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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 5

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 5

लेखक – नपेन्द्र शर्मा

इन बच्चों को देखकर अखिल बहुत परेशान हो उठा। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर ये सब चल क्या रहा है? वो सोचने लगा कि

मेघा को गये अभी केवल एक साल ही तो हुआ है फिर ये पूजा..?? लेकिन ये तो लगभग बीस साल की लड़की है!! तो क्या मैं एक झटके में बीस साल आगे चला गया..?

कहीं आने वाले भविष्य में मेरी बेटी की जान को कोई खतरा तो होने वाला नहीं है, जिसे ये मायावी किताब अपनी शक्ति से मुझे दिखा रही है..?" अखिल का दिमाग चकरा रहा था वह गहरी सोच में डूब गया।

पूजा और अनुज भी ऐसे बैठे थे मानो वो किसी सदमे मे हों, अखिल की तरह पूजा के मन मे भी सवालों के बवंडर उमड़ रहे थे तभी अचानक बिजली की कौंध से सब चौंक गये। अनुज ने खिड़की से बाहर की ओर देखा तो वो और भी परेशान होकर बोला “ ये मौसम अचानक इतना खराब कैसे हो गया, जब हम आये थे तब तो सब कुछ ठीक ही था।”

ये सुनकर अखिल और पूजा ने अनुज की बात का कोई जवाब नही दिया।

अखिल अभी तक घटित होने वाली घटनाओं को आपस में जोड़ने की कोशिश करने लगा।

उसका दिमाग तेज़ी से शुरू से अब तक हुए सभी हादसों को रिवाइंड करके किसी फिल्म के फ्लैश बैक की तरह घुमा रहा था।

“ मैं तो उत्कर्ष के पास जा रहा था? फिर मेरी गाड़ी इस जंगल में इसी हवेली के पास…. जैसे कोई चाहता था कि मैं इस हवेली में आऊँ…..!! और अब ये बच्चे...जैसे कोई शक्ति इन बच्चों को भी यहाँ खींच लाई है…!

ये पूजा.. मेरी और मेघा की बेटी…?? तो क्या मेघा हवेली छोड़कर जाने से पहले प्रेग्नेंट थी…? क्या सच में पूजा मेरी और मेघा की बेटी है.. लेकिन मेघा ने मुझे बताया क्यों नहीं था कि वह प्रेग्नेंट है... मै उसे कैसे भी कर के रोक लेता? अब जो भी हो मुझे इन बच्चों को इस हवेली के शापित तन्त्र में फँसने से बचाना ही होगा… मुझे मेरी बेटी को इस मुसीबत में पड़ने से रोकना ही होगा, मुझे मेरे बाप होने का फर्ज निभाना ही होगा….!! यही सब विचार उसके मन मे आने लगे।

अचानक उसके दिमाग ने झटका खाया, "वह किताब….उस शैतानी किताब से शायद कुछ पता चल सके, आखिरकार वो भी तो इस डरावने हवेली से जुडी हुई है... कहाँ है वह किताब….?" अखिल तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ लपका, अन्धेरे मे उसे कुछ ठीक से दिखाई नही दे रहा था लेकिन अचानक उसे ठोकर लगी और वह लुढ़कता हुआ किसी ढलान पर फिसलने लगा। उसे समझ में ही नहीं आया कि अचानक यह ढलान कहाँ से आ गया।

अखिल देर तक उस ढलान पर लुढ़कता चला गया, वो लाख सम्भलने पर भी खुद को लुढ़कने से रोक नहीं पा रहा था।

अखिल का चोटिल शरीर इस ढलान की यात्रा में और ज्यादा चोट खा चुका था जिससे वह अपनी चेतना बचाकर ना रख सका और बेहोश हो गया।

अखिल को जब होश आया तो उसने खुद को उसी मैदान में पाया जहाँ शैतान की मूर्ति के पास वे अजीब से घिनौने लोग तन्त्र किर्याएँ कर रहे थे।

जिस महिला ने अपने बच्चे की हत्या करने की कोशिश की थी, उसे जबरन खींचकर इन लोगों ने उस भयावह मूर्ति के आगे बिठा रखा था। उसके शरीर के सभी कपड़े गायब थे।

अपने चेहरों पर जानवरों की खाल पहने हुये उन काले सायों ने उसे मूर्ति के सामने घुटनों के बल बिठाया हुआ था और उसके हाथों को उसके कन्धों पर लकड़ी का एक लट्ठा रखकर सीधे करके बाँधा गया था। जिसके खिंचाव से उसका वक्षःस्थल और आगे उभर आया था।

