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उपन्यास मछुआरे -तक्षि शिव शंकर पिल्लै

तकसी शिवशंकर पिल्लै मलयाली साहित्य के बड़े प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। उनके तीन सर्वोत्तम उपन्यास "तोट्टी यू डे मगन"(हिन्दी मे चुनौती शीर्षक ) रन्टी टगसी ( दो सेर धान) और चेम्मीन हैं। चेम्मीन का हिंदी अनुवाद मछुआरे के नाम से आया है , जिसका हिन्दी मे भारती विद्यार्थी ने अनुवाद किया है और साहित्य अकादमी ने इस महत्वपूर्ण उपन्यास को प्रकाशित किया है । कुल 167 पेज में फैला यह उपन्यास खास तौर पर समुद्र के किनारे रहने वाले मछुआरों के समाज पर लिखा गया एक अधिकृत दस्तावेज है। मछुआरों में प्रचलित परंपराएं, धारणाएं और सांस्कृतिक मान्यताओं को उपन्यास एक निम्न वित्तवर्गीय मछुआरे के माध्यम से सामने लाता है । चैंपिन एक ऐसा व्यक्ति है एक ऐसा व्यक्ति है जो शुरुआत में सामान्य मजदूर है , उसकी इच्छा होती है कि वह मजदूरी छोड़कर नाव वाला बने। कभी इतनी उन्नति करें कि मजदूरी छोड़कर अपनी नाव खरीद लाए और जाल भी लाए। उसकी पत्नी चक्की उसका समर्थन करती है , इस काम के लिए चैम्पिन वहां मोतीलाली यानी मुस्लिम साहूकार और मछलियों के बड़े व्यापारी बड़े व्यापारी से पैसे मांगने के लिए जाता है । तो उसका छोटा बेटा मिलता है जो उसकी बेटी करुत्तमा के साथ बचपन से खेलता रहा है । अब भी जब दोनों किशोरावस्था के हो रहे हैं तो भी मिलते रहते है, उससे चैम्पिन पैसे मांगता है और चैम्पिन की पत्नी चक्की पैसे मांगती है तो वह करूत्तमा को देखकर पैसे देने की हां कर देता है । क्योंकि इसके पहले करूत्तमा ने कहा है कि तुम मेरे बप्पा को नाव खरीदने को पैसे दो तो परिकुट्टी मोतीलाली ने कहा है कि क्या वह उन्हें अपने मछलियां बेचेगी तो वह कहती है कि हां परीकुट्टी मछली हम तुमको ही बेचेंगे। तब परीकुट्टी अपना सारा पैसा चैंपिन को दे देता है, जिसमें से चैम्पिन नाव खरीदता है और जाल भी खरीदता है । उसकी नाव बहुत अच्छी है, जिसे लेकर वह बाजार में भी समुद्र में जाता है और ज्यादा ज्यादा मछलियां पकड़ता है । समुद्र तट पर नाव लेते समय एक प्रथा है कि घटवार को बताना पड़ता है ,। घटवार यानी उस घाट का इंचार्ज दरोगा जैसा व्यक्ति होता है, उसे वह मछली जल लेकर जाता है , तो पहले वह घटवार को नहीं बताता, बाद में वह घटवार को मना लेता है ।इस तरह यह उंपन्यास बताता है कि उस युग मे इन छोटी-मोटी चीजों में भी काम चल जाता था । घटवार उस युग मे न केवल नॉव की बलिक शादी ब्याह की बातें भी बताते थे ।करूत्तमा कई बार परी से मिलती है यानी कि वह छोटा साहूकार जिसका सारा पैसा चैम्पिन ले लिया लेकिन उसे बदले में उसका कर्ज से नहीं लौटाता है। उधर परिकुट्टी पैसे पैसे को परेशान रहता है और इधर चैंपन जो मछलियां पकड़ता है वह मोतीलाली यानी परिकुट्टी को नहीं देता बल्कि जो नगद खरीदता है उसे देता है । कपरीकुट्टी केवल करुत्तम्मा के लिए अपना जीवन बर्बाद कर देता है। इधर चैम्पिन अपनी नाव में खुद भी मेहनत करता है, पतवार थामे नाव लेकर सबके आगे जाता है और बहुत दूर तक जाकर अच्छी मछलियां पकड़ता है । तो वह लगातार दिनों दिन बढ़ने लगता है । एक दिन वह एक और नाव नई खरीदने के लिए पल्लीकुलम जाल वाला के घर जाता है वहां देखता है कि उसके सामने ही पललिकुलम पालवाला अपनी गोरी सुंदर पत्नी को गले लग कर चूम रहा है । चैम्पिन का संकोच भी नहीं करता। घर लौटकर चैम्पिन अपनी पत्नी को बताता है कि चक्की मैं तुमसे भी ऐसे ही प्रेम करूंगा । तब वह कहती है कि वह बच्चे लोग हैं । उनको ऐसा करना चाहिए। हम बड़े हो गए हैं । हमे नही। तो वह कहता है इससे क्या है हम अपना जीवन यूं बर्बाद नहीं करें । चक्की कहती है मैं तो सांवली हूं छोटी हूं कि लंबी गोरी कैसे हो जाऊंगी? तो कहता है सब हो जाएगा।

