Muskurahat ki maut..…. - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

मुस्कुराहट की मौत..... - 5

कुँवर अपना बलिदान दे कर अपने गाँव को उस शैतान विमलराय से बचाना चाहती है। पर उसके पिताजी भूपतदेव इस बात से हिचकिचाते है।

" ये क्या कर रही हो बेटा..? " - भूपतदेव कुँवर से पूछते है।

" कृत्स्नं को फोन लगा रही हूँ। "

मोबाइल की रिंग बजती है....

" हेल्लो..." - कृत्स्नं फ़ोन उठाके बोलता है।

" हेल्लो... तुम किसी और से सदी कर लो। मुजे तुमसे कोई रिश्ता नही रखना। " - कुँवर इतना बोल कर फ़ोन रख देती है और भूपतदेव से कहने लगी-

" बापू चलिए अग्निसमाधि की तैयारी करनी है। कल पूनम की रात है। और उस विमलराय की ज़िंदगी की आख़री रात होगी। "

" एक बार और सोच लो बेटा। हम कोई दूसरा रास्ता निकाल लेंगे। "

" नहीं बापू..! और कोई रास्ता नही है। जो मेने देखा और जो सपने में देखी घटना मुजे याद है उसके मुताबिक ये समाधि मुजे ही लेनी है। "

" कुँवर तेरी मुस्कान के लिए हमने हर दुःख सहन किया है। और तू ही तो हमारी मुस्कुराहट है। तेरे बाद मैं कैसे जीऊँगा..? "

" बापू..! एक आपकी मुस्कुराहट के मरने से पूरे गाँव की मुस्कुराहट लौट कर आएगी और वही मैं भी जिंदा रहूँगी। "

इस ओर पिता भूपतदेव बेटी कुँवर के अग्निसमाधि के फ़ैसले से बहुत आहत हो चुके है। और दूसरी ओर कृत्स्नं कुँवर की बात सुनकर दुःखी हो गया। और सोचने लगा कि " कुँवर ऐसा क्यों बोल रही थी। "

कुँवर के ऐसे बर्ताव से कृत्स्नं उसे बेवफ़ा समझने लगा। और गुस्से में उसे बुरा भला बोलने लगा। कुछ देर तक गुस्सा रहा और थोड़ी देर बाद गुस्सा शांत होते ही उसे जैसे एक अहेसास हुआ कि कुँवर किसी मुसीबत है या उसके बापू ने हमारी शादी को अपनाया नही होगा।

ऐसे ख़यालो से गुजरता हुआ कृत्स्नं अपनी गाड़ी ले कर गाँव की ओर निकल पड़ा। रात को अँधेरे में ही वो गाँव पहोंच तो गया पर कुँवर कहा होगी ये वो जानता नही था। इसलिए वो पूरी रात गाँव में घूमता रहा और इस दौरान उसने गाँव की जो हालत देखी उससे उसका दिल काँप उठा। वो ये सब देखकर अवाक हो गया और वो चलते हुए माँ भवानी के मंदिर तक पहोंचा और वही बैठ गया। गाँव के बारे में सोचते हुए कब सो गया उसे पता ही नही चला।

सुबह जब आँख खुली और जो उसने देखा उससे वो और भी चोक गया। मंदिर के पिछले हिस्से में एक चिता थी जिसपे एक लडक़ी चढ़ने जा रही थी। और कुछ देर में वो लडक़ी चिता पर बैठ भी गई। और उसके कहने पर एक आदमी उसे आग लगाने जा रहा था।

" रुक जाओ। ये क्या कर रहे हो आप। किसी जिंदा इंसान की जान लेते आपको शर्म नही आती...? " - कृत्स्नं उस लड़की को देखे बिना ही आवाज़ लगाई और चिता को जलाने से रोका। और नज़दीक आया। चिता पर कुँवर को बैठा देखकर एकसाथ बहोत सारे सवाल पूछने लगता है।

" ये सब क्या है कुँवर..? क्यूँ तुम ख़ुद की जान दे रही हो...? मुझसे कोई भूल हुई हो तो बताओ लेकिन इस तरह ख़ुदकुशी करने का क्या मतलब है..? क्यूँ मुझसे दूर जाना चाहती हो.....

" कृत्स्नं.. कृत्स्नं..! शांत हो जाओ। तुम्हारी कोई गलती नही है। और ना ही मैं ख़ुदकुशी कर रही हूँ। मैं अग्निसमाधि ले रही हूँ। जिससे इस गाँव को उस शैतान विमलराय से बचाया जा सके। इस अग्निसमाधि के बाद मेरी अश्थिओं के किसी एक नोकीले भाग से उस विमलराय पर आघात करते ही उसकी मौत हो जाएगी। ये ही नियति का लिखा है। "

" कैसी नियति..? अगर वो अस्थि से मर सकता है तो ये समाधि मैं दूँगा उससे इस गाँव को बचा लेना। पर तुम इस तरह मत जाओ हमें छोड़कर। तुम्हारे बाद तुम्हारे बापू का कौन होगा ये सोचा कभी..? "

" अगर कोई भी समाधि लेकर उस विमलराय को मार सकता तो आज तक उसका कहेर इस गाँव पर नही छाया होता कृत्स्नं..! "

" मतलब "

" उसकी मौत किसी ऐसी लड़की के अस्थि से हो सकती है जिसकी शादी हुई है पर शादीसुदा ज़िंदगी की शुरुआत ही नही हुई। मतलब शादीशुदा कुँवारी लड़की की अस्थि ही उसे मार सकती है। "