उस औरत की पीठ मूर्ति के चेहरे की ओर थी और चेहरा सामने अग्निकुण्ड की ओर।

उसके सामने किसी हवनकुण्ड की तरह आग जल रही थी। उस आग की लपटें बहुत तेज दहक रही थीं।

शैतानों का मुखिया मुँह से अजीब सी "भम्म्म्म!!! बडम!!मम!म.. भम!!मम.म!!!" की आवाज निकालता हुआ आगे बढ़ा और उसने एक मुट्ठी भर कर कुछ बस्तु तेजी से हवनकुण्ड में पटकी जिससे हवन कुंड की आग किसी साँप की तरह उसपर लपकी और एक नीली रोशनी की लहर तेजी से उठकर उस मूर्ति के मुँह में समा गई।

अचानक अखिल की नज़र मूर्ति की तरफ घूम गयी। अब उस मूर्ति की बड़ी-बड़ी आँखें खुलकर इधर-उधर हिल रही थीं मानों वह कोई मूर्ति न होकर जीता जागता शैतान हो और इनके इस अनुष्ठान से खुश हो रहा हो।

ये दृश्य देखकर अखिल बहुत घबरा गया, उसे लगा कि, "इन लोगों का ज़रूर उस हवेली और किताब से कुछ सम्बन्ध है, ये लोग इस शैतान को बलि देने के लिए इतने लोगों को इस मैदान में पकड़ कर लाये हैं, क्या इन्हे बचाने वाला कोई नही.....और वो हवेली..... ।”

इन सब बातों को सोचते हुये अखिल को पूजा और अनुज का खयाल आया तो वो सहम उठा । “ अहह!! मेरी बेटी.. उफ्फ्फ!! कहीं ये लोग उसकी भी तो बलि…. नहीं!! नहीं! मुझे ये सब रोकना होगा.. मुझे इनकी वास्तविकता पता करनी होगी…, आखिर कुछ तो रहस्य है मेरे वर्तमान और मेरे भविष्य यानी मेरी बेटी के एक साथ उस हवेली में होने में।”

अखिल अभी सोच ही रहा था तभी शैतानों के मुखिया ने एक अजीब सी शक्ल वाले अपने साथी को कुछ इशारा किया जिसके माथे में एक मात्र आँख थी जो बिल्कुल सफेद थी जिसके बीच में तिल मात्र का एक लाल सुर्ख धब्बा था, जो किसी बल्ब की तरह रोशन हो रहा था । उसके हाथों का माँस गायब था, उसके हाथ में हड्डियों की सफेद उँगलियाँ दूर से ही दिख रहीं थीं।

उस शैतान के साथी ने अग्निकुण्ड के पास जल्दी से एक ऊँची लकड़ी गाढ़ दी जिसमें ऊपर लगे कुंदे में एक रस्सी डालकर उसने उस महिला के बच्चे को पैरों से बांधकर उल्टा लटका दिया।

बच्चे का सर बिल्कुल आग की लपटों के ऊपर था। बच्चा आग की झुलस से परेशान होकर तेज आवाज में चीखकर रो रहा था।

उसकी माँ चुपचाप बस आँसू बहा रही थी।

वह अपने बच्चे की तरफ देख नहीं पा रही थी, उसने नज़रें झुका रखी थीं तभी वह शैतानों का मुखिया आगे बढ़ा और उसने अपना भेड़ के मुँह वाला मुखोटा उलट दिया।

अखिल को उसकी सूरत देखकर एक बार को तो उबकाई होने को आ गयी।

उसका चेहरा ऐसा था जैसे मधुमक्खी के छत्ते को जगह-जगह से खोद दिया गया हो।

उसकी जली हुई काली खाल गर्दन तक लटक रही थी और चमड़ी उधड़ने से उसके चेहरे पर लाल माँस का लोथड़ा सा रखा हुआ दिखायी दे रहा था। उसकी बिल्कुल लाल सुर्ख बड़ी-बड़ी आँखें, हड्डी के गड्ढों में फँसी हुई थीं और पीले लंबे गन्दे दाँत आड़े-टेढ़े होकर एक दूसरे में फंसे हुए थे जैसे किसी मांसाहारी जानवर के होते हैं।

