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शरणागति - 6 - अंतिम भाग

अध्याय 6

"क्यों बेटी सब लोगों ने अपनी-अपनी परेशानियों का खूब ब्खान कर रहे थे क्या ?" रामास्वामी ने पूछा।

"हां सर। उन लोगों की बातों को सुनकर मुझे अभी से मेरे बुढ़ापे के बारे में सोच कर डर लग रहा है..."

"क्यों डरना चाहिए बेटा, यह तो कालक्रम है। वे किस कारण से ऐसे हुए यह सुन लो तो बहुत है। उसमें से आप जैसे युवा पीढ़ी को बहुत कुछ जवाब मिल जाएगा। यहां पर बेटों के द्वारा छोड़े हुए से ज्यादा, उन लोगों के साथ रहकर जी न सकने वाले अधिक है। दूसरा उनमें सहनशक्ति नहीं हैं । खास तौर पर लड़की और लड़का बराबर है की सोच के कारण कुछ कमियाँ, कुछ कमजोरियां पुरुषों में होने से इस पीढ़ी की लड़कियां साथ नहीं रह पा रही हैं। पति रात को सोते समय खर्राटे लेता है, उसके मुंह से दुर्गंध आती है इस तरह के कारणों को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन करके बताते हैं। यह सब बदल जाएं तो बहुत है...."

रामास्वामी के बातचीत में उनके तलाक के बारे में बोलने से वह बात उसके हृदय में शूल सा चुभने लगा। बाहर आते हुए रंजनी बोलने लगी

"सर... आदमी जितने भी बेकार और खराब हो तो एक लड़की को समझौता करके उसके साथ जीना ही जीवन की सफलता हैं ऐसा आप कह रहे हो ?"

उसने ऐसा शांति और गंभीरता से पूछा।

"हां बेटी...." एक मिनट भी न सोच तुरंत उन्होंने जवाब दिया।

"आपका जवाब कितना पुरातन तन्त्री है आपको पता है सर ?" रंजनी का गुस्सा फूटने लगा।

"वह तो देखने के नजरिए पर निर्भर है ‌। मैं अपने बहन के जीवन के आधार पर ही बोल रहा हूं। वह एक तलाकशुदा स्त्री है। उसने दूसरी शादी नहीं की। इसी आश्रम में वह खाना बनाने वाली एक रसोईया है। उसे खाने की, रहने की कोई समस्या नहीं। परंतु उसके जीवन में कोई पकड़ नहीं है पता है आपको?"

"आपकी बहन का अपने पति से क्या झगड़ा था ?"

"वह एक शराबी और जुआरी था...."

"फिर उसके साथ कैसे रह सकते हैं ?"

"उसके साथ जी नहीं सकते यह एक ऊपरी सतह का जवाब है। परंतु उसके लिए सिर्फ तलाक ही आखिरी फैसला नहीं है।"

"फिर क्या फैसला ?"

"मेरे जवाब से आपको आश्चर्य भी हो सकता है। फिर भी बोल रहा हूं। तलाक लेने का तुमने फैसला कर लिया तो दूसरी शादी करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए और करके भी दिखाना चाहिए।

गर्म बर्तन को छू लिया और हाथ जल गया तो हाथ को काटने के बजाय उससे भिड कर उसे ठीक रास्ते में लाने के लिए कोशिश करना चाहिए। उसमें लगातार हार होने पर भी एक नहीं तो एक दिन जीतने का अवसर जरूर आएगा । परंतु तलाक हो जाने के बाद उसे भूल भी न सके, याद भी नहीं कर सके ऐसा एक अकेला पेड़ जैसे जीना कितना मुश्किल है पता है?" कहते हुए रामास्वामी डायनिंग हॉल में घुसे वहां पर उसी समय बन रहें गर्म-गर्म भजिए और हलवा लेकर रंजनी को खाने के लिए उन्होंने मनुहार किया परंतु उसको उसे छूने की भी उसकी इच्छा नहीं हुई ‌। उसे देने वाली उनकी बहन.... उसका स्वरूप कुंभलाया हुआ शरीर।

