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मोबाइल में गाँव - 4 - गाँव की सैर



गाँव की सैर-4

दूसरे दिन चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर ही उसकी आँख खुली । उसने बाइनोकुलर से चिड़िया के घोंसले की ओर देखा । चिड़िया उन्हें खाना खिला रही थी तथा बच्चे उसकी ओर अपनी चोंच उठाये अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे । दादी की पूजा की घंटी सुनकर वह नीचे आई । वह वहीं चटाई पर बैठ गई । दादी को पूजा करते देखना उसे बहुत अच्छा लग रहा था । कल की ही तरह दादी ने उसे तथा अन्य सबको प्रसाद दिया । आज नाश्ते में मूली के परांठे बनाये थे । नाश्ता कर दादाजी ने उससे कहा अगर घूमने चलना हो तो तैयार हो जाओ ।

सुनयना जल्दी से तैयार होकर आ गई । बाहर ठंड से बचने के लिए उसने अपना जैकेट पहन लिया तथा अपने बैग में अपनी पानी की बोतल के साथ एक कैप तथा फोटो खींचने के लिये मोबाइल भी रख लिया । रोहन ने नाश्ता नहीं किया था अतः चाची ने उसे रोक लिया । उसे तैयार देखकर दादाजी ने ड्राइवर को गाड़ी निकालने के लिये कहा ।

‘ दादाजी, क्या हम घूमते हुये नहीं चल सकते हैं ? मैं गाँव को अच्छे से देखना चाहती हूँ ।’ सुनयना ने आग्रह भरे स्वर में कहा ।

‘ ठीक है बेटा...पैदल चलते हैं । जब तुम थक जाओ तो बता देना, मैं गाड़ी मँगा लूँगा ।’

‘ ठीक है दादाजी । ’

सुनयना दादाजी के साथ गाँव देखने चल दी । जैसे ही वह घर के बाहर आई...घर के गेट के सामने लगे पेड़ से ननकू को कुछ पत्तियाँ और नाजुक डंठल तोड़ते देखकर सुनयना ने पूछा…

‘ दादाजी, ननकू अंकल इस पेड़ की पत्तियाँ क्यों तोड़ रहे हैं ?’

‘ बेटा, यह नीम का पेड़ है...तुम्हारी दादी इसकी पत्तियों को पानी में उबालकर उस पानी से नहातीं हैं ।’ दादजी ने उत्तर दिया ।

‘ अच्छा...मेरी मेम ने भी बताया था कि नीम, पीपल ऐसे पेड़ हैं जिनसे अधिक मात्रा मे आक्सीजन निकलती है । ये पेड़ दिन के साथ रात में भी आक्सीजन छोड़कर हमारे वायुमंडल को शुद्ध करते हैं । नीम की पत्तियाँ यहाँ तक कि इसकी डाली भी कीटाणुनाशक होने का कारण बहुत लाभदायक है ।’

‘ आपकी मेम ठीक कहती हैं बेटा । इसलिये हमारे गाँव में लगभग हर घर के सामने नीम के पेड़ लगाये जाते हैं । गाँव के लोग आज भी नीम की डंठल का ब्रश बनाकर दाँत साफ करते थे ।’

‘ नीम की डंठल का ब्रश...।’

‘ हाँ बेटा...इससे दाँत खराब नहीं होते । जब कभी हम बीमार पड़ते थे तो हमारी माँ नीम के पत्तों को उबालकर उसके पानी से हमें नहाया करतीं थीं ।’

‘ दादी तो अब भी नहातीं हैं पर इससे क्या होता है ?’

‘ बेटा आप ही तो कह रही थीं कि नीम के पेड़ में कीटाणुनाशक गुण भी होते हैं । जैसे आप पानी में डिटोल डालकर नहाते हो, उसी तरह नीम की पत्ती के पानी से नहाने से शरीर की त्वचा स्वस्थ रहती है ।’

‘ मालिक पाँव लागूँ ।’ वे बात कर ही रहे थे सामने से आते एक आदमी ने दादाजी के पैर छूते हुये कहा ।

‘ खुश रहो...कैसे हो रामलाल ? बाल बच्चे कैसे हैं ? सब ठीक है न । ’ दादाजी ने उसे आशीर्वाद देते हुये कहा ।

‘ आपकी दया है मालिक ।’

