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ज़िन्दगी का नाम दोस्ती

सोमवार
सप्ताह का पहला दिन, बैसाख महीने की त्राहिमाम जैसी भीषण गरमी के प्रकोप से पसीने से लथपथ ऑफिस टाईम के पीक अवर्स की भीड़ को चीरते महात्मा सर्किल के पास सिटी बस के पीक-अप प्वाइंट पर बस के ड्राइवर ने उसकी रोज की आदत अनुसार अचानक मारी हुई हल्की ब्रेक के झटके की वजह से भरी हुई बस के पैसेंजर असंतुलित होने से आनेवाले मुसाफिरों की आसानी से बस में दाखिल होने का रास्ता आसान हो गया।

जॉब पर जाने के दिनों के दरमियान सालों से षट्कोण जैसे बनाए हुए दिनचर्या के दिशानिर्देश के हिसाब से बिना चुके वो मानव भीड़ में जोतकर ९:३५ को ३४० नंबर की बस में हररोज की तरह दाखिल होने की क्रिया अब माधवी के लिए एक यंत्रवत प्रक्रिया से ज्यादा कुछ भी नहीं था।

माधवी... माधवी दलाल।
२४ वर्षीय माधवीने येलो साड़ी और मैचिंग ब्लाउज साथ में कंधो पर लटकता ब्राउन कलर का लेटेस्ट डिजाइन का ऑफिस बैग और लेफ्ट हैंड में मीडियम साइज का लंच बॉक्स पकड़कर भीड़ में बैलेंस बनाकर संभलकर खड़ी थी।

सहजभाव लेकिन तुरन्त आंखों को आकर्षित करे ऐसा माधवी के प्रभावशाली औैर आकर्षक व्यक्तित्व का खूबसूरत पहलू था उसकी सादगी। पर्सनैलिटी से भरी हुई ५.८ ईंच की हाइट, कमर से नीचे तक लंबे सुंदर बाल, लेकिन सिम्पल हेयर स्टाइल में, हमेशा वस्त्र परिधान में वो साड़ी को ही प्राथमिकता देती। मध्यम साइज की बिंदी, रंगबिरंगी चूड़ियां, कजरारी हिरनी सी आंखें, कानों में सिम्पल सी बाली के सिवाय शरीर पर एक भी आभूषण पहनना माधवी को बिलकुल भी पसंद नहीं था।

आज अचानक ही पांच मिनट के अंतराल में एक से दो बार बस में उससे करीब दस फीट की दूरी पर कानों में ईयरफोन लगाकर जेंटलमैन जैसा दिख रहा एक यंग पुरुष के साथ उसकी नज़रें मिलते ही एक मिनट के बाद सच्चाई जानने के लिए माधवी ने उस पुरुष की देखा तो उस पुरुष ने भी माधवी की ओर देखने की चेष्टा की। सालों से पुरुषों की फोटोकॉपी जैसे फितरत को पहचानकर समझदार बन चुकी माधवी ने बिलकुल भी दिमाग पर जोर डाले बिना नजर घुमा ली, इतने में ही उसका स्टॉप आते ही धीरे से उतरकर रोड क्रॉस करके धीरे धीरे ऑफिस की दिशा की ओर बढ़ने लगी।

ठीक दो मिनट बाद वही जेंटलमैन दिखनेवाला पुरुष धीमी आवाज़ में ईयरफोन पर बात करते करते थोड़ी जल्दी में माधवी को क्रॉस करता हुआ आगे चला गया।
माधवीं ने उसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

उस आदमी को 'सनशाइन पावर' कम्पनी के गेट में एंटर होते देखा जिस कम्पनी में माधवी अपर डिवीजन क्लर्क के हैसियत से काम कर रही थी।

मंगलवार नेक्स्ट डे।

९:३५ का समय ३४० नंबर की बस, महात्मा सर्किल का सिटी बस का पीक-अप स्टैंड।

सदनसीब से आज माधवी को सीट औैर वो भी विंडो इसलिए थोड़ा रिलैक्स फिल कर रही थी इतने में अचानक उसकी नज़र कलवाले जेंटलमैन पड़ते ही माधवी ने उस ओर से ध्यान हटा लिया।

अब चार दिन बाद फिर से ९:३५ का समय, ३४० नंबर की बस, महात्मा गांधी सर्किल के सिटी बस के पीक अप प्वाइंट के कार्बन कॉपी जैसे नित्यक्रम में एक कड़ी जुड़ गई उस जेंटलमैन की।

