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पाप अच्छे हैं ...

हेलो!! मैं "खट्टा-मीठा चैनल" से आपकी दोस्त एंड होस्ट मंजरी, आपके सामने पेश हूँ शर्मा निवास से 'लाइव'|

जी हां, वही शर्मा निवास, जहाँ हंसने मुस्कुराने की किसी को नहीं है शर्म और हल्ला गुल्ला करने में सब हैं बेशर्म| तो दोस्तों! अपनी सीट पर बैठ जाइये और सीट बेल्ट लगा लीजिये, ताकि कहीं लोटपोट होकर आप गिर ना पड़े| तो देखते हैं शर्मा निवास का लाइव नज़ारा|

बीती दिवाली की रात हंसने-हंसाने और गप्पे मारते-मारते इतना समय हो गया की शर्मा जी का परिवार ड्राइंग रूम में ही सो गया. रीमा जी और उनकी बहु चहक नीचे गद्दा डाल कर सो गए और बाप-बेटा दीवान पर. इतने दिनों से दिवाली की सफाई, सजावट, पकवान और पूजा की तैयारियों में सास-बहु की हालत खस्ता हो गई, इसलिए दोनों ने प्लान बनाया की अगली सुबह दोनों ही कोई ना कोई बहाना मारकर दिन भर सोई रहेंगी. देखते हैं आज की सुबह क्या होता है ...

सुबह के 7 बजे:

"बहु उठ गई क्या???"

"नहीं मम्मी और आप ???"

"अरे, तूने ही तो मना किया था. चल सो जा."

रीमा जी और उनकी बहु, चहक के बीच फुसफुसाने की आवाज़ आई.

"लगता है ये दोनों भी सो रहे हैं, सोने दो... वैसे भी आज तो ऑफिस की छुट्टी है ... मम्मी, वैसे कितना मज़ा आ रहा है ना... गर्मागर्म रज़ाई में."

"हाँ-हाँ अब चुप भी हो जा और सोने दे." दोनों सास-बहु एक ही रज़ाई को तान, दुनिया की सुध-बुध खो, खर्राटों की प्रतियोगिता में प्रथम आने की रेस लगा रही थी.

सुबह के 8.30 बजे :

"अरे, शर्माईन!! इतना समय हो गया, आज चाय मिलेगी या नहीं." - शर्मा जी अपना चश्मा लगाते हुए बोलते हैं.

"क्या हुआ शर्माईन? बोल क्यों नहीं रही??"

"अरे क्या बताऊं, ये घुटनों का दर्द इतना बढ़ गया है की ..."

"कितनी बार कहा है - घोड़े की टाँगे लगवा लो, भागती नज़र आओगी ..."

"आपको तो हर समय मज़ाक सूझता है."

"लेकिन बहु को क्या हुआ है? वो भी अभी तक सो रही है. मुन्ना (रोहन) ज़रा देख तो सही, बहु को क्या हुआ है?"

रोहन आँखे मलते हुए बैड से नीचे उतरता है की चहक चिल्लाने लगती है - "हाय! मेरा पैर..."

"ये क्या चहक, माँ का दर्द तुम्हें ट्रांसफर हो गया है..." रोहन सर खुजाते हुए.

"अरे! इतना बड़ा हाथी, नन्ही-सी चींटी को कुचलेगा तो चींटी का वही हाल होगा जो मेरा हुआ है".

"क्या?? खैर छोड़ो, अब जल्दी से उठ जाओ, पापा के लिए चाय बना दो."

सासु माँ कोणी मारते हुए इशारा करती है - "रोहन! लगता है बहु की भी तबियत ठीक नहीं." चहक ने बेचारा सा चेहरा बना लिया.

"बुखार तो नहीं लग रहा, गर्मवर्म भी नहीं लग रही."

"अरे, अभी तो लग रही थी." रीमा जी आंखे मटकाते हुए कहती है.

" चहक, तुम्हारा बुखार तो सब्ज़ियों के दाम की तरह है, कभी ऊपर कभी नीचे..."

