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निम्मो (भाग-2)

निम्मो (भाग-2)

निम्मो- देखो शाहिद आप मेरे शोहर हो के भी मेरी परेशानीयों को नहीं समझ रहें हैं.. आप समझने की कोशिश क्यों नहीं करते.. मैं.. मैं... कैसे समझाऊ आपको के वो मेरे साथ क्या करता है..वो मौलवी नहीं है दरिंदा है..

शाहिद- देख निम्मो मैं तेरे हांथ जोड़ता हूं के तूं मेरा भेजा बिलकुल भी खराब मत कर तुझसे जो कहा जा रहा है तूं उतना कर इसी में हम सब की भलाई है..

निम्मो- अच्छा मैं आपसे बस इतना पूछती हूं क्या जिन्नाद मौलवी को आते है.?

शाहिद- हां उन्ही पर आते है..क्या तुझें पता नहीं है..

निम्मो- क्या वो वो सब भी करते है जो एक मियां और बीबी करते है..?

शाहिद- (खिसियाते हुए) वो मुझें नहीं पता...समझी ये जिन्नाद ऐसे ही होते है.. जब मुझें इस बात पर कोई एतराज़ नहीं है तो तूं क्यों एतराज़ कर रही है.. निकाह के बाद अब तूं मेरी अमानत है और तेरा क्या करना है इसका फैसला मैं करूंगा अगर ज्यादा अपना दिमाग़ चलाया तो मैं तुझें तलाक़ दें दूंगा समझी

इतना सुनते ही निम्मो सहम सी जाती है और रुंधे हुए गले से कहती है

निम्मो - आपको खुदा का वास्ता शाहिद आप तलाक़ की बात ना करें मैं आपके हाथ जोड़ती हूं...आप जैसा कहोगे मैं करूंगी..मैं कहां जाउंगी..

ये सब बातें अम्मी दरवाज़े पर ख़डी ख़डी सुन रही होती है

अम्मी- देख निम्मो तुझें क्या लग रहा है क्या तेरे शोहर का ज़मीर गवारा कर रहा है ऐसा बिलकुल भी नहीं है वो अपने कलेजे पर पत्थर रखें हुए है .. तूं देख... देख इसके चेहरे की रौनक कहां खो गई. ये तुझे भी चाहता है और दौलत को भी अगर दौलत नहीं होंगी तो सारी ज़िन्दगी मुफलिसी में ही गुज़ारनी होंगी.. हसरतें कैसे पूरी होंगी... इसीलिए मौलवी जैसा कहते तुझें वैसा ही करना पड़ेगा उसी में हम सब की भलाई है.

निम्मो सिसकारियां लेते हुए ज़मीन पर बैठ जाती है..और रोते हुए बोलती है

निम्मो- अम्मी मेरी कोई हसरतें नहीं है.. मैं ऐसे ही रह लूंगी..

अम्मी- तेरी हसरतें नहीं है तो क्या हम अपनी हसरतों का गला घोंट दें.. चलों शाहिद इसका रोना तो होता रहेगा... मौलवी भाईजान से कहो वो अपना काम शुरू करें...

शाहिद- जी अम्मी

और दोनों रूम के दरबाजे को बहार से बंद करके मौलवी के पास आते है.

निम्मो रोती रह जाती है.

अम्मी- अब आप जआइये भाई जान सारे इंतज़ामात हमने कर दिये है.

मौलवी- (उठते हुए) खुदा हाफ़िज़.. शाहीद मियां फज्र की नामज़ पर मिलते है.

शाहिद- जी

और तभी अम्मी और शाहिद मौलवी के हांथो को चूम कर अपनी आंखों से लगते हुए कहते है

अम्मी और शाहिद- खुदा हाफ़िज़

मौलवी- परवर दिगार रेहम कर रेहम कर..

इतना कह कर वो निम्मो के कमरे की तरफ चला जाता है...
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सुबह के चार बजने को थे अज़ान होने का वक़्त हो चला था मौलवी सहाब को शहीद वजू करवा रहा था.. तभी अम्मी भी अपने कमरे से निकल कर आ जाती है.