उसने आगे बढ़कर उस बच्चे के सिर में बिल्कुल कपाल वाली जगह पर जिसे ब्रह्मरन्ध्र भी कहते हैं, अपने ख़ंजर की नोक से एक छेद कर दिया जिसमें से बच्चे का खून बून्द-बून्द करके निकलने लगा और उस हवनकुण्ड जैसी अग्नि में गिरने लगा।

हर गिरती बूँद के साथ ही उस शैतान की मूर्ति की दो भागों वाली जीभ ऐसे लपलपाने लगी जैसे वह उस खून का स्वाद ले रहा हो। उस शैतान देवता की आँखें भी पूरी खुली हुई थीं।

अब सारे शैतान के पुजारी उस अग्निकुण्ड के चारों ओर अपने घुटनों पर बैठ गए।

उनके मुखिया तांत्रिक ने अपनी शक्तियों से पास में रखी एक बडी किताब को खोला।

किताब खुलते ही बड़ी जोर की बिजली भयानक गर्जना के साथ चमक उठी, मानों वातावरण भी इन शैतानों के इस पाशविक अनुष्ठान से भयभीत हो रहा हो।

उस बिजली की तेज रौशनी में अखिल की नजरें पल भर को उस किताब पर पड़ी जो उन शैतानों के मुखिया के पास थी। अखिल उसे देखकर बुरी तरह चौंक गया- यह किताब हू-ब-हू उस हवेली वाली शैतानी किताब जैसी ही लग रही थी।

दोनों किताबों की बनाबट में रत्तीभर का भी फर्क नहीं था।

अखिल अभी अपने दिमाग पर जोर डाल कर इस रहस्य के बारे में सोच ही रहा था तभी उसने अपने आस-पास भेड़ियों के गुर्राने की कान फाड़ती हुई आवाज़ सुनी।

अखिल ने चोंककर देखा, अभी तक जिस आसमान में काला अँधेरा पसरा हुआ था अब उसकी जगह पूर्णमासी का पूरा चाँद चमक रहा था।

उस हल्की चाँदनी में अखिल को अब मैदान में सब कुछ साफ दिखाई दे रहा था। वह शैतान तांत्रिक उस किताब से कोई मन्त्र पढ़ कर बच्चे के खून की हर बूँद के साथ ही आग में कुछ फेंक रहा था, मानों हवन कर रहा हो।

भेड़ियों का शोर बढ़ता जा रहा था मानों वे भी शैतान के उपासक हों और इसके जागने की खुशी मना रहे हों। उनकी उस भयानक आवाज़ से डर कर अखिल अंदर तक काँप रहा था। उसका मन कह रहा था कि "भाग चल यहाँ से अखिल", लेकिन दिमाग उसे रुक कर हालात को समझने पर मज़बूर कर रहा था, वो बोलने के लिये अपने होंठ खोलता पर उसके होंठ सिले से महसूस हो रहे थे।

"इसके पास भी वैसी ही किताब…? तो क्या दोनों किताबों का आपस में कोई सम्बन्ध है…? कहीं दोनों किताबें एक ही तो नहीं?" उसका दिमाग तेज़ी से कड़ियाँ जोड़ने में लगा हुआ था।

"नहीं....नहीं...!!! ये कैसे हो सकता है… नहीं... नहीं...!!! यहां कुछ भी हो सकता है, हो ना हो इस किताब से ये इस शैतानों के देवता को जगा रहे हैं..!!" अखिल के दिमाग ने झटका खाया।

अखिल फिर मैदान में नज़रें जमा कर वहाँ की कार्यवाही देखने लगा- अग्निकुण्ड के ऊपर लटका बच्चा अभी भी अपने हाथ पाँव फेंक रहा था और रोकर चीख भी रहा था लेकिन भेड़ियों के भयानक शोर में अखिल मैदान की कोई भी आवाज नहीं सुन पा रहा था। भेड़ियों की आवाज़ हर पल उसे अपने पास आती हुई महसूस ही रही थी मानों वे भेड़िये उसके कान में घुसकर चिल्ला रहे हों।

हवन की हर आहुति के साथ ही शैतान देवता की हरकत बढ़ रही थीं अब उसकी जीभ किसी प्यासे भेड़िये की तरह लपलपा रही थी जो बिल्कुल किसी दो साँपों जैसी थी।

अचानक मूर्ति के दाएँ हाथ की तीन उँगलियों में भी हलचल होने लगी। उसकी बड़ी-बड़ी चमकती हुई आँखे मानों खुशी में नाच रही थीं।