"ठीक है, तुम दोनों आराम कर लो हम मैनेज कर लेंगे".

"सुनिए जी, आप पहले नहा धोकर, ज्योत जगा कर, भगवान् को भोग लगा दीजिये और मुन्ना तू ज़रा बाज़ार जाकर दूध और ब्रेड ले आ. सुन, पनीर भी ले आ. पनीर सैंडविच ही बना लेना."

" ठीक है, अब आप दोनों इतना कह रहे हैं, लेकिन हमे बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा". दोनों सास-बहु, मासूम-सा चेहरा बना बीमार होने की एक्टिंग करने लगी.

" वाह मम्मी! आपने तो कमाल कर दिया और बातों ही बातों में नाश्ते की फरमाइश भी कर दी." - चहक, चहकती हुई रीमा जी के गले लग जाती है.

" अरे, पीछे हट... कितनी बार कहा है तुझसे, मुझे ये चिपकना बिलकुल पसंद नहीं."

" और पापाजी के साथ..."

" हट शरारती, सास से मस्करी करती है..."

" लेकिन मम्मीजी, कितना मज़ा आ रहा... ठंडी-ठंडी सुबह और गरमगरम रज़ाई और साथ में फोन ..."

"हाँ, ज़रा, मैं भी तो देखूँ की कल की पोस्ट पर मुझे कितने लाइक और कमेंट मिले हैं."

" वाह मम्मीजी, आप भी... "

" और नहीं तो क्या? तू क्या समझती है मुझे? मैं तुझसे भी ज़्यादा स्मार्ट हूँ . तुझसे ज़्यादा फ्रेंड्स और फ़ॉलोर्स है मेरे." मम्मी ने रौब दिखाते हुए कहा ...

सुबह 9:30 बजे:

" पापा मैं बाजार जा रहा हूँ, दरवाज़ा बंद कर लो."

दोस्तों सास-बहु तो फिर से आलस की रज़ाई तान सो गई है. पापाजी नहाने और राहुल बाज़ार गया है. तब तक आपको थोड़ा इंतज़ार करना पड़ेगा. एक...., एक मिनट, रोहन की आवाज़ आ रही है, वो किससे बाते कर रहा है. आइये, ज़रा चुपके से देखते है.

अरे, ये तो पड़ोस वाली शीला आंटी है.

"अरे रोहन, आज तो तुम्हारी छुट्टी है. कहाँ जा रहे हो?"

" आंटी बाज़ार! सामान लाने, वो क्या है ना..."

रोहन बात को बदलते हुए, "आंटी, बहुत खुश्बू आ रही है."

"हाँ, आज गोवर्धन पूजा है ना, तो उसी की तयारी चल रही है. वैसे प्रसाद बनने में तो देर है, लेकिन नाश्ता तैयार है आ जाओ. "

"वाह!! गर्मागर्म स्टफ्ड आलू ब्रेड पकोड़ा और मसाले वाली चाय ... अरे आंटी, आप तो बहुत स्मार्ट है और साथ में आपके हाथों में तो जादू है." रोहन अपनी उँगलियाँ चाटते हुए बोला.

रोहन ने दो ब्रेड पकोड़े गपागप खाये और दो अपनी जेब में छुपा लिए. " आंटी चाय बहुत टेस्टी है."

शीला आंटी अपनी तारीफ़ में गुप्पा होते हुए -" अच्छा!! ये लो एक कप और ..."

"अच्छा आंटी, मैं चलता हूँ."

"चाय तो पीलो... "

"कोई नहीं आंटी, घर जा कर पी लूँगा. अभी बहुत गर्म है. आपको मेरी वजह से परेशान होना पड़ा."

सुबह 9:55 बजे:

"पापा, जल्दी दरवाज़ा खोलो. अरे तू इतनी जल्दी आ गया और इतनी हड़बड़ाहट में क्यों है?"

" ये लीजिये, गर्मागर्म चाय और टेस्टी ब्रेड पकोड़े." रोहन जेब से निकालते हुए और अपनी गर्म पेंट को सहलाते हुए बोला.

