360 degree love - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

360 डिग्री वाला प्रेम - 11

११.

आखिरकार

अंततः रिपोर्ट सबमिट करने का समय आ गया था. ग्रुप का नाम पुकारा गया. जूरी में डॉ आर पी चंद्रन विभागाध्यक्ष के रूप में मौजूद थे, जबकि ए पी कुलश्रेष्ठ वरिष्ठ प्रोफेसर तथा आई आई टी कानपुर के मैकेनिकल विभाग के प्रमुख के पी वरदराजन एक्सटर्नल एग्जामिनर के रूप में बैठे थे.

पहला नंबर था उन लोगों के ग्रुप का इसलिए चारों ने हाल में प्रवेश किया. आरव और देव मॉडल को संभाले थे. मॉडल क्या था, मिनी कार का वर्सन था, जैसे वाकई डी सी मोटर्स के वर्कशॉप से निकालकर लाया गया हो. नेवी ब्लू रंग की चमचमाती हुई बॉडी, बड़े चमकते काले रंग के टायर जिनके ग्रूव्स साफ़ दिख रहे थे, और व्हील कैप ऐसी जैसे एलाय व्हील का इस्तेमाल किया हो. स्टीयरिंग भी जानदार दिखता था. सबसे बड़ी खूबी उसकी छत पर सोलर पैनल का संयोजन किया जाना था, जिससे उसे वैकल्पिक ईंधन से सफलतापूर्वक चलाया जा सकता था और जिस वजह से वह टेक्नोलॉजिकली इम्प्रूव्ड दिख रहा था.

 

मॉडल की एक झलक देखने के बाद जूरी के सदस्य अपने स्थानों पर बैठ गए. एक औपचारिक परिचय के बाद प्रेजेंटेशन के लिए कहा गया. आरिणी ने कमान संभाली. प्रोजेक्ट की रूपरेखा बताने के बाद उसने विस्तार से परिचय देना आरम्भ किया प्रोजेक्ट का. इसमें उसने कोई पार्ट छोड़ा ही नहीं था, आरम्भ से अंत तक सब एरिया कवर किये गए थे.

 

बोलना शुरू किया आरिणी ने,

 

“ सर, गुड आफ्टरनून. आई, आरिणी सिंह, ऑफ़ फिफ्थ सेमेस्टर इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग ऑन बिहाफ ऑफ़ द ग्रुप ऑफ़ प्रोजेक्ट नेम्ड “ड्यूल मोटर इलेक्ट्रिक गो कर्ट फॉर रफ टेरेन” प्रेजेंट आवर प्रोजेक्ट ...!”

 

लगभग बीस मिनट के लगातार प्रस्तुतिकरण और बीच-बीच में जूरी के सवालों के जवाब से जाहिर था कि प्रोजेक्ट में कोई कमी नहीं रही है. रही-सही पुष्टि जूरी ने तब कर दी जब उन लोगों ने प्रेजेंटेशन के बाद स्टैंडिंग ओवेशन से सराहना की. स्वयं चंद्रन सर ने कहा,

 

“मुझे गर्व है कि मेरी स्ट्रीम में आरिणी जैसी स्टूडेंट मौजूद है”.

 

इस बीच भूमि, देव और आरव की धडकनें असंयत-सी रही, पर सबसे अधिक असहज आरव था, क्यूंकि यह कानसेप्ट उसी का था, और यदि कोई कमी होती तो निश्चित रूप से उसका दोषी भी आरव को माना जाता.

 

बाहर निकल कर पूरे ग्रुप ने राहत की सांस ली. लाउन्ज में अनेक ग्रुप प्रेजेंटेशन की अपनी अंतिम तैयारियों में जुटे थे. गहमागहमी और बेचैनी उन ग्रुप्स में अधिक थी, जिनका नंबर आने वाला था. बाहर निकलते ही घेर लिया सबको उन स्टूडेंट्स ने.

 

आरिणी ने सबको एक ही बात समझाई कि नार्मल प्रेजेंटेशन है. और यह भी कि जो प्रश्न पूछे जा रहे हैं, वह भी कोई अधिक कठिन नहीं हैं, बशर्ते कि आपने तैयारी ठीक से की हो. चिंता की कोई बात ही नहीं.

