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पुनर्जन्म

पुनर्जन्म

गुरुद्वारे की ठंडी ठंडी सीढ़ियों पर कदम रखती हरदीप आँखो में नमी और हृदय में आशा लिए वाहे गुरु का जप करती जा रही थी ।रोज़ की तरह आज फिर वाहेगुरु से अरदास करेगी अपनी नन्ही सी बच्ची की ज़िंदगी के लिए ।कितना समय गुज़र गया अस्पतालों के चक्कर लगाते ।नन्ही सी जान को हाथों में उठाए फिरती थी अपनी बेटी और दामाद के साथ हरदीप ।

पूरे तीन महीने बीत गए उसे इंडिया से यहाँ अमेरिका आए हुए ।कोई एक दिन भी ऐसा नही गया जब वो गुरुद्वारे ना आयी हो।ये संस्कार तो उसे विरासत में मिले थे अपने पापा से ,कड़कती ठंड हो या तपती गर्मी ,मूसलाधार वर्षा तक भी उसके पापा के कदमों की बेड़ियाँ नही बन पायी कभी ।हर सुबह हर दिन नंगे पैर गुरुद्वारे जाना उनका नियम था जिसमें उन्होंने कभी कोई विघ्न आने नही दिया ।उनका विश्वास और अटूट श्रद्धा ही शायद उन्हें इतना मज़बूत बनाती थी । भले ही घर आकर उनके पैरों में लगे काँटे हरमाला और जीत निकाले ,पर वो अपना नंगे पैर जाने का नियम नही तोड़ते थे ।हरदीप का ये विश्वास उसके पापा की ही देन था ।इस कठिन समय को भी वो वाहेगुरु की कृपा से अवश्य पार कर लेगी ,ऐसा दृढ़ विश्वास उसके हृदय में था ।

आज तक कितनी बाधाओं से जूझते ,कितनी कठिनाइयों से लड़ते उसने ज़िंदगी का सफ़र तय किया था ।पाँच भाइयों की एकलौती बहन खूब प्यार पाया पर विवाह में देर से देर होती गयी ।कोई अच्छा रिश्ता ही नही मिलता था और अगर मिलता भी तो दहेज की माँग इतनी बड़ी होती कि उसे पूरा करना उसके पापा के वश से बाहर था । पर गुरु महाराज की कृपा से देर से ही सही एक अच्छा रिश्ता मिल ही गया ।बहुत दूर भुवनेश्वर में उसके पति का कारोबार था ,अच्छे लोग थे ।थोड़े ही समय में उसका एक बेटा भी हो गया । उसके पति के बड़े भाई भी साथ ही रहते थे उनकी कोई संतान नही थी ।उनके विवाह को दस वर्ष बीत चुके थे पर संतान का सुख नही देख पाए थे ।एक दिन उसके पति और बाक़ी घर वालों ने उसके सामने प्रस्ताव रखा की हरदीप की होने वाली दूसरी संतान को बड़े भाई को दे दिया जाएगा ।हरदीप के पैरो तले ज़मीन खिसक गयी ,ऐसा कैसे हो सकता है ? नही नही वो कभी ऐसा नही कर सकती ,नौ महीने जिसे कोख में रखा उसे किसी और को कैसे दे दे ।पर घरवालों की दलीलों के सामने उसकी एक ना चली ।”अपना बच्चा किसी पराए को तो नही दे रहे यही घर में ही पलेगा हमारी आँखो के सामने रहेगा ।” उसके पति ने उसे समझाया । बड़ी मुश्किल से कलेजे पर पत्थर रखकर उसने अपनी अगली संतान अपना दूसरा बेटा जेठानी की झोली में डाल दिया । कितने ही दिन सबसे छुपछुप कर रोती भी रही ।जेठानी ने उसे बच्चे को दूध भी नही पिलाने दिया ये कहकर कि मोह पड़ जाएगा तो सबको मुश्किल होगी । हरदीप जेठानी के बदलते व्यवहार से थोड़ा चकित और परेशान हो गयी । पति से कहा तो बोले ,” भाभी ठीक ही कह रही है जब हमने बच्चा उन्हें दे ही दिया तो अब उनकी मर्ज़ी जैसे चाहे रखे ।हरदीप कुछ भी ना कह सकी ,अपने ही कोख जाए को गोद में उठाना तो दूर एक झलक तक देखने को तरसने लगी ।फिर उसने कलेजे पर पत्थर रख लिया ।पहली बार जब उसी के बच्चे ने उसे चाची कहा तो उसका कलेजा छलनी हो गया । दिन गुज़रने लगे और उनका आपस में खिंचाव बढ़ने लगा ।उसके जेठ जी का अचानक देहांत हो गया ,जेठानी ने कारोबार से अपना हिस्सा समेत और सबके लाख रोकने के बावजूद घर छोड़कर कर चली गयी अपने भाई के पास न्यूजीलैंड ।हरदीप छटपटा कर रह गयी ,कुछ ना कर सकी क्यूँकि क़ानूनन अब उसका अपने बेटे मनिंदर पर कोई हक़ नही बनता था ।

