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और वो लौट ही आया

और वो लौट ही आया

हवा की गति से भी तेज दौड़ती मोटर साइकिल पर पीछे बैठी आस्था ने पराग को कस कर पकड़ लिया ।ज़ोर ज़ोर से हंसती आस्था बहुत रोमांचित हो रही थी और पराग था कि मोटर साइकिल भगाए लिए जा रहा था ।पराग के लिए तो स्वर्गिक अनूभूति था ये पल जब उसकी आस्था इस तरह उसके बहुत नज़दीक यूँ लिपट कर बैठ जाती थी ।

आस्था और पराग दोनो बचपन के साथी थे ,साथ पढ़े साथ खेले साथ साथ दोनो स्कूल भी गए और अब मेडिकल कोलेज में भी एक साथ पढ़ रहे थे ।दोनो में बहुत प्यार था और जल्दी ही शादी के बंधन में बंधने वाले भी थे ।दोनो के परिवार भी इस रिश्ते से बेहद खुश थे।

पराग की माँ मधु तो आस्था को अपने बेटी जैसे प्यार करती थी ।आस्था अगर एक दिन भी घर ना आए तो वो बेचैन हो जाती थी ।पराग उनका इकलौता बेटा था ,माँ बाप की आँखो का तारा ।घर का इतना बड़ा कारोबार होते हुए भी पढ़ाई के प्रति समर्पित ।अमूमन जवान लड़के जब इतना पैसा विरासत में मिलता देखते है तो उनका पढ़ाई के प्रति रुझान कई बार कम हो जाता है पर पराग को तो हमेशा लगता था कि उसे अपनी ज़िंदगी में अपने बलबूते पर कुछ और बड़ा करना है ।

उसका मेडिकल का आख़री वर्ष चल रहा था ,मधु और विकास जी ने तय किया कि वो जल्दी ही उसे एक हॉस्पिटल बना कर देंगे जिसे पराग और आस्था अपने तरीक़े से चलाएँगे ।काफ़ी कुछ इसकी तैयारी भी हो चुकी थी ।

विकास और मधु पराग और आस्था की ग्रैजूएशन पर उन्हें ये तोहफ़ा देकर आश्चर्य चकित करना चाहते थे ।सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा था ।

पराग को तेज मोटर साइकिल चलाने का जुनून सा था ।विकास और मधु हमेशा चिंतित रहते थे और कई बार उसे कार लेने को भी कहा पर पराग नही माना ।और जब आस्था साथ होती तो उसका ये जुनून हद पार कर जाता ।

आज भी ऐसे ही देहरादून की सड़कों से होता मसूरी जाने वाली सड़क तक वो हमेशा की तरह आस्था को लिए मोटर साइकिल ले आया था ।ख़ुशनुमा मौसम और आस्था के साथ ने उसे उत्तेजना से भर दिया था ।

ठंडी ठंडी हवा से लहराते आस्था के बाल उसके चेहरे से बार बार लिपट जाते थे ,आज दोनो ने ही हेल्मेट नही पहना था ।

पराग खुश होकर ज़ोर ज़ोर से गाना गाने लगा ,आस्था ने भी सुर में और मिला दिया कि अचानक एक तीव्र पहाड़ी मोड़ आया और सामने से आती गाड़ी से बचने के प्रयास में जैसे ही पराग ने मोटर साइकिल का हैंडल घुमाया उसका बैलेंस बिगड़ गया और मोटर साइकिल सीधे खड्ड में जा गिरी ।आस्था गिरते गिरते एक पेड़ में फँस गयी पर पराग का सिर एक पत्थर से टकराया और उसने वहीं दम तोड़ दिया ।

किसी तरह पुलिस और स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें निकला गया ।आस्था को ज़्यादा चोटें नही आयी पर अचानक हुए इस हादसे ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया और वो गुमसम सी हो गयी ,ऐसी स्तब्ध जैसे कुछ महसूस ही ना कर पा रही हो ।एक बूँद भी आँसू की नही गिरी बस हरदम शून्य में ताकती रहती ।डॉक्टर ने बड़ी मुश्किल से नींद की दवा दे दे कर सुलाया ,उसे रुलाने की हर कोशिश बेकार हो गयी ।उस पर दुःख ने इतने गहरे से आघात किया था कि वो सोचने समझने की शक्ति खो बैठी थी ।

