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मोबाइल में गाँव - 3 - चिड़िया चहचहाई



चिड़िया चहचहाई-3

दूसरे दिन सुबह कुछ आवाजें सुनकर सुनयना उठकर बैठ गई । उसने माँ को जगाकर उन आवाजों की ओर उनका ध्यान दिलाया । माँ ने बताया ये आवाज बाहर से आ रही चिड़ियों की चहचहाहट है । गाँव की खुली हवा में इनको भी चहकने का अवसर मिल जाता है । शहर में इनको खुली हवा नहीं मिलती ।

माँ की बात सुनकर सुनयना खिड़की के पास गई और बाहर देखने लगी । उसने देखा खिड़की के बाहर एक बड़े से पेड़ पर अनेकों चिड़ियायें फुदक रही हैं । मुंबई में रहने वाली सुनयना ने इतनी चिड़ियायें एक साथ कभी नहीं देखीं थीं । अभी वह चिड़ियाओं को फुदकते देखकर आनंदित हो ही रही थी कि उसे पेड़ की डाल पर एक घोंसला दिखाई दिया । उसने आश्चर्य से पूछा, ‘ ममा, चिडिया का यह घोंसला तो बहुत सुंदर है । ये छोटी-छोटी चिड़िया इसे बनातीं कैसे हैं ?’
‘ बेटा, चिडिया सूखी घास के तिनके या सूखी पत्तियों की पतली टहनियों को आपस में बुनकर अपना घोंसला बनातीं हैं । अपने घोंसले को मजबूती देने के लिए यह मकड़ी के जाले, मिट्टी तथा अपने मुँह से निकली लार का भी प्रयोग करतीं हैं । कुछ चिड़िया अपने घोंसले को आरामदायक बनाने के लिए पत्तियों एवं पंखों का भी प्रयोग करते हैं । ’

‘ वाउ ग्रेट...बहुत मेहनत लगती होगी ।’

‘ घर बनाना आसान है क्या...!!’ ममा ने कहा ।

बातें करते-करते उसने देखा कि एक चिड़िया अपने मुँह में कुछ लेकर आई तथा घोंसले में बैठकर अपनी चोंच में लाई चीज को डालकर फिर उड़ गई थोड़ी देर बाद वह फिर आई तथा फिर उसने ऐसा ही किया । जब उसने कई बार ऐसा किया तो उसने ममा को बुलाकर पूछा,‘ ममा, चिड़िया यह क्या कर रही है ?’

‘ बेटा, चिड़िया के घोंसले में, उसके बच्चे होंगे । वह उन्हें खाना खिला रही है ।’

‘ क्या इस तरह चिडिया अपने बच्चों को खाना खिलाती है ? बार-बार आने-जाने में थक नहीं जाती होगी । क्या बच्चे स्वयं नहीं खा सकते ?’

‘ बेटा वह माँ है । उसके बच्चे छोटे हैं । वे अभी उड़ नहीं पाते होंगे । माँ को मेहनत तो करनी ही होगी । अपनी छोटी सी चोंच में वह कितना ला पायेगी, इसलिये उसे बार-बार जाना पड़ रहा है ।’

‘ ममा चिड़िया खाती क्या है ?’ सुनयना ने बैग से बाइनोकुलर निकालते हुये कहा ।

‘ अनाज के दाने जैसे गेंहू , चावल, दाल इत्यादि...कुछ चिड़ियायें कीड़े मकोड़े भी खातीं हैं । इसीलिए कुछ लोग चिड़ियाओं के लिए एक बर्तन में पानी तथा अनाज के दाने रख देते हैं ।’

‘ ममा, एक बार में चिड़िया कितने अंडे देती है ।’ सुनयना ने बाइनोकुलर से बाहर देखते हुये कहा ।

‘ दस से बारह...।’

‘ क्या दस से बारह ? पर घोंसले में तो तीन चार ही दिख रहे हैं । ’

सुनयना ने बैक पैक से अपना मोबाइल निकाला और फोटो खींचने लगी ।

‘ ओह ! सुबह- सुबह तूने बातों में लगा लिया । माँजी की पूजा भी शुरू हो गई और मैं अभी फ्रेश भी नहीं हुई हूँ ।’ घंटी बजने की आवाज सुनकर ममा ने झुंझलाकर कहा ।

ममा जल्दी से सूटकेस से कपड़े निकालने लगीं तथा सुनयना फोटो खींचकर, अपने छोटे पर्स में अपने मोबाइल को रखकर दादी को पूजा करते देखने के लिये जाने लगी । वह कमरे से बाहर निकलकर सीढ़ियों से नीचे जाने के लिये उतर ही रही थी कि उसने देखा ननकू दो कप चाय लेकर उनके कमरे में जा रहा है । वह तो चाय पीती नहीं थी अतः नीचे चली गई ।

