Murti ka rahasy - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

मूर्ति का रहस्य - 8

मूर्ति का रहस्य आठ

बिस्तर पर पड़े पड़े रमजान सोच रहा था -‘‘चन्दा की वजह से समय का पता ही नहीं चलता था। उसे गाँव पहुँचाया भी या नहीं । क्या पता उसे यही किसी तलघर में कैद कर रखा हो?’’

यदि वह गाँव पहुँच गयी तो उसने अपना काम शुरू कर दिया होगा । लोगों के चिŸा से उसने भय के भूत को निकाल दिया होगा ।

खड खड़ की आहट हुई। रमजान लगा- ये वही लोहे का दरवाजा खड़क रहा है।‘ वह बिस्तर से उठ कर बैठ गया। उसने देखा, विश्वानाथ त्यागी सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था। नीचे तलघर में आते ही बोला-‘‘कहो बरख्ुारदार कैसे हो ?’’

‘‘ठीक ही हूँ, आपके कैद खाने में पड़ा हूँ । ’’

यह सुनकर विश्वनाथ त्यागी बाहरी हँसी हँसते हुए बोला, ‘‘अरे अरे आप यह क्या कहते हैं ! आप किस के कैद खाने में रहने लगे। आप के कारण ही हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए । ... और हमारे सेवक चन्दन से कोई गलती हुई है क्या, जो...।’’

‘‘ अरे ! अरे ! वह बेचारा तो हमारी सेवा में लगा है ।’’

विश्वनाथ त्यागी रमजान के पास सटकर पलंग पर बैठते हुए बोला - ‘‘चन्द्रावती अपने घर पहुँच गयी है आपके कहने से उसे गाँव भेजना पड़ा। वह वहाँ हमें कुछ समझ ही नहीं रही है। घर घर हमारी बदनामी हो रही है। उसके वहाँ रहने से अपना कोई हित होने वाला नहीं है।’’

‘‘अरे ! वह ऐसा नहीं कर सकती। जरा अपनी बुिद्ध ज्यादा चलाती है।’’ रमजान बोला।

रमजान की यह बात सुनकर विश्वनाथ त्यागी ने बात आगे बढ़ाई - ‘‘बरखुरदार, हम बचन देते हैं, हम आपको कभी धोखा नहीं देंगें। आज के युग में जिसके पास चार पैसे होंगें समाज में उसी की इज्जत है।’’

रमजान ने उसे दिखाने के लियेे पैंतरा बदला-‘‘आप ठीक कहते हैं आज के युग में पैसा ही सब कुछ है।’’

विश्वनाथ त्यागी ने उसे और प्यार से समझाया-‘‘बेटा ये बातें समझने से नहीं आती बल्कि अनुभव से आती हैं।’’

‘‘अच्छा अंकल, यह तो बताओ उस पत्थर के चबूतरे को हटाने पर कुछ मिला।’’

रमजान के मुँह से पहली बार अंकल शब्द सुनकर विश्वनाथ त्यागी को लगा, यह लड़का मेरे बहुत नजदीक आ गया है।

ठीक उसी वक्त सेठ रामदास जल्दी जल्दी साढ़ियों से उतर कर नीचे आते हुए विश्वनाथ त्यागी से बोला, ‘‘त्यागी जी, आप यहाँ बैठे हैं। हमें उस तयखाने में एक शंकर भगवान की विशाल मूर्ती मिली है, उस मूर्ती के सामने एक विशाल नन्दी और दूसरा छोटा नन्दी है। वह छोटा नन्दी उस बड़े नन्दी के पास सट कर बैठा है, जैसे गाय बछड़े के।’’

रमजान ने उत्सुकता से पूछा- ‘‘इसमें क्या समस्या है?’’

रामदास ने उŸार दिया - ‘‘ हम उस मूर्ती के चक्कर में जाकर उलझ गये हैं।’’

रमजान ने कहा ‘‘इसमें क्या उलझन है? मैं उस मूर्ती को देखना चाहता हूँ।’’

रामदास ने निवेदन किया ‘‘यह तो हम पर आपकी अपार कृपा होगी। तो फिर चलें, मेरे बड़े भाई साहब आये हुए हैं। वे भी आपसे मिलना चाहते हैं।’’

सभी उठ पड़े और दो मिनट में ही साढ़ियों से चढ़ कर लोहे का दरवाजा पार करते हुए चौक में पहुँच गए। चौक में महाराजा के चबूतरे पर एक बूढ़े सज्जन बैठे थे।

रमजान उनके सामने पहुँचा।

सेठ रामदास ने उसे अपने बड़े भाई नारायणदास से मिलाया- ‘‘भाई साहब यह वही रमजान है, इसके कारण हम उस मूर्ती तक पहुँच पाये हैं।

यह सुनकर वे बोले - ‘‘ये बड़ा जीनियस है, सारा खेल बुद्धिमानी का है। ’’

बड़े सेठ जी की बात पुष्ठ करने के लिये विश्वनाथ त्यागी बोला - ‘‘भाई साहब आप ठीक कहते हैं। मैंने ऐसी छोटी छोटी बच्चियाँ देखी हैं, जो ऐसे प्रवचन करती हैं कि दातों तले उंगली दबा कर रह जायें, हालांकि रमजान ने जिन्हें उस्ताद बनाया था वे बड़े विद्वान आदमी थे। उन्होंने रमजान और चन्द्रावती को पुराने खजाने ढूढ़ने के कई नुस्खे सिखाए थे।’’

रमजान ने प्रश्न किया -‘‘त्यागी जी इन दिनों आपके परम मित्र पं. दीनदयाल शर्मा नहीं दिखते हैं, वे कहाँ गायब हो गए?’’