इधर पराग के माता पिता की तो दुनिया ही उजड़ चुकी थी और रही सही कसर आस्था की इस हालत ने पूरी कर दी । बेटा तो वो खो ही चुके थे पर जिसे दिल की गहराइयों से बेटी मान चुके थे उसकी ऐसी हालत उन्हें और अधिक तोड़ रही थी ।कोई नही समझ पा रहा था कि क्या किया जाए ।

आख़िर डॉक्टर की सलाह पर पराग की माँ को ही अपने कलेजे पर पत्थर रखकर एक निर्णय लेना पड़ा ।

आस्था अपने माता पिता के साथ कमरे में उसी अवस्था में गुमसम सी शून्य में ताक रही थी तभी मधु और विकास वहाँ आए ।मधु आस्था के पास बैठकर उसके सिर पर हाथ फेरने लगी पर आस्था ने कोई प्रतिक्रिया ज़ाहिर नही की ।मधु ने तब उसका हाथ अपने हाथ में लिया और उसकी अंगुली में पराग द्वारा पहनाई सगाई की अंगूठी को देखने लगी ।इस पर आस्था ने हल्की सी नज़र उस ओर घुमाई ,तब मधु ने रुँधे गले से आस्था से कहा ,आस्था ! हमारा पराग हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया ,अब वो कभी लौट कर नही आएगा ।लाओ बेटी ,अब तुम्हें भी इस रिश्ते के बंधन से मुक्त कर दूँ ।कहते कहते उन्होंने उसकी उँगली से अंगूठी निकालनी चाही और तभी आस्था जैसे बुरी तरह काँप गयी और उसने हाथ छुड़ा लिया ।

एक ज़ोर की चीख से सारा वातावरण जैसे हिल गया ,आस्था बुरी तरह बिलख रही थी और कह रही थी ,माँ मुझसे मेरे जीने का आख़री सहारा मत छीनो ।उसका रुका हुआ आँसुओ का बांध आख़िर टूट ही गया ,मधु और आस्था दोनो ही तड़प रही थी ,कौन किसे कैसे समझाए ? क्या कहकर तसल्ली दे ,ये बड़ा ही मुश्किल सवाल था ।

आस्था तो स्वयं को ही इस हादसे का ज़िम्मेदार ठहरा रही थी ,सबने उसे समझाने की बहुत कोशिश की मगर ये बात उसके मन में कहीं गहरे से घर कर गयी थी ।बार बार मधु से यही कहती ,माँ,मैंने आपसे आपका इकलौता बेटा छीन लिया ।ना मैं उसे मोटर साइकिल चलाने को कहती और ना ये हादसा होता ।मैं ख़ुद को कभी माफ़ नही कर सकूँगी ।काश! किसी तरह मैं आपको आपका बेटा लौटा सकती ।

मधु विकास और उसके अपने माता पिता सब समझाते पर उसे कुछ भी समझ नही आता था ।

वक्त पर किसका ज़ोर चला है जो अब चलता ? पर समय ही सबसे बड़ा मरहम भी होता है ।भले ही मन की ऐसी गहरी चोट कभी नही भरती ,आजीवन ज़ख़्म रिसता ही रहता है , पर जीना तो पड़ता ही है ।

दोनो एक दूसरे का दर्द बाँटने की कोशिश करती जीने का प्रयत्न करने लगी ।देखते देखते एक साल गुज़र गया ,आस्था बराबर घर आती रहतीऔर पराग के कमरे में जाकर कुछ समय अकेली बैठ जाती । और बार बार उसकी तस्वीर से कहती ,तुम लौट आओ ।

मधु और विकास भी अपना दुःख छिपाकर उसके सामने सामान्य रहने की कोशिश में लगे रहते ।विकास और मधु को अब ज़िंदगी में कोई मक़सद सा ही नज़र नही आता था बस यंत्रवत दिन गुज़ार रहे थे ।तभी मधु की छोटी बहन प्रिया अमेरिका से उनके पास आयी ।