चक्की घर को संभालने लगती है ।

इसी बीच पलनी नाम का एक नया नाविक चैम्पिन की नजर में आता है जिसके साथ वह अपनी बेटी करुत्तमा का विवाह करना चाहता है कि इस बात के लिए सहमत है लेकिन उसे नहीं लग रहा कि करुत्तमा तैयार होगी । वह मन ही मन परीकुट्टी से प्रेम करती है और एक दिन उसके प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार भी कर चुकी है। लेकिन बप्पा के गुस्सा, समाज की दिक्कत और दूसरी समस्याओं के चलते आखिर में करुत्तमा का विवाह तय हो जाता है पलनी के साथ। पलनी जो अनाथ है और मोहल्ले के लोग ही जिसके संरक्षक है। इसके साथ बारात में मोहल्ले के लोग, गांव के लोग आए हैं। उनके साथ करुत्तमाकी शादी होती है कि ठीक उसी समय चक्की यानी कि चैम्पिन की पत्नी की तबीयत खराब हो जाती है। उसे पेट में दर्द है । विदाई हो रही है कि चैम्पिन कहता है कि बेटी को अभी विदा नहीं करते । वह अपनी मां की देखभाल कर लेगी । तब सब बाराती लोग कहते है कि नहीं दुल्हन को तो हम ले जाएंगे। तब बात पलनी तक आती है पलनी कहता है मैं ले जाऊंगा ।

हालांकि पल्ली मूर्ख टाइप का लड़का है लेकिन वह इस निर्णय में दृड़ता दिखाता है और अंत में पूछा जाता है करुत्तमा से तो वह अपनी मां के पास जाती है जो रो रही है , पेट दर्द के कारण परेशान है कहती है कि नहीं बेटी मत रुक्क । तेरी शादी हो गई है तू अपने घर जा । लोग कहेंगे की यहां परीकुट्टी यानी उस मुस्लिम लड़के के साथ तट पर घूमने के लिए रुक गई है । तब करुत्तमा दृढ़तापूर्वक प

अपने पिता से कहती है कि मैं जाऊंगी।

मां को इस हालत में देख जाता हुआ देखकर पिता बहुत गुस्से में आ जाता है और कहता है कि जा तू हमारी नजरों में मर गई ।