‘‘रमजान भाई, उनके बेटे की तबीयत बहुत अधिक खराब है। इन दिनों उन्हें बेटे के साथ अस्पताल में रहना पड़ रहा है। ’’

‘‘अरे! अरे! वे बहुत अच्छे आदमी हैं। ’’

विश्वनाथ त्यागी अपने विषय पर आते हुए बोला -‘‘ रमजान भाई चल कर उस मूर्ती को देख लें।’’

रमजान ने उŸार दिया ‘‘चलिये...।’’

आगे-आगे त्यागी, उनके पीछे सेठ रामदास और उनके पीछे रमजान चल पड़ा। दक्षिण पश्चिम दिशा वाले खण्डहरों के चबूतरे की खुदाई हो चुकी थी और वहाँ सीड़ियाँ दिखने लगी। वे सब सीढ़ियों से उतर कर तल घर में जा पहुँचे।

सामने, शंकर जी की मानव कद में बनी पत्थर की मूर्ति दिख रही थी। जिसे तराश कर आगे और पीछे के हिस्से अलग अलग बनाकर जोड़े गये थे। रमजान बड़ी देर तक मूर्ति की बनावट का निरीक्षण करता रहा। उसके बाद उसकी दृष्टि मूर्ती की आसन पर गई। सहसा रमजान को मूर्ति के सामने वाले पत्थर पर कुछ लिखा हुआ दिखा। वह अपना रूमाल निकाल कर रगड़ रगड़ कर उस जगह को साफ करने लगा।

थोड़े देर बाद सामने खुदे शब्द नजर आने लगे -

पृष्ठ खुले इतिहास के, जीवन हो खुशहाल।

आँख मिला कर आँख में देख लीजिये भाल।।

विश्वनाथ त्यागी ने पूछा - ‘‘आँख मिला कर आँख में क्या मतलब है ?’’

रमजान सोचते हुए बोला - ‘‘इतना सरल भाव समझ में नहीं आया ।’’

रामदास बोला - ‘‘भैया हम तो निरे बुद्धू हैं । इस लिखावट के चक्रव्यूह से तुम्हीं पार लगा सकते हो।’’

इसी समय तलघर में किसी और के आने की आहट मिली । सभी का ध्यान उस ओर चला गया ।

रमजान चौंका। वहाँ चन्द्राबती शान्ति के साथ खडी थी ।

यह देखकर रमजान का स्वर ऊँचा हो गया । बोला - ‘‘चन्दा तुम यहाँ कैसे ?

चन्द्रावती बोली ‘‘भैया ये तो कह रहे थे आपने ही मुझे बुलाया है ।’’

‘‘ मैंने !’’रमजान ने आश्चर्य प्रकट किया ।

रमजान ने इस बात का उत्तर जानने के लिए विश्वनाथ त्यागी की ओर देखा। वह समझ गया उत्तर उसे ही देना है, इसीलिए बोला ‘‘हमने सोचा ये गाँव में रहेगी तो कहीं बना बनाया काम न बिगड़ जायें ।’’

रमजान बात को बढाना नहीं चाहता था। इसीलिए बोला-‘‘आपने ठीक ही किया त्यागी जी इस वक्त इस इबारत को समझने के लिए मुझे चन्द्रावती के सहयोग की आवश्यकता भी है ।’’

‘‘मेरे सहयोग की आवश्यकता .......!’’

‘‘ हाँ ,, इस मूर्ति के चबूतरे पर सामने क्या लिखा है, जरा आकर तो देखेा?’’

चन्द्रावती ने उस इबारत को गौर से पढ़ा -‘‘आँख मिलाकर आँख में ....कुछ समझी नहीं ।’’

विश्वनाथ त्यागी बोला -‘‘बेटी इसी बात के लिए तो मै तुम्हें यहाँ लाया हूँ जरा सोचो और रमजान भाई के सोचने में मदद करो।’’

सेठ रामदास चन्द्रावती के सामने हाथ जोड़कर बोला-‘‘ बेटी तुम इस नीच अंकल की मदद करो न।’’

यह सुनकर चन्द्रावती को उस पर दया आ गई और उसने प्रश्न भरी निगाह से रमजान की ओर देखा ।

रमजान समझ गया उसे ही कुछ उत्तर देना है । वह सोचते हुए बोला - ‘‘अच्छा सेठ जी जरा आगे बढ़ कर इस मूर्ति की आँखों में तो देखें ।’’

सेठ रामदास बड़े विश्वास से आगे बढ़ा और उसने मूर्ति की आँखों में झाँका । उसे मूर्ति की आँखों की जगह लगे पत्थर के गोल टुकड़ों में छोटे अक्षरों में कोई इबारत लिखी दिखी।वह उसे पढ़ने का प्रयास करने लगा । उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया, तो वह यह कहते हुए पीछे हट गया - ‘‘ इसमें भी इबारत लिखी है ।’’

विश्वनाथ त्यागी शीघ्रता से आगे बढा और उस मूर्ति की आँखों में झाँकने लगा । उसने आंखे सिकोड़ कर सामने लिखी लिखावट को पढ़ने का प्रयास किया और बोला - ‘‘ इसमें लिखा है छोटा भाई बड़े भाई को मारे तो पावे ।’’

इन शब्दों का अर्थ गुनते हुए वह भी मूर्ति से हट कर खडा हो गया ।

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