फिर उसकी एक बेटी और हुई बानी ,जिसे देखकर वो अपना दर्द अपनी पीड़ा किसी हद तक भूल गयी ।कभी कभी मन में ख़याल आता कैसा लगता होगा मेरा बेटा बड़ा होकर ? अब तो शायद कही मिल भी जाए तो क्या पहचानेगा उसे ? इन सवालों का कोई जवाब नही था उसके पास। बानी और सविंदर ने अपनी पढ़ाई खतम कर ली ।सविंदर अपने पापा के साथ कारोबार सम्भालने लगा और बानी शादी के बाद अमेरिका आ गयी अपने पति के साथ ।अग़ले ही वर्ष बानी की बेटी हुई ,एकदम परी बहुत सुंदर बहुत प्यारी ।हरदीप तब पहली बार अमेरिका आयी अपनी नातिन की देखभाल के लिए ।बानी और उसका पति दोनो ही नौकरी करते थे तो वो ही परी को सम्भालती ।जब हरदीप इंडिया जाती तो बानी की सास आ जाती ।उसने अपने बेटे सविंदर की शादी भी कर दी थी तो वो आसानी से घर छोड़ सकती थी ।सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक दुर्भाग्य ने बानी के घर दस्तक दे दी ।डॉक्टर ने बताया कि परी को कैन्सर है ,इस दुर्भाग्यपूर्ण समाचार ने एक बार फिर हरदीप को झकझोर कर रख दिया ।ईश्वर और कितनी परीक्षा लेगा अभी ? बार बार अस्पताल के चक्कर ,कितने कितने दिन परी को अस्पताल में रहना पड़ता ,अब तो वो ज़्यादातर अमेरिका ही रहने लगी ।उसे हरदम बस एक ही आस रहती ,वो बस एक ही अरदास करती ,किसी तरह परी ठीक हो जाए ।डॉक्टर आशावान थे कि शायद कैन्सर को जड़ से ख़त्म कर ही देंगे ।रोज़ नियम से गुरुद्वारे जाती ,मत्था टेकती ,आँसू से भरी आँखे लिए वही बैठकर जप करती रहती । आज भी उसने यही किया ।भारी कदमों से फिर अस्पताल की ओर चल दी ताकि बानी अपने काम पर जा सके । परी के कमरे में जाने से पहले उसने अपने चेहरे को संयत किया ।बरबस एक मुस्कुराहट होठों पर लाने की कोशिश करती वो भीतर गयी ।परी उसे देखकर मुस्कुरायी ,हमारी बिटिया कैसी है आज ? उसने परी से पूछा ।नानी ! आप जब कहानी सुनाओगी तभी मुझे अच्छा लगेगा । हरदीप मुस्कुराते हुए बोली ,अरे क्यू नही ,आज तो मैं अपनी बिटिया रानी को नई कहानी सुनाऊँगी ।बानी अपने ऑफ़िस चली गयी और वो बड़े प्यार से परी का सिर सहलाते बोली ,”अभी डॉक्टर आएँगे परी से मिलने ,उसका हाल पूछने ,उसके बाद नानी परी को कहानी सुनाएगी ।”