प्रिया के आने से घर का माहौल थोड़ा बदला ,प्रिया ख़ुशमिज़ाज और बेहद ज़िंदादिल स्त्री थी ।उसने एक दिन दोनो को अपने पास बैठाया और समझाया कि जिस तरह दुखों के सागर में डूबकर वे दोनो जी रहे है इस तरह तो पराग की आत्मा को और भी कष्ट होगा ।उन्हें अपने जीवन में कोई मक़सद कोई प्रेरणा लानी होगी ताकि वे खुश रह सके ।

थोड़ा ठहर कर प्रिया ने इन दोनो से कहा , मैंने इस बारे में बहुत विचार किया है और कई लोगों से बात करने के बाद एक निर्णय लिया है । मेरे अनुसार आपकी एक और संतान होनी चाहिए ।

मधु और विकास उसकी बात सुनकर हैरान हो गए बोले ,तुम पागल हो गयी हो क्या ? ये हमारी उम्र है क्या बच्चे पैदा करने की ? कैसी बात कर रही हो ?

प्रिया ने फिर कहा ,नही दीदी ,अभी आपकी कोई इतनी उम्र है हुई है ।विदेशों में तो लोग इस उम्र में शादी करते है ।

मधु ने प्रिया को डाँट लगायी ,क्या बकवास है प्रिया ? बेसिरपैर की बातें मत करो ।पर प्रिया ठहरी ज़िद्दी ,एक ना सुनी बोली, मैंने सब कुछ रीसर्च कर ली है ।अब आप दोनो मेरी बात ध्यान से सुनो ।

आप दोनो की एक और संतान इस दुनिया में आएगी और भी सरोगेट माँ के माध्यम से ।

मधु और विकास हैरानी से उसकी ओर देख रहे थे ।प्रिया ने अपनी बात जारी रखी और बोली ,मुंबई में एक अस्पताल से मैंने बात की है ,जो सारा इंतज़ाम करते है ।आपको नही बताया जाएगा कौन स्त्री आपकी संतान को अपनी कोख में रखेगी और ना ही स्त्री को पता चलेगा कि वो किसकी संतान को जन्म देगी ।कोई भावनात्मक जुड़ाव या किसी क़िस्म की मुश्किल ना हो ऐसा इसलिए किया जाता है ।

बड़ा कठिन निर्णय था ,पहले तो मधु और विकास दोनो ही तैयार नही हुए। उन्हें बार। आर लगता समाज परिवार के लोग सब क्या कहेंगे ? पर प्रिया ने अपनी बात मनवा कर ही छोड़ी और उन दोनो को मुंबई ले गयी ।

वहाँ डॉक्टर ने उनकी अच्छी तरह जाँच की और कहा की कुछ टेस्ट आदि होंगे और कुछ होरमोंस के इंजेक्शन भी लेने होगे ,और खर्च क़रीब दस लाख होगा ।जो स्त्री उनके बच्चे को जन्म देगी उसकी भी सारी मेडिकल रिपोर्ट उन्हें दिखा दी जाएगी ।

काफ़ी विचार विमर्श के बाद दोनो ने आस्था से बात की ,क्यूँकि वो भी अब उनके जीवन का हिस्सा थी ।आस्था को लगा शायद इस तरह ही सही पराग लौट आएगा और उसे आत्मग्लानि से मुक्ति मिलेगी इसलिए उसने भी केवल सहर्ष स्वीकृति ही नही दी बल्कि उनका हौसला भी बढ़ाया ।

बस फिर क्या था नियति चक्र ऐसा चला कि तीन महीने के भीतर ही उनकी संतान सरोगेट माँ की कोख में पलने लगी । मधु और विकास दोनो को ही जीवन की एक नयी दिशा सी नज़र आने लगी थी ।आस्था का भी मनोबल जो टूट चुका था बढ़ने लगा और वो अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने में लग गयी ।

समय जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था ,डॉक्टर ने बताया था कि सब कुछ सही चल रहा है और जल्दी ही उन्हें संतान सुख प्राप्त होगा वो भी जुड़वां बच्चों का ।मधु और विकास अब बेहद प्रसन्न थे पर मधु के मन में ना जाने क्यों एक अव्यक्त सा डर भी घर कर रहा था ,कैसे करेगी वो ये सब ?

