360 degree love - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

360 डिग्री वाला प्रेम - 5

५.

कॉलेज और प्रोजेक्ट…

ठीक ९.३० बजे आरव निकला कॉलेज के लिए. सारा डाटा, ड्राफ्ट रिपोर्ट उसके पास लैपटॉप और पेन ड्राइव दोनों में सेव थी. सवेरे का ट्रैफिक जाम तो जरूरी था पार करना. सवा दस बजे तक फिर भी वह कैंपस पहुँच चुका था. क्लास रूम के पास ही सर्दी की सुनहरी धूप में देव खडा था. जैसे उसकी ही प्रतीक्षा में हो.

“गुड मार्निंग फ्रेंड्स…”,

यह आरव था. मार्निंग का अभिवादन यूँ तो भूमि और आरिणी के लिए था, पर आरिणी के तेवर अच्छे नहीं लग रहे थे. कल चार-चार बार कॉल और फिर मैसेज के जवाब में रात को पौने बारह बजे उसका एक छोटा-सा सन्देश आना… आहत हुई थी आरिणी. वह चाहती थी कि ग्रुप का सिनोप्सिस और फिर प्रोजेक्ट उत्कृष्ट बने. उसका लाभ तो सबको मिलना था न! और जब वह खुद सिस्टम से चलती हो ऐसे किसी काम में तो फिर यह रूखा व्यवहार उसे कुछ पसंद नहीं आया.

भूमि कॉफ़ी लेकर आ गई थी. लापरवाह आरव ने इस बात का कोई संज्ञान नहीं लिया कि कल की बात से आरिणी आहत महसूस कर रही है. वह अपनी ही धुन में तीन सेट निकाल कर बैठा. सिनोप्सिस के ड्राफ्ट का एक सेट उसने आरिणी और दूसरा भूमि के सामने रख दिया. फिर चर्चा आरंभ ही हुई थी कि आरिणी ने टोका,

 

“आरव, पहले ग्रुप का यह जानना जरूरी है कि यह क्या तुम्हारी अपनी पर्सनल प्रोजेक्ट है, या हम तीनों का भी कोई रोल है इसमें…”,

 

जिस लहजे में कहा आरिणी ने वह कुछ अलग तो था ही, भूमि और देव के लिये भी थोडा असहज-सा था. स्वाभाविक था आरव का भी चौंकना, फिर भी संयत रहने की कोशिश करते हुए पूछा उसने,

 

“कृपया विस्तार से बताएं… मैं तो ग्रुप की मदद ही कर रहा हूँ. बस प्रेजेंटेशन आप लोग संभाल लें...बाकी तो कर ही रहा हूँ न मैं”,

 

बात को संभालते हुए कहा आरव ने.

 

“नहीं, ऐसा नहीं है, तुम सब काम क्यों करोगे, हम लोग भी बराबर इन्वालव होना चाहेंगे प्रोजेक्ट वर्क में. और फिर तुम अपनी मर्ज़ी से अगर रेस्पोंड भी नहीं करोगे कॉल या मैसेज का, तो इसका क्या अर्थ समझा जाए…”,

 

बात स्पष्ट करते हुए कहा आरिणी ने.

 

“ओह, सॉरी...कल मैं कॉलेज से जाते ही सो गया, बिना चेंज किये ही. रात को जैसे ही आँख खुली और मैंने देखा, तो मेसेज छोड़ा था न तुम्हारे लिए आरिणी..”,

 

आरव ने समझाया भी. पर आरिणी उसके जवाब से संतुष्ट नहीं हुई. उसका मुंह अभी भी फूला था.

 

“कोई ख़ास बात बतानी थी?”,

 

आरव ने पूछा.

 

“हाँ, कोई फ़ालतू में थोड़े ही कॉल की होगी. मुझे कुछ डिटेल्स मिली थी वो शेयर करनी थी इसी साल की रिसर्च है गो-कार्ट पर. अब लीथियम बैटरी की जगह रिचार्जेबल पॉवर पॉइंट देने से भी काम चल जाएगा… दो लाभ होंगे, एक तो मॉडर्न टेक्नोलॉजी, दूसरे आधा खर्च !”,

 

समझाया आरिणी ने.

 

“वो तो सिंगापुर यूनिवर्सिटी के ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट की रिपोर्ट है न ?... उसको रेफरेन्सेस में लिया है मैंने..हम्म...देखो, शायद यही है न...पेज नंबर-१२. पर एक बात और देखनी है कि चंद्रन सर इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के लिए तैयार होंगे भी या नहीं !”,

 

और आरिणी ने गौर से देखा कि यह तो वही रिपोर्ट थी जिसके लिए वह स्वयं इतना खुश हुई थी कि शायद कोई छिपा हुआ खजाना मिल गया हो. वह खिसिया-सी गई, जिस रिपोर्ट को वह बहुत महत्वपूर्ण समझ रही थी वह रिपोर्ट आरव की नजरों से निकल चुकी थी, और वह उसके लिए मात्र एक साधारण सा रिफरेन्स था.

