lal poshte ke fuul- aa laye chaineej lekhak books and stories free download online pdf in Hindi

लाल पोस्ते के फूल - आ लाए चाइनीज लेखक

चाइनीज लेखक आ लाए का उपन्यास "लाल पोस्ते के फूल "का अनुवाद अंग्रेजी के मार्फत आनंद स्वरूप वर्मा ने किया है यानी इस उपन्यास का जो अंग्रेजी अनुवाद था उसका हिंदी अनुवाद आनंद स्वरूप वर्मा ने किया है। अंग्रेजी में इसका नाम रेड पॉपीस रखा गया था। उपन्यास का प्रकाशन प्रकाशन संस्थान अंसारी रोड दरियागंज नई दिल्ली ने किया है । इस उपन्यास मैं तिब्बत के डेढ़ सौ साल पहले के समय को कहानी के केंद्र में रखा गया है । जब तिब्बत पर किसी विधिवत राजा का शासन न था बल्कि टुकड़े टुकड़े में छोटे-छोटे जमीदार तिब्बत की घाटियों में बसे गांवों और दूसरे कस्बों पर कब्जा रखते थे तथा वहां से अपने अंचलों के मार्फत और अपने किसानों के मार्फत खेती कर आते थे । ऐसे किसान जो उनके दास भी थे और कुछ स्वतंत्र किसान भी थे , हर मुखिया ने अपने-अपने किले बना रखे थे ,हवेलियां थी और उन्होंने बैरक नुमा ऐसे घर बनाए थे जिनमें दुर्ग कहा जाता है । इन दुर्ग में उसकी प्रजा रहती थी । हर मुखिया के पास एक प्रधानमंत्री की तरह कारिंदा होता था और उसका अपना एक हत्यारा भी होता था हत्यारा यानी कि जो मुखिया के कहे अनुसार कोड़े मारकर भी सजा देता था और किसी की गर्दन काट कर दान गढवी या फांसी पर लटकाकर प्राण दंड देता था विद्रोही और दुश्मन लोगों को ऐसे दंड देकर प्रजा के सामने कई दिनों तक लटका के रखा जाता था।
इस कहानी के मुख्य भाग में जो मुखिया हैं एक बड़े सीधे से व्यक्ति हैं लेकिन मुखिया की तरह सामंत साही उन पर हावी है , उन्हें भी स्त्रियों को देखने और घूमने का शौक है उनकी खुद की पत्नी अधेड़ हो चुकी है इसलिए उसके प्रति आकर्षण कम है और जिस पर मन आ जाता है उस युवा महिला को अपने पास बुलाने का उपक्रम रिश्ते हैं । इसी क्रम में एक सैनिक की पत्नी को भी खेत में जबरदस्ती अपनी अंक शायनी बनाते हैं और जब उसका पति को इसका पता लगता है तो वे उसके पति को भी अपने आदमी से जान से मरवा देते हैं। उस युग में हर मुखिया के पास अपने धरमप्रचारक भी होते थे जो गोमा कहलाते थे गोमा यानी बौद्ध धर्म के अनुयाई । वे समय-समय पर बादलों को देखकर, आसमान सूर्य और चिडीया को देखकर मुखिया को खेती संबंधी , स्वास्थ्य संबंधी यहां तक कि मेहमानों के आने और जाने संबंधी भविष्यवाणी किया करते थे । ठीक इसी समय यशो नाम का एक बौद्ध प्रचारक आता है जोकि पुराने गो मा से अलग है और अलग प्रकार की बात करने के उद्देश्य से इन मुखिया के शहर में आता है । मुखिया उसे चुपचाप रहने देते हैं ना तो उसे अपना राज लोम बनाते, और ना उस से बहिष्कृत करते हैं । जबकि पुराने गोमा चाहते थे कि इन्हें बहिष्कृत कर दिया जाए। इस राज्य में मुखिया के पास चाइना से जो एक सैन्य अधिकारी आता है वह दरअसल मुखिया के द्वारा बुलाया गया है क्योंकि मुखिया अपने पड़ोसी वोंगपा मुखिया को सबक सिखाना चाहता है । यानी की मुखिया की शिकायत पर सरकारी प्रतिनिधि आकर पड़ोसी मुखिया बांगप्रो को डरपाना चाहता है और वह अपने मुखिया को आदेश भी देता है कि जाओ हमला करो । मुखिया का बड़ा बेटा बहुत बहादुर व्यक्ति है और अच्छा सेनापति और सैनिक भी । वह वांगपो के बहुत सारे सैनिकों को मारता है और विजय हासिल करता है। बांगपो जो पड़ोसी मुखिया है उसके पास में बहुत छोटा सा अपना राज्य व रियासत रह जाती है । यह पूरी कथा मुखिया के