360 degree love - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

360 डिग्री वाला प्रेम - 10

१०.

पड़ाव

आज प्रोजेक्ट को जमा करने का दिन था. एक सप्ताह कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. आज शनिवार था, और सोमवार को प्रोजेक्ट जमा करना था. रिपोर्ट का काम भी साथ-साथ चल रहा था. अंतिम एडिटिंग के लिए चर्चा होनी थी आरिणी और आरव की. तय हुआ कि आज ही रात को दोनों एक दूसरे से व्हाट्सएप पर एक्सचेंज करेंगे अपने-अपने नोट्स.

 

रात को डिनर के बाद आरिणी का मैसेज आया. उसने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट भेजी. हालांकि काफी सामग्री वही थी जो आरव ने चयन की थी परन्तु फिर भी उसने जो परिवर्तन किये उनमें से कुछ पर आरव सहमत नहीं था. उसने लिख भेजा अपना नोट. अब रात लगभग पौने बारह बजे तक दोनों में बहस होती रही. एक बार उसे समझाने के लिए कॉल भी किया आरव ने, पर वह भी अपनी जिद् पर अडी थी. बोली,

“एक घंटे से तुम मेरे सर में दर्द किये जा रहे हो. मेरे पास तो चाय पीने की भी व्यवस्था नहीं...अब बात खत्म करो…. नहीं तो तुम ही संभालना और तुम्हीं करना प्रेजेंट.”

“अरे, मैंने क्या किया ऐसा...और सुनो, चाय का ज्यादा मन हो तो आ जाओ, या मैं थर्मस में लेकर आऊँ क्या ?..”,

 

पहली बार आरव प्रोजेक्ट के काम से हटकर बोला तो थोडा चकित हुई आरिणी. बोली,

 

“हाँ, जरूर...कभी बनाई भी है चाय? अब बातें बनाना भी सीख गये हो. वो तो मम्मी को ही दिन भर परेशान करते होगे ना तुम...एक दिन अच्छे से शिकायत करती हूँ तुम्हारी. हो जाने दो जरा यह प्रोजेक्ट पूरा!”,

 

आरिणी भी कुछ हलके-फुल्के मूड में आ गई थी, फिर बोली,

 

“और सुनो…. बाय नव..!”,

 

पर उसने फोन डिसकनेक्ट नहीं किया.

 

अंततः निश्चित हुआ कि आरिणी के प्रेजेंटेशन को ही अंतिम माना जाएगा. आरव के पास उसकी जिद्द के सामने झुकने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं था, क्यूंकि आरिणी की प्रेजेंटेशन के बिना प्रोजेक्ट फेल ही माना जाता.

 

आज सन्डे था. रविवार... यानि आलस्य से भरा दिन. सोने का भरपूर मौका. आरव की तो जैसे मनमांगी मुराद पूरी हो जाती इस दिन. हर सोमवार से फिर इंतज़ार शुरू हो जाता आने वाले रविवार का और लगता कि न जाने कब पूरा होगा रविवार आने का समय… हर बार लगता कि पिछली बार से अधिक समय बाद आ रहा है रविवार! रविवार की चाह इसलिये भी थी आरव को नींद… और भरपूर नींद. दोपहर दो-तीन बजे भी आँखें खुल जायें उसकी तो गनीमत थी. जब से इंटरमीडिएट की पढ़ाई और फिर आई आई टी का जूनून उसके दिमाग में घुसा, तब से यह रुटीन ऐसा ही चल रहा है आरव था

 

सोमवार को सवेरे ११.३० पर मिलना तय हुआ था ग्रुप का. आरव को निकलते- निकलते ११.१५ बज गये थे. आज गाडी से जाना था, और ड्राइवर भी नहीं था. वह खुद सब मटेरियल… प्रोजेक्ट मॉडल भी ले जाना था, इसलिए थोड़ी देर स्वाभाविक थी. आरिणी को प्रेजेंटेशन की वह कॉपी लेकर आनी थी, जो उन्होंने रात व्हाट्सएप पर अंतिम की थी. ट्रैफिक को पार करते-करते ११.४५ तक वह कॉलेज की पार्किंग तक पहुँच गया था, जहाँ देव पहले से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था.

 

आरिणी पहुँच पाई लगभग एक बजे क्यूंकि उसे अलीगंज तक जाना पड़ा था, स्पाइरल बाइंडिंग कराने के लिए. जानकीपुरम क्रासिंग पर किसी भी दुकान के पास बेहतर व्यवस्था नहीं थी बाइंडिंग की. सो, थोडा समय अतिरिक्त तो लगना ही था.

 

“वोव…ब्यूटीफुल!”,

 

रिपोर्ट्स का सुंदर लुक देखते ही बोला आरव. अंदर से देखकर सब और भी प्रसन्न हुए, ग्लॉसी पेपर पर प्रिंट और स्केच तथा कुछ फोटोग्राफ बेहतर उभर आये थे. तीन कॉपी कराई थी उन्होंने. प्रोजेक्ट वर्क को लेकर सब और ग्रुप्स के बीच में भी पूरी गहमागहमी थी .

 

देव भी बहुत उत्साहित था, बोला,

 

“मैं आरिणी का असिस्टेंट बनकर उसे हेल्प करूंगा..”,

 

पर वाक्य पूरा हो, इससे पहले ही आरिणी का निर्णय आ चुका था,

 

“नहीं, केवल भूमि मेरी हेल्प करेगी, और आप दोनों के नाम भी फाइनली नीचे रहेंगे…”, आँखें बनावटी रूप से तरेर कर कहा उसने, और फिर भूमि के साथ खिलखिलाकर हंस पड़ी.

००००