‘ मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...।’ दादीजी को पूजा करते तथा सुमधुर आवाज में भजन गाते देखना सुनयना को बहुत ही अच्छा लग रहा था । ममा को तो पूजा करने की फुर्सत ही नहीं है...जब उन्हें समय मिलता तो कर लेतीं हैं वरना नहीं, उसने सोचा । उसने मंदिर और पूजा करती दादीजी की फोटो खींची । पूजा करने के पश्चात् दादी ने उसे प्रसाद दिया । अब तक ममा-पापा नीचे आ गये थे । दादी ने सबको प्रसाद दिया । मम्मी, दादी से प्रसाद लेकर किचन में चली गईं तथा पापा और चाचा ड्राइंग रूम में बैठकर बातें करने लगे ।

‘ सुनयना बेटा, नाश्ता बन गया है । जाकर अपने पापा और चाचा को बुला लाओ । ’ चाची ने उससे कहा ।

। ‘ मेरा जूता है जापानी, पतलून इंग्लिस्तानी, सिर पर लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी...गाने की आवाज सुनकर सुनयना भूल गई कि वह किसलिये आई है । वह उस ओर गई जिधर से आवाज आ रही थी । उसने देखा कि एक टेबिल पर रखे स्टैंड में एक बड़ी सी प्लेट...आज की सी.डी. जैसी चीज घूम रही है तथा उसके ऊपर एक कील जैसी चीज चल रही है । उसे आश्चर्य से देखते देखकर चाचा उसके पास आये तथा मुस्कराकर बोले, ‘ यह ग्रामोफोन है । जैसे आप आजकल सी.डी. लगाकर गाना सुनते हो वैसे ही पहले समय में हम लोग इस ग्रामोफोन पर गाने सुनते थे और आज भी सुन रहे हैं । ’

‘ यह सुई... और यह बड़ा सा भाग ।’

‘ यह सुई ग्रामोफोन का महत्वपूर्ण भाग है । यह सुई इस रिकार्ड के घुमावदार खाँचों के संपर्क में आकर, इन खाँचों में संजोई गानों की ध्वनि को पढ़कर गाने के रूप में हम तक पहुँचाती हैं ।’

‘ और यह...।’ सुनयना ने ग्रामोफोन के उठे भाग को स्पर्श करते हुये पूछा ।

‘ इसके बॉक्स से लगी इस नली को ध्वनि भुजा कहा जाता है, । इस ध्वनि भुजा से ग्रामोफोन से निकलती ध्वनि एक जगह एकत्रित होकर इस भाग जिसे भोंपू या इसको साउंड बॉक्स भी कहते हैं, से हमारे पास पहुँचती है । ’

‘ चाचाजी क्या यह बहुत पुराना है ?’

‘ हाँ बेटा, यह हमारे परदादा की यादगार है । इसलिये मैं इस ग्रामोफोन को बहुत सहेजकर रखता हूँ ।’

‘ चाचाजी क्या मैं इसकी फोटो खींच सकती हूँ ?’

‘ क्यों नहीं बेटा, तुम इसके पास खड़ी हो जाओ, मैं तुम्हारी फोटो खींचता हूँ ।’

सुनयना ग्रामोफोन के पास खड़ी हो गई । चाचा के फोटो खींचते ही वह बोली,‘ ओह ! मैं तो भूल ही गई कि चाची ने आप दोनों को नाश्ते के लिये बुलाया है ।’

वह कमरे से बाहर निकल ही रही थी कि उसकी निगाह छत पर लगे पर्दा नुमा कपड़े पर गई ।

‘ चाचाजी यह कपड़ा...?’ उसने छत की ओर इशारा करते हुए कहा ।

‘ बेटा, यह एक प्रकार का पंखा है ।‘

‘ पंखा...। ’

‘ हाँ बेटा, पहले समय में जब हमारे गाँव में बिजली नहीं थी तब इस पंखे को चलाकर कमरे को ठंडा रखते थे । ‘

‘ यह चलता कैसे है ?’