छोटे बेटे को द्वारा याद की जाती है , मुखिया ने जिस सैनिक की पत्नी को अंक शाइनी बनाया था उसको वह अपनी हवेली में ले आता है और एक कमरे में बंद रखकर उसके साथ ऐसो आराम करता है । धीरे-धीरे घर के दूसरे लोग उसकी उपस्थिति स्वीकार कर लेते हैं । मजे की बात यह है कि जिस हवेली में मुखिया रह रहे हैं वह बहुत विशाल है , उसके तहखाने में काल कोठरी और कारागार बना हुआ है जहां वे अपने दुश्मनों को और अपराधियों को कैद खाने में डालते हैं । जो राजकीय अतिथि आया था , वह जल्दी वापस नहीं जाता है तो मुखिया अपनी पत्नी (जो हांन यानी चीनीयो के उच्च वंश उच्च जाति की है अर्थात चीन के एक प्रसिद्ध हान जाति की लड़की से मुखिया का ब्याह हुआ था , वह उसकी मु ख्य पत्नी थी ,) उससे कहता है कि यह हान जाति का ऑफ़सर वापस जा
क्यों नहीं रहा है । पत्नी जाकर उससे बात करती है तो पता लगता है कि दरअसल मुखिया के पास आया राजकीय अतिथि पूरे तिब्बत में ही नहीं सब जगह अफीम बुआ देना चाहता है । वह कुछ अफीम के बीज वह मुखिया को देता है और कहता है कि जितनी अफीम होगी उन्हें सरकार खुद खरीद लेगी । सरकार की खरीद के भरोसे मुखिया अपनी पूरी खेतों में अफीम बो देता है । अफीम के पौधे जब बड़े होते हैं तो लाल रंग के फूल होते हैं जो लाल। पोषते के फूल कहलाते हैं । यह लाल पुश्ते के फूल , अफीम की खेती शुरू होना इस उपन्यास ही नहीं तिब्बत के इतिहास की बहुत बड़ी घटना है । कथा में बहुत दिनों तक मुखिया केवल स्वयं ही अफीम की खेती करता है फिर धीरे-धीरे उसजे बीज चुराने की कोशिश की जाती है और बाद में तो बाद में तो राजकीय लोग ही पड़ोस के सब मुखियों को अफीम के बीज देते हैं और पूरी घाटी में अफीम होने लगती है। सब अनाज नही बोते तो लोग भूखों मरने लगते है । मुखिया के छोटे बेटे को सहसा याद आता है कि क्यों ना हम अनाज की खेती भी करें तो उसकी सलाह पर उस बरस मुखिया अनाज की खेती करता है और सौभाग्य से वह फसल बहुत ज्यादा होती है । ऐसे में जब सब मुखिया लोग अफीम बो चुके हैं , अफीम से उनके गोदाम भरे हुए हैं और पहले की अफीम सरकार को बेचकर उसके बदले में सब लोगों ने चांदी भर रखी है , पर अनाज किसी के पास नही है। ऐसे में मुखिया का छोटा बेटा जब अनाज और जौ की खेती करके रियासत की उत्तरी सीमा पर बनाई गई हवेली में अपने भंडार सुरक्षित करता है तो पता लगता है कि उससे मक्का और जौ लेने के लिए दूर-दूर से मुखिया उनके पास आते हैं। छोटा बेटा उत्तरी सीमा पर जो एक हवेली बनाबया तल है इसमें बड़ी गोदामें हैं वहां वह बहुत सुरक्षा में अनाज रखे हुए है । केवल मुखिया नही बहुत सारे प्रजा जन भी बूख से व्याकुल हो खाने को भोजन व अनाज मांगने आते हैं जिनमें से कुछ को छोटा बेटा जिसे अब तक मुर्ख कहा जाता है , कुछ को भगा देता है कुछ को थोड़ा बहुत अनाज भी दे देता है। वह वही यानी हवेली के ही पास की अपनी जमीन में एक छोटा सा बाजार का निर्माण करने का भी निर्णय करता है। यहां हान जाति के लोग भी आकर व्यापार करते हैं तो बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो कि दूसरों द्वारा सताए गए यहां आकर रहने लगते हैं । मुखिया के विरोधी दो भाई भी यहां आकर मदिरालय चलाने लगते हैं, वे इंतजार करते हैं कि मुखिया आए तो मुझसे बदले लेने के लिए उन्हें मार दिया जाएगा । उधर मुखिया का बड़ा बेटा दूसरी सीमा पर चौकसी करता रहता है। वह आर्थिक मामलों में नासमझ है केवल लड़ना जनता है। अनाज लेने एक ऐसी स्त्री मुखिया आती है जिसके यहां सारे पद महिलाओं को ही प्राप्त है वह अपने साथ अपनी बहुत खूबसूरत पुत्री को भी लाती है और अपने अच्छे संबंध बनाने के लिए वह अपनी युवा पुत्री को मुखिया के मूर्ख बेटे को देने के लिए तत्पर हो जाती है। पहले तो छोटा बेटा अनाज नहीं देता बाद में तैयार हो जाता है ।