और एक दिन मुंबई से ख़बर आयी कि वे तुरंत चले आए ,बच्चों के जनम में अब देर नही ।अगली ही फ़्लाइट लेकर वे दोनो देहरादून से मुंबई रवाना हो गए ।अग़ले दिन उनके हाथों में दो प्यारे से बच्चे थे एक लड़का और एक लड़की । मधु और विकास के आँसू ही नही थम रहे थे ।

चार दिन बाद प्रिया और आस्था आरती का थाल लिए मधु और विकास की प्रतीक्षा में खड़ी थीं ।कार रुकी दोनो पति पत्नी बच्चों को लेकर उतरे ,वहाँ खड़े सभी की आँखे ख़ुशी से नाम थी ।

मधु ने बेटे को आस्था की गोद में थमाते कहा ,लो आस्था हमारा पराग वापस आ गया ।और आस्था उसे सीने से लगा कर बिलख पड़ी ।मधु प्रिया के गले लग कर रोते हुए बोली ,देख ना विधाता ने आज कैसा दिन दिखाया ? पोता खिलाने की उम्र में मैं .... उसका गला रुँधने लगा वो आगे कुछ ना बोल सकी ।

पाँच वर्ष बीत गए ,पराग और गायत्री अब स्कूल जाने लगे ।मधु और विकास ने जो हॉस्पिटल बनाया था अब आस्था ही उसकी देखभाल करती थी ,जिसमें गरीब बच्चों का मुफ़्त इलाज किया जाता था ।सबके बहुत कहने पर भी उसने शादी नही की , मधु और विकास ने हॉस्पिटल आस्था के नाम कर देना चाहा पर उसने कहा,ये हॉस्पिटल पराग और गायत्री की सम्पत्ति रहेगी और मैं जीवन भर इसी तरह यहाँ सेवा करती रहूँगी । मेरा पराग लौट आया है ,मुझे मेरी मंज़िल और जीने का मक़सद मिल गया है और मुझे कुछ नही

और वो लौट ही आया

हवा की गति से भी तेज दौड़ती मोटर साइकिल पर पीछे बैठी आस्था ने पराग को कस कर पकड़ लिया ।ज़ोर ज़ोर से हंसती आस्था बहुत रोमांचित हो रही थी और पराग था कि मोटर साइकिल भगाए लिए जा रहा था ।पराग के लिए तो स्वर्गिक अनूभूति था ये पल जब उसकी आस्था इस तरह उसके बहुत नज़दीक यूँ लिपट कर बैठ जाती थी ।

आस्था और पराग दोनो बचपन के साथी थे ,साथ पढ़े साथ खेले साथ साथ दोनो स्कूल भी गए और अब मेडिकल कोलेज में भी एक साथ पढ़ रहे थे ।दोनो में बहुत प्यार था और जल्दी ही शादी के बंधन में बंधने वाले भी थे ।दोनो के परिवार भी इस रिश्ते से बेहद खुश थे।

पराग की माँ मधु तो आस्था को अपने बेटी जैसे प्यार करती थी ।आस्था अगर एक दिन भी घर ना आए तो वो बेचैन हो जाती थी ।पराग उनका इकलौता बेटा था ,माँ बाप की आँखो का तारा ।घर का इतना बड़ा कारोबार होते हुए भी पढ़ाई के प्रति समर्पित ।अमूमन जवान लड़के जब इतना पैसा विरासत में मिलता देखते है तो उनका पढ़ाई के प्रति रुझान कई बार कम हो जाता है पर पराग को तो हमेशा लगता था कि उसे अपनी ज़िंदगी में अपने बलबूते पर कुछ और बड़ा करना है ।

उसका मेडिकल का आख़री वर्ष चल रहा था ,मधु और विकास जी ने तय किया कि वो जल्दी ही उसे एक हॉस्पिटल बना कर देंगे जिसे पराग और आस्था अपने तरीक़े से चलाएँगे ।काफ़ी कुछ इसकी तैयारी भी हो चुकी थी ।