आज एक वीक के बाद एक सामान्य से हररोज के सहयात्री के परिचय के सदर्भ में साहजिकता से उस पुरुष हंसते हुए माधवी की ओर देखा और एक ही सेकंड में माधवी ने अपनी ओर से बिना कोई प्रतिभाव दिए मुंह फेर लिया।

उसके बाद जैसे दोनों गेट पर पहुंचकर कैम्पस एंटर होकर आगे जाते हुए उस युवक से माधवी ने पूछा,
'हेल्लो.. आप यहां इस कम्पनी में जॉब करते हो?'
पीछे घूमकर इस युवक ने जवाब दिया
'जी'
'आपका शुभ नाम जान सकती हूं?'
'जी, राजीव.. राजीव शुक्ला।'
'आई एम माधवी.. माधवी दलाल।'
'मैं इसी कम्पनी में बिलिंग सेक्शन में क्लर्क हूं..।'
'सेम हीयर, मैं फाइनेंस डिपार्टमेंट में अकाउंटेंट हूं।'
'ओह, गुड, सो नाइस टू मिट यू। हेव ए नाइस डे। बाय।' माधवी ने कहा।
'सेम टू यू। बाय,' कहकर दोनो अलग हुए।

२८ वर्षीय एक अनन्य ठाठ से भरा हुआ प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक था राजीव। कसी हुई स्पोर्ट्समैन जैसी बॉडी, चमकीली आंखें, जेंटलमैन को सुहाती हो ऐसी बॉडी लैंग्वेज, राष्ट्रीय औैर आंतरराष्ट्रीय भाषा पर पर्सनैलिटी के साथ प्रभुत्व।
आंशिक रूप से दोनों के दिमाग में चल रही मानव सहज स्वाभाविक मिसंडरस्टैंडिंग औपचारिक मुलाकात के बाद डिलीट हो गई।
रोजमर्रा के एक जैसे नित्यक्रम का चक्र घूमता रहा। उस प्राथमिक परिचय की मुलाकात को आज २० से २५ दिन हाे गए होंगे।
नियमित बस की आवन जावन नी सफ़र में हाई, हेल्लो की फॉर्मेलिटी के सिवाय किसी भी तरह के संवाद के लिए प्रारंभ की कोई भी भूमिका बंधी नहीं थी।

माधवी अपनी अभिव्यक्ति को जिस तरह एक दायरे में रखी हुई थी उस पर से उसके बिहेवियर का अंदाजा लगाते हुए राजीव ने माधवी थोड़ी घमंडी है ऐसा निष्कर्ष निकाला।

इस बात को राजीव ने जरा भी महत्ता नहीं दी थी।

एक दिन😎 लंच टाइम में माधवी कैंटीन में सॉफ्ट ड्रिंक लेकर बैठी थी और इतने में कैंटीन में एंटर होते ही राजीव का ध्यान माधवी पर गया तो माधवी ने हाथ ऊंचा करके इशारा किया तो माधवी के पास आकर बोला,
'व्हाट ए सरप्राइज। आपको कैंटीन में फर्स्ट टाइम देखा।'
'हां, यू आर राइट। शायद चार सालों में चार बार भी कैंटीन में नहीं आई होऊंगी। लेकिन आज मॉर्निंग में थोड़ा टाइम टेबल डिस्टर्ब हाे गया इसलिए लंच बॉक्स नहीं ला पाई। औैर मैं आउट साइड का कुछ भी नहीं खाती, इसलिए येे सॉफ्ट ड्रिंक लेकर बैठी हूं। आप क्या लेंगे?'
'कुछ भी नहीं। आज शाम एक डिनर पार्टी में जाना है, अभी सिर्फ आइसक्रीम खाने की इच्छा है। राजीव ने जवाब दिया।' वेटर आइसक्रीम देकर जाने के बाद स्कूप लेते हुए राजीव ने पूछा,
'मैडम आपको बुरा न लगे तो एक बात पूछूं?'

