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मां आखिर मां होती है

नमस्कार मेरे मातृभारती के दोस्तों, आज मैं आपके लिए एक कहानी लेकर आया हूं, मां की कभी खत्म ना होने वाले प्यार की उसमें अपार स्नेह की ,आई अब कहानी शुरू करते हैं।

मनोहर भाई अपनी पत्नी मनोरमा के सहयोग से अच्छा व्यवसाय कर धन उपार्जन कर सुखी संसार चला रहे थे। शादीशुदा जीवन के 2 वर्ष में मनोरमा नेेे एक पुत्र को जन्म दिया, पुत्र का नाम जयेंद्र रखा गया , जयेंद्र वक्त के साथ खेलता कुत्ता बड़ा होता गया, जयेंद्र की कान्हा सी अटखेलियां एवं हरकतें मनोहर मनोहर का दिल हर लेते और अपने आप को बहुत ही खुशकिस्मत समझते हैं।

जयेंद्र स्कूल एवं कॉलेज की शिक्षा पूरी कर, खुद का अपना व्यवसाय शुरू किया। और आर्थिक रूप से सुखी संपन्न हो रहा, यह देख मनोहर और मनोरमा का दिल खुशियों से भर गया और अपने बेटे के लिए शादी के अरमान सजाने लगे।

जयेंद्र की शादी सुलोचना नाम की एक सुंदर सुशील एवं आकर्षक सुशिक्षित लड़की से विवाह संपन्न हुआ। जयेंद्र और सुलोचना की शादी शुदा जिंदगी यूं तो बहुत खुशियों से भरी हुई थी। पर मनोहर भाई और मनोरमा अभी दादा-दादी नहीं बन पाए थे। बस यही कमी उनको खल रही थी, हर तरफ से सुखी थे , पर घर एक बच्चे की किलकारी की गुंज को तरस रहा था।

एक दिन सुलोचना के बहकावे में आकर जयेंद्र ने अपने माता पिता को जो अब वृद्ध हो चुके थे उन्हें वृद्धाश्रम में रखने का फैसला किया, और मनोहर एवं मनोहर को वृद्धाश्रम में भेज दिया। अब जयेंद्र के जीवन में तूफान उठने शुरू रहे हो गए , उसके सुखी संसार में जैसे दुख दर्द की भरमार आ गई।

पहले सुलोचना को ब्लड कैंसर हुआ, और कुछ महीनों की मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा सहकर अंत में परलोक सिधार गई। इस बीच जयेंद्र को व्यवसाय में बहुत बड़ा घाटा हुआ, और जयेंद्र जैसे टूट कर बिखर सा गया इसके लिए ये दुःख दर्द को झेलना नामुमकिन सा हुआ। और पक्षाघात का मानसिक अटैक हुआ और उसका आधा अंग लकवा ग्रस्त हुआ।

जयेंद्र कीअवस्था में उसकी देखभाल करने वाला उसके पास रहने वाला अब कोई नहीं रहा। इस कारण उसकी हालत बहुत ही खराब हो रही, बिना नहाए धोए खाए पिए उसके बदन से बदबू आने लगीं, इस कारण सब उससे दूर होते रहे। जयेंद्र की इस अवस्था की जानकारी जब वृद्धाश्रम में रहते मनोहर एवं मनोरमा को हुई।

मनोरमा ने अपने बेटे पास जाने की इच्छा प्रकट की, पर मनोहर भाई अपने उस बेटे के पास जाना नहीं चाहते थे। मगर मनोरमा तो आखिर मां थी, उसका दिल बेटे की इस अवस्था को जानने के बाद कैसे आश्रम में रूकता। मनोरमा जयेंद्र के पास जाती हैं ,और बेटे की हालत देख कौन सी मां खुश रह सकता है। मनोरमा एक छोटे बच्चे की तरह अपने 32 साल के जवान बेटे का मल मूत्र साफ करती है, उसको नहीं लाती है खाना खिलाती है।

मनोहर भाई दरवाजे पर खड़े इस दृश्य देख रहे थे, मां की ममता को देख उनकी आंखों से आंसू बह निकले , और उनके मुंह से यह शब्द निकल गए " मां आखिर मां होती है "

दोस्तों दुनिया में सिर्फ एक मां का प्यार ही है जो कुछ भी हमसे मांगता नहीं हैं, बस देता ही जाता है। एक प्यार का स्नेह का ऐसा मीठा झरना है, जो कभी सूखता नहीं । अनवरत अपने बच्चों की तरफ सदा निश्चल बेहता रहता है। अपनी सारी पीड़ा तकलीफ मां तक भूल जाती है, जब अपने बच्चे दुःख दर्द में तकलीफों में पीड़ित होते हैं।

मातृभारती के दोस्तों मित्रों कैसी लगी आपको मेरी यह पहली कहानी, यह आप कमेंट करके मुझे जरूर बताइए। और मेरा हौसला बढ़ाइए । धन्यवाद

{ ✍️ मनिष कुमार "मित्र" 🙏}