रामास्वामी के जवाब में एक न्याय है तो सही। जी कर दिखाना ही जीवन है। संबंध को काटकर फिर रहना सचमुच में कोई समाधान नहीं है.... वह तो सिर्फ एक अस्थाई समाधान जैसे ही उसे लगा फिर भी सचमुच का समाधान नहीं है... वह तो तुरंत की माया है | रंजनी को धीरे-धीरे समझ में आने लगा।

"मेरे विचार से अभी तुम सहमत नहीं हो ऐसा तुम्हें लग सकता है। परंतु यही मेरा मानना है। फिर औरतों के पास गर्भाशय है, आदमियों के पास नहीं है ऐसे सोचने वाला आदमी नहीं है। परंतु आदमी के पास जो बल है वह महिला के पास नहीं। इसलिए हमारे आचार-संस्कृति में उसके लिए एक अलग मर्यादाएं हैं। वह नियम उसको कैद करने के लिए नहीं है। उसे बचाने का एक तरीका है.... उन सब को समझ कर सहन कर जो चलती है उसी में एक लड़की की जीत निर्भर है।

एक बडी सच्चाई को मैं बता रहा हूं। मेरे अप्पा की दो पत्नियां थीं । उनकी पहली पत्नी के मरने पर तुरंत छ: महीने बाद हमारी मां से उन्होंने शादी की । फिर उनके देहांत के बाद मेरी मां ने दस साल तक विधवा का जीवन जिया फिर उनका भी देहांत हो गया ।

इसे क्यों बता रहा हूं, एक आदमी बिना औरत के तो जी नहीं सकता तुरंत दूसरी शादी के लिए तैयार हो जाता है पर लड़कियों में ऐसा नहीं..... यह काम महिलाओं से ही हो सकता है इसीलिए लड़कों को भी रखकर वह दूसरी शादी के बारे में नहीं सोच कर अपना जीवन जी कर दिखाती है। इस विषय में महिलाओं में जो मानसिक दृढ़ता होती है वह आदमियों में नहीं होती । वह लोगों को मार सकता है, पीट सकता है यह सब शारीरिक दृढ़ता है। परंतु जीवन के लिए जो मानसिक दृढ़ता चाहिए उसी मानसिक दृढ़ता से लड़की बिना किसी के अकेले ही सब संभाल लेती है।

इस वृद्धाश्रम में ऐसी कितनी लड़कियां है पता है? इसे आप चाहे तो अपने लेख में शामिल कर सकती हैं...."

रामस्वामी के विचारों ने रंजनी को सोचने पर मजबूर कर दिया था। वह मौन होकर चल रही थी। "और किसी से मिलना है? एक दो लोगों से ही तो आप मिली है। यह काफी नहीं होगा मुझे लगता है...." रामस्वामी बोले।

"नहीं काफी है। मुझे आपसे एक प्रश्न पूछना है। एक शराब पीने वाले, के मां-बाप यहां पर दो दिन पहले आए हैं आपने बोला ना....."

"हां।"

"वह लड़का सन्यासी हो गया आपने बोला....."

"हां बेटी.... वह एक आश्चर्यजनक बात है। रास्ते में जा रहा सन्यासी जैसा एक आदमी, रास्ते में बेहोश पड़े आदमी के माथे पर भभूति लगाकर तीन बार चेहरे पर फूंका। उसकी बेहोशी खत्म होकर वह खड़ा हुआ उसके बाद वह बिल्कुल नहीं पिया। वही नहीं.... मैंने जो गलतियां की है उसके पश्चाताप स्वरूप सन्यास ले लेता हूं | कहकर तिरुवन्नामलाई जाकर किसी एक स्वामी जी से दीक्षा भी ले ली। बेचारे वह दंपत्ति सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं जैसे यहां आकर रहने लगे। अपने जायदाद को अपनी पोती को देने के लिए वे उसके पास गए । पर वह लड़की तो उनकी बातों को सुनना ही नहीं चाहती थी । गर्दन को पकड़ कर बाहर निकाला जैसे उन्हें निकाल दिया!"

