murti ka rahasy - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

मूर्ति का रहस्य - 5

मूर्ति का रहस्य 5

रमजान किले के ऊपर सीधा दरगाह पर जा पहँुचा। उसने वहाँ अगरबत्ती लगाई और नमाज की मुद्रा में सलाम करने बैठ गया। उसी समय पीछे से आकर किसी ने उसे जकड लिया। वह जान रहा था यही होगा। कुछ ही क्षणों में उसने अपने आपको कैदखाने में पाया

उसे स्वास लेने में कष्ट का अनुभव हो रहा था सीड़न की बदबू से उसका मस्तिष्क फटा जा रहा था। अंधेरे कमरे में कुछ भी नहीं सूझ रहा था। उसके हाथ पाँव बंधे थे, और वह हिल डुल भी नहीं पा रहा था सो वह पत्थर के फर्स पर सारी रात्रि पड़ा रहा।

सुबह, रोशन दान में से हल्का सा प्रकाश कोठरी में झॉकने लगा, वह समझ गया सबेरा हो गया। रमजान की निगाह दरवाजे की ओर गयी, लोहे का जंग लगा जंगला इतिहास के पन्नों की गवाही दे रहा था। उसने रोशनदान से अनुमान लगा लिया कि वह तहखाने में है उसका विश्वास पक्का हो गया कि यहाँ भूत-प्रेत कुछ नहीं है।

अचानक उसे याद आयी-‘‘मैंने अच्छा ही किया जो चन्द्रावती के पिता जी से, पूर्व जन्म में महाराज बदन सिंह केे खजान्ची होने की गप्प ठोक दी थी। चन्द्रा पर जाने क्या बीत रही होगी ? इस समय उसके बारे में सोचने से कोई लाभ नहीं है। अब तो मैं इस कैद खाने में आकर कैद होगया हूँ। यहाँ से मुक्त होना बहुत ही कठिन लग रहा है। जब ओखली में सिर दिया है तो चोटें सहन करना ही पडें़गी।‘‘

अचानक आहट हुई। उसका ध्यान आहट की दिशा की ओर गया। वह पूरी तरह सचेत हो गया। लोहे का जंग लगा फाटक खड़खड़ाया। रमजान ने सोते रहने का नाटक करने के लिए आँखे मँूूद लीं।

एक व्यक्ति काले कपडे़ पहने सामने आया। उसने शाही अदब के साथ रमजान को प्रणाम करते हुए कहा ‘‘ शाही खजान्ची जी को चन्दन का प्रणाम। आपकेा राजाधिराज महाराज बदन सिंह चौक में बुला रहे हैं ।’’

‘‘ चलिए महाराज ने बुलाया हैं तो ...।’’ अधूरा सा वाक्य बोल कर रमजान ने उनींदें रहने का अभिनय किया ।

‘‘...और हाँ, यहाँ के रहस्यों को जानने की कोशिश मत करों। इसी में तुम्हारी भलाई है।’’ चन्दन ने उसे समझाया और उसके हाथ-पांव से बंधी रस्सी खोल दी।

रमजान अंगड़ाई लेते हुए उठा और चन्दन के पीछे-पीछे सीड़ियों से चढ़कर जंग लगे लोहे के फाटक को पार करते हुए चौक में पहुँच गया। वह एक दम चौंका। ...वहाँ चन्द्रावती के साथ विश्वनाथ त्यागी और उनके साथ छरहरे शरीर वाला एक गोरा चट्टा आदमी नेताओ जैसे कपड़े कुर्ता-पजामा और जैकेट पहने खडा था ! उसे याद आया, यह तो वही आदमी है, जो उस दिन सर्वेक्षण दल के साथ पेन्ट सर्ट पहन कर आया था, लेकिन चन्द्रावती यहाँ कैसे आई ? वह सोचने लगा। उसे याद आया कि आज इस आदमी का वेष बदला हुआ है ।

रमजान को सोचते हुए देखकर विश्वनाथ त्यागी बोला-‘‘ आइये बरखुरदार, महाराज के खजान्ची जी का हम सब स्वागत करते हैं। ’’

उसके मुँह से ‘‘खजान्ची ’’शब्द सुनकर, रमजान को आश्चर्य हुआ, मेरे खजान्ची होने की जानकारी तो चन्द्रावती के पिता जी को ही है। उन्हीं से मैंने अपने महाराज के खजान्ची होने की गप्प दी थी । रमजान को सोचते हुए देखकर विश्वनाथ त्यागी बोला ‘‘ रमजान जी आप हमारा विश्वास करें, हम आपको धोखा नहीं दंेगे। इस चबूतरे पर जो शिलालेख है, उसका अर्थ हमारी समझ में नहीं आ रहा है।’’

