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शरणागति - 4

अध्याय 4

'वह मोड़ क्या है?' उसके अंदर एक तीव्र उत्सुकता जगी। उसी समय एक लड़की की आवाज आई "रामस्वामी सर...."‌

उन्होंने मुड़कर देखा।

"आपका फोन है.... ऑफिस में बुला रहे हैं ऐसा फर्श को साफ करने वाली अन्नम्मा ने उन्हें बुलाया तो वे "ठीक हैं... आपको जिस से मिलना है मिलिए। बातचीत करिए। मैं बात करके आ रहा हूं।" फिर वे चलने लगे।

रंजनी को थोड़ी निराशा हुई।

करीब-करीब उसके ही जीवन के बारे में वे बात कर रहे थे उसे ऐसा लगा। अब उसमें भी एक प्रश्न वाचक चिन्ह!

वह एक दीर्घ-श्वास लेकर वहां के एक कमरे के अंदर घुसी। एक बुजुर्ग दंपत्ति बहुत उत्साह के साथ चेस खेल रहे थे। उसे उन्होंने अंदर आते देखा।

"नमस्कार। मेरा नाम रंजनी है। मैं एक पत्रिका में काम करने वाली सह संपादक हूं। हमारी पत्रिका में इस बार बुजुर्गों पर विशेषांक निकालने वाले हैं इसीलिए मैं आप सबसे मिलने आई हूं।" इस तरह उन्हें प्रश्न पूछने की जरूरत ही नहीं ऐसे उसने अपना परिचय दे दिया।

"ओ.. रामास्वामी ने जो बताया था वह आप ही हो क्या?" उन्होंने हाथ को हटाते हुए पूछा।

"हां सर..."

"बहुत सारे प्रश्न है सर। यहां आने पर आपका जीवन कैसा है सर ..?"

"बहुत अच्छा है.... शरीर में बहुत सी बीमारियां है। उम्र के साथ होंगी तो सही ? इसीलिए कोई बड़ी बात नहीं बोलना चाहिए। उसके लिए तो बहुत सी दवाइयां गोलियां सब आ गई है ना?"

उनका जवाब किस तरह का है रंजनी के समझ में नहीं आया। वे बड़े खुश हैं ऐसा भी लग रहा था दुखी हैं ऐसा भी लग रहा था।

"ठीक है सर.... आप इस वृद्धाश्रम में क्यों आए हैं बता सकते हैं ?"

"वह क्या... बच्चों का सौभाग्य हमें नहीं मिला। रिश्तेदारों की भी कोई विशेष सहायता नहीं थी। मेरी पत्नी से भाग दौड़ कर मेरे लिए खाना बनाना संभव नहीं था। कितने दिन होटल में खाना खाए? ऐसी परिस्थिति में इस संस्था के बारे में पता लगा तो हमने अपने को ही इस संस्था में सौंप दिया।"

आगे बोले "मैं एक गवर्नमेंट नौकरी से रिटायर हुआ इसलिए पेंशन आता है। एक मकान था उसे बेच कर रूपयों को बैंक में डाल दिया तो कुछ ब्याज मिल जाता है। अब हमें ढूंढते हुए आने वाला एक मात्र यम ही हैं। उसके आने तक हम यहां रहेंगे सोच कर आ गए।"

खेलते हुए बिना किसी टेंशन के उनके बात करने के ढंग पर रंजीता का ध्यान खींचा। उन लोगों से और क्या पूछे उसे समझ में नहीं आया। परंतु उन्होंने उससे पूछना शुरू कर दिया ‌।

"आपकी शादी हो गई क्या ?"

"हां..."

"कितने बच्चे हैं?"

"एक लड़की।"

"सिर्फ एक ही लड़की है ?"

"हां। इस महंगाई में उसे पढ़ा लिखा कर बड़ा करना कम है क्या।"

"अरे जा बेटा.... दूसरा बच्चा बहुत जरूरी है कर लो। बड़ा भाई, छोटा भाई, बड़ी बहन, छोटी बहन, इन रिश्तों की भी बहुत जरूरत है। यह कुछ भी नहीं होने के कारण ही हमें इन रिश्तो का महत्व मालूम है।"

"ऐसा है तो लड़ाई झगड़ा होता है ना। आजकल महंगाई का दबाव भी तो बढ़ गया है...."

