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अतीत के चलचित्र—(3)





अतीत के चलचित्र (3)
एक दिन मेरी सहेली मेरे घर आई और उसने बताया कि मेरी भाभीजी ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया है,उसका नामकरण संस्कार है ।उसने बताया कि कुछ रिश्तेदार भी आये हैं और मुझे भी निमंत्रण दिया ।

मेरा परिवार एक मध्यवर्गीय है और शुरू से ही पिताजी के अनेक जगह स्थानांतरित होने के कारण हम अपने अनेक जगह मित्र बना चुके थे ।

आज मैं नीना के घर आई तो वहाँ उसकी दादी जी से मुलाक़ात हुई ।दादी जी को शहरी वातावरण कुछ अटपटा लगता था ।

नीना का अपना स्थायी घर है लेकिन दादी बहुत परेशान लग रहीं थीं मैंने उन्हें प्रणाम किया और कहा दादी क्या बात है आप इतनी परेशान क्यों है तो उन्होंने जो मुझे बताया वह मैं आपके साथ भी साझा करती हूँ ।


उन्होंने कहा—बेटा हमारे यहाँ घर के बाहर चबूतरे है सब अपने चबूतरे पर बैठकर अपने दुख-सुख की बातें करते है ।बड़े बुजुर्ग तो चबूतरे पर ही बैठते हैं ।यहाँ हर समय मुझे घर के अंदर अच्छा नहीं लगता ।

पड़ौस में कौन रहता है यह भी कोई जानकारी नहीं है ।मैंने बहू से कहा—बुलावा देने के लिए नाइन को बुला लो जो कि प्रत्येक घर में बुलावा दे आयेगी शाम को गाने हो जायेगे तो यहाँ कोई नाइन नहीं मिली ।


पुरानी परंपरा के अनुसार जिस घर में कोई कार्यक्रम होता तो नाई या नाइन ही बुलावा देने जाते हैं ।सभी के घर के चबूतरे पर कोई घर का बड़ा बैठा होता था और पाय लागू बाबा कहकर संबोधित करते हुए कार्यक्रम के साथ मोहल्ले की गतिविधियों से भी अवगत करा देता था ।

चबूतरे के पीछे बरामदे में घर की बहू बेटी भी सुन लिया करतीं ।घर के अंदर बड़ा ऑंगन होता जिसमें बच्चों का घुटनों चलने का आनंद सभी लेते उसके बाद गिरते पड़ते लकड़ी के गडूलना से चलना कब सीख जाते पता ही नहीं लगता ।

घर में मेहमान आने पर वह सभी के मेहमान होते सभी उनका आदर सत्कार करते ।
घर में एक ही नहाने का कमरा होता और तौलिया वहॉं टंगा होता उसी से सभी अपना बदन पौछ लेते।नहाने का कमरा गुसलखाना कहलाता ।जहाँ नहाने का एक साबुन भी और मंजन सबके उपयोग के लिए रखा रहता ।

किसी की बेटी यदि ससुराल से आती तो वह सभी की बेटी होती। अपनी ससुराल की सभी बातें वह चबूतरे पर बैठे हुए ही सबके साथ बताती ।यदि कोई परेशानी बताती तो चुटकियों में उसका हल सब मिलकर कर लेते ।

यदि किसी भी लड़की के ससुराल में कोई पड़ौसी भी जाता तो वह बेटी को रिश्ते के अनुसार कुछ भेंट अवश्य देता ।

शाम के समय मोहल्ले के सभी बच्चे खेला करते किसी के यदि खेलते हुए चोट भी लग जाती तो शिकायत कोई नहीं करता गीले कपड़े की पट्टी ही काम कर जाती ।

रात के समय जब सब कामों से फ़ारिग हो जाती तो बहुएँ अपने दुख सुख भी चबूतरे पर बैठकर अपनी सहेलियों से बताकर कुछ समस्याओं के समाधान भी कर लेतीं ।

दादी जी परेशान थीं कि यहाँ कोई किसी से बात ही नहीं करता दस दिन मुझे यहाँ आये हुए हो गये और कोई नहीं आया ।हमारे यहाँ प्रतिदिन नामकरण होने तक गाने गाए जाते हैं जच्चा-बच्चा अवश्य गाये जाते हैं ।जिन लड़कियों को नहीं आता वह भी सीख लेतीं है ।

दादीजी से बहुत कुछ बातें हुई और कार्यक्रम पूरा होने पर उन्होंने सभी को लिफ़ाफ़े दिए मुझे भी उन्होंने सम्मान पूर्वक लिफ़ाफ़ा दिया ।दादी जी से मिलकर मुझे बहुत कुछ जानने का अवसर प्राप्त हुआ जो अब शहरीकरण में सब कुछ लुप्त होता जा रहा है ।


✍️क्रमश


आशा सारस्वत