अम्मी- अस्सलामअलैकुम भाई जान

मौलवी- वालैकुमसलाम..

शाहिद- अम्मी सलवालेकुम..

अम्मी- वालेकुसलाम.. !

अज़ान होने लगती है मौलवी और शाहिद वजू करके नमाज़ पढ़ने बैठ जाते अम्मी भी वजू करके अपने कमरे में नमाज़ पढ़ने चली जाती है..

अपने कमरे में निम्मो घायल हो कर बद हवास सी पड़ी हुई है उसकी हालत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे मौलवी ने अपने जिस्म की सारी ताकत निम्मो के जिस्म पर रात भर उसके जिस्म पर अपनी ताकत की आजमाइश की थी जिसकी रंगत निम्मो के जिस्म पर बदहाली साफ दिखाई दें रही थी..निम्मो चुप चाप निढ़ल सी पड़ी पड़ी सोच रही थी....शायद निम्मो को अम्मी शाहिद और मौलवी के आगे के मंसूबो का पता उसे चल गया था के अब इस दरिंदे के चंगुल से निकल पाना अब इतना आसान नहीं है.. मौलवी ने अपने झूठे इल्म के नाम पर अम्मी और शाहिद को अपने वस में कर रखा था.. उनकी आंखों पर इल्म की दौलत का चस्मा पहना दिया था जो कभी भी सच नहीं होने वाला था... इसीलिए अब शाहिद सिर्फ उसका नाम भर का शोहर रह चुका था.. निम्मो के सारे सपनों को रौंदा जा रहा था सिर्फ इल्म की दौलत के लिए.. निम्मो पड़े पड़े रोए जा रही थी.. सिसकियाँ भरते भरते वो यूं ही पड़ी रही.. उसकी नींद कब लग गई उसे पता भी नहीं चला था...
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जिस समाज में हम रहते है उस समाज में क्या क्या होता है उसे जानना हमें कितना ज़रूरी होता है.. लेकिन हम उससे कितने अनभिज्ञ रहते है.. इस घने मुहल्ले के इस घर में क्या चल रहा था यहां के आस पास के लोगों को कानों कान खबर भी नहीं थी.. ऐसा अज्ञानता भरा कृत्य उस मोहल्ले में हो रहा था लेकिन उसकी चीख किसी के कानों में नहीं पड़ रही थी.. हमारे इस देश के हर शहर और गांव में होता रहता है जो समाज के समुदाय के दायरे कभी भी बाहर नहीं आता है और जब कभी आता भी है तबतक बहुत देर हो चुकी होती है.. इस समाज के हर धर्म में बहुत लोग ऐसे है जो धर्म का चोला ओढ़ कर अपनी वासना की तृप्ति करते है.. और ऐसे लोग अधिकतर घरों की महिलाओ को अपने विश्वास में लेकर या तो ठगते है या इस तरह के कृत्य को अंजाम देते है.. ऐसी कई निम्मो है हमारे इस समाज में जो इस तरह की दरिंदगी से गुज़र रही है...
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दोपहर हो चुकी थी निम्मो अभी भी ज़मीन पर पड़ी थी उसका शरीर का एक-एक अंग टीस मार रहा था..वो काफ़ी देर से हिम्मत जुटा रही थी..उसे आज फैसला करना ही था.. पर शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था.. लेकिन निम्मो ने फिर भी हिम्मत ना हारते हुए उसी वक़्त उठने की कसम जो खा रखी थी.. क्योंकि वो अब एक पल की भी देर नहीं करना चाहती थी.. निम्मो को अब इसबात का कोई गम नहीं था के उसकी ये हालात देखने ना तो उसके पास अम्मी आई थी और ना ही शाहिद आया था..वो आज इस बात को तय कर चुकी थी अब चाहे शाहिद उसे तलाक़ ही क्यों ना देदे वो अब यहां इस घर में नहीं रुकेगी..वो अपने आपको दीवाल के सहारे उठाने की कोशिश करती है लेकिन वो नाकाम हो जाती.. उसके उठने का प्रयास दो-तीन बार में सफल हो जाता है और वो उसी दीवाल के सहारे दरवाजे तक पहुंच जाती है अध खुले दरवाज़े से बाहर को देखती है.. सामने दलहान में अम्मी और शाहिद खाना खा रहें है.. वो धीरे धीरे दीवाल को पकड़ कर उनके पास पहुँचती है.. तभी अम्मी की नज़र निम्मो पर पड़ती है..