तब वह रोती हुई अपने पति के साथ चल देती है कि उसकी छोटी बहन पंचमी रो-रो कर दिदिया दिदिया चिल्लाती है। इधर कुछ दिनों में ही उनकी पत्नी का निधन हो जाता है और इसके कुछ दिनों बाद ही वह सुनता है कि पल्लीकुन्नल जाल वाला खत्म हो गया है और उसकी पत्नी पेप्पी परेशान है , उसकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई है। तो वह सीधा अपने दोस्त को लेकर जाता है और पाप्पी के साथ दूसरी शादी का प्रस्ताव रख देता है। पाप्पी बिना शादी करे उसके घर आ जाती है और दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगते हैं। तो पंचमी बहुत दुखी होती है , क्योंकि नई औरत को अपनी मां के बिस्तर पर सोया हुआ देखकर उसे बहुत दुख और गुस्सा होता है । उसके साथ जो लड़का आया है वह भी पंचमी को सताता है । लड़ाई करता है । वह भी उस लड़के से लड़ती है । तब पढ़ोसीन नगलम्मा ही पंचमी का ध्यान रखती है क्योंकि चक्की मरते समय नगलम्मावको ही ई पंचमी को सौंप गई थी ।उधर अपने पति के साथ गयी करुत्तमा धीरे-धीरे पति का दिल जीत लेती है और पति को इस बात के लिए तैयार करें लेती है कि वह एक नाव खरीदे और जाल खरीदे । लेकिन पैसा किसी के पास नहीं है । करुत्तमा स्वयं मछली खरीद कर बेचने के लिए बाजार जाती है और मेहनत करती है कि पड़ोस में रहती मल्लाहिने उसकी शिकायत कोटवार से करती हैं कि यह अपने लटके-झटके दिखाकर मछलियां भेजती है और उनके धंधे पर उनके पेट पर लात लग रही है। तो करुत्तमा का मछली बेचना बंद हो जाता है । एक दिन उसकी मां के मरने की खबर लेकर परिकुट्टी जब नई जगह जहां करुत्तमा रह रही है वहां आ जाता है तो दूसरे लोग देख लेते हैं और फिर बहुत सारी बातें फैलने लगती हैं। क्योंकि पप्पू नाम का व्यक्ति पहले से ही कहता था करुत्तमा एक शुद्ध स्त्री नहीं है उसने तट को गंदा किया है क्योंकि उसका एक मुस्लिम लड़के से प्रेम था। समुद्र में गए हुए मल्लाहओ को स्त्रियों की शुद्धता ही बचाती है , स्त्रियों की तपस्या और पतिव्रत धर्म ही महिलाओं को समुद्र के ज्वार भाटे बड़ी मछलियों भंवरों भंवर और ताल बड़ी-बड़ी लहरों से बचा कर लाती हैं । इसलिए यह ध्यान मल्लाहओ में खास तौर पर रखा जाता है कि स्त्रियां सच्चरित्र हो और तपस्विनी हो। जब यह बात पुरे तट पर फैल जाती है कि पलनी की बीवी अभी भी अपने उस प्रेमी से प्रेम करती है तो फिर नाव से पलनी को उतार दिया जाता है । सब कहते हैं कि इसके कारण पूरी नाव टूट जाएगी । पलनी बड़ा दुखी होता है । अपनी पत्नी से साफ-साफ पूछता है तो बताती है कि हां हम साथ साथ खेले हैं , बड़े हुए हैं पर वह प्रेम का नहीं बताती । तब पलनी अकेले में जाकर अटक सकता है और अकेले में जाकर मछलियां पकड़ने का काम शुरू करता है और उसे प्राया उतना पैसा मिलने लगता है जितना पैसा कि उसे वालों के साथ जाकर पतवार चलाते हुए मिलता था । ईनका घर आराम से चलने लगता है कि उधर चैंपियमन की दोनों नावे खराब हो जाती हैं । अब तक उसे बहुत कम पैसा मिल रहा है और वह स्वयं मजदूरी करने लायक नहीं बचा है तो जो उसकी नौका पर जाने वाले मल्लाह थे उसे बहुत कम चीजें देते हैं । उस उपन्यास का बड़ा क्षण यह है कि एक दिन अपनी सौतेली मां से सताई गई पंचमी भागकर अपनी बहन के यहां चली जाती है और रो रो कर अपना दुख और सब कुछ बताती है और तभी समुद्र तट पर परीकुट्टी दिखता है तो लोग फिर कहते हैं कि ये मिलने आया है तो बनी पूछ लेती पल्लनी आकर पूछता है कि क्या तुम्हारा उस से प्रेम था तो अपनी बहन के साथ परीकुट्टी की लंबी चर्चा कर रहे करुत्तमा आवेश में आकर सत्य बोल देती है कि हम उस से प्रेम करती थी । पलिनी कुछ नहीं कहता लेकिन उस दिन जब वह कांटा लेकर निकलता है तो अपनी छोटी सी नाव में चला जाता है और और भीतर भीतर के तीतर चल जाता है कि सहसा भंवर में घुसता हुआ चला जाता है। उसे चारों और पहाड़ घूमते नजर आते हैं , इसी समय एक बड़ी शार्क मछली उसके जाल में फंसती है उसकी कांटे में फंस जाती है जो लगातार उस को घसीटते हुए ले जाती है और वही उसे भवर में पटक देती है। इधर पंचमी अपने भतीजे के नवजात बच्चे को खिला रही होती है कि रात को बाहर आकर परिकुट्टी करुत्तमा को बुलाता है । जन्म के प्यास भरे प्रेमी लोग दोनों एक हो जाते हैं। उपन्यास के अंत में बहुत मार्मिक स्थितियां होती हैं । मेरी कुट्टी सेवा मिलती है और पलिनी को यह पता लगता है तो वह अपनी अपनी छोटी नाव लेकर समुद्र में गया है और एक सार्क उसके जाल में फंस जाती है जो उसे घसीटते हुए भंवर तक ले जाती है स्वयं भी मर जाती है और पलनी की नाव को भंवर में छोड़ देती है। भंवर में घूमता हुआ पलनई अपनी नाव सहित नष्ट भ्रष्ट हो कर दूसरी तरफ पहाड़ों में गिर जाता है कि उसी रात परिककुट्टी के साथ एक हो गई करुत्तमा समुद्र में डूब जाती है । अगली सुबह शार्क मछली का शव और उन दोनों यानी परिककुट्टी और करुत्तमा का शव भी समन्द्र से निकलते हैं कि ठीक उसी वक्त अपने बहन के बेटे को रोने से रोकती हुई पंचमी ।खुद भी रोती जाती है ।