इसके बाद भी रास्ते में जो-जो आदमी मिलता गया, वह इसी तरह दादाजी को प्रणाम करके ही आगे बढ़ता तथा दादाजी भी उससे बड़े प्रेम से बातें करते । दादाजी के प्रति लोगों का सम्मान तथा दादाजी का लोगों के प्रति प्रेम देखकर सुनयना को बहुत अच्छा लग रहा था । वह सोच रही थी कि गाँव में सब लोग एक दूसरे का कितना सम्मान करते हैं जबकि हमारे मुंबई के अपार्टमेंट में तो कोई किसी से बात ही नहीं करना चाहता । सामने भी कोई पड़ेगा तो बिना देखे ही चला जायेगा । सब अपने मोबाइल या लैपटॉप में ही लगे रहते हैं ।

चलते-चलते उसने देखा कि गाँव में कुछ घर मिट्टी के बने हैं तो कुछ ईटों के । किसी घर के सामने गाय बंधी हैं, कहीं कोई झाड़ू लगा रहा है तो कोई घर के बाहर कपड़े सुखा रहा है । एक घर के सामने की जगह में कुछ लड़के कुश्ती खेलते नजर आये । थोड़ा आगे बढ़े तो देखा एक लड़का गाड़ी के पुराने टायर को चला रहा है तथा अन्य लडके उसके पीछे-पीछे भाग रहे हैं । कुछ ही दूर गये थे कि एक जगह कुछ लड़के एक लकड़ी से एक छोटी लकड़ी को हवा में उछाल रहे हैं किन्तु उनके आते ही वे यह सोचकर रुक गए कि कहीं उन्हें चोट न लग जाए । दादाजी ने उसे आश्चर्य से उनकी ओर देखते देखा तो कहा,’ इस खेल का नाम गुल्ली डंडा है । गाँव के बच्चों के लिये यह क्रिकेट है ।‘

‘क्रिकेट...।’ सुनयना ने उनका फोटो खींचते हुये पूछा ।

‘ हाँ बेटा...हमारे समय का तथा आज के गाँव के बच्चों का यह क्रिकेट ही है ।’

सुनयना को दादाजी कि बात कुछ समझ में आई तथा कुछ नहीं । वह उनका फोटो खींचने लगी । उसे फोटो खींचते देखकर दादाजी के कहने पर बच्चों ने ‘गुल्ली डंडा’ खेल खेलने का नाटक किया । फोटो खींचकर आगे बढ़ते हुए कुछ कच्चे घरों को देखकर अचानक सुनयना ने पूछा,‘ दादाजी, गाँव में अधिकतर घर कच्चे क्यों होते हैं ? ‘
‘ बेटा, गाँव वालों के पास इतना पैसा नहीं होता कि वे पक्के घर बनवा सकें । इसके अतिरिक्त कच्चे घर ठंडे रहते हैं जिससे उनका गर्मी से भी बचाव हो जाता है । ’

‘ सर्दी में ....। ‘ सुनयना ने पूछा ।

‘ बेटा, मिट्टी से बने, ये घर, सर्दी में भी ईंटों से बने घरों की तुलना गर्म रहते हैं अतः इस कारण भी गाँव के लोग ऐसे ही घर बनाते थे । ‘

‘ गर्मी में ठंडे तथा सर्दी में गर्म, ऐसा कैसे दादा जी ? ‘

‘ बेटा ये घर क्ले यानि मिट्टी से बनाए जाते हैं । इन घरों की छत भी फूस...सूखे पेड़ पत्तों से बनाई जाती है । तुम्हें पता होगा कि मिट्टी तथा घास-फूस गर्मी का बुरा संवाहक ( bad conductor of heat ) है अतः मिट्टी बाहरी गर्मी को न अंदर जाने देती है और न ही अंदर कि गर्मी को बाहर आने देती है । इसलिए ऐसे घर सर्दी में गर्म तथा गर्मी में ठंडे होते हैं । ‘

‘ दादाजी, इनको पेंट कैसे करते हैं ?’