विकास और मधु पराग और आस्था की ग्रैजूएशन पर उन्हें ये तोहफ़ा देकर आश्चर्य चकित करना चाहते थे ।सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा था ।

पराग को तेज मोटर साइकिल चलाने का जुनून सा था ।विकास और मधु हमेशा चिंतित रहते थे और कई बार उसे कार लेने को भी कहा पर पराग नही माना ।और जब आस्था साथ होती तो उसका ये जुनून हद पार कर जाता ।

आज भी ऐसे ही देहरादून की सड़कों से होता मसूरी जाने वाली सड़क तक वो हमेशा की तरह आस्था को लिए मोटर साइकिल ले आया था ।ख़ुशनुमा मौसम और आस्था के साथ ने उसे उत्तेजना से भर दिया था ।

ठंडी ठंडी हवा से लहराते आस्था के बाल उसके चेहरे से बार बार लिपट जाते थे ,आज दोनो ने ही हेल्मेट नही पहना था ।

पराग खुश होकर ज़ोर ज़ोर से गाना गाने लगा ,आस्था ने भी सुर में और मिला दिया कि अचानक एक तीव्र पहाड़ी मोड़ आया और सामने से आती गाड़ी से बचने के प्रयास में जैसे ही पराग ने मोटर साइकिल का हैंडल घुमाया उसका बैलेंस बिगड़ गया और मोटर साइकिल सीधे खड्ड में जा गिरी ।आस्था गिरते गिरते एक पेड़ में फँस गयी पर पराग का सिर एक पत्थर से टकराया और उसने वहीं दम तोड़ दिया ।

किसी तरह पुलिस और स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें निकला गया ।आस्था को ज़्यादा चोटें नही आयी पर अचानक हुए इस हादसे ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया और वो गुमसम सी हो गयी ,ऐसी स्तब्ध जैसे कुछ महसूस ही ना कर पा रही हो ।एक बूँद भी आँसू की नही गिरी बस हरदम शून्य में ताकती रहती ।डॉक्टर ने बड़ी मुश्किल से नींद की दवा दे दे कर सुलाया ,उसे रुलाने की हर कोशिश बेकार हो गयी ।उस पर दुःख ने इतने गहरे से आघात किया था कि वो सोचने समझने की शक्ति खो बैठी थी ।

इधर पराग के माता पिता की तो दुनिया ही उजड़ चुकी थी और रही सही कसर आस्था की इस हालत ने पूरी कर दी । बेटा तो वो खो ही चुके थे पर जिसे दिल की गहराइयों से बेटी मान चुके थे उसकी ऐसी हालत उन्हें और अधिक तोड़ रही थी ।कोई नही समझ पा रहा था कि क्या किया जाए ।

आख़िर डॉक्टर की सलाह पर पराग की माँ को ही अपने कलेजे पर पत्थर रखकर एक निर्णय लेना पड़ा ।

आस्था अपने माता पिता के साथ कमरे में उसी अवस्था में गुमसम सी शून्य में ताक रही थी तभी मधु और विकास वहाँ आए ।मधु आस्था के पास बैठकर उसके सिर पर हाथ फेरने लगी पर आस्था ने कोई प्रतिक्रिया ज़ाहिर नही की ।मधु ने तब उसका हाथ अपने हाथ में लिया और उसकी अंगुली में पराग द्वारा पहनाई सगाई की अंगूठी को देखने लगी ।इस पर आस्था ने हल्की सी नज़र उस ओर घुमाई ,तब मधु ने रुँधे गले से आस्था से कहा ,आस्था ! हमारा पराग हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया ,अब वो कभी लौट कर नही आएगा ।लाओ बेटी ,अब तुम्हें भी इस रिश्ते के बंधन से मुक्त कर दूँ ।कहते कहते उन्होंने उसकी उँगली से अंगूठी निकालनी चाही और तभी आस्था जैसे बुरी तरह काँप गयी और उसने हाथ छुड़ा लिया ।

एक ज़ोर की चीख से सारा वातावरण जैसे हिल गया ,आस्था बुरी तरह बिलख रही थी और कह रही थी ,माँ मुझसे मेरे जीने का आख़री सहारा मत छीनो ।उसका रुका हुआ आँसुओ का बांध आख़िर टूट ही गया ,मधु और आस्था दोनो ही तड़प रही थी ,कौन किसे कैसे समझाए ? क्या कहकर तसल्ली दे ,ये बड़ा ही मुश्किल सवाल था ।

