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निम्मो (भाग-4 अंतिम)

कंटीन्यू पार्ट -4

अपनी नाकामियों का कसुरबार अपनों को ही बना देना कहां तक सही है.. आज कल नहीं ये तो ज़माने से चला आ रहा है जिस तरह शाहिद ने और उसकी अम्मी ने अपनी खुद की नाकामी का कसूरवार निम्मो को बना दिया था हालांकि इस समाज में आज भी बहुत से लोग ऐसे है जो ऐसे इल्म के चक्कर अपनों को या फिर किसी और की बली दें देते हैं..हमारे इस समाज में ये ज़रूरी भी नहीं कि निम्मो जैसी लड़कियों को ऐसा भोगना पड़ता है.. वो कबिता, परमिंदर या रोज़ी भी होती है.. यदि शिक्षा का आभाव हो तो इंसान की मानसिकता ऐसे ही कुकर्मो के इर्द गिर्द ही घूमते रहते है.. ऐसे ही हालात शाहिद के थे.. लेकिन तकदीर से उसका निकाह अच्छी और खूबसूरत लड़की निम्मो से हो जानें के कारण बुरी नज़र मौलवी की निम्मो पर पड़ गई थी..वो किसी भी तरीके से निम्मो को भोगना चाहता था वो जानता था शाहिद निकम्मा है.. जिसके निकम्मे पन को दूर कराने के लिए शाहिद की अम्मी ने मौलवी से उसे कई तावीज़ बंधवा रखें थे लेकिन ये बात तो सही है ना कुछ करने वालों के लिए तो खुदा भी कुछ नहीं कर सकता और वही हाल शाहिद का था जिसके चलते शाहिद और अम्मी जहन्नुम के दल दल में फंसते जा रहें थे.. और मौलवी अपने ढोंग के चलते मौलवी उन्हें अच्छे से निचोड़े जा रहा था.. जिसके चलते बेगुनाह निम्मो की ज़िन्दगी...मौत की दहलीज़ पर आ ख़डी हुई थी..
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फार्म हाउस पर आए निम्मो को पूरे एक हफ्ते गुज़र चुके थे इन एक हफ्तों में निम्मो के जिस्म को मौलवी ने ही नहीं और भी कई लोगों ने भी चखा था.. इस फार्म हाउस पर कोई नहीं रहता था चारों तरफ खेत ही खेत थे और फसल ख़डी हुई थी.. बंद कमरे में निम्मो एक चार पाई पर लेटी थी कमरे का दरवाजा लोहे का था जिस पर बाहर से ताला लगा रहता था बाहर चारों तरफ सन्नाटा पसरा रहता था मौलवी अपने समय के मुताबिक आया जाया करता थाजिसके आने का कोई समय तय नहीं होता था...लेकिन निम्मो को यकीन था के एक ना एक रोज वो मौलवी के चंगुल से ज़रूर बाहर निकलेगी.. जब कोई नहीं होता तो निम्मो रोज बहार जानें का रास्ता तलाशतीं थी इसीलिए शायद आज निम्मो पर खुदा मेहरवान हो गया था.. उसके बाजू वाले कमरे की खिड़की नजाने कैसे खुली छूट गई थी जिसकी रौशनी कमरे में उजाला कर रही थी निम्मो के उस तरफ देखते ही उसके शरीर में जान सी आ गई निम्मो ने बगैर वक्त गवाए उस आती हुई रौशनी की तरफ दौड़ी थी उसने जाकर देखा तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.. उसने खिड़की के पास आ कर खिड़की को पूरा खोला था बाहर का नज़ारा देख कर निम्मो का चेहरा खिल उठा था.. उसने खिड़की के बाहर झांक कर देखा तो सामने खेत में ख़डी फसल ही नज़र आ रही थी लेकिन सामने दूर को सड़क सड़क भी दिखाई दें रही थी.. निम्मो बिना समय गवाए खिड़की से कूंद कर बाहर आ गई थी.. और उसने नंगे पैर ही सड़क की तरफ दौड़ लगा दी थी.. ख़डी फसलों के बीच से गुज़रती हुई निम्मो सीधे सड़क पर आ ख़डी हुई थे इस बीच उसने एक बार भी पीछे पलट के नहीं देखा था.. उसकी सांसे तेज धोकनी की तरह चल रही थी.. वो सड़क लंबी सून सान सड़क को देख भी रही थी और अपनी सांसो को अपने बस में करने की कोशिश भी कर रही थी तभी पीछे से एक बंद लोडिंग ऑटो आ कर रुका था.. तभी निम्मो ने पीछे पलट कर देखा और वो बेहोश होकर सड़क पर ही गिर गई थी.. निम्मो को गिरता देख उमंग जल्दी से ऑटो के बहार आता है और सड़क पर पड़ी निम्मो को देखता है..