 

आज का आगे का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था. आज ग्रुप के लिए आरव की मम्मी ने लंच की तैयारी की हुई थी, और इस प्रेजेंटेशन के दौरान भी वह तीन बार मिस्ड कॉल देकर शीघ्र आने की याद दिला चुकी थीं. अब ग्रुप ने तय किया कि जल्दी निकलना जरूरी है. वैसे भी देव के साथ-साथ भूमि, आरिणी और स्वयं आरव के पेट में भी चूहे कूद रहे थे.

 

“अब जल्दी चलो… फास्ट!”,

 

देव लगातार पूरे ग्रुप पर जल्दी चलने के लिए ज़ोर डाल रहा रहा था .

 

“अरे, एक्टिवा तो ले लूँ...और यह सामान भी तो हॉस्टल रखना है पहले”,

 

आरिणी बोली .

 

“उसकी कोई जरूरत नहीं, सीधे चलो गाड़ी से. ड्राइवर आ गया होगा, नहीं तो सबको मैं ही ड्राप कर दूंगा”,

 

आरव बोला.

 

भूमि को सुझाव पसंद आया. पिलन राइडिंग करते-करते वह यूँ भी थक चुकी थी, उसने सबसे पहले हाथ उठाकर सहमति दी. देव तैयार था ही, अब आरिणी कैसे टालती.

 

बोली,

 

“चलो...अब देर न करो, सवेरे से जान ही ले ली, प्रेजेंटेशन ने तो, एक कप कॉफ़ी तक नहीं पी पाये”.

 

देव आरव के साथ ड्राइविंग सीट के बगल में लपक कर जा बैठा. बीस मिनट के भरपूर ट्रैफिक को पार करते हुए वे लोग जा पहुचे विक्रमादित्य मार्ग, और फिर आरव के घर!

 

गाड़ी की आवाज सुनते ही आरव की मम्मी बाहर निकल आई और मेन गेट खोल दिया. आरिणी ने रास्ते से उन्हें कॉल जो कर दी थी. बोली,

 

“आखिर आ ही गए तुम लोग...समय देखो, शाम हो रही है, भूखे होंगे, जल्दी से मुंह हाथ धो लो, सूप भेजती हूं.”

 

सब ड्राइंग रूम में जा बैठे. पीछे-पीछे सर्वेंट सबके लिए सूप लेकर हाज़िर हो गया.

 

“आहा...स्वीट कॉर्न सूप… मेरा फेवरिट”,

 

यह देव ही था. सूप देखते ही जैसे उसकी भूख और बढ़ गयी हो॰

 

“तुम यह बताओ, कि तुम्हारा क्या फ़ेवरिट नहीं है देव…!”,

 

भूमि ने पूछ ही लिया.

 

पर देव कहाँ हार मानने वाला था, बोला,

 

“हां, क्यों नहीं, कद्दू, बैंगन, पालक, लौकी और तोरई और भी न जाने क्या-क्या...दे दूं क्या लिस्ट, जब तेरे घर जाएंगे तो पहले ही नोट कर लेना न कि किस-किस चीज़ से एलर्जी है मुझे”,

 

देव बोला.

 

“अरे, इतने वी आई पी लोगों का हम नहीं कर पाते स्वागत. जो बना है वही खाना पड़ेगा. चाहे कद्दू हो या तोरई..”,

 

बोल ही रही थी भूमि कि तब तक उर्मिला जी भी आ गई, शायद चर्चा सुन ली थी उन्होंने. बोली,

 

“कद्दू और तोरई में क्या बुराई है भला, क्यों देव. ये सब्जी तो बहुत अच्छी मानी जाती हैं…”,

 

और देव “ही-ही” करके हंसने लगा. आरिणी भी भूमि की तरफ से उसे मुंह चिढ़ा रही थी.

 

आज किसी को कोई तनाव नहीं था प्रोजेक्ट का, केवल ख़ुशी थी सबके चेहरों पर. पर, आरव हमेशा की तरह शांत ही था, देव के साथ चल रही नोंक-झोंक पर बस रह-रह कर मुस्कुरा देता था. यह उसका तरीका था खुश रहने का, सबसे अलग जो था वह.