" ऐसा किसने कह दिया तुमसे..? ऐसा कुछ नही होता। ये किस जमाने की बात रही हो..? "

" कृत्स्नं ये सच है। मैं कल जब बेहोश हुई थी तब मैंने एक ऐसी दुनियाँ देखी जहा यही सब हो रहा था। और विमलराय को शाप मिला है की उसकी मौत कुँवारी सुहागन लड़की की अस्थि ही मारेगी। "

" कुँवर ऐसा कुछ नही होता। "

कृत्स्नं को अगले जन्म और शाप वरदान जैसी बातों पर विश्वास नहीं था। इसलिए कुँवर शुरू से सारी बातें बताती है। और कृत्स्नं को मनाने की कोशिश करती है। पर कृत्स्नं मानता ही नही। इसलिए कुँवर अपनी खुशियों को कुर्बान कर और गाँव की खुशी के लिए कृत्स्नं को अपनी सौगंध देती है।

" तुम्हें हमारे प्यार की कसम। गर ये बलिदान मैंने दिया तो वादा रहा कि अगले जन्म में मैं जल्द ही तुमसे मिलने आऊँगी। क्योंकि मैंने ये जन्म उस हैवान का खात्मा करने लिया है। "

" ये कैसे कह सकती हो ? "

" क्योंकि वो जो मैंने सपना देखा वो सपना नही बल्कि हक़ीक़त थी। मैंने महसूस किया है वो सब। "

कृत्स्नं ख़ुद को समजा नही पाता। पर कुँवर की दी हुई कसम की वजह से वो कुँवर को रोक नही पाया। पर उसने विमलराय को मारने की कसम खाई। की कुँवर को उसकी वजह से अपना बलिदान देना पड़ रहा है।

इसलिए कृत्सनं विमलराय की हवेली की ओर दौड़ पड़ा और विमलराय को बाहर से ही बुलाने लगा।

" विमलराय... बाहर निकलो। आज तुम्हारी वजह से एक मासूम की ज़िंदगी दव प्र लग गई। तुझे जिंदा रहने का कोई हक़ नहीं है।"

कृत्सनं की आवाज़ सुनकर विमलराय बाहर आया और पूछा...

" कौन हो तुम..? और तुम्हारी इतनी हिम्मत की विमलराय के घर के बाहर आकर धमका रहा है..! " - विमलराय भी गुस्से में आकर बोलने लगा।

कृत्स्नं अपना आपा खो कर विमलराय पर हमला बोल दिया। दोनों के बीच जानलेवा हमले होने लगे। पर कृत्स्नं विमलराय को किसी भी तरह मार नही पा रहा था। उसका हर वार खाली जा रहा था। और तो और वो ख़ुद उस लड़ाई में हारता हुआ नजर आ रहा था।

इस ओर कुँवर ने चिता में अग्निसमाधि ले कर अपना बलिदान दे दिया। उसके पिता भूपतदेव ने अपनी ही बेटी की अस्थियों को इकट्ठा कर के विमलराय को हराने गए हुए अपने जमाई कृत्स्नं की मदद के लिए दौड़ गए। वहा पहोचते ही देखा कि कृत्स्नं जमीन पर गिरा हुआ था। उसके सर से खून बहे जा रहा था। उसे उठाने की बोहोत कोशिशों के बाद भी कृत्स्नं उठ नही पाया। आख़िर में भूपतदेव ने उसे कहा...

" तुम्हे मेरी बेटी कुँवर की कसम है कृत्स्नं उठो और इस विमलराय को ख़त्म कर दो। "

इतना सुनते ही कृत्स्नं को होश आने लगा। उसे अपनी कुँवर के बलिदान की याद आने लगी। उसके सामने जैसे कुँवर जिंदा हो कर कह रही है...

" कृत्स्नं..! मेरे बलिदान को व्यर्थ ना जाने देना। तुम्हे हमारे प्यार की कसम। "

ये सुनकर कृत्स्नं में हिम्मत बढ़ने लगी और वो उठा उस विमलराय को ख़त्म करने दौड़ पड़ा। पर इस बार भी उसकी हिम्मत टूटने लगी।

" कृत्स्नं ये लो इस अस्थि से उस पर वार करो। वो शैतान जरूर मर जायेगा। " - भूपतदेव अस्थि का टुकड़ा देते हुए कहते है।

कृत्स्नं अस्थि लेकर उस शैतान पर वार करता है । और वो शैतान एक ही वार में ख़त्म हो जाता है। ये देख कर उसे अपनी कुँवर की कही हर बात पर विश्वास हो जाता है। और वो कुँवर की याद में चिल्ला कर रोने लगता है। वही कुँवर की आत्मा उसे नज़र आती है।

" मैं तुम्हे छोड़कर कही नही गई हूँ। तुम्हारे दिल में हमेंशा जिंदा रहूँगी। मैं अगले जन्म में तुम्हारा इंतज़ार करूँगी। " - कुँवर

पूरे गाँव मे खुशियाँ छा गई। हर कोई ख़ुशी से जूम उठा। विमलराय के केहर से सबको आज़ादी मिल गई। और कृत्स्नं और भूपतदेव के जीवन मे अँधेरा छा गया। एक कुँवर ही थी जो उन दोनों की जिंदगी का सहारा थी। कुँवर ही उनकी मुस्कुराहट थी। और उनकी मुस्कुराहट औरों की ख़ुशियों के ख़ातिर मौत को गले लगा बैठी।

इस तरह मुस्कुराहट की मौत से और लोगो के जीवन मे उजाला छा गया।

★समाप्त★