रमजान ने उत्सुकता प्रकट की ‘‘ त्यागी जी मुझे इस शिलालेख को देख तो लेने दें। शायद कुछ पुरानी स्मृतियाँ ताजा हो जाऐं।’’

यह सुनकर विश्वनाथ त्यागी हिनहिनाते हुए बोला ‘‘ आईए देखिए ये ... हैं ... वो ... शिलालेख ’’

इशारा पाकर रमजान चबूतरे पर, शिलालेख के सामने बैठते हुए बोला -‘‘अरे ! चन्द्रावती तुम इतनी देर से खड़ी-खड़ी क्या कर रही हो? आओ तुम भी इस शिलालेख को देख लो, ...त्यागी जी इस शिलालेख का मतलब तो हमारी ये बहन ही बतला देती।’’

चन्द्रावती भी उस चबूतरे पर शिलालेख के पास बैठते हुए बोली, -‘‘ यह क्या लिखा है इस पर ? इस किले को उलट दो।’’

चन्द्रावती ने उसे पढ़कर रमजान की ओर देखा। रमजान समझ गया उत्तर मुझे देना हैं इसलिए बोला,

‘‘...त्यागी जी...हम दोनों को इसका मतलब जानने के लिए थोडा वक्त चाहिए। जिससे पुरानी स्मृति याद हो आऐं।’’

विश्वनाथ त्यागी मिमियाते हुए बोला ‘‘ ठीक है ... ठीक है ... याद कर लीजिए । ... चन्दन ।’’

‘‘जी साब। ’’

‘‘तुम इन दोनों को ले जाओ इनको पूरी सुविधाऐं दो । दिन के नौ बजे का समय हो गया इन्हें जल पान कराओ। समझे।’’

‘‘ जी साब।’’

चन्दन, रमजान और चन्द्रावती की ओर मुड़कर बोला-‘‘...आप दोनों मेरे साथ चलिए।’’

दोनों चबूतरे से उतर कर चन्दन के पीछे पीछे चल पड़े।

दोनों को वह उसी तलघर में ले आया, जहाँ रात में रमजान कैद था। अब उस कक्ष केा साफ सुथरा कर दिया था। दो लोहे के पलंग डाल दिए गए थे उन पर बिस्तर बिछे थे।...जैसे उनके लिए यहाँ ठहरने की, पहले से ही व्यवस्था की जा रही हो।

ताजा कोरा मटका, जल से भर कर रख दिया था। लोटा गिलास रखे थे। रमजान और चन्द्रावती समझ गए अब हमारे लिए यही कैद खाना है। चन्दन उन्हें वहाँ छोड़ कर चला गया। रमजान ने चन्द्रावती से पूछा-‘‘ तुम कब आईं ? ’’

‘‘ मैं आई नहीं हूँ मुझे यहाँ बेहोशी की हालत में लाया गया है।’’

‘‘ कैसे ? ’’

‘‘ भैया, कल आपके आने के बाद रात में खाना खाकर मैं अपने कमरे में सोयी थी। मुझे क्या लगा कमरे के बाहर कोई है ? मैंने चिल्लाना चाहा लेकिन जाने क्यों मेरा बोल नहीं निकला। उस समय कमरे में कोई गन्ध सी आ रही थी। फिर मैं कब पूरी तरह बेहोश हो गयी पता ही नहीं चला।’’

‘‘ चन्दा फिर ? ’’

‘‘ फिर क्या, सुबह जब मुझे होश आया, मैं ये जो राजमहल फूटा पड़ा है ना...।’’

‘‘ हाँ है तो ...।’’

‘‘ मैं उसी के, उस कक्ष में थी जिसमें महिलाओं के भित्तिचित्र बने हैं। उसी में इन लोगांे के रहने खाने पीने की व्यवस्था भी है। इस पूरे किले में वही एक साबुत कक्ष बचा है। ’’

‘‘ तब तो तुम्हारी वहाँ व्यवस्था ठीक रही। मैं तो रात से इसी तहखाने में कैद हूँ। अब यहाँ ये पलंग डाल दिए हैं। सामने ये पटिया देख रही हो जिस पर वो टाट का टुकडा पड़ा है।’’