 

लंच करने के बाद आरिणी और भूमि उर्मिला जी के साथ चली गई, उनके बेडरूम में. वहीँ बैठकर उन्होंने आरव और वर्तिका के बचपन की फोटोग्राफ्स दिखाई पुराने एल्बम से.

 

“अरे, यह तो पहचान में ही नहीं आ रहा आरव...और यह दो चुटिया और फ्रॉक में तुम हो, डॉल..”,

 

थोड़ा मक्खन लगाया भूमि ने वर्तिका को. उर्मिला जी ने उन्हें हाई स्कूल तक आरव के ख़ास शौक-- और सिक्के दिखाए. लगभग साठ-सत्तर सिक्के रहे होंगे, भारत के पुराने सिक्कों के साथ-साथ नेपाल, श्रीलंका और पकिस्तान तथा इंग्लैंड के भी कुछ सिक्के शामिल थे.

 

“न जाने कितनी मेहनत से इकट्ठे किये हैं आरव ने यह सिक्के..”,

 

बताया उर्मिला ने, और यह भी कि गायब होने के डर से वह उन्हें हमेशा उनके पास लाकर में ही रखता है.

 

“बिल्कुल बच्चा ही बन जाता है वह कई बार...जैसे अभी मेरे पल्लू से चिपक जाएगा…”,

 

कहते हुए उनकी आँखें स्नेह से छलक आई. आरिणी ने उनका हाथ कस कर पकड़ लिया, जो उनके स्नेह का प्रत्युत्तर था.

 

“अब चलें हम लोग...बहुत परेशान किया आपको”,

 

हँसते हुये भूमि ने चलने के लिए उर्मिला जी से अनुमति चाही.

 

“अरे, ऐसा क्यों बोलते हो, कहा न घर है तुम लोगों का…. हमेशा स्वागत है”,

 

उलाहने से कहा उर्मिला जी ने.

 

तीनों बैग उठाकर चलने को तैयार हो गये, गेट खोलकर बाहर तक भी आ पहुंचे, तभी उर्मिला जी ने आरिणी को पुकारा…

 

“आरिणी..बेटा एक मिनट..”.

 

आरिणी बिना विलम्ब किये तेज कदमों से उनके नजदीक आ गई, और बोली,

 

“जी आंटी!”.

 

“मैं सिर्फ तुम्हें एक दिन के लिए इनवाइट करना चाहती हूँ, सब लोग बैठेंगे और केवल तुम्हारी पसंद का खाना.. तुम्हारी पसंद की बातें...और सब कुछ तुम्हारे ही पसंद का...बस तुमको आना होगा...अब तो प्रोजेक्ट की भी चिंता नहीं… बोलो कब ?”,

 

उन्होंने कहा.

 

आरिणी मुस्कुरा कर रह गई. बोली,

 

“आंटी, आपसे मां सा प्यार मिला है...आपका अधिकार है, जब चाहे बुला लो मुझे, बस आप आदेश करो !”,

 

उसी स्नेहिल मुस्कान से उनके हाथों को अपने हाथों में लेकर सहलाते हुए कहा उसने .

 

“तो… सैटरडे पक्का रहा. उस दिन तुम्हारा भी ऑफ होगा, और इनके पापा का भी. पर इसका मतलब यह नहीं कि उससे पहले नहीं आ सकती…”,

 

बोली उर्मिला. तब तक वर्तिका भी पास आ चुकी थी, हँसते हुए चहकी,

 

“और कॉल तो दिन में एक-दो-तीन...जितनी बार!”

 

आरिणी बिना कुछ बोले उर्मिला जी के गले से फिर से लिपट गई. उन्होंने भी उसकी पीठ थपथपाई.

 

आरव बाहर देव और भूमि के साथ ही खड़ा था. गाडी गेट पर थी. उसे ही तीनों को छोड़ने जाना था. आरिणी के लिए वह पिछला दरवाजा खोल कर आदर भाव से थोडा झुक गया. आरिणी एकबारगी खिलखिला उठी… इस आदर के प्रदर्शन पर.

०००००