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मेरा मीठा-सा महापाप

चलो सुनाऊँ तुम्हें कहानी, अपने छुटपन की;
मैं और मेरे पेटूपन की...
चटर-पटर खाते-खाते, बढ़ गई मेरी तोंद;
पर मुझको हरदम भाती, लड्डू वाली गोंद...

चाउमीन, बर्गर से हो गई गोल-मटोल;
पर मुझको समझ ना आये किसी के बोल...
सब्ज़ी में मुझको भाये केवल आलू;
और कभी-कभी खाऊन, इमली वाले कचालू...

सरपट मैं भागी जाऊँ, पास वाले नुक्कड़;
सब को पता चल जाता, कितनी मैं भुक्कड़...
सुबह-सुबह, गर्मागर्म मिल जाये आलू की कचौड़ी,
और शाम को कुरकुरी प्याज की पकोड़ी...

दोपहर को खाती हलवा और पूड़ी;
माँ मुझको जल्दी दे दो, सहै ना जाये दूरी...
कभी-कभी जो मिल जाये, पानी पताशा;
झटपट मैं खाती जाऊं, घरवाले देखे तमाशा ...

थोड़ी-खट्टी, थोड़ी-मीठी; बाज़ार में ढूँढूँ चटपटी चाट;
पर मम्मी का गुस्सा देख, करूं मैं मनमुटाव...
जब घर में आये दीदी और जीजा;
तो उनकी आढ़ में मँगवाऊं, चीज़ वाला पीज़ा...

चावल संग सिर्फ मैं खाऊँ, छोले और राजमा;
चाहे फिर बिगड़ जाये मेरा हाज़मा...
भर-भर मक्खन डाल, मैं खाऊँ भाजी और पाव;
पर मम्मी की टोकाटाकी से, दिल पर लगे घाव...

खाने की ना जाने कैसी आशिकी चढ़ी;
सपने में भी मुझको दिखे, पकोड़े वाली कढ़ी...
मम्मी से खीर बनवाऊं, दूध में डाल मखाना;
चाहे पेट दुखे, पर डॉक्टर को ना दिखाना...

मम्मी मेरी रोटी पकाती, तवे पर सेंक;
पर मैं ठूस-ठूस के खाऊँ; चॉकलेट केक...
मम्मी तुम क्यों करती हो, हरदम हल्ला गुल्ला???
क्यों मुझको खाने नहीं देती, ठंडा रसगुल्ला???

मम्मी ने दी मुझको मीठी-सी झिड़की;
और खोल की मेरी; दिमाग वाली खिड़की...
कहीं बैठ-बैठ कर हो जाओ ना तुम मोटी;
इसलिए रोज़ खाओ; दाल सब्ज़ी और रोटी...

मांस का ना होने दो अपने शरीर पर जमाव;
खाओ लेकिन कभी-कभी वेजिटेबल पुलाव...
ये मोटापा तो बीमारियों का है जलवा;
खाने में परहेज़ करो और साथ में देसी घी का हलवा...

अगर चाहती हो मोटापा पास ना आये;
तो सुबह-सुबह पीयो अदरक-नीबू की चाय...
तन को रोगी मत बनाओ और बीमारियों का कैदी;
फ़ास्ट फूड से दूर रहो, चाहे वो हो मैगी...

बीमारियों से बचने का अब यही है रास्ता;
मत खाओ मैक्रोनी और पास्ता...
अपने स्वास्थ को रखना हो गर सहेज;
खटाई, मिठाई और तलाई से थोड़ा करो परहेज़...

मोटा होना कहीं न बन जाये श्राप;
भूल से, भूल कर भी, होने ना दो ये महापाप...

मम्मी की बात मुझे जल्द समझ में आई;
एक्सरसाइज और योग की तकनीकी अपनाई...
करने लगी मैं थोड़ा सा व्यायाम;
जल्द मोटापे से पाया मैंने आराम...

कॉलेज सुंदरी का पाया मैंने खिताब;
और सजाया हीरों का ताज...

कैसा लगा मेरा मीठा-सा महापाप;
चटोरी, भुक्कड़ या पेटू;
किस नाम से नवाज़ोगे आप...