उमंग- लगता है किसी मुसीबत में है बेचारी.. इसकी हालत कुछ और ही बया कर रही है..!

उमंग जल्दी से पानी की बोतल निकल कर ऑटो से लाता है और निम्मो के चेहरे पर पानी छिड़कता है निम्मो होश में आती है उमंग को आंखें फाड़ कर देखती है और सिसक सिसक कर रोते हुए बोलती है

निम्मो- भाई जान मुझें बचा लों

उमंग- लो पहले पानी पीलो बहन कुछ नहीं होगा तुम्हे मैं हूं तुम्हारे साथ लो पानी पियो बहन..

और उमंग निम्मो को बोतल से पानी पिलाता है तभी उसी नज़र निम्मो के हांथो और चेहरे पर पढ़ती है जिसे देख कर वो समझ जाता है कि निम्मो के साथ बहुत ही बुरा हुआ है.. उसकी आंखों में आंसू आ जाते है..

निम्मो- भाई मुझें कुछ खिला दो बहुत भूख लगी है

उमंग- आओ बहन ऑटो में बैठो (उमंग उसका हाथ पकड़ता है )

निम्मो- (डरती हुए कहती है ) कहीं तुम भी तो उन लोगे से तो नहीं मिले हो...?

उमंग- नहीं बहन मैं किसी से नहीं मिला हूं मेरा विश्वास करो.. तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा आओ जल्दी से ऑटो में बैठो अगर किसी ने देख लिया तो दिक्कत हो जाएगी...

निम्मो उमंग की बात पर विश्वास करते हुए जल्दी से उठती है अपने कपड़े सम्हालती है और उमंग उसे ऑटो के दूसरी तरफ से गेट खोल कर बैठता है और खुद भी जल्दी से घूम कर आता है और ऑटो में बैठता है दरवाजा बंद करके ऑटो स्टार्ड करता है और सरपट सड़क पर दौड़ा देता है..
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सुबह हो चली थी निम्मो उमंग के साथ उसके घर आ चुकी थी.. निम्मो अपने ऊपर बीते इन हालातों की दस्ता सुनते सुनाते रोए जा रही थी उमंग और विनय की आंखों में भी आंसुओं के सेलाब उमड़ आए थे.. तभी रोहन ट्रे में नास्ता और चाय बना कर लें आता है..

रोहन- ढेनटेडंग.. ये लो जी पेश है गरमा गर्म नास्ता और चाय..

और नास्ते से भरी हुई ट्रे सब के बीचों बीच रख देता है और एक पोहे से भरी प्लेट निम्मो को देता है.

रोहन- लो जी बाजी.. गरमा गर्म पोहा..

निम्मो उन तीनों के चेहरे देखती है.. उसकी सिसकियाँ और तेज हो जाती है.

रोहन- ओजी आप तो अब भी रोए जा रही है..
देखों बाजी आपके ये तिन्नो छोटे प्रा आपके लिए जान दें देंगे कसम है बाहेगुरु जी की अब एक आंसू भी आपकी आंखों से टपका तो.. अब तूं उन पापियों को रुलायेगी समझ गई आप.

उमंग- बहन भले हमारा तुम्हारा खून का रिस्ता नहीं है पर एक इंसानियत का तो रिस्ता है..

निम्मो सिर्फ तीनों को देखें ही जा रही थी और सोच रही थी के सही में आज भी दुनियां में खुदा है जो सच्चे लोगों की मदद किसी ना किसी भेष में करता है.

विनय- आपा यहां इस शहर में आप बिलकुल सेफ हो.. इतना मत डरो हम तीनों भाई आपकी लड़ाई में मरते दम तक साथ देंगे आपको अपनी बहन माना है.. चलो अब जल्दी से नास्ता कर लो उसके बाद हमें बकील के पास भी जाना है..