इधर शैतान तांत्रिक ने किताब से कोई मन्त्र पढ़कर हवन में मुठ्ठी भर सामग्री फेंकी और उधर उस मूर्ति का हाथ जैसे जिंदा हो गया। उसने आगे बढ़कर उस महिला की कमर पर लिपटा एक मात्र धोती का टुकड़ा अपनी भद्दी उँगलियों के लंबे मुड़े हुए नाखूनों में फँसा कर खींच दिया।

उसी के साथ ही वह महिला मानों नींद से जागी हो…!! वह एक झटके से उठकर खड़ी हो गयी और मुँह से बड़े जोर की चीख निकालती हुई उछली ।

उसने "ईईईईईईईईई!!!...आआआ!!..हहह!! स.स.स..हम्म!!!"

की बहुत भयानक आवाज की और पता नहीं कैसे, लेकिन उसके हाथों में बंधा हुआ वह डंडा "खट! कड़क!!…!" की तेज आवाज के साथ ही टूट गया।

अब वह बहुत तेज़ हुंकार भरती हुई उस अग्निकुण्ड की तरफ दौड़ी और किताब को शैतान के हाथ से गिराते हुए छपट्टा मारकर अपने बच्चे को उस बल्ली पर से उतार लिया।

ये सब कुछ उसने इतनी तेजी से किया कि कोई कुछ समझ ना सका।

जैसे ही वह औरत आग के बिल्कुल पास आई उसका पूरा शरीर उसका चेहरा बिल्कुल साफ-साफ दिखाई पड़ा।

उसे देखकर अखिल एक बार फिर ऐसे चौंक पड़ा मानों उसके पैर में किसी जहरीले बिच्छू ने तेज़ डंक मार दिया हो।

वह औरत बिल्कुल मेघा के जैसी ही दिख रही थी, पर मेघा ऐसी वेषभूषा मे यहां कैसे ...?? नहीं ... नहीं ये जरूर मेरा भ्रम है।

जैसे ही शैतान और उसके साथी उस औरत की ओर झपटे उन्होने देखा कि वो किताब आग में जा गिरी, इतनी भारी किताब उस औरत ने कैसे फेंकी ये किसी की समझ मे नही आया।

सारे शैतान अब औरत को छोड़कर किताब की तरफ लपके और इसी एक पल का फायदा उठाकर वह औरत झपटकर अखिल के पास आई और बच्चे को उसकी और उछालती हुई बोली, "इसे लेकर भाग जाओ, मैं इन लोगों का ध्यान अपने पीछे लगाती हूँ।

ये लोग पहले ही दो बच्चों की बलि देकर उस शैतान में थोड़ी बहुत जान डाल चुके हैं।

जल्दी से भागो इससे पहले की तुम्हे कोई देख ले", कहकर वह मेघा की शक्ल वाली औरत बच्चे को अखिल की ओर हवा मे उछाल के फेंकती हुई तेज़ी से जँगल की ओर भाग गयी।

अखिल जल्दी से झाड़ियों की ओट में हो गया।

उसने देखा कि कुछ लोग औरत के पीछे भाग रहे हैं लेकिन उसकी तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया वो समझ चुका था कि वो इन लोगों मे से किसी को भी दिखाई नही दे रहा था। उसने उस बच्चे को देखा तो उसकी आत्मा कचोड़ गयी क्युं कि बच्चा मर चुका था। अखिल फूट फूट कर रोने लगा और उस बच्चे की लाश हाँथों मे लिये यहां वहां भटकने लगा, पर उसे वो हवेली कहीं नही दिख रही थी, तभी उसे पूजा का खयाल आया तो वो और घबरा गया।

अखिल धीरे-धीरे सावधानी से अनुमान लगाते हुए छुपते छुपाते एक रास्ते पर जाने लगा, तभी उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक आदमी उसे घूर कर देख रहा था जैसे वो अखिल को कच्चा खा जायेगा। उसने दिमाग पर जोर डाला तो उसे याद आया कि ये तो वही आदमी है जो मेरी और मेघा की शादी के वक़्त उसके अतीत मे दिखा था।

भेड़ियों की आवाज अब उसके कानों में ऐसी लग रही थी जैसे वे जोर-जोर से रो रहे हों। अखिल उस आदमी को नजर अन्दाज करते हुये भागने लगा। अचानक अँधेरे में दौड़ते हुए अखिल को ठोकर लगी और वह एक जोर की चीख के साथ फिर गिर गया।