भुक्कड़ और पेटूपन की मेरी, कैसी लगी कहानी;
कमेंट करके बताओ, अपनी ज़ुबानी...
मंजरी शर्मा ✍️

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चलो सुनाऊँ तुम्हें कहानी, अपने छुटपन की;
मैं और मेरे पेटूपन की...
चटर-पटर खाते-खाते, बढ़ गई मेरी तोंद;
पर मुझको हरदम भाती, लड्डू वाली गोंद...

चाउमीन, बर्गर से हो गई गोल-मटोल;
पर मुझको समझ ना आये किसी के बोल...
सब्ज़ी में मुझको भाये केवल आलू;
और कभी-कभी खाऊन, इमली वाले कचालू...

सरपट मैं भागी जाऊँ, पास वाले नुक्कड़;
सब को पता चल जाता, कितनी मैं भुक्कड़...
सुबह-सुबह, गर्मागर्म मिल जाये आलू की कचौड़ी,
और शाम को कुरकुरी प्याज की पकोड़ी...

दोपहर को खाती हलवा और पूड़ी;
माँ मुझको जल्दी दे दो, सहै ना जाये दूरी...
कभी-कभी जो मिल जाये, पानी पताशा;
झटपट मैं खाती जाऊं, घरवाले देखे तमाशा ...

थोड़ी-खट्टी, थोड़ी-मीठी; बाज़ार में ढूँढूँ चटपटी चाट;
पर मम्मी का गुस्सा देख, करूं मैं मनमुटाव...
जब घर में आये दीदी और जीजा;
तो उनकी आढ़ में मँगवाऊं, चीज़ वाला पीज़ा...

चावल संग सिर्फ मैं खाऊँ, छोले और राजमा;
चाहे फिर बिगड़ जाये मेरा हाज़मा...
भर-भर मक्खन डाल, मैं खाऊँ भाजी और पाव;
पर मम्मी की टोकाटाकी से, दिल पर लगे घाव...

खाने की ना जाने कैसी आशिकी चढ़ी;
सपने में भी मुझको दिखे, पकोड़े वाली कढ़ी...
मम्मी से खीर बनवाऊं, दूध में डाल मखाना;
चाहे पेट दुखे, पर डॉक्टर को ना दिखाना...

मम्मी मेरी रोटी पकाती, तवे पर सेंक;
पर मैं ठूस-ठूस के खाऊँ; चॉकलेट केक...
मम्मी तुम क्यों करती हो, हरदम हल्ला गुल्ला???
क्यों मुझको खाने नहीं देती, ठंडा रसगुल्ला???

मम्मी ने दी मुझको मीठी-सी झिड़की;
और खोल की मेरी; दिमाग वाली खिड़की...
कहीं बैठ-बैठ कर हो जाओ ना तुम मोटी;
इसलिए रोज़ खाओ; दाल सब्ज़ी और रोटी...

मांस का ना होने दो अपने शरीर पर जमाव;
खाओ लेकिन कभी-कभी वेजिटेबल पुलाव...
ये मोटापा तो बीमारियों का है जलवा;
खाने में परहेज़ करो और साथ में देसी घी का हलवा...

अगर चाहती हो मोटापा पास ना आये;
तो सुबह-सुबह पीयो अदरक-नीबू की चाय...
तन को रोगी मत बनाओ और बीमारियों का कैदी;
फ़ास्ट फूड से दूर रहो, चाहे वो हो मैगी...

बीमारियों से बचने का अब यही है रास्ता;
मत खाओ मैक्रोनी और पास्ता...
अपने स्वास्थ को रखना हो गर सहेज;
खटाई, मिठाई और तलाई से थोड़ा करो परहेज़...

मोटा होना कहीं न बन जाये श्राप;
भूल से, भूल कर भी, होने ना दो ये महापाप...

मम्मी की बात मुझे जल्द समझ में आई;
एक्सरसाइज और योग की तकनीकी अपनाई...
करने लगी मैं थोड़ा सा व्यायाम;
जल्द मोटापे से पाया मैंने आराम...

कॉलेज सुंदरी का पाया मैंने खिताब;
और सजाया हीरों का ताज...

कैसा लगा मेरा मीठा-सा महापाप;
चटोरी, भुक्कड़ या पेटू;
किस नाम से नवाज़ोगे आप...

भुक्कड़ और पेटूपन की मेरी, कैसी लगी कहानी;
कमेंट करके बताओ, अपनी ज़ुबानी...
मंजरी शर्मा ✍️