‘ इन घरों को गाय के गोबर से पेंट किया जाता है ।’

‘ क्या गाय का गोबर ? ’

‘ हाँ बेटा, गाँव वाले गाय के गोबर को बहुत पवित्र मानते हैं । वे घर के आँगन को भी गोबर से रोज ही लीपते हैं । ’

‘ दादाजी, वह घर बहुत सुंदर लग रहा है । उस घर पर कितनी सुंदर पेंटिग बनी है ।’ सुनयना ने फोटो खींचते हुये कहा ।

‘ हाँ बेटा, कुछ लोग अपने घर को सजाने के लिये चित्रों से सजाते हैं ।’
बातें करते-करते एक जगह पहुँचकर दादाजी ने कहा …

‘ चारों ओर जहाँ तक तुम देख पा रही हो, हमारे खेत हैं । ये देखो गन्ने का खेत...।‘

‘ गन्ने...।’

‘ हाँ बेटा इनसे गुड़ और शुगर बनती है ।’

‘ शुगर, शुगर फैक्टरी में बनती है न दादाजी । ‘

‘ हाँ बेटा ...। ‘

‘ दादाजी क्या आप मुझे शुगर फैक्टरी दिखायेँगे ?’ उसने पूछा ।

‘ बेटा, ठीक है, चलेंगे किसी दिन । ’

‘ दादाजी लेकिन आप यह तो मुझे बता सकते हैं कि चीनी बनती कैसे है ?’

‘ शुगर फैक्टरी में गन्ने को बड़ी-बड़ी मशीनों के द्वारा क्रश करके रस निकाला जाता है । रस को बड़े-बड़े कंटेनर में उबाला जाता है । उबलते-उबलते जब यह गाढ़ा हो जाता है तब इससे चीनी बनाते हैं । इस चीनी को बोरों में स्टोर कर लेते हैं । ’

‘ और गुड़...।’

‘ गुड़ बनाने के लिये गन्ने के रस को उबालकर गाढ़ा किया जाता है जब यह गाढ़ा हो जाता है तब गुड़ बन जाता है ।’

‘ दादाजी आपने कहा कि चीनी बनाने के लिये भी गन्ने के रस को उबाला जाता है तथा गुड़ बनाने के लिये भी फिर दोनों में क्या अंतर है ?’

‘ बेटा चीनी बनाने के लिये गन्ने के रस में उसे पारदर्शी बनाने के लिये कुछ कैमीकल मिलाये जाते हैं जिससे वह सफेद तो हो जाती है जबकि उसके सारे पोषक तत्व जैसे पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन इत्यादि नष्ट हो जाते हैं जबकि गुड़ में रस को सिर्फ गाढ़ा किया जाता है जिससे यह चीनी से अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है ।’

‘ ओ. के. दादाजी । क्या मैं गन्ना चूस सकती हूँ ?’

‘ यहाँ चूसने में तुम्हें परेशानी होगी । मैं रामू से कह दूँगा कुछ गन्ने घर पहुँचवा देगा ।’
थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि उसकी नजर खेत में चलते दो बैलों पर पड़ी जिनके कंधे पर कुछ रखा था जिसे एक आदमी पकड़कर चल रहा है ।

‘ दादाजी खेत में गाय...यहाँ क्या कर रही है ?’

‘ बेटा, यह गाय नहीं, बैल हैं ।’

‘ बैल...ये यहाँ क्या कर रहे हैं ?’

‘ बेटा, बैलों के कंधे पर जो रखा है उसे हल कहते हैं । इसके द्वारा खेतों में बीज डालने से पहले गुड़ाई की जाती है जिससे मिट्टी पोरस यानि भुरभुरी हो जाए । ’

‘ मुझे पता है दादाजी जैसे गमले की मिट्टी को हम खुरपी से खोदते हैं पर इससे तो इतने बड़े खेत की गुड़ाई करने में बहुत समय लगता होगा ।’

‘ हाँ बेटा, यह छोटे खेतों के लिये तो ठीक है पर बड़े खेतों को जोतने के लिये किसान ट्रैक्टर का उपयोग करते हैं ।’

‘ ट्रैक्टर...उससे कैसे ? ’

‘ जुताई के उपयोग में लाने वाले ट्रैक्टर के पीछे के हिस्से में इस हल जैसे ही लोहे के कई हुक जैसे पार्ट लगे होते हैं । खेत में जब ट्रैक्टर को चलाते हैं तो उसमें लगे हुक से गुड़ाई होती जाती है । मैं तुम्हारे चाचा को कह दूँगा कि वह तुम्हें ट्रैक्टर में बिठाकर घुमा दे ।’

‘ दादाजी आप बैल के साथ मेरी फोटो खींच दीजिये प्लीज । मुझे याद तो रहेगा कि मैंने गाँव में क्या-क्या देखा । ’ सुनयना ने अपना मोबाइल दादाजी को पकड़ाते हुये कहा ।