एक हल्की मुस्कान के साथ राजीव की ओर देखकर माधवी बोली,
'उससे पहले मैं कुछ पूछूं?'
'येे एक बात आप कब से पूछना चाह रहे हैं?'
मुश्किल से मुस्कुराते हुए माधवी ने पूछा।
इसलिए राजीव ने थोड़ा मुश्किल महसूस करते हुए आश्चर्य से पूछा,
'येे भी आपको पता है?'
'सॉरी, माफ़ कीजियेगा मि. राजीव लेकिन इतना ही फ़र्क है एक पुरुष और स्त्री के दृष्टिकोण में। मैं सात्विक अर्थ में ही आपको पूछ रही हूं कि आपने मुझे मेरी जानकारी के बिना कितनी बार तो निहारा होगा और मैंने आपको कितनी बार देखा? में इस बात का किसी अलग सन्दर्भ में उल्लेख नहीं कर रही हूं। एक बात कहूं मि. राजीव अगर सचमुच में आपने मेरी तरफ देखा होता तो शायद आपको आज मुझे येे एक बात नहीं पूछनी पड़ती।'
'अब दूसरी बात कहूं?'
राजीव ने ठोस अनुमान से इंस्टॉल करी हुई माधवी की इमेजेस तो माधवी के सिर्फ चार सेन्टेंस में डिस्ट्रॉय हो गई। धीरे से राजीव बोला,
'जी कहिए।'
'आपकी जाे कोई भी बात होगी उसका मैं कल उत्तर दूंगी, लेकिन उससे पहले मुझे मेरी एक बात का सही जवाब चाहिए, दे पायेंगे?'
'कौनसी बात?' राजीव ने पूछा
'आपने इतने समय से मुझमें क्या देखा?
ओ. के. मि. राजीव सी यू टुमॉरो।' इतना बोलकर माधवी निकलने ही जा रही थी कि तब राजीव बोला,
'लेकिन, कल तो सन्डे है।'
'आई नो। सो वोट?' इतना कहकर माधवी चली गई।
कुछ देर तक तो राजीव को वो कहानी याद आ गई। बन्दर शेर को थप्पड़ मार गए, वो।

सन्डे, शाम के करीब ६:४५ का समय होगा। राजीव कॉफी का कप भरकर बाल्कनी में सूर्यास्त का नजारा देखते देखते कल हुए माधवी के साथ कन्वर्सेशन के बाद उसके व्यक्तित्व के बारे में अंदाजा लगाने में नाकाम रहा था। माधवी की सोच औैर बातों की गहराई पर से माधवी को एक साधारण स्त्री समझने की भूल उसकी समझ में आने के बाद माधवी के प्रति उसकी सोच बदल गई। लेकिन उसने आज सन्डे के दिन बात करने के लिए बोला तो वो... अभी मनोमंथन की गाड़ी आगे चले उससे पहले ही उसके मोबाइल की रींग बजी.. अननोन नंबर पर से आया हुआ कॉल रिसीव करते हुए राजीव बोला,
'हेल्लो।'
'गुड इवनिंग मि. राजीव।'
'जी गुड इवनिंग, आपका परिचय?'
'बस नंबर ३४० की आपकी सहयात्री बोल रही हूं।'
'ओह.. माय गॉड। आर यू माधवी?'
'जी अभी तक तो वही नाम है।' हंसते हंसते माधवी ने जवाब दिया।
'बट, हाऊ यू गेट माय मोबाइल नंबर?'
'आप अमरीका के प्रेसिडेंट हो?'
'अरे लेकिन.. आप तो सच में.. 'आगे क्या बोले, कुछ नहीं सूझा तो राजीव अटक गया।
'आई नो के आपका दिमाग कल दोपहर से २जी की स्पीड से चल रहा है। तो अब एक काम कीजिए शार्प ८:३० मैं आपको जाे एड्रेस सेन्ड कर रही हूं वहां आ जाइए यानि कि मिनिमम सर्विस चार्ज मेें आपके ढीले हाे गए दिमाग के तारों को ठीक से जोड़कर ५जी स्पीड के साथ जोड़ दू, ओ. के.'
इतना बोलकर माधवी ने कॉल कट किया, उतने में राजीव के मोबाइल में मैसेज आया।

'गोल्डन स्क्वेयर रेस्टोरेंट, नियर सरदार ब्रिज।'

