुरी पकौड़ियाँ। सोमू को खूब कड़क पकौड़ियों के बच्चे बहुत अच्छे लगते हैं। आज चाची ने उसके लिए भी चाय बनायी और मजे की बात यह थी कि मम्मी ने भी मना नहीं किया वैसे मम्मी उसे कभी चाय पीने नहीं देतीं कहती हैं जब चाय पीने लगोगे तब दूध छूट जायेगा। अभी तुम्हें खूब मेहनत करनी है इसलिए दूध पीना जरूरी है। सौमित्र तर्क करता है - ‘मम्मी आप तो सबसे ज्यादा मेहनत करती हैं लेकिन एक भी दिन दूध नहीं पीतीं। सबको समय पर खाना-पीना देना चाय-नाश्ता देना और अपना बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखना।’

मम्मी बस मुस्कुरा देती हैं कहतीं कुछ नहीं हैं।

ऐसे समय सौमित्र को मम्मी ‘सुपर वुमेन’ लगती हैं जादू से कुछ भी हाजिर करने वाली, सब इच्छाएँ पूरी करने वालीं मन की बात जानने वाली। सोचकर मुस्कुराने लगा है सोमू।

‘अरे भाई अकेले-अकेले हँसा जा रहा है सोमू मास्टर’, चाचा ने टोका।

‘कुछ नहीं चाचा, बस पुरानी बातें याद आ गयी हैं। सोमू ने टाला।’

‘जानते हो छोटू !’ मेरे साथ एक कमरे में रहते हुए पलंग पर सोते हुए सोमू में मेरी बहुत सारी आदतें आ गयी हैं। हमेशा का लापरवाह लड़का अब सबका बहुत ध्यान रखता है। जब देखो तब मेरी तरह पुरानी बातें याद करता है। दादी-नानी के जमाने की।’ दादी ने छेड़ा।

सोमू थोड़ा सा शर्माया लेकिन चुप नहीं रहा। दादी आप तो मेरी गर्ल फ्रैण्ड हैं।

सोमू की ‘गर्ल फ्रैण्ड’ को देखकर सब हँसने लगे।

इतने में दरवाजे पर कार के रुकने की आवाज हुई मिक्की-निक्की बाहर दौड़े और तुरन्त ही ‘बुआ जी बुआ जी’ ‘कलिका दीदी कलिका दीदी’ कहते हुए खिलखिलाने लगे क्योंकि निक्की को बुआ जी ने और मिक्की को कलिका दीदी ने गोद में उठा रखा था। दीदी तो दोनों को बारी-बारी से गुदगुदा भी रहीं थीं।

‘अरे दीदी, बिना फोन किये कैसे आ गयीं ?’ चाची ने आश्चर्य जताया।

मुझसे बात हो गयी थी दीदी की, वे हमारा शाम का प्रोग्राम पूछ रही थीं तो मैंने ही बता दिया था कि हम अम्मा के साथ पुराने घर जायेंगे। इसलिए वे भी यहाँ आ गयीं। बुआ के मना करने के कारण दोबारा पकौड़ी नहीं बनीं। मम्मी और चाची खाने की तैयार करने लगीं और कलिका दीदी अपने टूर के किस्से सुनाने लगीं। बीच-बीच में मम्मी और चाची भी कोई न कोई बात बोल देतीं इसका मतलब था कि उनके कान भी वहीं लगे हैं जहाँ सब बैठे हैं।