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एक पाँव रेल में: यात्रा वृत्तान्त - 12 - अंतिम भाग

एक पाँव रेल में: यात्रा वृत्तान्त 12

12 ब्रज चौरासी कोस यात्रा का दर्शन

शास्त्रों में चौरासी लाख यौनियों की बात कही गई है। आदमी का जीवन प्राप्त करने में उसे चौरासी लाख यौनियों सें होकर गुजरना पड़ता है तब कहीं उसे मानव का जीवन मिलता है। शायद इसी संकट से पार पाने के लिये हमारे ऋषियों ने चौरासी कोस की परिक्रमा का हल निकाला होगा।

चौरासी खम्बा मन्दिर, चौरासी कुण्ड, चौरासी प्रमुख मन्दिर चौरासी कोस में स्थापित कर चौरासी लाख यौनियों की कहानी की पुष्टि कर दी है।

जो हो इस बहाने ब्रज चौरासी कोस के सम्पूर्ण क्षेत्र की परिक्रमा का चलन चल निकला है। वृन्द्रावन धाम, अयोध्या धाम के अतिरिक्त नैमषारिण्य..तीर्थ की भी चौरासी कोस की परिक्रमा का चलन चल रहा है। चौरासी के चक्रव्यू से पार पाने के लिये इस परिक्रमा का महत्व बढ़ जाता है।

हमें भी कुछ दिनों से चौरासी कोस की परिक्रमा का भूत सवार हो गया है। रनवीरा सिंह रावत एवं पुरुषोतम दास ज्योतिषी का गिरिराज जी एवं वृन्दावन धाम की परिक्रमा हेतु चक्कर लगाते रहते हैं। जब कभी मेरा मन होता मैं भी इनके साथ परिक्रमा लगा आता। वाँके विहारी के मन्दिर के पुजारी को वहनोई व उनकी पत्नी को वहिन राधारानी मान कर पूजते रहते हैं। ये जब भी विन्द्रावन जाते है अपनी वहन से मिले बिना लौटते नहीं हैं। इनके साथ मेरा भी उनके यहाँ चक्कर लग जाता है। ये लोग अटल्ला की चौकी से परिक्रमा मार्ग में शिवोहम आश्रमा के आगे कृष्ण कृपा धाम के सामने गली में.श्री रामाचार्य कुटी. प्रखर परोपनकार मिशन संत कालोनी का आश्रम है इन दिनों उसके आचार्य पं. राम कुमार शर्मा जी है। मैने उनके सामने अपनी चौरासी कोंस की यात्रा का प्रस्ताव रखा । वे बोले-‘आप यह यात्रा मेरे साथ करें। मैं पूरी व्यवस्था कर दूंगा। उन्होंने 28नबम्बर 19 की तिथि निश्चित कर दी।

मेरे साथ यात्रा करने पत्नी श्रीमती रामश्री तिवारी एवं उनकी बड़ी बहिन राम देवी एवं उनकी छोटी बहिन भागवती वाई भी तैयार हो गईं। यात्रा पर निकलने से पहले हर वार की तरह मैंने और पत्नी राम श्री ने अपने इष्ट गौरी बाबा से यात्रा में साथ चलने की प्रार्थना की। इस तरह मैं अपने इष्ट को साथ लेकर, चारो यात्रियों के साथ 26.11.19 को झेलम से मथरुा के लिये निकल पड़े। रास्ते से ही मेहन्त साहब को फोन कर दिया हम चार लोग आ रहे हैं। हम जैसे ही वृन्दावन के रधुवर धाम में पहुँचे हमें चार विस्तर वाले कमरे में सिफ्ट कर दिया। उसके पास में ही लगा हुआ था लेट्रिन एवं वाथरूम। उसमें गरम पानी के लिये गीजर लगा था। इस तरह हम उस कक्ष में व्यवस्थित हो गये। इस समय तक आठ बजे गये। मेहन्त साहब ने खाना बनाने के लिये हलवाई लगा दिये थे। भोजन बनकर तैयार था। सेवा करने वाले रात्री भोजन के लिये बुलाने आ गये । हम चारो भोजन करने पहुँच गये। श्रीमती रामश्री धरती परं आसन डालकर बैठकर भोजन नहीं कर पातीं हैं। उनके पैरों में प्रोबल्म है। उनके लिये कुर्सी डाल दी गई। यों हम सब ने प्रेम से रात्री का भोंजन ग्रहण किया। घर की तरह पसर कर आराम से सो गये।