 

थोड़ी देर की चर्चा के बाद तय हुआ कि दोनों विकल्प रखे जाएँ, लिथियम बैटरी और इलेक्ट्रिक व्हीकल..! लैपटॉप में मटेरियल तैयार ही था, लगभग, बस उसे रिपोर्ट का स्वरूप देने की बात थी. आरव और आरिणी को ही करना था फाइनल, इसलिए दोनों लाइब्रेरी में चले गये, ताकि आराम से रिपोर्ट में कट-पेस्ट करने के बाद ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार की जा सके.

 

“असल में मैं कुछ और सोच रहा था…” आरव आज कुछ हल्के मूड में लग रहा था, जिसे लगता था आरिणी ने ताड़ लिया था.

 

“देखो, अगर तुम इस जिम्मेदारी से बचना चाह रहे हो, तो तुम गलत हो. न देव कुछ करने वाला है, न भूमि, और मुझसे तो उम्मीद मत ही करना, संभालो तुम, मैं चली हॉस्टल… आज सही से ब्रेकफास्ट भी नहीं किया और न नींद पूरी की!”,

 

चेतावनी-सी दे डाली आरिणी ने.

 

“अरे मैडम, वो तो ठीक है, पर नाराज़ तो तुम बहुत हो रही थी कॉल पिक न करने पर. अब अगर तुम ही सोती रह गई तो क्या होगा प्रोजेक्ट का. तुम्हीं को समझाना है, प्रेजेंटेशन में, अगर जरूरत पड़ी तो…! बाकी तो तुम्हारी कोई ख़ास जरूरत भी नहीं”,

 

हल्की सी मुस्कान चेहरे पर लाकर बोला आरव. आज वाकई मूड में लग रहा था वह, अपने धीर-गंभीर स्वभाव के विपरीत.

 

“सुनो, हम तो इतने डेडिकेटेड हैं काम के लिए कि अलार्म से पहले आँखें खुद ही खुल जाती हैं. यूँ कहिये कि हमारा दिमाग ही अलार्म है, चाहे जब का फिट कर लो…. और ध्यान रखना इस बार अगर कॉल की, और तुमने पिक नहीं की, या मैसेज का तुरंत जवाब नहीं दिया, तो सीधे ब्लाक करूंगी तुमको.... प्रोजेक्ट हो या न हो!”,

 

कहकर जीभ चिढाती हुई अपने एक्टिवा का एक्सिलेटर दबा कर आरिणी हॉस्टल की दिशा में चल दी.

 

“और सुनो… आखिरी टाइम पर भी जिस ग्रुप में जाऊँगी, उनका भी उद्धार हो जाएगा”,

 

जाते-जाते यह घोषणा और कर गई !

 

कुछ सेकंड्स के लिए आरव हँसता हुआ ही रह गया. उसे भी आरिणी की नोंक-झोंक में मज़ा आने लगा था. यह वाकई एक अच्छा बदलाव था एक ऐसे इंसान में जो स्वभाव से ही रूखा था.

 

ठीक दोपहर २.४५ बजे थे, जब आरव ने बाकी तीनों सदस्यों यानि देव, भूमि और आरिणी को मिलने का मैसेज किया. ३.३० बजे सिनोप्सिस सबमिट करनी थी.

 

आखिर में देव आया. जो अभी तक ग्रुप का निठल्ला सदस्य घोषित हो चुका था. यह रेटिंग की थी भूमिका ने जो खुद को दूसरे नंबर पर रखकर देखती थी. पहले नंबर पर उसने आरव और आरिणी को बराबर रूप में रख दिया था. देव को केवल चाय-कॉफ़ी और समोसे खाने वाला जीव घोषित किया जा चुका था. बात सही भी थी, उसके लिए जिन्दगी इतनी गंभीर नहीं थी. और ऐसा भी नहीं था कि वह पढने में तीव्र बुद्धि न हो, पर वह जिन्दगी को जीने की बेहतर इच्छा रखता लगता था, दुनिया के सब तरह के फ़ूड और फ़ूड हैबिट्स को जानना, पार्टी और डांस उसे बहुत मजेदार लगता था. कहता भी था वह, कि इससे बेहतर तो होटल मैनेजमेंट में एडमिशन लेते, खाते-पीते तो रहते, यहाँ क्या है इन फ़ालतू की मशीनों से जूझते रहो, बस !

 

लेकिन अब तय किया हुआ था आरव ने कि जैसे ही सिनाप्सिस फाइनल होगा, देव की भूमिका...यानि कि उसका रोल कहाँ आरम्भ होना है. उसने सोचा हुआ था कि उसको पूरे टाइम नक्खास के मार्किट से लेकर सन्डे के पुराने कबाड़ी बाज़ार में घुमाना है. उसी को सब सामान का इंतजाम करना होगा. खुद उसके वश का नहीं था, लिखने और थ्योरी का पार्ट संभाल सकता था वह, पर प्रेजेंटेशन आरिणी और मार्केट या लाजिस्टिक का काम तो देव को ही करना होगा. कोई विकल्प भी नहीं था. हाँ, एक बार वह जरूर जा सकता था उसके साथ, बस सिर्फ इतना ही. बाकी सब व्यवस्था और फंड्स का मैनेजमेंट देव को ही करना था.