टाईम ८:३५, गोल्डन स्क्वेयर रेस्टोरेंट के मिडिल के टेबल की चेयर पर माधवी औैर राजीव दोनों एकदूसरे के सामने बैठे थे। ब्लैक साड़ी के साथ सादगी के शृंगार में माधवी बेहद खूबसूरत लग रही थी।
डार्क ब्ल्यू जीन्स पर व्हाइट टी-शर्ट में राजीव एक हद से ज्यादा हैंडसम, फ्रेश औैर खुशमिजाज लग रहा था।
'आप क्या लोगे राजीव?'
'मैं येे सोच रहा था कि बाहर का कुछ लेते ही नहीं हाे तो?'
'सही है, लेकिन येे मेरा फेवरेट रेस्टोरेंट है और मेरे उस नियम मेें येे अपवाद है। मैं जब भी बहुत खुश होती हूं तभी यहां आती हूं। यू कांट बिलीव, मैं आज चार साल बाद यहां आई हूं।'
'ओह.. क्या बात कर रहे हो? फेवरेट है फ़िर भी चार साल बाद क्यूं?'
'आपके सवाल का जवाब मैं बाद में दूंगी। लेकिन उससे पहले आप ऑर्डर दीजिए उसके बाद हम कल के अनुसंधान में वार्तालाप आगे बढ़ाएंगे, ओ. के.'
'लेकिन, आपके टेस्ट की पसंद का मुझे कैसे अंदाजा होगा?'
'राजीव आपने कल मुझे,'एक बात पूछूं' ऐसा बोलकर मधु मक्खी के छत्ते में हाथ डाला है तो अब आपको ही सबकुछ हैंडल कीजिए मिस्टर।' धीरे से हंसते हुए माधवी बोली।
राजीव ने अपनी पसन्द का ऑर्डर दिया उसके बाद डिनर करते करते माधवी ने पूछा,
'हां, तो राजीव क्या जवाब है मेरे सवाल का?'
'सच कहूं तो आपको नियमित बस में मेरे साथ आते हुए देखकर एक मानव सहज स्वभावगत परिचय के आशय से मैंने आपकी ओर देखा था।'
'मैंने आपको कोई प्रतिभाव दिया था?' माधवी ने पूछा
'नहीं तो।'
'तो?'
'तो क्या?'
'फिर भी आपने तो मेरी ओर देखने का सिलसिला यथावत ही रखा था न, क्यूं? आपका आशय जबरदस्ती परिचय करने का था? औैर जब कोई व्यक्ति बिलकुल भी रेस्पॉन्स न दे तो उसका क्या हाे सकता है वो आप न समझ सको उतने नादान तो आप नहीं हाे राजीव।'
राजीव लग रहा था कि आज येे रींग मास्टर सर्कस में मुजरा करवाकर ही रहेगी। इसलिए सफाई देते हुए बोला,
'लेकिन माधवी शायद आप जो समझ रहे हो वो गलत...'
'राजीव मैं आपको समझती हूं इसलिए आप के हूं। औैर वो आप नहीं समझेंगे। मैंने आपको आपका ही एक सिम्पल सवाल पूछा है कि आपने मुझमें क्या देखा?'
अब राजीव की हालत एकदम पतली हो गई थी। उसके पास जाे जेन्युइन जवाब था, वो माधवी के गले उतारने वाला नहीं था।
'सच कहूं माधवी तो मैंने आप में घमंड देखा। आपको शायद आपके सौन्दर्य का घमंड होगा। इसलिए हम नाम से परिचित हुए, उसके बाद भी रोज साथ आते जाते हुए भी आप से एक अंतर बनाकर रखा बस।'
'चलो मान लेती हूं कि मेरे ऐटिट्यूड से आपको मैं प्राउडी हूं ऐसा फिल हुआ। तो मेरा वो घमंड, वो सौन्दर्य अब कहा गया?'
वार्तालाप की शुरुआत किसने की?
आपके कॉन्टैक्ट नंबर बिना आपकी जानकारी के बिना मैने क्यूं ढूंढा? डिनर के लिए आपको सामने से क्यूं इनवाइट करूंगी? मेरे फेवरेट रेस्टोरेंट में चार साल बाद आपके साथ ही क्यूं आऊंगी? है इन सवालों के जवाब या अभी भी आपको मुझमें घमंड ही दिख रहा है?' एक ही सांस में बोलने के बाद माधवी पूरा ग्लास पानी पी गई। थोड़ी देर के लिए राजीव को ऐसा लगा कि ईश्वर को बोलु कि अगले जनम में धृतराष्ट्र का अवतार देना लेकिन अभी इस चीरहरण से बचा लो।
'अव आप एक काम कीजिए, आप ही मेरी दृष्टिकोण की परिभाषा से मुझे अवगत कराइए, यही ठीक रहेगा।' राजीव बोला।
'सच कहूं राजीव मेरे सवालों के स्पष्ट जवाब मैं आपकी आंखों में पढ़ पा रही हूं। औैर आप ही उसका अनुवाद नहीं कर पा रहे हैं जानकार मुझे आश्चर्य हुआ।'