दूसरे दिन सुबह उठकर छह बजे चाय पी। उसके बाद फ्रेस होकर दैनिक भजन- पूजन में लग गये। महन्त साहब के आदेश से आठ बजे चाय- नास्ता के बाद वृन्दावन के प्रमुख मन्दिरों के दर्शन के लिये निकल पड़े। रधुवर धाम से ही ओटो पकडकर वाँके विहारी के मन्दिर पर पहुँच गये। मन्दिर कें पट खुलने और बन्द होने की परम्परा से उनको टकटकी लगाकर दर्शन करने में व्यवधान आ रहा था। यह परम्परा इसलिये विकसित हुई जिससे भक्त उन्हें टकटकी लगाकर देर तक न निहार सकें। दर्शन की उत्सुकता बढ़ती रहे। इसी सोच में बाहर प्रसाद लेकर निकले और सीधे पास में स्थित राधा बल्लभ के मन्दिर के लिये चल दिये।

राधा बल्लभ का मन्दिर निकट ही है। भीड़-‘भाड़ में चलकर लगभग दस मिनिट में ही हम लोग वहाँ पहुँच गये। याद आने लगी मित्र अनन्त राम गुप्त जी की। वे गौरी बाबा के सात्संग में सोमवार के सोमवार निश्चित समय पर उपस्थित होते रहे हैं। वे हमेशा इस मन्दिर की दिव्यता की चर्चा करते रहे।

प्रत्येंक मन्दिर में वहाँ कुछ देर बैठने की परम्परा है। यानी भगमभाग में दर्शन का कोई लाभ नहीं होता, हम कुछ क्षण इस परम्परा का निर्वाह करते हुए आगे बढते रहे। यहाँ से चलकर राधारानी के सेबाकुन्ज में पहुँच गये। अनेक लोगों सें सुना है राधारानी और भगवान कृष्ण यहाँ आज भी नित्य विहार करते हैं। उनकी उस जगह को पेड़ पौधों के बीच मैं आँखें फाड़ फाड कर देखता रहा। शायद कहीं उनकी झाँकी के दर्शन हो जाये।

राधा रानी के सामने बैठकर याद आने लगी-इसी वृन्दावन मे कहीं कुछ नहीं था। वह तो भगवान कृष्ण ने स्वयम् ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभू के रूप में पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में जन्म लेकर कृष्ण भक्ति का प्रचार किया है। उन्होंने ही इन सभी स्थानों की साख भरी है। जिसका जहाँ से सम्बन्ध रहा है वही अपने स्थानों को विष्वास के साथ दिखा सकता है कि यहाँ मैंने यह लीला की है। यहाँ महा प्रभू कें समय में वृन्दा के घने जंगल थे। उन्होंने ही इन स्थानों की दिव्यता के वारे में बतलाया है। तभी ये स्थान पुनः सजीव हो गये है। यहाँ ही नहीं वृज चौरासी कोस के उन सभी स्थानों की साख भी उन्होंने ही भरी है। प्रत्येक स्थान पर महाप्रभू के बैठका भी इसी बात का प्रमाण दे रहे हैं।