’’हाँ, देख तो रही हूँ।’’

‘‘मैं रात भर उसी पर अन्धेरे में पडा रहा ।’’

अचानक लोहे का दरवाजा खड़कने का स्वर सुनाई पड़ा। दोनों अपने अपने बिस्तरो पर सतर्क बैठ गए। चन्दन कमरे में प्रवेश कर रहा था और उसके साथ एक काम वाली महिला भी थी, जो अपने हाथों में दो प्लेटें लिए थी। उसने सीड़ियों से नीचे उतर कर दोनों के सामने एक एक प्लेट रख दी। प्लेट मेें आलू की सब्जी और पराँठे थे। दोनों को भूख लगी थी। दोनों भोजन करने लगे। चार-चार पराठों से दोनांे का पेट भर गया। कमरे में ताजे घड़े में पानी रखा था। पराँठे खा कर दोनों ने पानी पिया, और दोनों अपने अपने बिस्तर पर पसर गए। यह देखकर चन्दन बोला,- ‘‘ साब ... सेठ जी ने पूछा है, उस शिलालेख का कुछ मतलब समझ में आया क्या ?’’

रमजान ने चन्दन से पूछा-‘‘ वह कहाँ का सेठ हैं ?’’

चन्दन कुछ उत्तर देता इसके पहले ही चन्द्रावती बोली - ‘‘ भैया विश्वनाथ त्यागी के साथ जो, सफेद कुर्ता-पयजामा पहने जो दूसरे सज्जन थे वे हैं ग्वालियर के बहुत बडे सेठ ... ।’’

चन्दन ने बात आगे बढ़ाई -‘‘ साब ... वे बहुत अच्छे सेठ है। यहाँ सारा पैसा वे ही खर्च कर रहे हैं। बेचारे बडे दुखी है। चार छोटे-छोटे बच्चो को छोडकर उनकी धर्म पत्नी चल बसी हैं। अपनी चन्द्रावती दीदी हैं ना ... इनके पिताजी से, त्यागी जी की इन सेठ जी के विवाह की बात हो गयी है । ’’

रमजान चौेंका, ’’ क्या कहा.....? ‘‘

चन्दन चुप रहा और उसके साथ खाना लेकर आई महिला चुपचाप यही खड़ी रही। उसका नाम शान्ति है। चन्दन की बात सुनकर वह बोली -‘‘साब.....अपनी चन्द्रावती दीदी, वहाँ रानी बनकर रहेगी। मैं उनके यहाँ ही झाङू पोंछा का काम सात आठ वषर््ा से कर रही हूँ। बड़े अच्छे लोग है। साब ....।’’

रमजान बोला -‘‘चन्दन’’

‘‘जी साब .....।’’

‘‘तुम लोग यहाँ से जाओ। हमें सोचने के लिये वक्त चाहिये ।’’

‘‘जी साब.....।’’

यह कहकर वह सीढियों पर चढते हुए बोला -‘‘ शान्ति तुम भी मेरे साथ चलो, ऊपर ठहरे साहब लोगों को खाना खिलाना है।’’

शान्ति बिना उत्तर दिये खाली प्लेंटें लेकर चंदन के पीछे पीछे चली गई।

उनके जाते ही दोंनों फिर अपने अपने बिस्तरों पर लेट गये। चंद्रावती सोचने लगी - ‘सुबह से ही यह सेठ मेरे इर्द गिर्द चक्कर काट रहा है। ऐसी ऐसी बातें कर रहा था कि कहने में शर्म आती है? इस शांति को दूती की तरह मेरे पीछे लगा दिया है। इससे विवाह करेगी मेरी जूती।‘

उधर बिस्तर पर पड़े-पड़े रमजान सोच रहा था - ’इस किले को उलट दो का अर्थ इन लोगों ने किले की खुदाई से लगाया है। इन दिनों यहाँ दिन रात खुदाई चालू ह,ै लेकिन कुछ नहीं मिला। इन्हे यही तो परेशानी हैं। क्या होगा इस उलट देने शब्द का अर्थ....? इस किले को उलट देने का अर्थ उस शिलाखंड को ही उलटने से तो नहीं है। कहीं तीर में तुक्का लग गया तो मैं अपने मकसद में सफल हो जाऊँगा‘ यह सोच कर उसने व्यंग करते हुए मौन तोड़ा - ‘‘चंदा अब तो मैं चार बच्चों का मामा बनने वाला हूँ।’’

