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निम्मो (भाग-1 )

निम्मो.. !

निम्मो... निम्मो.... अरे कहां मर गई कमब्खत मारी..

निम्मो- जी आई अम्मी...

और निम्मो अपने सिर को दुपट्टे से ढकते हुए दौड़ती सी बैठक बाले कमरे की तरफ आती है. उनके पास मौलवी को देख उसके कदम ठिठक से जाते है अम्मी के पास बैठा 50 साल का खाने वाली निगाहों से मौलवी निम्मो को देख रहा है.

अम्मी - अब इतनी दूर क्यों ख़डी हो गई.. इधर आ

निम्मो- हम यहीं ठीक है अम्मी.. !

अम्मी- क्या तुझें पता नहीं है के आज महीने की आख़िरी जुमे रात है आज उतरा होना है

निम्मो चुप चाप अपनी नज़रे ज़मीन में गढ़ाए ख़डी रहती है. और मन ही मन सोचने लगती है आज फिर इस दरिंदे के आगोश में जाना जाना पड़ेगा.. या अल्ला आप मेरी बात क्यों नहीं सुनते... क्या तुम इसके कुकर्मो से वाकिफ नहीं हो...मैंने तो सुना था तुम सब देखते हो फिर मुझ पर हो रहा ये ज़ुल्म तुम्हे क्यों दिखाई क्यों नहीं दे रहा...

मौलवी- आपा हमने आपको कितना समझाया है के दो -चार बार के उतारे से कुछ नहीं होगा इल्म की दौलत को हक्कीकत में तब्दील करने के लिए जिन्नाद को मनाना पड़ता है हुस्न के जिस्म को उसके आगोश में परोसना होता है आपा अब आपको हम क्या बताये खुशी की बात ये है आपा ये उस जिन्नाद को निम्मो पसंद आ गई है बस इकतालीस दिन के दस्तूर के बाद दौलत ही दौलत होंगी आप लोगों की झोली में..

तभी शाहिद दूसरे कमरे से निकल कर आता है.. और निम्मो से कहता है.

शाहिद- (निम्मो से) अब जाओ भी यहां ख़डी ख़डी क्या कर रही हो क्या तुम्हे पता नहीं था के मौलवी सहाब आने वाले है..?

निम्मो- क्या आप मेरी बात सुनेंगे.?

शाहिद - मैं कुछ नहीं सुनूंगा समझी तुम,... तुम से जैसा कहा जा रहा है वैसा करो जाओ अपने कमरे में जाकर तैयारी करों. यहां ख़डी मत रहों.

निम्मो - आप मेरी बात तो सुनिए..

शाहिद- देखों मैंने कहां ना मुझें कुछ नहीं सुनना मैंने जो कह दिया सो कह दिया तुम्हे वैसा ही करना होगा समझी जाओ उतारे का वक़्त हो रहा है

निम्मो- (झुंझलाते हुए) अमीर बनने के लिए मेहनत करनी पढ़ती है शाहिद..! ऐसे इल्मों से दौलत नसीब नहीं होती बगैर मेहनत से कोई अमीर नहीं बनता.. एक बात सुन लो अगर ऐसा ही होता तो आज सब दौलत मंद होते.

शाहिद- अब बस निम्मो बहुत कह लिया तुमने अब अगर एक लफ्ज़ भी बोला तो मेरा हाथ उठ जाएगा.... मैं आख़िरी बार कह रहा हूं जाकर तैयारी कर

शाहिद का गुस्से भरा चेहरा देख कर निम्मो वेबस हो जाती है.. और शाहिद अपनी अम्मी के पास आकर बैठते हुए कहता है.

शहीद- आप क्या कह रहें थे मौलाना सहाब वो इकतालीस दिन की बात.. !

अम्मी-क्या बात है मौलवी सहाब..? क्या कोई दखल लग रही है क्या..?

मौलवी- (मौलवी अपने दोनों हाथ दुआ की तरह उठता है) या परवर दिगार इन मासूमों पर रहम फरमा.. इन नेक मेहनत काशों को दौलत से नवाज़ दे ...... पर अफ़सोस..के तेरी रेहमत इन मासूमों तक नहीं पहुंच रही.. मुआफ़ कर इन्हे मेरे मौला मुआफ़ कर...

और मौलवी अपनी दोनों आंखें बंद करके बैठ जाता है अम्मी अपने झरते हुए आंसुओं को पोछते हुए रुंधी हुई सी आवाज़ में मौलाना से बोलती है..

अम्मी- मौलवी सहाब अब आपके ही हांथो में हमारी ग़रीबी की बदनसीबी पर रहम है.. आप जो भी मशविरा फ़रमाई करेंगे हमें मंज़ूर है.

शाहिद- हां अम्मी.. (तभी उसकी नज़र फिर निम्मो पर पढ़ती है) तूं अभी तक यहीं पर ख़डी है.. तुझें कोई बात समझ नहीं आती.. शाहिद उसे मारने को खड़ा होता है तो मौलवी शहीद का हांथ पकड़ लेता है..

मौलवी- नादान ना बन शाहिद निम्मो तो नेक है इसीलिए तो जिन्नाद को निम्मो की इन अदाओं पर रहम है. इस पर अभी सिर्फ उसका ही हक़ है..निम्मो से ठीक से पेश आओ वरना उसे सम्हालना मेरे भी बस की बात ना होंगी समझे शाहिद मियां..