यही सब सोचते हुए हम माखन चोर मन्दिर के दर्शन करते हुए राधा दामोदर के मन्दिर में जा पहुँच गये। बहाँ उस समय गिरिराज जी के दर्शन खुले थे। वहाँ गिरिराज जी के चरण चिन्ह अंकित सबूत स्थित है। उनकें दर्शन के बाद चार परिक्रमा करने से गिरिराज जी की एक परिक्रमा पूरी हो जाती है। अनेक लोग परिक्रमा कर रहे थे। इसी स्थान पर महाप्रभू चैतन्य ने श्रंगार वट की साक्षी दी थी। इसा बृक्ष के नीचे बैठकर भगवान कृष्ण राधा जी का श्रंगार करते थे। श्रीमती रामश्री बहाँ पहुँचकर भाव विभोर होकर मन्दिर की परिक्रमा करने लगीं। मैंने भी भीड़ में उनके पीछे- पीछे चलकर परिक्रमा देना शुरू कर दी। जब जब मन्दिर के सामने आतीं तो वे नृत्य करने लगतीं। मैंने उनका अनुकरण किया। मैं भी हर परिक्रमा कें वाद एक वार पूरा नृत्य की तरह घूम जाता। जब चार परिक्रमा पूरी हो गईं वे प्रभू के सामने सास्टांग पड़ गई। मैने भी उनका अनुकरण किया। मैंने देखा वे वड़ी देर तक वही लेटी रह गई। लगा कोई आवेश हुआ है।। जब वे उठकर बैठ गईं तो मैंने उनकी ओर देखा तो वे बोली-‘मुझ से उठा ही नहीं जा रहा था। इस के वाद वे काफी देर तक अस्वस्थ्य सी बनी रहीं। मैं समझ गया-उनका यह क्रम उस समय से चला आ रहा है, एक बार ये कर्तिक स्नान के लिये बृन्दावन में एक माह तक रहकर वास किया था। उन दिनों उन्हें इसी मन्दिर में प्रतिदिन सभी कर्तिक स्नान करने वाली सखियों के साथ परिक्रमा के लिये आना पड़ता था। उस समय एक दिन ऐसी घटना हो गई। तब से यह क्रम चला आ रहा है। इस मन्दिर में अनेक संतों के बास रहे हं। अनेक संतों की समाधि के प्रतीक यहाँ बने हुए हैं। निश्चय ही ये किसी जन्म में किसी महापुरुष का सानिध्य इन्हें मिला है। इनमें से किसी की कृपा इन पर हुई है। इसी कारण ये वृन्दावन आयें औैर इस मन्दिर पर न आये ऐसा नहीं हो सकता। यह स्थल इन्हें अपनी ओर खीच ही लेता है।श्

इस तरह भाव विभोर होंते हुए हम रधुवर धाम में लौट आये। दोपहर के भोजन का समय हो गया था। भोजन ग्रहण कर हम आराम करने लगे।साँय काल में हम लोग फिर भ्रमूण को निकले। यहाँ से पास में ही प्रेम मन्दिर था। आराम से वहीं की झाँकियों के दर्शन करते रहे। रात आठ बजें से पहले भोजन कें समय पर रधुवर धाम लौट आये।

28.11.19 को प्रातः छह बजे कमरे में चाय आ गई। चौरासी कोस की यह यात्रा रधुवरधाम से प्ररम्भ हो रही थी। यात्रा के पहले यमुना मैया के पूजन की परम्परा है। इसके लिये हम यमुना मैया के अकू्रर धाट पर पहुँच गये। यमुना पूजन के साथ यहाँ पर चौरासी कोस की यात्रा करने का संकल्प लेना पड़ता है। विधि विधान से हम चालीस, पैंतालीस लोगों ने चौरासी कोस की यात्रा करनेका संकल्प लिया। कार्यक्रम में दो धन्टें लग गये। इस में पाण्डित्य का कार्य महाराज जी के मित्र एवं यात्रा के परारमर्श दाता आचार्य देव प्रकाश जी ने कराया। उसके वाद हम सब यात्रा पर निकल पड़े। सबसे पहले द्वारिका धीस के मन्दिर पर पहुँच गये। सभी ने भक्ति भाव से दर्शन किये। पास में ही यमुना जी का विश्राम घाट है, वहाँ आचमन करने पहुँच गये। मथुरा के पण्डों ने घेर लिया। घाट पर दान करने का महत्व वताने लगे। भक्तों ने दान दक्षिणा देकर पिण्ड छुडाया क्योंकि बिना कुछ लिये वे पीछा छोड़नें वाले नहीं थे।