इसी भाव भूमि में चंद्रावती ने रमजान को उŸार दिया - ‘‘जब मेरे परम श्रद्धेय पिता श्री मुझे चार बच्चों की माँ बना कर भेज रहे हैं तो तुम्हें मामा बनना ही पड़ेगा।’’

‘‘भैया शाँति दूती कह रही थी, इसकी बड़ी लड़की पन्द्रह वर्ष की है। श्रीमान पेंतीस वर्ष के हैं।’’

‘‘ चंदा तुम्हारे पिता जी धन के लालच में अंधे हो गये हैं।’’

‘‘ भैया समझ नहीं आता कैसे इन जालिमों से पिंड छूटे।’’

दोनों कुछ देर तक गुमसुम कुछ सोचते रहे।

‘‘चंदा तुमने उस शिलालेख के बारे में क्या सोचा?’’रमजान ने मौन तोड़ा।

‘‘अभी तो कुछ नहीं सोचा।’’ चन्द्रावती ने उत्तर दिया।

‘‘अरे!कोई यहाँ पूछने आये, उससे पहले उसका अर्थ सोचना पड़ेगा कि नहीं।’’रमजान ने चंद्रावती से पूछा।

‘‘भैया इसमें क्या सोचना है? किले के उलट देने के अर्थ में ये लोग खुदाई करा ही रहे हैं। अब तो उस पत्थर को उलट कर तो देखें।’’ चंदा ने अपने विचार प्रकट किये।

‘‘ अरे वाह ! यही मैं सोच रहा था जब दो के सोच एक से निकलें तो निश्चय ही हमारा सोच ठीक हैं ।’’ रमजान ने बात की पुष्टि की।

एकाएक पण्डित कैलाशनारायण शास्त्री ने तलधर में प्रवेश किया। चकित होते रमजान ने उनकी ओर देखा,’’ काका आप यहाँ ?‘‘

पंडित रमजान के पास पलंग पर बैठते हुए बोला, ’’बेटा रमजान में तुम्हारे हित की बात कहता हूँ। मेरी बात मानने में तुम्हारा है।’’

लाभ की बात सुनकर रमजान बोला - ‘‘ कैसा लाभ काका ?’’

‘‘ बेटा, बुद्धि तुम्हारी और मेहनत हमारी। यदि खजाना मिल गया तो चौथाई हिस्सा तुम्हारा।’’

यह सुनकर रमजान को लगा - ‘‘एऽऽ पण्डित जी भी इस गिरोह के ही सदस्य हैं। यह सोचकर उसने उत्सुकता से पूछा - ‘‘काका तुम्हें यह अधिकार किसने दिया ?’’

‘‘बेटा यहाँ सारा काम विश्वास से ही चल रहा है। जिस पर विश्वास टूटा, उसे बुर्ज से नीचे फेंक दिया जाता है। पुलिस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती हैं। वहाँ भी हमारे लोग बैठे हैं उनके भी हिस्से हैं।’’

‘‘काका आप क्या चाहते हैं?’’

‘‘चाहते क्या ? उस शिलालेख का मतलब तुम्हें आता हो तो बतला दो।’’

‘‘काका, मैं बच्चा हूँ, मुझे उसका अर्थ कहाँ से आता होगा !’’

‘‘फिर तुम अपने को पूर्व जन्म का महाराज का खजान्ची क्यों बतला रहे हो ?’’

‘‘काका, चन्द्रावती को महारानी बनने का काम तुम्हारे लोगों ने ही उसे सौंपा है ।’’

‘‘...और तुम्हंे खजान्ची बनने का काम किसने सौंपा है।’’

‘‘काका, मैं अपने मन से ही खजान्ची बन बैठा हूँ।’’

‘‘ तो तू झूठा नाटक कर रहा है।’’

यह सुनकर रमजान को लगा ये लोग सत्य को पचा नहीं पायेंगें। इन्हें भ्रम के जाल में फंसाये रखना उचित ही है। वह यह सोचते हुए बोला-‘‘काका आपसे सच कहूँ, मुझे पूर्व जन्म की कुछ-कुछ बातें याद तो हैं तभी तो मैं इस किले की दरगाह पर अगरबŸाी लगाने के बहाने हर महीने के आखिरी जुमे को आता रहा हूँ। मैं तो यहाँ के खजाने की तलाश में पहले से ही हूँ। ‘‘

‘‘तो तुम उस शिलालेख का मतलब कब बतला रहे हो?’’