तो अब सुनिए...
'जिस दिन आपने पहलीबार मेरी ओर देखा ऐसे तनोरंजन करने वाले नजारे तो जब से मैंने चार साल पहले पहली बार जॉब पर जाने के लिए ३४० नंबर की बस पकड़ी तब से देख रही हूं। किसी भी तरह के परिणाम और पूर्वभूमिका के बिना एक अकेली औरत के साथ सब को परिचय करना है। मेलजोल भी करना है। औैर अगर मौका मिल गया तो मसलना भी है। आपकी अगर याद हाे तो लगभग एक वीक बाद मैंने सामने से आपका नाम जानने की कोशिश की थी, क्यूं? एक वीक बाद? क्योंकि वो मेरा दृष्टिकोण था। में आपकी तरफ क्यूं देख रही हूं उसका मुझे भी तो पता होना चाहिए न? उसके बाद २५ दिनों तक मैने देखा शायद आपसे ज्यादा मैने आपको देखा है, बिना आपकी जानकारी के, क्यूं? क्योंकि में आप में जाे देख रही थी, जाे मुझे चाहिए था। एक बात कहूं राजीव आपने मुझमें जाे नहीं देखा उस बात की मुझे खुशी है।'
'क्या नहीं देखा?' राजीव ने आश्चर्य के साथ पूछा।
'जो दूसरे पुरुष देखते है वो। राजीव मेरी जिन्दगी में ईश्वर ने अपनी नियति की नीति से जो भी दिया है उसमें मैं खुश हूं। बस एक बात की कमी थी शायद आपके रूप में ईश्वर ने वो भी पूरी करने का कोई संकेत दिया होगा।'
'कौनसी कमी माधवी?' राजीव ने आतुरता से पूछा।
'राजीव आपको मैं घमंडी लगी, सही लेकिन क्यूं? क्योंकि मैं किसीको मेरा परिचय नहीं देती या जितना बन सके उतना किसीके परिचय के परिधि में नहीं आती।'
'लेकिन उसका कोई खास कारण?' राजीव ने पूछा।
'राजीव हमारे इतने परिसंवाद के बाद हम संबंध के कौनसे स्तर पर है?' माधवीने पूछा।
'शायद मैं संबंध से ज्यादा विश्वास को ज्यादा प्रधान्य देना पसंद करूंगा।' राजीव बोला
'इतने परिचय के हक से मैं आपके पास से कुछ मांग सकती हूं?' एकदम इमोशनल हो जाने से दोनों आंखें भर आते ही माधवी बोली।
'मेरे सच्चे दोस्त बनेंगे?' इतना बोलते ही माधवी का गला भर आया।
राजीव पानी ग्लास माधवी को देते हुए बोला
'प्लीज़ माधवी कंट्रोल।'
माधवी ने पानी पिया पांच मिनिट तक चुपकीदी साधने के बाद स्वस्थ होकर माधवी बोली,
'राजीव मेरे कोई दोस्त नहीं है क्योंकि मेरी सुंदरता मेरी शत्रु है।'
'लेकिन दुनिया में मेरी जैसी कोई भी खूबसूरत स्त्री का पुरुष मित्र न हो ऐसा कैसे मान लिया जाय?'
'लेकिन मेरे किस्से में अपवाद है राजीव।'
_दुनिया मुझे मित्रता की भीख देना चाहती है। मुझ पर तरस खाकर सभी मेरे मित्र बनने के लिए उत्सुकता से तैयार है। कुछ भी करने के लिए तैयार है। लेकिन एक रात के लिए क्योंकि मेरे पास खूबसूरत जिस्म के खज़ाना के साथ साथ..'
इतना बोलकर माधवी रूक गई।
'क्या हुआ माधवी? क्यूं रूक गई?'राजीव ने कूतुहलतावश पूछा।
एकदम रूंधे हुए स्वर में माधवी बोली,
'साथ साथ मेरे नसीब में "मैं विधवा हूं।' ऐसा ठप्पा भी लगा हुआ है इसलिए।'
इतना बोलकर माधवी ने टेबल पर अपना सिर झुका दिया।

इतना सुनते ही राजीव के पांव तले से मानो जमीन खिसक गई। कानों में एक दीर्घ सन्नाटा छा गया। शब्द जम गए।
'मैं विधवा हूं, मैं विधवा हूं, मैं विधवा हूं.....'येे शब्द कब तक राजीव के कानों में गूंजते रहे। अनजाने में देखने के दृष्टिकोण से परिवर्तित हुई दृष्टि की परिभाषा ने पवित्र मित्रता की गहनता और महानता के दर्शन करा दिए। माधवी की विराट सोच के आगे राजीव चुपचाप अपने मिथ्याभिमान के घमंड को चूरचूर होते बुत बनकर बस देखता ही रहा।



-विजय रावल