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उलझन - 16

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

सोलह

अभिनव ने मना किया और कहा - ‘नहीं मानव, यह ठीक नहीं घर में मम्मी-पापा हैं नहीं ऐसे में अकेले गाड़ी निकालकर ले जाना किसी तरह सेफ नहीं मम्मी-पापा सुनेंगे तो बहुत नाराज होंगें।’

‘छोड़ो भी उन्हें कैसे पता चलेगा। अभी लौटकर आ जाते हैं। आने के बाद बता देंगे।’ मानव खड़ा हो गया।

अभिनव ने फिर समझाया लेकिन मानव ने एक नहीं सुनी।

‘अभी आता हूँ’ कहकर वह नीचे उतर गया। गैरिज खोलकर गाड़ी निकाली और हाथ हिलाता हुआ गाड़ी तेजी से आगे बढ़ा ले गया। जाते-जाते चिल्ला कर कहा ‘अभि !गैरिज खुला रखना मैं अभी आता हूँ।’

थोड़ी देर तक तो अभिनव बाहर ही खड़ा रहा लेकिन फिर ऊपर कमरे में चला गया। नौकर को उसने निर्देश दिये कि जब मानव गाड़ी ले आये तो गैरिज के साथ-साथ गेट भी लाॅक कर दे। सुबह पढ़ने के लिए जल्दी उठने के कारण उसको कुछ नींद सी आ रही थी। कुछ खटपट सुनकर अभिनव की नींद खुली। उसने घड़ी देखी तो चार बज रहे थे। उसने नौकर को आवाज दी मानव के बारे में पूछा पता चला अभी तो नहीं लौटे। बारह बजे मानव गाड़ी लेके निकला था अभी तक उसका पता नहीं था। अभिनव को बहुत डर लगा कुछ समझ में भी नहीं आया कि क्या करे किससे पूछे कहाँ देखने जायें ? मम्मी-पापा को फोन करने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। यद्यपि मानव अपनी जिद्द से कार लेकर गया था लेकिन अभिनव को ऐसा लग रहा था मानो उसने कोई चोरी की हो।

एक घण्टा और बीत गया। मानव का कुछ पता नहीं। अभिनव मम्मी को फोन मिलाने की सोच ही रहा था कि पापा का फोन आ गया। उन्होंने सख्त आवाज में पूछा - ‘अभि ! मानव कहाँ है।’

‘वो पापा ...वो पापा।’ कहकर अभिनव हकला गया।

‘क्या पापा-पापा कर रहे हो।’ पापा ने डाँटा।

‘क्या वह हमारी कार लेकर कहीं निकला है ?’

‘हाँ पापा वह एक ड्राइव लेने गया था अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था लेकिन वह नहीं आया मुझे बहुत डर लग रहा है।’ अभिनव ने डरते-डरते कहा।

‘मम्मी कहाँ हैं।’ पापा ने दोबारा पूछा

‘मम्मी तो शर्मा आण्टी के यहाँ लेडीज संगीत में गयी हैं। ड्राइवर उन्हें छोड़कर गाड़ी वापस ले आया था। तभी से मानव गाड़ी लेकर गया है।’ अभिनव ने जैसे सफाई दी।

‘अच्छा रखो मैं मम्मी से बात करता हूँ तुमसे तो लौटकर निपटूँगा। पापा की आवाज गुस्से वाली लग रही थी।’

थोड़ी देर बाद ही मम्मी का फोन आ गया। उन्होंने मानव के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद फोन काट दिया। अब अभिनव को चिन्ता होने लगी तब तक उसे सौमित्र आता हुआ दिखायी दिया।

उसने हाथ मिलाने के बाद पूछा - ‘अभिनव, कुछ परेशान लग रहा हो।’

