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पेरेंटिंग

ज़िन्दगी में हर इंसान को अपने अनुभव को हमेशा दूसरे से बाँटना चाहिए क्योंकि आप अपने जीवन में होने वाले अच्छे-बुरे अनुभवों से ही सीखते है और जब हम अपने अनुभवों को एक दूसरे से बताएंगे तो हमे ज़रूर कुछ नया सीखने को मिलेगा। आज हम सभी माता-पिता को अपने बच्चों के पालन-पोषण की बहुत चिंता है उस कारण भी यह है कि समय बदल रहा है परिवेश बदल रहा है मूल्य बदल रहे है। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि कि जब हम बच्चे थे तब परिवेश बिल्कुल अलग था आज का परिवेश अलग है। हमारे समय में बच्चों को गुड़ टच-बैड टच नहीं सिखाया जाता था क्योंकि उसकी आवयश्यकता नहीं थी क्योंकि पहले बच्चे जॉइंट फैमिली में सब के साथ सबके बीच में रहते थे पर अब हम नुक्लेअर फैमिली में रहते है जहां दोनो पेरेंट्स वर्किंग है और बच्चे या तो मेड के साथ या डे केअर में रहते है जहां सच में हमें नहीं लगता कि हमारे बच्चे सेफ हैं क्योंकि आज का समय खराब है मैं यह भी नही कहूँगी कि बच्चे हमेशा जॉइंट फैमिली में सेफ ही हो क्योंकि अपवाद तो हर जगह ही है। हम अपने बचपन में और किशोरावस्था में जहां चाहे जाते थे किसी के घर चले गए खेलने या शाम को आउटडोर गेम्स में बाहर खेले आज न तो पेरेंट्स ही सिक्योर है अपने बच्चों को भेजने में और न ही बच्चे इच्छुक है बाहर खेलने जाने के लिए। हमारे समय में सिर्फ वीडियो गेम और टी.वी. होते थे आज बच्चों को इंडोर गेम्स ही बहुत मिल जाते है साथ अब मोबाइल पर गेम्स, इंटरनेट सर्फिंग, पी.एस.,कार्टून चैनल वगैरह तो बच्चे घर के अंदर ही रहना पसंद करते है और पेरेंट्स भी माहौल को देखते हुए बच्चों को घर के अंदर ही रखना सेफ समझते है।
हम लोग गर्मी की छुट्टियों में दिन भर खेलते थे या फिर किसी के घर जैसे नानी के घर जाते थे आज कल पेरेंट्स गर्मी को छुट्टियों को होबिज़ कोर्सेज, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़, गेम्स ट्यूटोरियल में बिजी कर देते है या बहुत हुआ था वेकेशन्स मनाने इंडिया के बाहर या इंडिया में किसी दूसरे शहर या स्टेट चले जाते है। बच्चे अगर नानी के घर जाते थे तो वहां कैसे किसी के घर जा कर रहना वहां चीज़ों को शेयर करना सब के साथ एडजस्ट करना सीखते थे जो आज की पीढ़ी बिल्कुल नही जानती। आज हमें अपने बच्चों को शेयरिंग सिखानी पड़ती है क्योंकि आज कल पेरेंट्स के सिंगल चाइल्ड होते है और वो कभी किसी के घर जा कर रहते नही इस लिए ये शेयरिंग, अदजस्टिंग सीखाना पड़ता है पहले ये सब बच्चे खुद ही सीख जाते थे।
हम अपने समय में अपनी चीज़े न सिर्फ अपने भाई बहन बल्कि दोस्तों सभी शेयर करते थे आज पेरेंट्स खुद ही बच्चे की इच्छा पूरी करने के चक्कर में सब आसानी से उन्हें दिलवा देते है जिसकी उन्हें कीमत नही समझ आती। पहले हमें अपनी मनपसंद चीज़ को पाने के लिए कोई लक्ष्य दिया जाता था और हम उसे पूरा कर चीज़ मिलती थी आज हम अपने बच्चों के माँगने के पहले या यूं कह माँगने पर तुरंत दिल देते है। क्योंकि हमें लगता है कि हमारे बच्चे के पास अगर कोई चीज़ की कमी हुई तो वह अन्य से पीछे न रह जाये बराबरी में और कहीं कुंठा का शिकार न हो जाये। इस लिए आज के युग के बच्चों को न तो किसी चीज़ की वैल्यू है न ही पैसे की ही वैल्यू हैं।