वहाँ से चलकर हम श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर पहुँच गये। भक्ति भाव से सभी ने कृष्ण जन्म भूमि के दर्शन किये। वहीं महाविद्या देवी के दर्शन किये। वहाँ से धुर्व टीला पर जा पहुँचे। वहाँ छोटे-छोटे बच्चों का भीख माँगना देखकर खल रहा था। जहाँ घ्रुव जैसे बालक ने तप किया हो वहाँ उसी उम्र के बालक भीख माँगें शोभा नहीं देता। देश इस समस्या को जाने कैसे हल कर पायेगा। यह सोचते हुए हम आगे बढ़ गये। हमने आगे मिले कृष्ण कुण्ड पर महाराज जी ने वहाँ का महत्व बतलाते हुए यात्रा की परम्परा के अनुसार संकल्प कराया। महाराज जी की भोजन व्यवस्था वाली टीम वहाँ पहले सें ही मौजूद थी। उन्होंने भोजन बना कर रखा था। हमारें सभी यात्रियों ने वहाँ दोपहर का भोजन किया। वहाँ स्थित के दाऊजी महाराज के मन्दिर के दर्शन के वाद नगरी गाँव कुमुदवन में गंगासागर नामका तीर्थ के दर्शन किये। कपिल मुनी का आश्रम भी यहीं है। इसके बाद सॉन्तुन कुण्ड के दर्शन करके देवकीनन्दन महाराज जी के प्रियाकान्त जू मन्दिर के दर्शन करके सांय 6.30 पर वापस वृन्दावन लौट आये । आज के दिन अमर कंटक से पधारे भगवताचार्य राघवेन्द्राचार्य जी महाराज एवं प्रयागराज से आये संत बालक दास जी साथ रहे। जब भी हम किसी मन्दिर पर पहुँचते वे हमें उसकें वारे में कथा सुनाकर कृतार्थ कर देत। हम यात्रा करें और उस मन्दिर की कथा न जाने तो यात्रा का कोई औचित्य नहीं है।

29.11 19 हम सब चाय नास्ते के बाद साड़े आठ बजे गाडियों में बैठ गये। मेहन्त जी ने चलने का एनाउन्स किया। पाँचों गाडियाँ एक साथ आगे बढ़ने लगीं।यहाँ से चलकर बैष्णवदेवी धाम पहुँच गये। उसके बाद हम राधा जी की ननिहाल मुखराई पहुँच गये। मनीष पंडित हमारी गाड़ी चला रहे थे। वे इसी क्षे.त्र के निवासी हैं। अतः वे हमें प्रत्येक स्थल के वारे में समझाने लगे। यहाँ से राधा कुण्ड एवं ष्याम कुण्ड में आचमन करके ऐटा पेटा में चर्तुभुज रूप में नारायण के दर्शन किये। वहाँ स्थित छीर सागर में आचमन किया।

पारसौली गाँव के चन्द्रमुज मन्दिर में दोपहर का भोजन लिया। उसके वाद चकलेश्वर महादेव के दर्शन किये। कुसुम सरोवर, श्याम ढाक रूप मिड गुलाल कुण्ड और अन्त में गरुण गोविन्द के दर्शनकरके बृन्दावन लारैट आये।


30.11.19 को डीग महल के हनुमान जी के दर्शन किये। यह डीग महल भरतपुर राजस्थन में है। डीग महल के हनुमान जी हकीकी पत्थर के बने हैं। डीग भरतपुर शहर में ही लक्ष्मण मन्दिर बहुत ही प्रसिद्ध है। इस मन्दिर के दर्शन के बाद हम यमनोत्री मन्दिर पर जा पहुँचे। यही गंगा यमुना की धार के चिन्ह पुजारी जी ने दिखलाये। यही इस मन्दिर के दोनों ओर नर नारायण और गणेश पर्वत भी र्हैं। नीचे उतर कर हरिद्वार और लक्ष्मण झूला देखे जा सकते है। नीचे उतर कर आगे बढ़ने पर बूढ़े बद्री बिशाल का मन्दिर उसकें नीचे तप्त कुण्ड में आचमन करके मेहन्त जी ने यहाँ की उपस्थिति का संकल्प कराया। यों यह यात्रा आगे बढ़ी लगभग आधा घन्टे गाडी से चलने के बाद हम केदार नाथ धाम पहुँचे गये। वहाँ गौराी कुण्ड में आचमन के वाद संकल्प की परम्परा है। मेहन्त जी कों यथा योग्य दक्षिणा देकर हमने केदार नाथ की कठिन चढ़ाई चढ़नी शुरू कर दी। आराम आराम से पौन घन्टे में हम ऊपर पहाड़ पर पहुँच गये। वहाँ प्राकृतिक नन्दी के नीचे शिव लिंग है।यही केदार नाथ की सच्ची उपस्थिति का प्रमाण है। यहीं नीचे उतर कर भोजन प्रसाद ग्रहण किया।