अभिनव ने सारी बात सौमित्र को बतायी। वह भी परेशान हो गया तब तक अभिनव की मम्मी का फोन फिर आ गया। उन्होंने बताया कि मानव का एक्सीडेंट हो गया। उसकी कार तेजी से आती हुई टैम्पों से टकरा गयी। कार का अगला हिस्सा बुरी तरह डेमेज हो गया। मानव को भी बहुत बुरी तरह चोट आयी। उसके पैर का आॅपरेशन हो रहा है। मम्मी ने अस्पताल का नाम बताया और आउट हाउस में रहने वाली आण्टी के साथ आॅटो से आने को कहा।

सौमित्र ने एक फोन घर पर किया और दादी माँ को अस्पताल का नाम बताकर अभिनव के साथ चल दिया। साथ ही उसने अपने पापा से भी बात की और उनसे भी अस्पताल पहुँचने की रिक्वेस्ट की। अस्पताल जहाँ मानव भर्ती था वह पापा के आॅफिस के पास ही था इसलिए सौमित्र और अभिनव से पहले पापा वहाँ पहुँच गये। सौमित्र के पापा को देखकर अभिनव की मम्मी ने राहत की साँस ली। अभिनव के पापा लगातार सम्पर्क में थे उनकी मीटिंग आवश्यक थी लेकिन सब कुछ छोड़कर निकलने वाले थे।

सौमित्र के पापा ने डाॅक्टरो ंसे बात कर और पोजीशन देखकर उन्हें आश्वस्त किया कि घबराने की कोई विशेष बात नहीं है। पैर में मल्टीपिल फैक्चर है इसलिए राॅड और प्लेट्स डालनी पड़ेगी। यहाँ सबकुछ अभिनव की मम्मी के साथ मिलकर वे मैनिज कर लेंगें इसलिए आप अपना काम पूरा कर ही लौटें।

सौमित्र के पापा से बात करने के बाद अभिनव के पापा ने उसकी मम्मी से बात की और तीन दिन बाद काम समाप्त कर आने पर सहमत हुए।

सौमित्र पापा को देखकर अश्वस्त हो गया कि अब आण्टी परेशान नहीं होंगी। थोड़ी देर बाद सौमित्र की मम्मी भी आ गयीं। लगभग डेढ़ घण्टे बाद मानव को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट किया गया। थोड़ी देर बाद उसे होश आ गया। उसके होश में आने के बाद पापा ने आण्टी से घर चलने को कहा क्योंकि मानव को नर्स ने दर्द का इंजेक्शन दे दिया था अब उसे सोते रहना था। आण्टी बीच में ही सीधे लेडीज संगीत से उठकर आ गयी थीं इसलिए एक बार उन्हें घर जाना जरूरी था। उनके लिए एक गाड़ी की व्यवस्था भी जरूरी थी और घर का पूरा इंतजाम भी ठीक तरीके से करना था।

सौमित्र की मम्मी के साथ सौमित्र और अभिनव रुक गये। बाकी लोग पापा के साथ चले गये। मानव अभी सो रहा था। अभिनव और सौमित्र मम्मी के पास बैठ गये। सौमित्र की मम्मी ने बताया कि मानव के पास कोई फोन नम्बर तक नहीं लिखा था न ड्राइविंग लाइसेंस था न गाड़ी के कागज। वो तो जहाँ सड़क पर एक्सीडेंट हुआ वहाँ अभिनव के पापा के एक परिचित कहीं जा रहे थे उन्होंने गाड़ी का नम्बर देखा उन्हें कुछ जाना-पहचाना लगा क्योंकि वे गाड़ी रिपेयर करते हैं और इस गाड़ी को रिपेयर कर चुके हैं इसलिए उन्होंने अभिनव के पापा से फोन कर गाड़ी का नम्बर कनफर्म किया फिर बताया कि कोई लड़का गाड़ी चला रहा था।

पापा ने मम्मी से बात करने के लिए घर पर फोन मिलाया तो फोन अभिनव ने उठाया इसलिए पापा समझ गये कि हो न हो गाड़ी मानव ही ले गया होगा।