‘‘काका, बात स्मृति में तो आ गई है थोड़ा और सोच लेने दो।’’

‘‘ठीक है फिर मैं चलता हूँ ऊपर कुछ काम भी है।’’ यह कहते हुए पं. कैलाशनारायण शास्त्री वहाँ से चले गये।

उनके जाते ही तीन चार कुछ लोगों के आने की आहट मिली।

देखा चार लोग थे। चारों तलघर में नीचे आगये। वे कोने में टिकी लोहे की छड़ों यानी सब्बलों को उठाने लगे। उन छड़ों में घुंघरू बँधे थे। सब्बल उठे तोे घुंघरू बज उठे। रमजान और चंद्रावती सब कुछ साफ साफ समझ गये, इस किले में कौन सी भूतनी नृत्य कर रही है। उनमें से एक मँूछें ऐंठते हुए रमजान से बोला - ‘‘ यहाँ अभी वो पंडित जी आये थे कहाँ चले गये?’’

रमजान ने उŸार दिया-‘‘ पता नहीं, हमसे तो ऊपर की कह कर गये हैं।’’

मँूछें ऐंठते हुए वही व्यक्ति बोला- ‘‘जहाँ जाना था चले जाते। हमें हमारी मजदूरी तो देते जाते। बड़े साब से कहते हैं तो वे कहते हैं सब हिसाब-किताब इन्हीं पंडित जी के हाथ में है।’’

रमजान उन्हें संतोष देते हुए बोला-‘‘आप लोग चिंता नहीं करें। हमारे पंडित जी भगोड़ा नहीं है। वे अभी अभी ऊपर गये हैं आप लोग जल्दी से चले जायें। शायद वे ऊपर ही मिल जायें।’’

यह सुनकर सभी अपने अपने सब्बल को तलघर की सीढ़ियों पर पटक-पटक कर घुंघरू बजाते हुए ऊपर चले गये।

उनके जाते ही दौड़ा-दौड़ा चंदन तलघर में आया और बोला -’’आप को साब लोग चौक में बुला रहे हैं।’’

रमजान चंद्रावती से बोला-‘‘चलो चंदा अपनी परीक्षा की घड़ी निकट आ गई है।’’

‘‘चलो चलते हैं। कीचड़ भरे रास्ते में फँस गये हैं तो कीचड़ मेंसनना ही पड़ेगा।’’

चंद्रावती रमजान की बात का समर्थन करते हुए सीढ़ियों पर चढ़ने लगी, रमजान के पीछे-पीछे चलकर चौक में उस चबूतरे के पास पहुँच गयी।

चंद्रावती ने उस शिलालेख को जोर जोर से पढ़ा -‘‘इस किले को उलट दो।’’

फिर चंद्रावती पंडित दीनदयाल शर्मा की ओर मुड़ी और बोली - ‘‘ पंडित जी पहले इस शिलालेख का पूजन तो कराईये।’’

पूजा की बात सुनकर पंडित कैलाशनारायण शास्त्री मंदिर से पूजा की थाली लेने चले गये।

विश्वनाथ त्यागी सेठ रामदास को संबोधित कर बोला -‘‘देखा सेठ जी हमारे सेठ बैजनाथ जी की सुपुत्री कितनी चतुर हैं।’’

चन्द्रावती और रमजान उसकी बात के भाव को समझ गये-‘‘यह कहकर सेठ जी को प्रभाव में लिया जा रहा है।’’

पंडित कैलाश नारायणशास्त्री पूजा की थाली ले आये। पंडित दीनदयाल शर्मा ने सेठ रामदास से पहले शिलाखंड पर जल छिड़कवाते हुए पवित्रता का मंत्र पढ़ा-

ऊँ अपवित्रोः पवित्रो वा सर्वास्थां गतो ऽ पि वा।

या स्मरेत पुण्डरीकाक्षम्ं सः बाह्य अभ्यातरंः शुचिः ।।

फिर उन्होंने गणेश जी का पूजन किया। नारियल फोड़ा। उस शिलाखण्ड की बड़े प्रेम से गा-गा कर आरती की -