इस उपन्यास के द्वारा मल्लाहओ की जिंदगी , समुद्र तट की अनिश्चितता और मंलाहो कि आपसी धारणाओं कहावतों के बारे में बड़ी जानकारी दी गयीहै। मल्लाह लोग समुद्र को मां कहते हैं और समुद्र में मछली पकड़ने गया हुआ मल्लाह एक अपनी पत्नी के भरोसे सकुशल लौटता है , इसकी गहरी धारणा को भी यह उपन्यास प्रकट करता है। मजदूर जो मछलियां पकड़ते हैं , वह नाववाला बनने की इच्छा करते हैं और नाववाला बनने के बाद कई नावो का मालिक बनने की कोशिश करते हैं । यह भी उपन्यास में आया है । मल्लाह लोग यानी मछुआरे ने जब भूखे भूखे होते हैं तो वे कहते हैं कि यह तो एक अनिवार्य सत्य है क्योंकि हमने बहुत सी मछलियों को मारकर हमने जीवित वस्तुओं को मारकर या उनको पकड़कर मारा है इ। सलिए हमको तो भूखा रहना ही है यह कोई पुण्य का कार्य नहीं है ।एक अजीब सी बात यह पाठकों को बता लगती है जो है शाकाहारी लोगों की धारणा से सहयोग करती है। स्त्रियों का शुद्ध रहना यहां भी आता है ।

यह उपन्यास 1959 में पहली बार साहित्य अकादमी ने प्रकाशित किया था तब के मलयाली समाज को यह उपन्यास ठीक से परिभाषित व चित्रित करता है। यद्यपि हमको अभ्यास नहीं है फिर भी एक विशेष स्थान के लोगोंके जीवन को प्रकट करता हुआ महिलाओं के जीवन को संस्कृति को और सपनों को प्रकट करता हुआ यह उपन्यास मलयाली साहित्य ही नहीं बल्कि भारतीय समाज की एक झांकी प्रस्तुत करता है जिसे पढ़कर पाठक न केवल समृद्ध होता है बलिक ज्यादा सम्वेदना से भरा होता है। मल्लाहओके सुख में दुख में और उनके प्रेम में यह उपन्यास पाठक को दबा देता है । उपन्यास के अनुवादक विद्यार्थी ने बहुत अच्छा अनुवाद किया है तो लेखक का मूल उपन्यास भी अच्छा बहुत अच्छा होगा यह प्रकट होता है ।

शायद भारती ने इसे साहित्य अकादमी ने इसे बहुत ही उत्तम दान के रुप में पाठकों को प्रदान किया है ।

चेम्मीन उपन्यास सबको पढ़ना चाहिए जिससे कि वे किरण और मलयाली समाज तथा खासतौर पर मछुआरों के बारे में बहुत कुछ जान सकेंगे।

उपन्यास मछुआरे हिंदी अनुवाद

अनुवादक भारती विद्यार्थि

मूल लेखक तक्षि शिव शंकर पिल्लै

प्रकाशक साहित्य अकादेमी दिल्ली