सौमित्र ने अभिनव से कहा - ‘अभिनव जानते हो मम्मी तो कहती हैं अट्ठारह साल से पहले ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनता और बिना लाइसेंस के गाड़ी चलाना खतरे से खाली नहीं है। जो बच्चे इन नियमों को नहीं मानते वे नुकसान उठाते हैं।’

‘और नहीं तो क्या ? अगर मानव ने मेरी ही बात मानी होती तो यह परेशानी न आती।’ अभिनव ने जोड़ा आण्टी, मम्मी बेचारी इस बात के लिए परेशान होंगी कि मौसी को वे क्या जवाब देंगी। मौसी तो मानव को हमारे पास इसलिए छोड़ गयी थीं कि उसकी पढ़ाई में कोई नुकसान न हो। लेकिन मानव की छोटी सी गलती से लम्बा नुकसान हो गया। मेरे तो रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं केवल इतना सोचने भर से कि जैसी गाड़ी की कंडीशन बतायी जा रही है उसके अनुसार अगर मानव को चोट आती तो क्या होता ?’

‘कुछ नहीं होता जो भगवान चाहता है वही होता है लेकिन अपनी तरफ से सतर्कता बरतनी चाहिए। इसीलिए कहा जाता है कि बच्चों को बड़ों की बातें माननी चाहिए। यह सही है कि रिस्क लेने में मजा आता है। और बिना रिस्क लिये कुछ सीखा भी नहीं जा सकता है। लेकिन दूसरों के अनुभव से लाभ उठाकर भी तो नया सीखा जा सकता है।’ मम्मी ने समझाया।

तब तक मानव ने आँखें खोल दीं। पता नहीं उसने उन लोगों के बीच की बातें सुनीं कि नहीं लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। अभिनव के पूछने पर कि ‘कैसा है वह ?’ उसने आँखें फेर लीं सौमित्र ने दूसरी तरफ से देखा उसकी आँखों से आँसू निकल रहे हैं। मम्मी ने दोनों को कुछ न पूछने या कहने का इशारा किया। मानव ने भी आँखें बन्द कर ली थीं।

थोड़ी देर बाद अभिनव की मम्मी और माली अंकल के आने पर अभिनव सौमित्र के साथ सौमित्र की मम्मी भी लौट आयीं। अगला दिन रविवार था इसलिए दिन में आने की बात मम्मी ने कही जिसे आण्टी ने मना कर दिया। वे नहीं चाहती थीं कि उनके कारण मम्मी को कोई परेशानी हो। लेकिन सौमित्र जानता है कि मम्मी को कभी भी ऐसी बातों से परेशानी नहीं होती। वे तो सबकी मदद करने को हमेशा तैयार रहती हैं।

रात दस बजे पहले अभिनव को छोड़कर जब वे लोग अपने घर पहुँचे तो दादी के पास अंशिका बैठी थी। वे दोनों छज्जे पर कुर्सियाँ डालकर उन लोगों की प्रतीक्षा कर रही थीं। जब तक पापा गाड़ी पार्क कर ऊपर आते तब तक सौमित्र दादी को सब बातें बता चुका था। अंशिका की आँखों के आगे माॅल वाली घटना दोबारा घूम गयी। उसके रोंगटे खड़े हो गये।

दस दिन बाद मानव को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। एक हफ्ते रुककर अपने मम्मी-पापा के साथ मानव अपने घर चला गया। उसे किसी ने डाँटा नहीं कोई बात नहीं सुनायी गयी। बस उसकी मम्मी और मौसी जिस तरह गले मिलकर रोयीं उससे ही उसने बहुत बड़ा सबक ले लिया। उसे महसूस हुआ कि वह कितना कीमती है बेवजह की उतावली में उसने अपनी जान जोखिम में डाल ली। खुद भी परेशान हुआ और सबको परेशान किया। सबसे ज्यादा दुःख तो उसे इस बात का है कि उसके प्यारे भाई अभिनव को मौसा जी की ढेर सारी डाँट खानी पड़ी कि मानव को कार की चाभी क्यों दी ? मानव ने मन ही मन संकल्प लिया कि आगे से वह अपने उतावलेपन पर नियन्त्रण रखने की कोशिश करेगा।