"वह सब बहुत सामान्य बातें हैं लड़ाई-झगड़े अज्ञानता के कारण होते हैं। उसे बड़ा नहीं करना चाहिए। एक दूसरे के लिए थोड़ी छूट दे दो तो ठीक है... और फिर मैं का ईगो नहीं होना चाहिए। बस इतनी सी बात! इन लड़ाई-झगड़ों की सोचते रहें तो हमारे जैसे अकेले ही जीना पड़ेगा । जिंदगी में फंस कर रह जाना पड़ेगा। इससे तो वह बढ़िया है...."

खेल भी रहे थे। साफ बात भी कर रहे थे। उनके साथ उनकी पत्नी ने भी मुंह खोला।

"समय को काटने के लिए ही खेल रहे हैं। सब बातों से बोर हो गए। अब टीवी देखना भी अच्छा नहीं लगता। कैसे-कैसे क्रिमिनल योजना वाले मेगा सीरियलस उसे भी देखने की अब इच्छा नहीं। हंसी मजाक वाला अब नया कुछ भी नहीं है। उसे एक बार या दो बार पसंद कर सकते हैं। उसके बाद उसे ही देखें तो गुस्सा आता है।

यहां पर आने के बाद हमारे जैसे बिना आधार वाले कुछ लोगों से हम मिल सके। हम में से कोई भी अपने भूतकाल के बारे में बात नहीं करते। हम लोगों के लिए रोज का ही जीना है। मेरी एक ही इच्छा है। मुझसे पहले इनको जाना चाहिए। मेरे जाने के बाद इन्हें मेरे लिए तड़पना नहीं चाहिए।"

बोलकर खत्म करने से पहले ही उस बुजुर्ग महिला का गला भर आया।

"उसी को कितनी बार कहोगी अभिरामी। हम दोनों एक साथ ही जाएंगे। उसके लिए अभी और समय है। बोलते हुए ही रख रहा हूं देख चेक.... चेक..."

-उन्होंने कॉइन को निकाल कर चेक को रखा । "कैसे भी हो हर बार आप ही जीतो। मुझे एक भी चांस नहीं देते हो...." वह अभिरामी बोली।

"अरे पागल... मुझे जिताने के लिए ही तुम जबरदस्ती खेलकर अब ऐसी बात कह रही हो ?"

"वह ठीक है... आदमियों को किसी से भी हारना नहीं चाहिए.... मैं आपके लिए एक लड़के को तो दे ना सकी.... खेल में तो जीताती हूँ ना.... "

उन दोनों के बीच की बातचीत से उसे जलन सी हुई। ऐसा भी कोई दंपत्ति होगा क्या उसने सोचा।

"क्या देख रही हो बेटी.... तेरे पति को भी किसी मामले में हारने मत देना। हां तुम्हारे बच्चे हैं ना...."

"एक लड़की है...."

"पढ़ रही है क्या ?"

"हां.... फोर्थ स्टैंडर्ड में...."

"अच्छा पढ़ रही है क्या ?"

"ठीक पढ़ रही है...."

"उसको ज्यादा मत पढ़ाओ.... एक डिग्री दिला दो बस। बहुत पढ़ने पर तुम्हारी लड़की फिर तुम्हारी लड़की नहीं रह जाएगी। संभल के रहो...."

"आपकी बात मेरे समझ में नहीं आ रही है। वह कैसे ?"

"उसका मैं जवाब देता हूं....." कहते हुए वाकिंग स्टिक के साथ एक बुजुर्ग अंदर आ रहे थे।

"अरे अरे वर्धराजन सर.... क्या बात है अभी तक नहीं आए मैंने सोचा।"

"मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक... और यह वर्धराजन जाएगा तो स्वामीनाथन तक...."

वे कोई जोक सुना जैसे जोर-जोर से हंसे और।

"इसका मतलब मेरा पति मुल्ला.. आप बहुत वैसे हो...." कहते हुए अभिरामी के उठते ही, उसके स्थान पर वह बैठ गए। फिर उन्होंने रंजनी को देखा।

...............