आज हम दस-बारह साल के बच्चों से दोस्ताना व्यवहार रखते है इसलिए कि कही वह बिगड़ न जाये पर क्या हमारे पेरेंट्स ने भी ऐसा ही किया नहीं और अगर ऐसा नहीं किया तो क्या हम बिगड़ गए नहीं न। आज भी थोड़ा अनुशासन बहुत आवश्यक है। आज हम समय के साथ चलने की दौड़ में ऐसा अंधे हो कर भाग रहे है और अपने बच्चों को भी भगा रहे है यह नहीं मालूम कि इस दौड़ में नुकसान सिर्फ हमारा है। आज हम बच्चों से घर की प्रॉब्लम शेयर करते है, घर के इश्यूज शेयर करते है यही नहीं अगर घर के आस-पास की समस्याओं को उन्हें बताते है जिससे एक तो वह अपना बचपना खो रहे है दूसरा वह समय से पहले समझदार बन रहे है। कभी सोचा क्या हमारे पेरेंट्स को समस्याएं नही होती थी होती होंगी बस उन्होंने हमें बच्चा ही बना रहने दिया।
आज हम टी.वी., इंटरनेट वगैरह को दोष देते है कि बच्चों को बिगाड़ रहा है पर बच्चों को यह उनकी पहुँच तक दिया भी तो हमने है आज हम अपनी सहूलियत के लिए बच्चे को मोबाइल पकड़ाते है फिर वह उसकी आदत बन जाता है और हम डाँटते है कि जब देखो मोबाइल में गेम्स खेलता है। हम खुद दिन भर मोबाइल में बिजी रहते है बच्चे पर ध्यान देने के बजाए ओर बच्चे पर दोष देते है कि वह बिगड़ रहा है।
बहुत साधारण सी बात है पहले हम खुद को सुधारें फिर बच्चे पर प्रश्न चिन्ह लगाये कहीं न कहीं आजसिर्फ हमारी ही गलती है क्योंकि आज वर्किंग परेन्टस के पास बच्चों को देने के लिए न तो समय है न ही संस्कार इस लिए हम उसकी पूर्ति महंगे खिलौनों और गडजेट्स को दे कर करते हैं जो कि पूर्णताः गलत है। हमारे पास समय नही कि हम अपने बच्चों की समस्या को सुनें उसका समाधान करें इस लिए आज हमारे बच्चे भटक रहे है।
हम लोग कहीं न कहीं बच्चों पर इतना दबाब बनाते है कंपेटशन का की बच्चे भी मानसिक और सामाजिक दबाब से परेशान हो जाते है क्यों नहीं हमें अपने बच्चों को उनकी स्वतंत्रता देनी चाहिए पढ़ाई की जिसमें उनकी रुचि हो वह पढ़ें जहां हमें स्वतंत्रता देनी चाहिए वहां नहीं देते। आज हम समाज को दोष देते है पहनावे पर पर ये पहनवा भी तो हमने अपने बच्चों को खुद ही दिया अगर हमने शुरू से न पहनाया होता न पहना होता तो क्या वह पहनते मैं कभ भी किसी पहनावे के खिलाफ नही हूँ पर मेरा मानना है कि कपड़े हमेशा ऐसे पहनने चाहिए कि आपको भी पहनने में खराब न लगे और आपके साथ जो है उसे भी आपको देख कर खराब न लगें। मेरा स्वयं का यह मानना है कि कपड़ो से ज्यादा आपके गुणों को खिलना चाहिए।
मेरा मानना है कि बच्चों से उनका बचपना न छीने,उन्हें संघर्ष करने दें, उन्हें सही-गलत, अच्छे-बुरे का ज्ञान करा दें बाकी अपने दिये संस्कारों पर विश्वास रखें और उन्हें भी कराए बच्चो में यह आदत बनाए कि हर सही- गलत फैसले को वह आपके साथ बाटें सही कामों पर प्रोत्साहन और गलत काम से सीख ज़रूर दिलाये फिर आपको कभी भी कही सोचना नही पड़ेगा। साथ ही भविष्य के लिए भी बच्चों को सिखाये कि किसी के साथ या खुदके साथ कभी भी कुछ गलत न होने दे, गलती होने पर मान ले उससे कोई छोटा नहीं होता, सब्र करें, सौम्य रहे, अपने से बड़ों से बहस न करें। ऐसा कोई काम न करें जिसे करने के बाद या तो आप किसी को बता न सकें या करने के बाद आपको शर्मिंदा होना पड़े। अगर ये सीख हम अपने बच्चों को दे दें फिर चाहे परिवेश, समाज एवं समय कैसा भी हो हमें चिंतित होने की आवयश्यकता नहीं है।