" ये कहाँ से?? तुझे पता है ना, कोरोना की वजह से बाहर का खाना बिलकुल बंद है ..."

"ओहो पापा, शीला आंटी के घर से. जल्दी खा लो और दोपहर के खाने का भी बंदोबस्त हो गया है. टेस्टी-टेस्टी, कढ़ी चावल..." रोहन जीभ लबलबाटे हुए कहता है.

" लेकिन मुन्ना, तू सामान तो लाया नहीं. अब शर्माईन और बहु क्या खाएंगे?"

"भई, मेरी बीवी तो डाइटिंग पर है, तो उसका तो दूध कॉर्नफ्लिक्स से काम चल जायेगा. आप, अपनी बीवी का देख लीजिये."

"क्या मतलब???"' शर्मा जी आँखे दिखाते हुए बोलते है.

"अरे मेरा मतलब है उनको तो सिर्फ चाय-बिस्कुट दे देंगे और कह देंगे की लाला की दूकान बंद थी."

सुबह 10:45 बजे:

"मम्मी... चहक... उठो, नाश्ता कर लो."

"ये क्या है? तू लाला के यहाँ सामान लाने नहीं गया था?"

"मम्मी गया था, लेकिन लाला की दूकान बंद थी."

"हे भगवान्! कहीं लाला लुढ़क तो नहीं गया."

"भगवान् उनकी आत्मा को शांति दे..."

"ऑफ हो!! आप दोनों ये क्या कह रही हो?"

"मम्मी, अब हमने भी यही खाया है. आप भी खा लो. तब तक हम दोपहर के खाने की तयारी कर लेते हैं."

दोनों सास बहु एक दूसरे को बेचारगी की नज़र से देख रही थी. "आज मेरे आलस के कारण भगवान् को इतनी देर इंतज़ार करना पड़ा."

"अरे मम्मीजी, मुझे तो अपनी किचन पर तरस आ रहा है, ना जाने क्या हाल हुआ होगा???

दोपहर 2 बजे:

"आईये-आइये... पेश है, पापा-बेटे की रसोई से स्वादिष्ट कढ़ी चावल ..."

"वाह! रोहन, बहुत ही टेस्टी है."'

"हाँ मुन्ना बहुत स्वाद है. लेकिन कढ़ी किससे बनाई, दही या छाछ से"'.

"दही..."

"छाछ..."

दोनों बाप बेटाबेटी एक साथ बोल पड़े."मतलब दही और छाछ दोनों से" - और राहत की सांस ली.

" सही में कढ़ी बहुत टेस्टी है शी....ला.... (का जवाब नहीं)" - शर्मा जी बुदबुदाते हुए.

"शी...शी..., वो थोड़ी मिर्ची ज़्यादा ही डाल दी मैंने" रोहन सकपकाते हुए बोला.

शाम 4 बजे:

"चहक, बस बहुत हो गया. यहाँ हम आलस में पड़े हैं और ये दोनों बेचारे काम करके कितना थक गए हैं."

"हाँ मम्मी, मुझे भी इनपर तरस आ रहा है, पूरी रसोई चमाचम चमक रही है, हर चीज़ अपनी जगह ..."

"हे भगवान्!! हम दोनों को माफ़ कर दो. हम दोनों से बहुत बड़ा पाप हो गया है. इस आलस ने तो हमें पापी बना दिया है. दोनों सासबहू भगवान् के आगे क्षमा मांगते हुए प्रायश्चित करने लगी ..

"अरे शर्माईन, अपने आप को दोष मत दो. मैंने जो पाप किया है उसका तो प्रायश्चित भी नहीं हो सकता. मुझे ठण्ड में नहाने में बहुत आलस आता है और मैं पूरी सर्दी कभी कभार ही नहाता हूँ और जब भी तुम मुझे पूजा पाठ करने को कहती, तो मैं नास्तिक की तरह पीछे हट जाता. लेकिन मन ही मन भगवान् का पाठ करता रहता. लेकिन आज तो मैंने अपने नहाने के आलस के कारण भगवान् को भोग ही नहीं लगाया. पिछले 25 वर्षो की तपस्या को पलभर में ..."