दादाजी ने उसकी बैल तथा हल के साथ कई फोटो खींच दीं । आगे बढ़ते ही सुनयना ने एक खेत में लगी कुछ फलियों को देखते हुये कहा, ‘ यह मटर है न दादाजी...।’

‘ हाँ बेटा, वह देखो उधर गेंहूँ तथा सरसों के खेत हैं तथा उधर गोभी, गाजर, मूली तथा आलू भी लगे हुये हैं ।’

‘ क्या मैं मटर की फलियाँ तोड़ सकती हूँ ? मटर मुझे बहुत अच्छी लगती हैं ।’ दादाजी की बात को अनसुनाकर सुनयना ने पूछा ।

‘ तोड़ भी सकती हो और खा भी सकती हो ।’

‘ ओ.के. दादाजी ।’

‘ दादाजी, मेम कहती हैं गेंहू, मटर, सरसों, तिल रबी क्राप में आते हैं । ‘ सुनयना ने मटर तोड़ते हुए कहा ।

‘ आपकी मेम ठीक कहती हैं । यह सर्दी में होती हैं , इसलिए इन्हें विंटर क्रोप भी कहा जाता है । ‘

‘ अब मुझे सदा याद रहेगा वरना रबी और खरीफ की फसल में सदा कन्फ्युज हो जाती हूँ । ‘ सुनयना ने मटर छीलकर मुँह में डालते हुए कहा ।

‘ यह तो बहुत मीठी मटर है । हमारे मुंबई में ऐसी मटर तो मिलती ही नहीं है ।’

‘ ठीक कह रही हो बेटा । ताजी मटर का स्वाद अलग ही होता है ।‘

दादाजी अपने खेत दिखाते हुए आगे चलने लगे तो सुनयना ने कहा, ‘ दादाजी, एक फोटो यहाँ भी...घर जाकर ममा-पापा तथा मुंबई जाकर अपने दोस्तों को दिखाऊँगी तथा कहूँगी कि मेम ने तो हमें नकली गाँव दिखाया था पर मैं तो असली, अपने दादाजी के गाँव घूमकर आई हूँ ।’

‘ तुम मटर की फली को तोड़ने की एक्टिंग करो । मैं एक फोटो खींचता हूँ ।’

दादाजी के फोटो खींचते ही उसने दादाजी के साथ एक सेल्फी ली । सुनयना ने फोटो दादाजी को दिखाई तो वह बोले, ‘ बहुत अच्छी खींची है ।’

दादाजी भी सुनयना के संग बच्चे ही बन गए थे । उन्हें भी उसके साथ घूमने तथा फोटो खींचने तथा उसके हर प्रश्न का उत्तर देने में बहुत आनंद आ रहा था । वे आगे बढ़े तो दादाजी ने उसे बताया कि यह गेहूँ का खेत है । छोटे-छोटे पौधों के ऊपर लगी फलियों को वह छूकर देखने लगी तब दादाजी ने कहा,‘ बेटा, इन्हीं में गेहूँ के दाने बनते हैं । पकने पर इन बालियों से दानों को निकाला जाता है । उन्हें पीसकर आटा, दलिया बनाया जाता है ।’

‘ दलिया गेहूँ के दानों से बनता है !! मुझे दलिया बहुत पसंद है ।’

‘ दलिया तो मुझे भी पसंद है, पोष्टिक भी होता है । तुम्हारी दादी से कहकर कल नाश्ते में दलिया बनवा दूँगा ।’

आगे बढे तो एक खेत में पीले-पीले फूल दिखाई दिये…

‘ दादाजी ये फूल...।’

‘ बेटा यह सरसों के फूल हैं कुछ दिनों में इनमें बालियाँ आ जायेंगी । सरसों के पौधे की ऊँचाई एक से तीन फीट होती है । ’

‘ सरसों...इसको किस काम में लाया जाता हे ।’

‘ इससे तेल बनाया जाता है जिसे तलने तथा सब्जियाँ बनाने के काम में लाया जाता है । सरसों का तेल मालिश के काम भी आता है ।’

सुनयना ने गेहूँ और सरसों के खेत में खड़े होकर फोटो खिंचवाईं ।
‘ दादाजी इन खेतों की सिंचाई कैसे करते हैं ?’