जिस दिन मानव को जाना था उस दिन सौमित्र अपने मम्मी-पापा के साथ उससे मिलने आया। मम्मी ने मानव को समझाया, ‘बेटा ! गलती कभी न कभी सबसे हो जाया करती है। उससे शर्मिन्दा नहीं होना चाहिए न ही घबराना चाहिए बस सबक लेना चाहिए और उस गलती को कभी दोहराना नहीं चाहिए।’

मानव ने सहमति में सिर हिलाया और कहा ‘आण्टी मैं आपसे प्राॅमिस करता हूँ कि आगे से आपको क्या किसी को भी कभी कोई शिकायत नहीं मिलेगी।’

‘शाबाश बेटा !’ कहते हुए सौमित्र की मम्मी के सुर में अभिनव और मानव की मम्मी ने सुर मिलाया।

बोर्ड की परीक्षाएँ बहुत पास हैं। कुछ बच्चों के तो पै्रक्टिल भी हो गये हैं। कुछ के जल्दी ही होने वाले हैं। सभी तैयारी में लगे हैं। विशेष मेहनती बच्चों में सौमित्र, अभिनव, हेमन्त, अंशिका का नाम लिया जा रहा है। अंशिका के मम्मी-पापा के तलाक के मुकदमे की एक पेशी दीपावली के तुरन्त बाद पड़ी। उस पेशी में अंशिका के पापा भी आये। उन्होंने कुछ बातें रखीं मम्मी ने कुछ आरोप लगाये। पापा ने लेडी जज से लिखित अनुरोध्ज्ञ किया कि अब इस मुकदमे की तारीख अपै्रल के बाद रखी जाय ताकि अंशिका के बोर्ड एग्जाम्स इससे प्रभावित न हों।

मम्मी ने पापा पर आरोप लगाया कि वे बहाना बनाकर इस मामले को लटका रहे हैं। जबकि पापा ने सफाई दी कि उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं है। उन्हें तो मात्र अंशिका के भविष्य की चिन्ता है। आखिर इस तर्क पर मम्मी को भी सहमत होना पड़ा और अगली तारीख परीक्षा के बाद रखी गयी। मम्मी के सामने ही पापा ने जज साहिबा से अनुमति चाही कि परीक्षाओं के बाद एक सप्ताह के लिए वे अंशिका को उसकी दादी के पास ले जाना चाहते हैं।

मम्मी ने तुरन्त विरोध्ज्ञ किया। उनका कहना था कि वे अंशिका को नहीं भेज सकतीं। उसके पापा इतने जिम्मेदार नहीं हैं कि अंशिका की एक हफ्ते भी देखभाल कर सकें। अंशिका की दादी तो बहुत खराब है वे उसे ताने दे देकर परेशान करेंगी।

पापा ने मम्मी के आरोपों को निराध्ज्ञार बताया और जज साहिबा को आश्वासन दिया कि वे अपनी बेटी को बिल्कुल ठीक से रख सकते हैं हमेशा के लिए भी। अगर अंशिका की मम्मी अलग रहना चाहती हैं तो रहें वे अपनी बेटी से अलग नहीं रह सकते।

अंशिका की मम्मी ने फिर तर्क किया - ‘देखा आपने ये मेरी बेटी मुझसे छीन लेंगे।’

‘छीना तो तब जाता है जज साहिबा जब चीज आपके पास हो अंशिका तो हमेशा की तरह आज भी मेरे दिल में है घर में है। ये कुछ दिनों की जुदाई है जो बुरे दिनों की तरह बीत जायेगी।’ पापा का दृढ़ विश्वास उनके शब्दों से प्रकट हो रहा था।