"नहीं नहीं शर्मा जी, इसमें आपका कोई दोष नहीं."

"मुझे भी माफ़ कर दीजिये" मुन्ना भी हकलाते हुए बोला. सभी की नज़र रोहन को घूरने लगी.

"मैं भी पापी हूँ. आलस के कारण, अक्सर लाला की दूकान पर ना जाने का बहाना ढूँढता था ... आप सब ऐसे मत देखो, एक तो जैसे ही मैं घर आता, तो आप मुझे लाला की दूकान पर भेज देती. तंग आ गया था मैं लाला के भुलक्कड़पन से, दस मिनट के सौदे को एक घंटे में निपटाता."

"और तो और, हर बात का गलत अर्थ ले जाता. थोड़े दिन पहले जब मैं सामान लेने गया, तो मैंने पूछा - "लाला ये अंडे कैसे दिए, ताज़ा तो हैं ना ..." तो अपनी पत्नी लाली की और देखकर कहता है - "ये तो इसने सबेरे-सबेरे दिए थे, अभी तक तो ताज़ा ही है." लाली ने गुस्से में इतनी ज़ोर से घूरा की सारे अंडे मेरे हाथ से छूट कर गिर गए ."

सभी मुहं दबाकर हंसने लगे.

" और सुबह, पापा और मैंने ब्रेड पकोड़े और मसाले वाली चाय का नाश्ता किया था, और कढ़ी चावल भी ...जो शीला आंटी के घर से लाया था. लेकिन नाश्ता बनाने और बर्तन धोने के आलस के कारण, आपके लिए नाश्ता भी नहीं बनाया. सचमुच इस पाप का भागीदार तो मैं हूँ..."

"हेलो, हेलो ... "'

"'ये तो पीहू दीदी की आवाज़ है."

"अरे याद आया, पीहू का फोन था, उसी से बात कराने लाया था तो ...."

"पापा, मम्मी, भैया-भाभी, मुझे माफ़ कर दें ... मैंने आप सब लोगों की बात सुन ली है. सबसे बड़ा महापाप तो मैंने किया है. मैंने ही इतने सालों तक पापा के ना नहाने का राज़ किसी को नहीं बताया. मम्मी और भाभी को मैंने ही आलस करने के इस प्लान के लिए राज़ी किया था, क्योंकि दोनों को ही आराम की ज़रूरत थी, इसलिए कल रात को ही मैंने दोनों को आलस करने के फायदे बताये."

"भैया को भी बोला, की आप कह दिया करो की दूकान बंद थी ..."

"बाप रे बाप!! एक से बढ़ कर एक पापी ... किसे महापापी का ताज पहनाऊं?? पर सच कहूं - "ये पाप अच्छे हैं..." शर्मा जी के दामाद निखिल तालियां बजाते हुए कहता है.

"तुम तो हम आलसी, पापियों की श्रेणी में आते नहीं हो;

इसलिए इसकी तुम्हें सजा मिलेगी. जब तक, हम अपना आलस दिवस मनाते हैं, तब तक निखिल शेफ, हम सभी के लिए बढ़िया खाना बनाएंगे. आप सभी जल्दी से डिनर के लिए हमारे घर आ जाइये" पीहू ने शरारती शब्दों में कहा|

निखिल मासूमियत से - " हे भगवान! ये किस पाप की सजा मिल रही है"|

"आलस ना करने की .." सभी ज़ोर से तालियां बजाते हुए हल्ला करते हैं|

तो दोस्तों!! आप भी थोड़ा ब्रेक लेकर फ्रेश हो जाइये, तो मिलते हैं ठीक रात नौ बजे, डाइनिंग टेबल पर... और वहीँ कर लेंगे थोड़ी गुफ्तुगू और मस्ती.... क्या आपने भी कभी मज़ेदार आलस किया है? कृपया मुझसे भी साँझा करें.

मंजरी शर्मा