अम्मी- लो शाहिद निम्मो भी आ गई..

शाहिद खाना खाते हुए निम्मो को देख कर बोलता है..

शाहिद- आजा आजओ निम्मो देख कितना लज़ीज़ खाना है.. मैंने तुम्हे इस लिए नहीं जगाया हमने सोचा तुम रात भर की थकी हो..

अम्मी- ऐसे ही उठी चली आई है तूं.. कमसे कम अपने ये कपड़े तो ठीक कर लेती..

निम्मो गुस्से से विफरती हुए बोलती है

निम्मो - अब मेरे इस जिस्म में बचा ही क्या है जिसे पर्दे में रखूं अम्मी.. उस कमीने मौलवी के सामने परोस परोस कर मेरा जिस्म तार तार करवा दिया है तुम लोगों ने और कह रही हो के ढक लूं .. और तूं मुझें निकाह कर लाया था ना.. मेरा शोहर बनके मुझें दूसरे की रखेल इसलिए बना दिया के तूं इल्म की दौलत हांसिल कर सके और दौलत मंद बन सके.. हिज़ड़े से भी गया बीता है तूं...शाहिद तुझें अपना शोहर कहने पर भी अब मुझें शर्म आती है.. कमसे कम वो हीजड़े ही अच्छे है जो बेचारे दिन भर मेहनत करके कुछ तो कमा ही लेते है...तूं तो उनसे भी गया बीता निकला... और क्या कह रहा था तूं... तूं मुझें तलाक देगा दे.. तलाक दे मुझें.. बहोत तलाक़ के नाम पर मुझें दवा के रखा था ना तूं ने दे तलाक़ अगर अपने बाप की औलाद है तो.. दे तलाक..?

शाहिद तैश में आकर खड़ा हो जाता है तभी अम्मी उसका हाथ पकड़ लेती है लेकिन शाहिद अपनी अम्मी के हाथ को झिडकते हुए सीधे सीधे निम्मो का जबड़ा अपने दोनों हाथ से पकड़ लेता है

शाहिद- क्या बोल रही है तूं तुझें तलाक़ चाहिए.. नहीं दूंगा बोल क्या कर लेगी बोल.. क्या करेगी बाहर जाकर सब को बोलेगी अपने घरवालों से बोलेगी... चल जा कर दिखा..साली.

निम्मो अपने आपको छुड़ाने के लिए मशक्क्त कर रही थी उसकी आवज़ मुंह से निकल नहीं पा रही थी.. वही शाहिद की अम्मी शाहिद को छुड़ाने में जुटी थी जब शाहिद निम्मो को नहीं छोड़ता है तो शाहिद के गाल पर अम्मी जमकर एक चाटा जड़ देती है.. चाटा पड़ते ही शाहिद निम्मो को छोड़ देता है निम्मो बेहोश हो कर ज़मीन पर लुढ़क जाती है.. जल्दी से निम्मो को सम्हालती है..

अम्मी- तूं कान खोलकर सुन लें अगर इसे कुछ हो गया तो तूं दफा हो जाना इस घर से.. निम्मो ... निम्मो आंखें खोल अपनी देख मैंने शाहिद की भी पिटाई कर दी... (शाहिद को देखते हुए ) बेशर्म अब खड़ा खड़ा क्या देख रहा है जा जल्दी से हक़ीम और मौलवी भाई को बुला कर लेकर आ...

शाहिद फ़ौरन दौड़ लगा देता है अम्मी जल्दी से पास ही रखा पानी का जग उठा कर लाती है और निम्मो के मुंह पर छिड़कती है.

अम्मी- निम्मो आंखें खोल निम्मो .. मेरी प्यारी दुल्हन आंखे खोल बेटा..

चेहरे पर पानी पढ़ते ही निम्मो के शरीर में थोड़ी हलचल होती है..
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कंटीन्यू पार्ट -3