उखिया का यह मूर्ख बेटा बड़ा विद्वान साबित होने लगता है क्योंकि उसने एक ऐसा बाजार बनाया है जहां विश्व के दूर-दूर तक के लोग इकट्ठा हो रहे हैं । उसकी एक बहन (मुखिया की बड़ी बेटी) जो बिट्रेन चली गई है वह भी कुछ दिनों के लिए यहां आती है तो मुखिया का छोटा भाई जो कि कोलकाता में इंडिया में रहता है और अंग्रेजों के साथ में मित्रता कायम किए हुए हैं वह भी आता है और उनके मार्फत पाठकों को समकालीन बिट्रेन की राजनीति पता लगती है तो भारत के बारे में भी बहुत कुछ जानकारी लेखक देता है । बहुत दिनों के बाद सारे मुखिया को बुलाकर मुखिया का छोटा बेटा एक मिलन समारोह रखता है जिसमें सारे मुखिया आते हैं । छोटा बाजार मुखिया के बेटे ने बनाया था , वहां संयोग से एक नाटक कंपनी भी आती है जिसमें सारी महिलाएं किरदार करती हैं और नृत्य करती हैं । छोटे बेटे को जल्दी ही पता लग जाता है कि दरअसल वे नाच गाना नहीं जिस्म का धंधा भी करती हैं । वे मुखिया गण जो बुजुर्ग बुढे या जवान थे और मुखिया के छोटे बेटे ने इन्हें इस समारोह में आमंत्रित किया था वे दल के दल उन महिलाओं के यहां जाते हैं और यहां लेखक बताता है कि वे वेश्याएं अपने साथ बहुत बुरी गुप्त रोग बीमारी भी साथ में लाई है जो सबको बांट रही हैं । छोटे मुखिया को पता लगता है कि इस बीमारी से उसका पिता भी ग्रसित हो गया है तब वह एक दवाई मंगवाता है जिसका आधा हिस्सा अपने पिता को देता है और दूसरी दवाई वह साथ में रखता है कि अपने किसी मित्र को देगा । बाद में चीनी सेना इस इलाके पर हमला करती है तो मुखिया का छोटा बेटा उनका स्वागत करता है । बाद में सैनिक लोग मुखिया और दूसरे मुखियायो पर हमला करते हुए पूरी तिब्बत घाटी में अपना कब्जा कर लेते हैं । मुखिया और उनके परिवार से उनके विरोधी लोग न केवल बदला लेते हैं बल्कि किसान भी उनके खिलाफ खड़े हो जाते हैं ।
इस तरह लगभग डेढ़ सौ साल पहले का तिब्बत का यह उपन्यास तिब्बत का इतिहास बताता है ।इसमें न केवल उस युग की आशा, न केवल उस युग की पोशाकें और चरणों का वर्णन है बल्कि चीनी समाज की समाज में व्याप्त परम्पराओं का भी वर्णन है । मुखिया का बेटा अपनी निजी नौकरानी रखता है, जिनके साथ वह जिस्मानी सम्बन्ध भी रखता है, जो प्रायः बदलती रहती हैं ।
तो इस तरह उपन्यास तिब्बत की रीति नीति ,समाज और तत्कालीन परिस्थितियों को पाठकों के सामने रखता है । जिनमें बहुत से बहुत मजेदार लगती हैं तो बहुत इस तरह की भी लगती है कि पाठक को एक उस समय की प्रथाओं से ऊब सी होने लगती है । मुखियाओं की मनमानी बेवकूफियां और उनके ज्ञान को भी इस उपन्यास में खूब अच्छी तरह से प्रकट किया गया है इस उपन्यास को पढ़ने के बाद तिब्बती इतिहास और समाज की गहरी जानकारी मिलती है । इसको पढ़ते समय लगता है कि भारतीय राजे महाराजे भी इसी यरह की जिंदगी जीते होंगे। आ लाए का यह उपन्यास बहुत प्रभावशाली उपन्यास है जो आकार बड़ा होने के बाद भी पाठकों को एजने रोचक व सूक्ष्म विवरणों से सहज भाव से बांधे रखता है और अपने 510 पृष्ठों को आराम से पढ़ा ले जाता है।
अनुवादक का भी कमाल है कि इन्होंने भाषा की सरलता औऱ घटनाओं की रोचकता बरकरार रखी है।