और चारों बातें करते करते चाय नास्ता करने लगते है..
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बकील के मशविरे के बाद निम्मो की ससुराल वाले शहर में शाहिद, अम्मी, मौलवी और हक़ीम के खिलाफ महिला थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है पुलिस जब अपनी कार्य वही करती है तो उसके हाथ सिर्फ अम्मी और शाहिद ही लगते है बाकी सब न जानें कहां गायब हो जाते है.. पुलिस मौलवी और हकीम को मुख्य आरोपी बनती है लेकिन कानून के हाथों से आरोपी फरार ही रहते है.. काफ़ी समय गुज़र जानें के बाद भी आरोपी कानून की गिरफ्त से बाहर ही रहते है.. निम्मो न्याय के लिए काफ़ी भटकती है इंतज़ार करती है लेकिन लचर सिस्टम के चलते उसे आज भी न्याय नहीं मिलता.. क्योंकि निम्मो के साथ जो हुआ उसके पास ना तो गवाह मिलते है और नाही कोई सबूत होने के कारण पुलिस निम्मो के केस की फाइल बंद कर दी जाती है..
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दो साल बाद.. निम्मो का घर जौनपुर

निम्मो उमंग के साथ जौनपुर आती है उमंग घर के बहार बैठक वाले रूम में अकेला ही बैठा है..

निम्मो अपने अम्मी अब्बा बड़े भाई और भाभी के साथ बैठी है. पिछले तीन सालों में उसके साथ क्या क्या हुआ वो सब उन्हें एक एक बात बतलाती है. जिसे सुनकर सब चुप है. तभी निम्मो की भाभी कहती है

भाभी- तुम क्या सोचती हो निम्मो तुम्हारी इस झूठी दास्तां को सूनकर हम तुम्हारी बातों में आ जाएंगे..?

निम्मो- ये आप क्या कह रही है..?

अब्बा- रुखसाना वजह कह रही है निम्मो.. अगर ऐसा था तो तुम्हे उसी वक़्त यहां आ कर बताना था..

निम्मो- अब्बू मैंने कहा ना उन लोगों ने मुझें किस कदर कैद में रखा था..!

सलीम- हम मानते है शाहिद निकम्मा था.. लेकिन इल्म की दौलत को हम झुटला भी तो नहीं सकते.. आज तुम दूसरे धर्मों के लोगों के साथ क्या मिलने जुलने लगी तुम्हारा दिमाग ही खराब हो गया अपने धर्म में सब बातें झूठी लगने लगी है तुम्हे.

निम्मो- ओह.. ! शायद मैं अपने ही लोगों को कुछ ज्यादा ही अपना समझ बैठी थी. मुझें नहीं पता था के मेरे अपने भी इस तरह की बातों पर यकीन करते है.. पर हां मैं बिलकुल नहीं करती.. अच्छा खुदा हाफ़िज़.

सब चुप रहते है निम्मो अपनी अम्मी से

निम्मो- अम्मी आप भी कुछ नहीं कहेंगी..

अम्मी- आजके बाद इस देहलीज़ पर कदम मत रखना बस इतना ही कहूंगी.

निम्मो के आंखों में आंसू झलक आते है वो अपना पर्स उठाती है और चुपचाप वहां से निकल कर उमंग के पास आती है.

निम्मो-चलो भाई.. !

उमंग निम्मो का चेहरा देखता है.. उठता है और साथ चल देता है.. निम्मो अपने घर की गलियों से गुजरते हुए मोहल्ले से बाहर निकल आती है और एकदम रुक कर अपने मुहल्ले की गलियों को पलट कर देखती है उसे अपना बचपन याद आ जाता है छोटी सी निम्मो उस गली में अपनी सहेलियों के साथ लंगड़ी खेल रही है.. तभी वो अपने अब्बू को आता देख उनकी तरफ दौड़ कर चिल्लाते हुए जाती है अब्बू.. अब्बू. कह कर उनकी गोदी में चढ़ जाती है अब्बू भी निम्मो को अपने दोनों हाथों से उसे उठा कर सीने से भींच लेते है..

उमंग- बाजी चलें...?

उमंग की आवाज सुनते ही नोम्मो का ख्याल टूट जाता है वो उमंग को आंसुओं भरी आंखों से देखती है. और मुस्कुराते थे हुए कहती है

निम्मो- चलो भाई

और दोनों वहां से चले जाते है... और भीड़ में ओझल हो जाते है..
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