आस्था तो स्वयं को ही इस हादसे का ज़िम्मेदार ठहरा रही थी ,सबने उसे समझाने की बहुत कोशिश की मगर ये बात उसके मन में कहीं गहरे से घर कर गयी थी ।बार बार मधु से यही कहती ,माँ,मैंने आपसे आपका इकलौता बेटा छीन लिया ।ना मैं उसे मोटर साइकिल चलाने को कहती और ना ये हादसा होता ।मैं ख़ुद को कभी माफ़ नही कर सकूँगी ।काश! किसी तरह मैं आपको आपका बेटा लौटा सकती ।

मधु विकास और उसके अपने माता पिता सब समझाते पर उसे कुछ भी समझ नही आता था ।

वक्त पर किसका ज़ोर चला है जो अब चलता ? पर समय ही सबसे बड़ा मरहम भी होता है ।भले ही मन की ऐसी गहरी चोट कभी नही भरती ,आजीवन ज़ख़्म रिसता ही रहता है , पर जीना तो पड़ता ही है ।

दोनो एक दूसरे का दर्द बाँटने की कोशिश करती जीने का प्रयत्न करने लगी ।देखते देखते एक साल गुज़र गया ,आस्था बराबर घर आती रहतीऔर पराग के कमरे में जाकर कुछ समय अकेली बैठ जाती । और बार बार उसकी तस्वीर से कहती ,तुम लौट आओ ।

मधु और विकास भी अपना दुःख छिपाकर उसके सामने सामान्य रहने की कोशिश में लगे रहते ।विकास और मधु को अब ज़िंदगी में कोई मक़सद सा ही नज़र नही आता था बस यंत्रवत दिन गुज़ार रहे थे ।तभी मधु की छोटी बहन प्रिया अमेरिका से उनके पास आयी ।

प्रिया के आने से घर का माहौल थोड़ा बदला ,प्रिया ख़ुशमिज़ाज और बेहद ज़िंदादिल स्त्री थी ।उसने एक दिन दोनो को अपने पास बैठाया और समझाया कि जिस तरह दुखों के सागर में डूबकर वे दोनो जी रहे है इस तरह तो पराग की आत्मा को और भी कष्ट होगा ।उन्हें अपने जीवन में कोई मक़सद कोई प्रेरणा लानी होगी ताकि वे खुश रह सके ।

थोड़ा ठहर कर प्रिया ने इन दोनो से कहा , मैंने इस बारे में बहुत विचार किया है और कई लोगों से बात करने के बाद एक निर्णय लिया है । मेरे अनुसार आपकी एक और संतान होनी चाहिए ।

मधु और विकास उसकी बात सुनकर हैरान हो गए बोले ,तुम पागल हो गयी हो क्या ? ये हमारी उम्र है क्या बच्चे पैदा करने की ? कैसी बात कर रही हो ?

प्रिया ने फिर कहा ,नही दीदी ,अभी आपकी कोई इतनी उम्र है हुई है ।विदेशों में तो लोग इस उम्र में शादी करते है ।

मधु ने प्रिया को डाँट लगायी ,क्या बकवास है प्रिया ? बेसिरपैर की बातें मत करो ।पर प्रिया ठहरी ज़िद्दी ,एक ना सुनी बोली, मैंने सब कुछ रीसर्च कर ली है ।अब आप दोनो मेरी बात ध्यान से सुनो ।

आप दोनो की एक और संतान इस दुनिया में आएगी और भी सरोगेट माँ के माध्यम से ।

मधु और विकास हैरानी से उसकी ओर देख रहे थे ।प्रिया ने अपनी बात जारी रखी और बोली ,मुंबई में एक अस्पताल से मैंने बात की है ,जो सारा इंतज़ाम करते है ।आपको नही बताया जाएगा कौन स्त्री आपकी संतान को अपनी कोख में रखेगी और ना ही स्त्री को पता चलेगा कि वो किसकी संतान को जन्म देगी ।कोई भावनात्मक जुड़ाव या किसी क़िस्म की मुश्किल ना हो ऐसा इसलिए किया जाता है ।