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई और परी के डॉक्टर ने प्रवेश किया उनके साथ एक और व्यक्ति था ,लम्बा तगड़ा ख़ूबसूरत सा जवान लड़का ।उन्होंने परिचय करवाते हुए कहा ,ये डॉक्टर सिंह है ,अभी हमारे हॉस्पिटल में आए है विशेष रूप से कैन्सर पीड़ित बच्चों की देखभाल के लिए ।” हरदीप ने नज़र भर कर देखा ना जाने कैसी कशिश सी जागृत हुई ,वो देखती ही रह गयी ।डॉक्टर सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा ,माँजी फ़िक्र ना करो ,वाहे गुरु चाहेंगे तो सब ठीक होगा ।कितने दिनो बाद अपनी भाषा सुनकर वो आशान्वित हो गयी ।पता नही क्यों ऐसा लगा अब परी ठीक हो जाएगी ,डॉक्टर सिंह को देखती ही रह गयी वो ,उसके दिल के तार से झनझना उठे थे ।कुछ तो बात है इस लड़के में ,क्यूँ इतना अपना सा लग रहा है ? वो सोचने लगी ।

डॉक्टर सिंह ने पूरी तसल्ली से सारी रिपोर्ट्स देखी ,परी के डॉक्टर से चर्चा की ,फिर बोले मैं आज शाम तक आपको पूरी जानकारी दूँगा कि क्या किया जा सकता है और क्या सम्भावना है आगे ।हरदीप को लगा जैसे कोई देवदूत उसकी ज़िंदगी में आ गया ,अब उसे कोई डर नही ,कोई चिंता नही ,सब ठीक होगा ।

शाम को जाते हुए वो फिर गुरुद्वारे गयी मत्था टेकने ,शुकराना करने। बानी भी बहुत खुश थी कि शायद अब परी की ज़िंदगी से ख़तरा टल जाएगा ।

अग़ले दिन डॉक्टर ने बताया कि परी को किसी अपने रक्त सम्बन्धी का बोन मैरो अगर दिया जाए तो वो ठीक हो सकती है ।अग़ले दो तीन दिन बानी ,उसके पति सबके टेस्ट किए गए पर किसी का भी बोन मैरो मैच नही हुआ ।फिर निराशा की लहर दौड़ गयी ।डॉक्टर ने कहा कि कोई और रक्त सम्बन्धी अगर हो तो ,हरदीप को सविंदर का ख़याल आया पर वो शुगर का मरीज़ था ,उसके लिए बोन मैरो देना असम्भव था ।अब क्या होगा ? ये प्रशन सबको खा रहा था ।वो गुरुद्वारे जाकर बैठ गई ,उसकी आँखे लगातार बरस रही थी ।वाहे गुरु अब तेरा ही आसरा है ,मेहर कर मेरे सच्चे बादशाह ।उस ने अरदास की ।गुरुद्वारे में लोग आ रहे थे ,तभी उसकी नज़र डॉक्टर सिंह पर पड़ी वो किसी औरत को सहारा दिए भीतर आए । ज़रूर उसकी माँ होगी हरदीप ने सोच कर उधर ध्यान से देखा ।स्त्री की पीठ उसकी तरफ़ थी ,वो बाबा जी को मत्था टेक रही थी ।मत्था टेक कर जैसे ही वो मुड़ी ,वो दंग रह गयी ।वो उसकी जेठानी थी ,तो क्या डॉक्टर सिंह उसका ....... उसकी आँखो में बिजली सी कौंध गयी ,कलेजा धक धक करने लगा । उसने उठना चाहा पर कदम जैसे ज़मीन से चिपक गए ,तभी डॉक्टर सिंह की अजर उस पर पड़ी ,वो मुस्कुराता हुआ उसके पास आया तब तक हरदीप ने खुद को थोड़ा सम्भाल लिया था । अरे आप यहाँ ? कैसी है आप ? ये मेरी माँ है और माँ ये हरदीप जी है ,मैंने आपको बताया था ना जिनके बारे में ।उसकी जेठानी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया ,मुँह से एक शब्द नही निकला । नियति ने कैसे बरसों बाद दोनो को एक दूसरे के सामने लाकर खड़ा कर दिया ।क्या हुआ माँ ? क्या आप इन्हें जानती है ? डॉक्टर सिंह ने पूछा । हरदीप की आँखे बरस रही थी वो अपने कोख जाए को एक बार सीने से लगाना चाहती थी । डॉक्टर सिंह ने दोनो की हालत देखी फिर अपना प्रश्न दोहराया ,”माँ क्या हुआ ,क्या आप इन्हें जानती है ? “ गुरुद्वारे में खड़ी होकर उसकी जेठानी चाह कर भी झूठ ना बोल सकी ,ना जाने किस शक्ति ने उसके मुँह से निकलवा ही दिया ,” मनिंदर, ये ही तेरी असली माँ है ।उनकी आँखे बरसने लगी ,बोली ,” हरदीप ! हो सके तो मुझे माफ़ कर देना मैंने तुझे तेरे ही खून से अलग कर दिया ।तूने मेरी ख़ाली गोद भर दी और बदले में मैंने तुझे क्या दिया ? जीवन भर के आँसू ! मुझे माफ़ कर दे मेरी बहन ।कहते हुए उन्होंने मनिंदर का हाथ उसके हाथ में दे दिया ,ले लगा ले सीने से अपने बेटे को ,बुझा ले अपनी ममता की प्यास । मनिंदर हैरान सा अपनी दोनो माँओं को देख रहा था और हरदीप उसे सीने से लगाए बिलख रही थी ।