रामास्वामी का जवाब सुन रंजनी बुरी तरह से हिल गई। पास के एक मंडप में कृष्ण की बांसुरी बजाते हुए मूर्ति लगी थी। उसके सामने कुछ बुजुर्ग दंपत्ति बैठे हुए थे। वह भी वहां जाकर चुपचाप बैठ गई। वैसे ही आंख बंद करके भावनाओं से ओतप्रोत हो कर बैठी। उसके अंदर एक समुद्र घुसकर छाती के पीछे से लहरें मार रहा हो ऐसा उसे भ्रम पैदा हुआ।

रामास्वामी भी थोड़ी देर खड़े रहे। रंजीनी उन्हें देखकर "सर आप जाइए। मैं थोड़ी देर बाद आऊंगी।" बोली।

"ठीक है बेटी" कहकर वे भी अलग हो गए। उसी समय उसका मोबाइल बजा। पत्रिका के संपादक का फोन.....

"रंजनी... होम में ही हो ना ?"

"यस मैडम...."

"तुम्हारा अनुभव कैसा है.... हमारा लेख अच्छा बनेगा क्या ?"

"निश्चित रूप से मैडम...."

"पढ़ने से मन में एक सिहरन उठना चाहिए। युवा पीढ़ी को एक सबक भी मिलना चाहिए।"

"निश्चय ही मैडम। मुझे भी एक पर्सनल सबक मिला है....."

"तुम भी एक युवा पीढ़ी की ही तो हो ? तुमने सेंटर में जो समझा वह कौन सा विषय है?"

"बहुत कुछ मैडम.... जीवन में बुढ़ापा और बुढ़ापे में अकेलापन बहुत ही खराब है मैडम।"

"उसका समाधान ?"

"मेरे अम्मा-अप्पा और आपके अम्मा-पापा ने जो जीवन जिया उनमें सहनशक्ति बहुतायत से थी, बिना किसी लालच के बच्चों का पालन-पोषण ही उनका मकसद था मैडम...."

"अरे वाह.... साफ-साफ बोल रही हो.... और बातें तो आमने-सामने होगी...."

फोन के बाद वह तुरंत एक फैसले पर आई।

उस कन्हैया को नमस्कार करके वह रवाना हुई। ऑफिस के कमरे में रामास्वामी से मिली, "सर मेरे सास-ससुर किस कमरे में रहते हैं?" उसने पूछा।

रामास्वामी चौंक गए।

"आपके सास-ससुर.... वे लोग कौन है ?"

"दो दिन पहले ही यहां आकर जो रह रहे हैं आपने बोला था ना.....…वे ही तो है सर...."

"अरे.... फिर उस शराबी की पत्नी आप ही हो क्या ?"

मौन होकर उसने सिर हिलाया। डायरेक्टर रामाकृष्णन भी आश्चर्य में पडे।

"वह ठीक है.... तो फिर उनका भी साक्षात्कार लेने वाली हो ?"

"नहीं सर.... मेरे रहते हुए उनका यहां रहने का कोई अर्थ ही नहीं है। वह न्याय भी नहीं है। उन्हें मैं साथ ले जाना चाहती हूं। कानून के द्वारा कटे हुए रिश्ते को, संबंध के द्वारा नया करने वाली हूं। यदि अवसर मिला तो उस सन्यासी हुए उस आदमी को भी लाने की कोशिश करूंगी। आपने जैसे बोला वैसे अकेले होकर तड़पकर जीने से मुकाबला कर जीना बड़ा है...."

उसके जवाब में एक अलग ही दृढ़ता थी। उसका समर्थन करने जैसे लंच की घंटी भी बजना शुरू हुई!

 

समाप्त