 

“लग तो सही रहा है प्रोजेक्ट...आप लोग देखो. वैसे अब तो कुछ चेंज कि गुंजाइश भी नहीं है”,

 

पेज पलटती हुई बोली आरिणी.

 

“नहीं, क्यों नहीं, एक अनुरोध कर लेंगे सर से, हो सकता है कुछ वेटेज मिल जाए…”,

 

क्लास रूम में पहुँच कर अहसास हुआ कि शायद अधिकतर ग्रुप ने अपनी सिनोप्सिस पहले ही सौंप दी थी सर को और वह टीचर्स रूम में थे अब. सब लोग टीचर्स रूम में गये तो देखा कि चंद्रन सर दो ग्रुप्स से चर्चा में व्यस्त थे.

 

“अब प्रतीक्षा करनी होगी शायद!”,

 

देव ने नि:श्वास होकर कहा.

 

फिर भी, चूँकि अभी आरंभिक स्टेज की बात थी, उन्होंने लगभग दस मिनट में दोनों ग्रुप्स से चर्चा कर ली थी. अब उनका नंबर था. निर्धारित हुए रोल के अनुसार आरिणी लीड कर रही थी.

 

“हम्म...कौन प्रेजेंटेशन करेगा?”,

 

पूछा चंद्रन सर ने, सिनोप्सिस को ब्राउज करते हुए!

 

“सर, मैं करूंगी… बाकी लोग असिस्ट करेंगे. आप उनसे भी पूछ सकते हैं जो भी आपके प्रश्न हों, सर",

 

आरिणी ने यथासंभव सौम्यता का पुट देते हुए कहा. पर चंद्रन सर देखना चाहते थे शायद कि किसने कितनी मेहनत की है, सो बोले,

 

“देव को कब मौका मिलेगा..जब यह आया था तो बहुत एक्टिव था, पर अब देखो… कितनी चर्बी चढ़ गई है..”,

 

गौर से उस पर दृष्टिपात करते हुए उन्होंने गंभीर होकर बोला.

 

देव एकबारगी सकपका गया सर के इस वाक्य और दृष्टिपात से. पर दूसरे ही पल वह संयत होकर जमीन की ओर देखने लगा. निस्तब्धता छा गई, पर आरिणी ने कुशलता से सम्भाला. बोली,

 

“सर, फाइनल रिपोर्ट और लाजिस्टिक में काफी कुछ देव का ही रोल है. वह उसी का डोमेन है, उसके बिना तो कुछ भी अच्छा नहीं हो सकता था..”,

 

“हम्म...चलो देखते हैं ! इलेक्ट्रिक चार्जिंग पर ही बेस करो. पर कुछ इनोवेशन भी होना चाहिए, यह देखना...देखो कि क्या सेंसर बेस्ड बना सकते हैं, और फिर चार्जिंग फ्रॉम सोलर सोर्स… उसी के अनुसार बदलना होगा फाइनल रिपोर्ट को. बेस्ट ऑफ़ लक!”,

 

कह कर उठ खड़े हुए चंद्रन सर. उनका उठना इस बात का संकेत था कि अब आप लोग जा सकते हैं. यह भी लग रहा था कि यह किसी आखिरी ग्रुप का सबमिशन था.

 

एक-एक करके चारों लोग निकल लिए और बाहर आकर सबने राहत की सांस ली. हालाँकि सर ने जो सुझाव दिए थे उससे अब मेहनत की जरूरत लगभग दूनी हो गई थी. पर देव बहुत खुश था, यह सोच कर कि बला टली फिलहाल, क्यूंकि उसको स्वयं भी कुछ ख़ास समझ नहीं थी, कि इस प्रोजेक्ट में उसकी भूमिका कहाँ आरम्भ हो रही थी तथा कहाँ खत्म होनी थी. उसे यह भी समझ आ रहा था कि वह सीधे चंद्रन सर की निगाह में खटक रहा था, जिसका असर फाइनल असेसमेंट तथा प्लेसमेंट में पड़ना स्वाभाविक था. उधर भूमि भी इस प्रोजेक्ट के लिए उतनी समर्पित नहीं थी, जितनी आरिणी और आरव, क्यूंकि वह मैकेनिक्स में अधिक रूचि नहीं रखती थी. फिर भी, अपने सौंपे गये कामों के प्रति उसका झुकाव नि:संदेह समर्पण का था. यहीं पर आरिणी और आरव को बेहतर पॉइंट्स मिलते थे, जो पूरी तरह से प्रोजेक्ट में जुटे हुए थे और जिनके बिना इस परियोजना का होना नामुमकिन-सा था.

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