अब वहाँ से लौटते हुए इन्द्रसेन पर्वत पर दूध कटोरा भोजन थाली के दर्शन किए। वहाँ के पुजारी जी का मन्दिर के वारे में प्रवचन सवसे आकृषक था उन्होंने कृष्ण का दूध कटोरा और थाली का उपयोग जो बर्णन किया वह आँखों के सामने से हट नहीं रहा है।


इससे आगे कामा सरोवर व कामेश्वर महादेव और आगे विमला देवी मन्दिर एवं विमला देवी कुण्ड पर सकल्प लेकर आगे आदेश्वर कुण्ड एवं आदेष्वर महादेव पर खिचड़ी का प्रसाद प्रहण किया। टेक कदम पर भगवान के चरण चिन्ह अंकित है। उसकें वाद विद्यादेवी मन्दिर के दर्शन किए। कोकिलावन में शनि देव का पूजन किया । यहाँ भी शनी देव की कृपा से मैं भूल भुलइया में पड़ गया। यहाँ भी मैं अपने लोगों से विछुड़ गया। उस मन्दिर के कइ चक्कर लगाने के वाद ही वे मिल पाये।

अब हमरा जत्था आरज के अन्तिम पड़ाव की ओर वढ़ने लगा। घने जंगल के मध्य हम नागाजी कदम खण्ड़ी पहुँच गये। यहाँ कें सांत प्रतिदिन चौरासी कोसा की परिक्रमा करते थे। यहाँ आकर उनकी जटायें पेड़ों की साखाओ में उलझ गई। उन्होंने उन्हें सुलझाने कार बहुत प्रयास किय पर वें नहीं सुलझी। तीन दिन व्यतीत हो गये। एक ब्राह्मण बालक ने आकर कहा बाबा मैं सुलजझघर दूं आपकी लटें । वे बोले- नहीं, आप इन्हें नहीं सुलझायें। इन्हें तो सुलझाना ही है तो राधा जी ही आकर सुलझाये। वहाँ के आचायर्स ने बतलाया कि राधा जी ने आकर हीर उनकी जटायें सुलझाई थी।

मैं उनका यह प्रवचन दत्त र्चित्त होकर सुन रहा था। उसी सामय मुझे मेरी आँखों के सामने उनके काले लटों की आभा सामने आ गई। मैं सोचने लगा खुली आँखों सें यह क्या दिख रहा है! आँखें चौधिया गईं। पुनः नजर डाली तो कहीं कुछ नहीं था। अब महन्त रामकुमार जी का वहाँ से आगे चलने का आदेश सुनाई पड़ा। आदेश सुनकर मैं उठ खड़ा हुआ किन्तु वे कालीं लटें वारम्बार आँखों के सामने सें हट नहीं रहीं थीं। मैं समझ गया , मेरे इष्ट गौरी बाबा की कृपा से इस झाँकी के दर्शन हो सके हैं। निश्चय ही श्रीराधा जी ने कृपा की है। यही सब सोचते हुए हम रधुवर धाम वृन्दावन लौट आये।

1.12.19 की बात हैं। कलिया नाग मन्दिर ,अंजना मन्दिर, प्रिया कुण्ड के दर्शन के वाद हम बरसाना में राधा जी के निवास पर पहुँचने के लिये पहाड़ी पर चढ़ने लगे। वहीं ऊपर राधा मन्दिर के दर्शन के वाद वहाँ से लौटकर नीचे बरसाने के आसपास ,देव कुण्ड एवं ऊँचा गाँव में प्रेम पुष्प भेंटकर परम्परा का निर्वाह किया। प्रेम सरोवर, साकेत वन सरोवर, प्रेम विहारी सरकार, आपेष्वर महादेव, बेन बिन में महा लक्ष्मी जी एवं गोपाल मन्दिर आदि के दर्शन करते हुए वृन्दावन आ गये।