‘ बेटा, इस पंखे से एक रस्सी बंधी रहती थी जो उस दरवाजे के ऊपर बने होल से बाहर निकाली जाती थी जिसे बाहर बैठा आदमी खींचता रहता था जिससे इस कमरे में बैठे लोगों को हवा मिलती थी ।‘

‘ लेकिन चाचाजी क्या वह आदमी थक नहीं जाता होगा ? ‘

‘ कहाँ रह गई सुनयना...? सबको जल्दी लेकर आओ, नाश्ता ठंडा हो रहा है । ’ चाचीजी की आवाज आई ।

‘ आई चाची ।’ मन के प्रश्न को मन में दबाकर कहते हुये सुनयना ने सोचा कि वह इस पंखे का भी फोटो खींचेगी । जब वह इन सबके बारे में अपनी सहेलियों को बतायेगी तो उन्हें भी इन सब चीजों के बारे में जानकर अच्छा लगेगा ।
सुनयना के साथ पापाजी, चाचाजी भी डायनिंग रूम में आकर अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठ गए । ननकू गर्मागर्म गोभी के परांठे खिला रहा था तथा वे सब एक साथ बैठकर खा रहे थे । उसे सबके साथ नाश्ता करते हुये बहुत अच्छा लगा रहा था वरना मुंबई में तो सुबह-सुबह सबको इतनी जल्दी रहती थी कि किसी को किसी के साथ बात करने का भी समय ही नहीं रहता है ।
नाश्ता करने के पश्चात् रोहन सुनयना का हाथ पकड़कर छत पर ले गया । छत काफी बड़ी थी । चारों ओर हरे-भरे खेत दिखाई दे रहे थे । सामने एक मंदिर भी दिखाई दे रहा था । उसके आस-पास कई घर दिखाई दिये । कुछ छोटे तथा कुछ बड़े, कुछ पक्के तथा कुछ कच्चे । उसने नीचे झांककर देखा तो घर के पास ही एक कुंआ दिखाई दिया । जिससे लोग रस्सी के सहारे पानी खींचकर घड़े में भरकर ले जा रहे थे तथा कुछ लोग नहा भी रहे थे । एक व्यक्ति तो अपनी गाय को नहला रहा था । आस-पास का दृश्य देखकर उसे बहुत ही अच्छा लग रहा था । तभी उसने दूसरी तरफ देखा तो पाया कि उधर मैदान में कुछ लड़के-लड़कियाँ खेल रहे हैं । उनमें एक लड़का सामने रखे कुछ पत्थर के ढेर को ‘ बॉल ’ से मारकर भाग गया । कुछ लड़के उस पत्थर के ढेर को पुनः बनाने की कोशिश कर रहे हैं वहीं दूसरे लड़के उसे ‘बॉल ’ मारकर रोक रहे थे । अभी वह देख ही रही थी कि चाची किसी काम से ऊपर आईं…

‘ चाचीजी , यह कौन सा गेम है ?’ सुनयना ने चाची का ध्यान उस खेल की तरफ दिलाते हुए पूछा ।

‘ बेटी, यह सतोलिया खेल है । कुछ लोग इसे गिट्टी फोड़ भी कहते हैं । इसमें सात पत्थर होते हैं । सबसे बड़ा नीचे तथा अन्य छोटे । इन पत्थरों को एक के ऊपर रखा जाता है । एक टीम का लड़का या लड़की गेंद से इसको तोड़ता है तथा उसी टीम के लड़की या लड़के को इन गिरे पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर ‘ सतोलिया ’ बोलना होता है । अगर सतोलिया बोलने से पहले गेंद उसे लग जाती है तो वह टीम आउट हो जाती है तथा फिर दूसरी टीम गेंद से पत्थर गिराती है । इस तरह खेल चलता रहता है । ’

' चाची जी यह...।' सुनयना ने जमीन पर चौक से बने आयताकार आकृतियों को देखते हुए कहा ।

' बेटा, यह भी खेल है जिसे किठ-किठ कहते हैं ।'

' यह खेल है, इसे कैसे खेला जाता है ?'

' इसमें खिलाडी बाहर से एक पत्थर एक डिब्बे में फेंकता है और फिर किसी भी डिब्बे की लाइन को छुए बिना एक पैर पर (लंगड़ी टांग) उस पत्थर को बाहर लाता है। इसे घर के भीतर और बाहर दोनों जगह खेला जा सकता है।' कहते हुए चाची ने किनारे रखा एक चपटा पत्थर उठाया तथा उसे खेलने की विधि बताने लगीं ।

' वाह ! यह तो बहुत अच्छा गेम है । मैं भी इसे खेलूँगी ।'

' ठीक है बेटा, तुम खेलो, मैं चलती हूँ ।'

सुनयना और रोहन खेलने लगे…

‘ सुनयना फ्रेश हो लो ।’ चाचीजी की बात खत्म ही हुई थी कि ममा की आवाज आई ।

‘ आई ममा ।’ कहकर उसने इधर-उधर देखते हुये कई फोटो खींची ।

उस दिन पूरा दिन उसने रोहन के साथ खेलते बिताया ।
सुधा आदेश

क्रमशः

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