ऊँ जय जगदीश हरे,

स्वामी जय जगदीश हरे।।

भक्त जनों के संकट,

क्षण में दूर करे!... ऊँ जय जगदीश हरे।

आरती के बाद सभी उपस्थित जनों में प्रसाद बाँटा गया। जब इस कार्य से निवृŸा हो गये तो सभी रमजान और चंद्रावती के चेहरे की ओर देखने लगे। चंद्रावती समझ गई कि इस इबारत का मतलब मुझे प्रगट करना चाहिये। बात में गलती हुई तो बाद में उसे रमजान सभाँल लेगा यह सोचकर बोली - ‘‘इस शिलालेख का मतलब किले को उलटने से कतई नहीं है, अब भला किला कैसे उलटा जाएगा ? आप तो इस पत्थर को उलट कर देखें।’’

चंद्रावती की बात सुन वहाँ उपस्थित लोग एक दूसरे की तरफ बिस्मय से देखने लगे।

त्यागी ने इशारा किया तो चारों मजदूरों ने अपने अपने सब्बल उस शिलाखण्ड में लगाये। उन लोगों ने आसानी से उसे उखाड़ लिया और फिर उलट करके रख दिया। रमजान ने मिट्टी से लिथड़े उस शिलाखंड पर नजर डालते हुए कहा-‘‘आश्चर्य, इतना बडा आश्चर्य। अरे! भाई इस पत्थर की इस तरफ की मिट्टी तो साफ करें।’’

वह मँूछों वाला व्यक्ति उन तीन मजदूरों से अकड़कर बोला ‘‘खड़े-खडे तमाशा देख रहे हो इसे जल्दी साफ करो।’’

उन तीनों ने मिलकर उसे साफ कर दिया। वहाँ लिखे अक्षर साफ-साफ दिखाई पड़ने लगे। रमजान ने उस इबारत को गौर से पढ़ा, और बोला-‘‘ओऽ...होऽऽ...तो ये बात है ! ’’

सेठ रामदास ने पूछा-‘‘क्या बात ?’’

रमजान ने उनकी बात का उत्तर दिया -‘‘यही, यह उस स्थान की ओर संकेत है जहाँ...।’’ चन्द्रावती बात काटते हुए बोली-‘‘लेकिन भैया यह बात मेरी स्मृृति में नहीं आ रही है यह किस स्थान की ओर संकेत है?’’

रमजान बोला-‘‘यह याद करना पडेगा।’’

विश्वनाथ त्यागी बोला-‘‘रमजान जी इस पर यह लिखा क्या हैै ?’’

रमजान ने नम्रता से उत्तर दिया-‘‘आप पढ़े-लिखे है साफ-साफ तो लिखा है। आप इसे पढ़कर देख लें।’’

विश्वनाथ त्यागी ने शिलालेख की ओर गौर से देखते हुये उत्तर दिया - ‘‘मेरी समझ में इसमें कुछ भी नहीं आ रहा है।’’

इसी समय पंडित कैलाशनारायण शास्त्री से रमजान की नजरें मिली । वह बोला-‘‘लो इसका मतलब तो हमारे शास्त्री काका ही बतला सकते हैं उनके लिए यह कौन बडी बात है ?’’

यह सुनकर शास्त्री जी का स्वाभिमान जागा वे उस इबारत को जोर जोर से पढ़ने लगे- ‘‘दक्षिण पश्चिम कोने में पत्थरांे का किला है जो उसे मिटा देगा उसी के पाप मोक्ष हो जायेंगे ।’’

रमजान ने उत्सुकता से उनकी ओर देखते हुए पूछा -‘‘शास्त्री काका, कुछ समझे ।’’

उन्होंने सिर हिला कर मना की और बोले -‘‘उनकी समझ में कुछ भी नहीं आया।’’

चन्द्रावती दो कदम आगे बढकर बोली -‘‘काका, आप तो इसका मतलब ग्वालियर निवसी सेठ रामदास से पूछ लें। वे इसका सही सही भाव बतला देगंे ....और हाँ जब ये न बता पाये तो हम तल घर में हैं वहाँ आकर ये हमसे पूछ लें हम इन्हें ही बतायेंगे।’’

रमजान समझ गया इस शिलालेख का संकेत प्रकट करने से पहले चन्द्रावती सेठ रामदास से बातें करना चाहती है। कहीं ये इससे विवाह करने तैयार तो नहीं हो रही है, सम्भव है विवाह करने की मना करना चाहती हो। यह सोचकर उसके मन की बात जानने के उद्देश्य से बोला-‘‘चन्द्रा चलो ,इस समय आराम करने की इच्छा हो रही है।’’

चन्द्रावती उसके पीछे पीछे चलकर उसी तलघर में पहुँच गई।