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नोटिस

कहानी—

नोटिस

आर. एन. सुनगरिया,

लगभग पाँच साल पूर्व अनापेक्षित वाद-विवाद जैसी वार्ता द्वारा वास्‍तविक मंशा, स्‍वार्थपरता एवं स्‍वजीवीपन का आभास हो गया था। तभी से परस्‍पर सम्‍वाद लगभग बन्‍द है।

परिवार में सामान्‍य रोजमर्रा के कार्यकलापों में भी विपरीत बात-व्‍यवहार पर यथासम्‍भव आगाह करता रहा, समयानुसार बहु-बेटे के व्‍यवहार में कोई सभ्‍यता के आसार नज़र नहीं आये। उनकी असलियत उजागर होती रही, उन्‍हें कोई फील तक नहीं लगातार मगरूरता, बद्तमीजी, बददिमागी व स्‍वच्‍छन्‍दता निर्भयपूर्वक बढ़ती गई। जो परिवार की परम्‍परा के प्रतिकूल थी।

बहु-बेटे ने अपना गोपनीय ऐजेन्‍डा निर्धारित कर रखा है। सारे रिश्‍ते-नातों को तिलांजलि देकर अपनी मौज-मस्ति पर केन्द्रित कर लिया है। इसके अलावा सामाजिक सामान्‍य शिष्‍टाचार, संस्‍कार, मर्यादा, व्‍यवहार कुशलता, आदर-सम्‍मान, आवक-जावक की सूचना इत्‍यादि की पूर्णरूप से अवहेल्ना जारी है। जो हर दृष्टि से असहनीय व असुविधाजनक है।

बहु-बेटे के एैसे ढर्रे की कार्यप्रणाली का दुष्‍प्रभाव यह देखने को मिल रहा है कि सामाजिक प्रतिष्‍ठा, पारिवारिक एकता, साथ ही कारोबारिक छबि धूमिल होने लगी। जिससे आर्थिक क्षति के साथ अन्‍य प्रकार की शाख पर भी विपरीत असर हुआ। अपूर्णनीय!

बहु-बेटे की असामान्‍य कार्यशैली है कि आँखें दिखाओ, डरा धमका कर क्रोधित होकर तोड़-फोड़ कर दो। भयभीत करके सम्‍पूर्ण सुविधाओं का निर्लज्‍जतापूर्वक नि:शुल्‍क आनन्‍द उठाओ तथा अपनी कमाई गॉंठ में सहेजकर रखो। शेष सदस्‍यों की जबान बन्‍द। उनके आगे विकल्‍प है—सहमकर सहन करो! एहसान, शिष्‍टाचार, सम्‍बन्‍ध कर्त्तव्‍य एवं सबकुछ भूलकर मस्‍त रहो।

इस तरह तनावपूर्ण, भयग्रस्‍त माहौल में बच्‍चे के विकास-शिक्षा पर विपरीत प्रभाव हो रहा है। लक्षण देखे जा सकते हैं, स्‍थायीरूप से बैचेनी व्‍याप्‍त है।

सम्‍भवत: अब कोई रिश्‍ता, कोई प्रीत, कोई स्‍नेह, कोई कर्त्तव्‍य, कोई अधिकार, कोई सम्‍वेदना, कोई अपनापन, इत्‍यादि शेष नहीं है।

बेटे ने अब तक अपना कर्त्तव्‍य दायित्‍व समझकर, किसी भी तरह की कोई व्‍यक्गित स्‍तर पर अपने कन्‍धों पर कैसी भी जिम्‍मेदारी नहीं निभाई है; ना ही भविष्‍य में निवाहने का कोई आश्‍वासन दिया। उम्‍मीद बान्‍धे रखना निर्मूल है।

अत: तुम्‍हें आगाह किया जाता है कि अपना ठौर ठिकाना कहीं और ढूँढ लो। एक माह की समय-सीमा दी जाती है।

तत्‍कालिक परिस्थिति अनुसार समय-सीमा घटाई-बढ़ाई जा सकती है।

यह विकल्‍प दोनों पक्षों के अमन-चेन शुकून सुविधा एवं सुखद भविष्‍य के लिये आवश्‍यक है।

जब संयुक्‍त परिवार में ताल-मेल नहीं बैठ पा रहा है या फिर नहीं बैठा पा रहे हैं अथवा मेल-जोल, प्रीत-प्‍यार नहीं बढ़ाना चाहते हैं। विभाजन का ठीकरा किसी और के सर फोड़ना चाहते हैं। जब्कि जुदा होना स्‍वयं की इच्‍छा हो, मगर लोकलाज, पर-निन्‍दा से बचना भी जरूरी लगता है, तो कुछ ऐसा वातावरण निर्मित कर दो कि सारा दोष सामने वालों पर स्‍वभाविक रूप से थोप दिया। और अपने को मन मॉंगी मुराद मिल जाये। खुश।

बस अब क्‍या है। आप दूध के धुले माने जाओगे; आपकी साजिश या चालाकी कोई समझ नहीं पायेगा।

आप अपना ठोर-ठिकाना अपनी मनपसन्‍द, प्रत्‍येक्ष-अप्रत्‍येक्ष किसी भी प्रकार के अंकुश का झन्‍झट ही खत्‍म!

जब चाहो, जैसा चाहो रोजमर्रा के कार्यक्रम सम्‍पन्‍न करो। किसी के भी टोंका-टाकी की कोई सम्‍भावना ही नहीं। सम्‍पूर्ण वन्दिशों से मुक्‍त।

अत्‍याधुनिक लाइफ स्‍टायल को अपने-आप में ढालकर स्‍वतंत्र रूप से अपनी छबि बनाने का पूरा अवसर। यानी इच्‍छा के अनुसार कस्‍टूम की च्‍वाइस। खान-पान की छूट डब्‍बापेक, केक, पिजा इत्‍यादि का शौक पूरा करने का खुला वातावरण उपलब्‍ध रहेगा। अपने मन-मुताबिक मौज-मजा।

घर गृहस्‍थी को अपने अनुकूल इम्‍प्रेसिव जमाने की पूरी छूट।

जो चाहो खाओ, जो चाहो पहनो, यानि सम्‍पूर्ण एवं हर प्रकार का आनन्‍द जिन्‍दगी के लूटो।

घात-लगा‍कर अचूक निशाना तो साधा था, मगर लक्ष्‍य तक पहुँचने से पहले ही यह कानूनी नोटिस ने विचलित कर दिया।

♥♥♥ इति ♥♥♥

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

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