शाहिद इतना सुन कर शांत हो जाता है.

अम्मी- देख निम्मो हम पर रहम कर तूं इस दौलत के लिए ऐसा ही करना पड़ता है.. या तूं चुप चाप ऐसा ही कर जैसा मौलवी कहते है और नहीं तो हलाला पर अमल कर लें..

निम्मो- मतलब दौलत कमाने का सारा जिम्मा मेरे ही मत्थे आएगा..

मौलवी- आपा हलाला से क्या कोई दौलत मंद हुआ है.. कितनी दफा हलाला करवाओगी इसका.. अगर ऐसा ही है तो ठीक है कराओ हलाला..

अम्मी- यहीं तो इस नासमझ को समझा रही हूं लेकिन उसके जेहन में बात उतर कहां रही है देख निम्मो बस कुछ दिनों की ही तो बात है..तूं यकीन रख सब ठीक हो जाएगा... मौलवी भाईजान आपने तो न जानें कितनों को ऐसी दौलत से नवाज़ा है इसीलिए मुझें तो आप पर ही पूरा भरोसा है.. आप ही हमें दौलत से नवाज़ सकते हो.

मौलाना- हूं... ! शाहिद जाओ अब तुम निम्मो को लेकर अंदर जाओ .. और हां अपने गुस्से पर काबू रखना..

शाहिद- जी.. भाईजान

शाहिद निम्मो के पास जाता है.

शाहिद- चलो आओ.

निम्मो- शहीद को याचना की नज़रों से देखती है शाहिद उसे इशारे से अंदर चलने को कहता है और निम्मो का हाथ पकड़ कर खींचता हुआ सा कमरे की तरफ लें जाता है...और दोनों कमरे में चले जाते है.

अम्मी- अब बताये आप क्या कह रहें थे..?

मौलाना- देखो आपा आज तो इस उतारे का आख़िरी दिन है जो निहायती ज़रूरी है.. इस उतारे में निम्मो को थोड़ी तकलीफ होंगी लेकिन जिन्नाद की तमन्ना है के वो इसे अपने पास एकतालीस दिन तक और रखें..

अम्मी- एकतालीस दिन..?

मौलवी- हां आपा.. अब जब जिन्नाद को हमने बुला ही लिया है तो उसे हम उसकी मर्ज़ी के बगैर वापिस भेज नहीं सकते वो जो कहंगे हमें वही करना पड़ेगा उनकी अब हमें बातें माननी ही होंगी...इसके आलावा अब कोई और चारा भी नहीं है.. अगर निम्मो पहले से ही सब मान जाती तो अपना काम इन चार उतारो में ही कामयाब हो गया होता लेकिन अब वो इकतालीस दिन की फरमाइश कर रहें है..

अम्मी- इसमें हमें कोई हर्ज़ नहीं है लेकिन आप बुरा मत मानना भाई जान लोग आजकल बहुत बातें करने लगें है.. अच्छा नहीं लगता... अड़ोस पड़ोस के लोग किसी ना किसी बहाने से पूछ ही लेते है आपके बारे में

मौलाना- इसीलिए मैंने शाहिद से कहा था के निम्मो को मेरे पास एकतालीस दिनों तक के लिए भेज दो..

अम्मी- मुझें कोई एतराज़ नहीं है..लेकिन भाईजान मसला तो वही है निम्मो आपके साथ जानें को राजी हो तब ना इस बात पर तो वो ना जानें क्या क्या करेगी..

और दोनों सोच में पढ़ जाते है.. तभी अम्मी अपनी सोच जाहिर करती है.

अम्मी- क्या शाहिद से तलाक़ कहलवा दें.?

मौलाना- इससे क्या होगा..?

अम्मी- देखो शाहिद को हम समझा के उसे गुस्से में तलाक़ दिलवा देते है .. उसके बाद हम और आप निम्मो को समझा देंगे के 60 दिन के बाद उसका निकाह शाहिद से दोबारा करवा देंगे क्योकि तलक के बाद वो अपने माइयो बाप के पास भी नहीं जाएगी उससे यहीं कहेंगे के जबतक वो आपके पास रह लेगी आसानी से दोनों काम निपट जाएंगे किसी को इनके बारे में तलक की कानोकान खबर भी ना होंगी... खुदाना खस्ता किसी ने पूछ भी लिया तो कह देंगे के वो अभी अपने मामू के यहां गई है..

मौलाना- (सोचते हुए) ये ठीक रहेगा किसी को पता भी नहीं चलेगा..निम्मो भी मान जाएगी..

अम्मी- (खुश होते हुए) शुक्रिया भाईजान..

मौलाना- ठीक है अब अभी इशा के पहले उतारे का एक दौर कर लूं..

अम्मी- (उठते हुए) हां भाई जान आप रुको मैं देख कर आती हूं..!

मौलाना- हां थोड़ा जल्दी करो आपा वकत तेज़ी से गुज़र रहा है..

और शाहिद की अम्मी अपने बूढ़े शरीर को सम्हालते हुए शाहिद और निम्मो के पास जाती है..
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कंटीन्यू -भाग दो