2.12.19 की यात्रा में ब्रह्मा जी के मन्दिर एवं ब्रह्म सरोवर कें दर्शन के वाद गोमती कुण्ड का गुलावी जल देखकर आष्चर्य का ठिकाना न रहा। पुल पार करके भेंट द्वारका, सनी देव मन्दिर से लौटकर मेरी उंगली कार के गेट में फस गई। सनी महिमा का प्रभाव यहाँ भी दिख गया। याद हो आई ग्वालियर जिले के शनी मन्दिर की। मैं वहाँ दर्शन करने के लिये निकला। मन्दिर के सामने अचानक मोटर साइकिल से गिरा था। मेरी पेन्ट बुरी तरह से फट गया थी किन्तु चोट नहीं लगी थी। यहाँ भी उंगली गेट में दबने पर भी पूरी तरह से बच गई थी।

अब हम जय कुण्ड, कालिया नाग, कोटवन में शेषसाई मन्दिर,फालेन में प्रहलाद मन्दिर, पै गाँव खेलनवन रमण विहारी महाराज , चीर धाट सें आगे शेर गढ़। विहार वन में गो सेवा 101 गौरी बाबा के नाम से देकर प्रयागराज के अक्षय बट के दर्शन का आनन्द लिया।

3.12.19 की यात्रा 8.30 बजे शुरु हुई। मानसरोवर में राधारानी के मन्दिर कें दर्शन कें बाद, माल विहारी में राधाजी का विवाह हुआ वहाँ जा पहुँचे। बरगद केी टहनियों ने एक प्रकृतिक मंडप का रूप ग्रहण कर लिया है। बन्दनवार बाँध कर उसे और सजीव बना दिया है। उस प्रकृतिक मंडप ने उस क्षण को पूरी तरह विश्वस्थ कर दिया। वहाँ उपस्थित पण्डा जी के प्रवचनों ने उसे और सजीव कर दिया कि वह यर्थाथ सा लगने लगा।

वंशीवट के दर्शन कें बाद हम लोहावन में पहुँच गये। वहाँ स्थित मूर्ति पर लोहे के पात्र में तेल चढ़ाकर परम्परा का निर्वाह किया। चन्द्रवली मैया के सिद्ध पीठ के दर्शन के बाद हम चिन्ताहरण र्मिन्दर पर जा पहुँचे वहाँ दर्शन के वाद दोपहर का भोजन किया फिर वहाँ से चलकर दाउ जी के दर्शन किये। बंदी आलंदी बन, ब्रह्माड घाट में श्री कृष्ण जी के माटी खाने वाले मन्दिर और आगे चलकर रमण रेती में लोटने का आनंद लेकर, राधा जी की ननिहाल रावल में उनकें बचपन की याद में खो गये। वहाँ स्थापित मूर्ति आज भी आँखों के सामने से हटती नहीं है।


इस तरह ब्रज क्षेत्र के जन जीवन से रू ब रू होते हुए वहाँ की बोली का आनन्द लेते हुए, वहाँ प्रकृतिक सम्पदा एवं लहलहाते खेतों का आनन्द लेते हुए रोज की तरह वृन्दावन लौट आये।

अगले दिन महन्त जी ने सभी यात्रियों की ओर से प्रत्येक की सामर्थ के अनुसार ब्राह्मण भोजन का कार्य क्रम रखा। मैंनें भी अपनी ओर से पाँच ब्राह्मणों का अर्पण, दो साथ रहे गौरी बाबा की ओर से एवं दो पत्नी राम श्री की ओर से एंव एक मेरी ओर से यों पाँच का भाव मेहन्त जी को बतला दिया। उनके पैसे भण्डारे के लिये जमा कर दिये। भोजन बनाने वाले भोजन बनाने लगे। हम सभी लोग सुबह ही ब्राह्मण भोजन से पूर्व बृन्दावन की परिक्रमा कर दस बजे तक आश्रम लौट आये।

संयोग यह रहा कि गौरी बाबा की ओेर से वृन्दावन के प्रसिद्ध संत रसिया बाबा और उनके लधु भ्राता को आमन्त्रित किया गया था। हम सब की ओर से वृन्दावन के ही ब्राह्मणों को आन्त्रित किया गया था।

यथा समय ब्राह्मण भोजन शुरू हो गये। भोजन के वाद उन्हें यात्रियों की ओर सो दक्षिणा भेंट कर दी। उसके वाद हम सभी ने भोजन किया। दो वजे तक हम सब मेहन्त साहब को दक्षिणा देकर निवृत हो गये और ट्रेन की जानकारी लेकर समय से घर के लिये निकल पडे।


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