‘ बेटा सिंचाई के लिए हमारा ट्यूब वेल है जिससे आवश्यकतानुसार सिंचाई की जाती है । वैसे अधिकतर गाँव वालों को बारिश के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है ।‘
‘ टियूबवेल...यह क्या होता है दादाजी ।’
‘ जमीन में बोरिंग करके, पंप की सहायता से पानी निकालकर एक जगह इकट्ठा किया जाता है जिसे आवश्यकतानुसार पाइपों के जरिये खेतों में पहुंचाया जाता है । ’

‘ दादाजी इसे क्या कहते हैं ?’ अचानक खेत से लगी सड़क पर एक गाड़ी में कुछ लोगों को बैठे देखकर सुनयना ने कहा ।

‘ बेटा इसे बैलगाड़ी कहते हैं क्योंकि इसे बैलों द्वारा चलाया जाता है । अब तो गाँव में आवागमन के दूसरे साधन भी आ गये हैं पर पहले समय में गाँव में बैलगाड़ी ही लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का एकमात्र साधन थी । इससे सामान भी ढोया जाता है । ’

‘ दादाजी, वह औरत मुँह पर कपड़ा क्यों डाले है ?’

‘ बेटा, गाँव में बड़े लोगों के सामने घर की बहुयें मुँह पर कपड़ा डाले रहती हैं । इसे घूँघट कहते हैं ।’

‘ इससे क्या इन्हें घुटन नहीं होती होगी ?’ उसे याद आया कि ममा और चाची दादाजी के सामने घूँघट तो नहीं निकालती किंतु उनके आते ही सिर ढक लेती हैं ।

‘ बेटा, घुटन तो होती होगी किन्तु अब तो गाँव में भी यह प्रथा कम होने लगी है लेकिन पूरी तरह खत्म होने में समय लगेगा ।’

बातें करते-करते आगे बढ़ रहे थे । एक जगह पहुँचकर दादाजी ने बताया...यह हमारा फलों का बाग है यहाँ आम, अमरूद, शरीफा इत्यादि के पेड़ लगे हुये थे ।

‘ बेटा, अमरूद खाओगी ।’ दादाजी ने उससे पूछा ।

‘ हाँ दादाजी ।’

‘ रामू हमारी बिटिया को अमरूद तोड़कर देना ।’

‘ जी मालिक...।’

दादाजी की बात सुनकर, रामू ने तुरंत एक अमरूद तोड़कर उसे देते हुये कहा,‘ लो बिटिया ।’

‘ दादाजी एक रोहन के लिये ।’

‘ हाँ क्यों नहीं...।’ कहते हुये रामू ने एक और अमरूद उसे तोड़कर दिया ।

दूसरे अमरूद को बैग में डालते देखकर दादाजी ने उससे कहा,‘ तुम खा लो बेटा, रोहन तथा अन्य लोगों के लिये रामू घर अमरूद दे जायेगा ।’

इसके साथ ही दादाजी ने रामू को अमरूद घर पहुँचाने के लिये कहते हुये पूछा, ‘ घर में सब ठीक है न रामू । कोई परेशानी तो नहीं है ।’

‘ हम ठीक हैं सरकार, आप हैं तो हमें क्या चिंता ?’

दोपहर हो रही थी अतः दादाजी ने कहा कि अब घर चलते हैं । रास्ते में एक इमारत पर पर प्राथमिक विद्यालय लिखा देखकर सुनयना ने पूछा, ‘ दादाजी, यह स्कूल है ।’

‘ हाँ बेटा, आजकल छुट्टियाँ चल रही हैं ।’

वे दोनों घर लौट आये । उस दिन गाँव घूमकर सुनयना बेहद खुश थी । गाँव में फैली हरियाली तथा शुद्ध हवा में घूमकर वह स्वयं को बेहद तरोताजा महसूस कर रही थी वरना मुंबई की गर्मी उसे सदा परेशान कर देती है । घर आने पर सुनयना रोहन को अपना लाया अमरूद देते हुये, अपनी देखी सभी चीजों के बारे में बताने लगी तथा मोबाइल पर खींची सारी फोटो दिखाने लगी । इसके साथ ही उसने मनीषा, इला, रीता, भावना, वरूण को अपनी खींची तस्वीरें भेज दीं । उसकी बातें सुनकर दादाजी सोच रहे थे कि कितना मासूम होता है बचपन !!

सुधा आदेश

क्रमशः