गिरते-गिरते भी अखिल ने बच्चे की लाश को अपने सीने में मजबूती से छिपाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी आँखों को बंद होने से रोक ना सका।

जब अखिल की आंख खुली तो उसने अपने आप को उसी हवेली मे पाया, उसे अचानक ऐसा लगा जैसे वह उस किताब से बाहर निकला हो।

उसने अपने हाथों को देखा, अब उसके हाथ भी खाली थे ।

अखिल हैरानी से इधर उधर देखने लगा और बोला "अरे!!! बच्चा कहाँ गया? और मेघा??.. हे प्रभु!! ये कैसी माया है?? क्या सच में वह मेघा ही थी?? और .... और मेरी बच्ची..मेरी पूजा? कहाँ है मेरी पूजा..? मैं उसे कुछ नहीं होने दूँगा!!" अखिल ने अचानक अपने सर को जोर से झटका दिया और अपनी आँखें खोल दीं।

वह अभी भी उसी रहस्यमयी हवेली में था और बाहर तेज़ी से बारिश हो रही थी जिसके बीच-बीच में आसमानी बिजली भी कौंध कौंध कर उसका खून सुखा रही थी।

“ लेकिन मैदान में तो कोई बारिश नहीं हो रही थी तो क्या मैं अपने पिछले समय में चला गया था? कुछ तो है यहाँ जो मुझे भूत, भविष्य, और वर्तमान में गति करवा रहा है।” अखिल परेशान होकर खुद से ही सवाल-जवाब कर रहा था लेकिन फिर भी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

उसे लग रहा था कि ये तांत्रिक जो भी हैं इसका उनके साथ कोई ना कोई सम्बन्ध जरूर है पर वो लोग मुझसे क्या चाहते हैं, हे भगवान बस जल्दी से सुबह हो फिर हमे कैसे भी करके यहां से निकलना होगा।

लेकिन अगर मै यहां से कभी भी निकल न पाया तो....और पूजा....!!!” । ये सोचकर ही वो काँप गया।

"नहीं!! मैं उन्हें ऐसा नहीं करने दूँगा", अखिल कुछ जोर से चिल्लाया।

अखिल की चीख सुनकर पूजा चौंककर बोली, “ अनुज देखो ये तो डैड की चीख है! लेकिन ये ऐसे क्यों चिल्लाये जैसे किसी मुसीबत में हों? चलो ना अनुज चलकर देखते हैं”।

अनुज ने धीरे से कहा "शश्श....:!! चुप रहो तुम पूजा, तुम्हे पता है ना हम कितनी बड़ी मुसीबत में फंसे हुए हैं, ऐसे में भी तुम्हे अपने डैड की पडी है, वो तुम्हारे डैड नही हो सकते, मुझे तो ये इस होंटेड हवेली का कोई भूत लग रहा है, इसलिये यहीं छुपी रहो,तुमंने देखा नही कि वो कैसे हमसे बात करते करते ना जाने कहां चले गये ।”

पूजा ने तपाक से जवाब दिया “ नही ...मुझे पूरा भरोसा है कि वो मेरे डैड ही हैं अगर वो कोई भूत होते तो हमे नुकसान पहुंचाते, हमे देखना चाहिये चलकर।”

अनुज आवाज को दबाते हुये बोला “तुम समझती क्यूं नही हो, हमें बहुत सावधान रहकर ये कयामत की रात काटनी है, मैं तो कहता हूँ कि हमें खुद को किसी सुरक्षित कमरे में बंद करके सुबह होने और बारिश रुकने का इंतज़ार करना चाहिए।”

“ शट अप अनुज!!! मुझे तो लगता है यहाँ कुछ ऐसा है जो हमें टाइम ट्रेवल करवा रहा है, देखते नहीं डैड कितने यंग दिख रहे थे? जैसे बीस साल पहले की अपनी फोटो में दिखते हैं जो मैं नानी के घर से लाई थी।

मुझे तो लगता है डैड यहाँ समय चक्र में फँस गए और इसीलिए घर वापस नहीं लौटे और नानी हमेशा डैड की बुराई करती रहती हैं इसीलिये मैं उनके पास नही रहती, अब किस्मत ने हमें उन्हें बापस ले जाने के लिए भेजा है जिसमें तुम मेरा साथ दोगे....बस” !!! पूजा ने धीमी आवाज में लेकिन जोर देते हुए कहा।

ये कहकर पूजा अखिल को देखने उस कमरे से बाहर आ गई। जिसे देखकर अखिल की जान मे जान आई।