बड़ा कठिन निर्णय था ,पहले तो मधु और विकास दोनो ही तैयार नही हुए। उन्हें बार। आर लगता समाज परिवार के लोग सब क्या कहेंगे ? पर प्रिया ने अपनी बात मनवा कर ही छोड़ी और उन दोनो को मुंबई ले गयी ।

वहाँ डॉक्टर ने उनकी अच्छी तरह जाँच की और कहा की कुछ टेस्ट आदि होंगे और कुछ होरमोंस के इंजेक्शन भी लेने होगे ,और खर्च क़रीब दस लाख होगा ।जो स्त्री उनके बच्चे को जन्म देगी उसकी भी सारी मेडिकल रिपोर्ट उन्हें दिखा दी जाएगी ।

काफ़ी विचार विमर्श के बाद दोनो ने आस्था से बात की ,क्यूँकि वो भी अब उनके जीवन का हिस्सा थी ।आस्था को लगा शायद इस तरह ही सही पराग लौट आएगा और उसे आत्मग्लानि से मुक्ति मिलेगी इसलिए उसने भी केवल सहर्ष स्वीकृति ही नही दी बल्कि उनका हौसला भी बढ़ाया ।

बस फिर क्या था नियति चक्र ऐसा चला कि तीन महीने के भीतर ही उनकी संतान सरोगेट माँ की कोख में पलने लगी । मधु और विकास दोनो को ही जीवन की एक नयी दिशा सी नज़र आने लगी थी ।आस्था का भी मनोबल जो टूट चुका था बढ़ने लगा और वो अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने में लग गयी ।

समय जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था ,डॉक्टर ने बताया था कि सब कुछ सही चल रहा है और जल्दी ही उन्हें संतान सुख प्राप्त होगा वो भी जुड़वां बच्चों का ।मधु और विकास अब बेहद प्रसन्न थे पर मधु के मन में ना जाने क्यों एक अव्यक्त सा डर भी घर कर रहा था ,कैसे करेगी वो ये सब ?

और एक दिन मुंबई से ख़बर आयी कि वे तुरंत चले आए ,बच्चों के जनम में अब देर नही ।अगली ही फ़्लाइट लेकर वे दोनो देहरादून से मुंबई रवाना हो गए ।अग़ले दिन उनके हाथों में दो प्यारे से बच्चे थे एक लड़का और एक लड़की । मधु और विकास के आँसू ही नही थम रहे थे ।

चार दिन बाद प्रिया और आस्था आरती का थाल लिए मधु और विकास की प्रतीक्षा में खड़ी थीं ।कार रुकी दोनो पति पत्नी बच्चों को लेकर उतरे ,वहाँ खड़े सभी की आँखे ख़ुशी से नाम थी ।

मधु ने बेटे को आस्था की गोद में थमाते कहा ,लो आस्था हमारा पराग वापस आ गया ।और आस्था उसे सीने से लगा कर बिलख पड़ी ।मधु प्रिया के गले लग कर रोते हुए बोली ,देख ना विधाता ने आज कैसा दिन दिखाया ? पोता खिलाने की उम्र में मैं .... उसका गला रुँधने लगा वो आगे कुछ ना बोल सकी ।

पाँच वर्ष बीत गए ,पराग और गायत्री अब स्कूल जाने लगे ।मधु और विकास ने जो हॉस्पिटल बनाया था अब आस्था ही उसकी देखभाल करती थी ,जिसमें गरीब बच्चों का मुफ़्त इलाज किया जाता था ।सबके बहुत कहने पर भी उसने शादी नही की , मधु और विकास ने हॉस्पिटल आस्था के नाम कर देना चाहा पर उसने कहा,ये हॉस्पिटल पराग और गायत्री की सम्पत्ति रहेगी और मैं जीवन भर इसी तरह यहाँ सेवा करती रहूँगी । मेरा पराग लौट आया है ,मुझे मेरी मंज़िल और जीने का मक़सद मिल गया है और मुझे कुछ नही चाहिए ।