तभी बानी अपने पति के साथ वह आयी अपनी माँ को वापस घर ले जाने ,वहाँ का मंजर देखकर वो हैरान हो गयी ।और तब उसे पता चला कि डॉक्टर मनिंदर और कोई नही उसका बड़ा भाई है तो उसके आश्चर्य और ख़ुशी का ठिकाना नही रहा । ऐसा लग रहा था वो कोई फ़िल्म देख रही है ,वो वीर जी कहकर भाई से लिपट गयी ,और मनिंदर हैरान परेशान सा देख रहा था ,जैसे उसे कुछ समझ ही नही आ रहा था ।

थोड़ा संभल कर वो बोला ,” माँ ,आप क्या कह रही है ये ? आपने आज तक मुझे क्यू नही बताया ? उसकी माँ कुछ ना कह सकी ,कहती भी क्या ? बस सिर झुकाकर सबके सामने हाथ जोड़ लिए ।

कितना सुखद संयोग था ,आज एक माँ को अपना बिछड़ा बेटा मिला ,बरसों से ममता की प्यासी आँखे बरसती ही चली जा रही थीं ।हरदीप ने एक बार फिर गुरु महाराज के सामने शीश नवाँ दिया ।

परी तो हैरान ही रह गयी ये जानकर कि उसका डॉक्टर और कोई नही उसका अपना मामा है ।मनिंदर ने एक बार फिर परी का केस स्टडी किया ,अब तो ये उसका व्यक्तिगत मामला था ।उसने अपने भी सारे टेस्ट किए और उसकी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा जब उसने पाया कि वो स्वयं

परी को अपना बोन मैरो दे सकता है ।

आज पंद्रह दिनो के बाद परी अपने घर जा रही थी ,स्वस्थ होकर ।डॉक्टरों का कहना था अब परी के लिए कोई ख़तरा नही ,कुछ ही महीनो में परी पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएगी । मनिंदर ख़ुद अपनी कार में परी को घर लाया और आकर देखा बानी हाथ में आरती का थाल लिए खड़ी है और उसने एक सुंदर सी राखी भी रखी है ।हरदीप को लगा आज उसे उसकी जीवन भर की तपस्या का फ़ल मिल गया ,आज उसका जीवन सार्थक हो गया ।सार्थक ही नही हो गया बल्कि उसका पुनर्जन्म हो