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शरणागति - 5

अध्याय 5

"क्यों बेटी.... तुम ही वह पत्रिका वाली लड़की हो..."

"हां जी...."

"मैंने सोचा। रामस्वामी सब लोगों को सूचना देकर जो कुछ कहना है वह सब कह दो ऐसा कह कर गए। पर क्या बोले ! बोझ बने हुए शरीर के साथ कहां, कब मौत आएगी वह जल्दी आए तो ठीक है सोचते फिर दूसरे समय कही अरे आज ही तो कहीं नहीं आ जाए तो ऐसा भी ड़र लगता है | इस तरह से हम अपनी परेशानियों को शब्दों में वर्णन नहीं कर सकते।"

उनके शब्दों में जो शोक व्याप्त था रंजनी उसी से आहत हुई।

"मैं एक हार्ट पेशेंट हूं। मेरी एक ही लड़की है। अभी अमेरिका में है। मेरे दो दोहेते हैं। दामाद को भारतीय मुद्रा के हिसाब से पाँच लाख रुपये आय है। बड़े आराम से रहते हैं। परंतु उनके साथ रहकर जीना मेरे तकदीर में नहीं...."

"क्यों सर.... आपके दामाद को आपको, अपने साथ रखने की इच्छा नहीं है क्या ?"

"अरे.... मेरा दामाद तो खरा सोना है। मैं 5 साल वहीं था। सुबह मेरी लड़की और दामाद दोनों ऑफिस चले जाते। दोहेते भी स्कूल चले जाते। मैं अकेला घर की चौकीदारी करता।"

"अड़ोस-पड़ोस में कोई नहीं। अपने शहर जैसे कोई मंदिर, चाय की दुकान, बीच कहीं नहीं जा सकते। ठंड और परेशान करती उसे क्या कहूं ? वहां लोग सुंदर... सिर्फ पहली दृष्टि में... बस फिर..?"

वे प्रश्न पूछ कर रूके।

"समझ में आ रहा है सर.... वहां आपसे रहा नहीं गया। ऐसा ही है ना ?"

"हां... तुम अनुभव करो तब तुम्हें पता चलेगा। दिल खोल कर बात करने में ही आदमी के जीवन की सार्थकता है। उसकी भी वहां पर कोई जगह नहीं है ऐसा स्थान है वह बस।"

"आपकी बेटी और दामाद में आपके जैसे भावनाएं नहीं है क्या ?"

"वे तो धन के पीछे भागने वाले पिशाच हैं। काम-काम करके भागते रहते हैं। बिना आराम के परिश्रम करते रहते हैं। कितना भी कमाए उन्हें पूरा नहीं पड़ता। अपने देश में जैसे एफ.डी बनाना या चिटफंड में जमा करना वहाँ के लोग बहुत कम करते हैं या नहीं के बराबर। वहां कोई भी बचत करना नहीं जानते। जो कमाते हैं सब खर्च कर देते हैं। पूछो तो कहते हैं रुपया तभी रोटेट होगा एक सिद्धांत और बताते हैं। वहां 100 में से 90 लोग कर्जदार होते हैं। वह एक अजीब देश है।"

अपने देश जैसे मामा, बुआ, साली, यह सब रिश्ता वहां बड़ा नहीं होता है। बाप-बेटे की बीच में भी यह दूरी होती है।"

"इसका मतलब उन लोगों को जीना नहीं आता ऐसा आप कह रहे हो क्या ?"

"गलत है.... पैदा होते ही वहीं पले-बड़े हो तो पता नहीं चलता। यहां पर एक बढ़िया जीवन जीने के बाद मुझमे एक कंपैरिजन है। वह उनमें वहाँ नहीं है।"

"अपने देश में ऐसा बड़ा क्या है ? गली-गली में शराब की दुकानें.... साफ दीवार को भी ना देख सके जैसे पोस्टर चिपकाए होते हैं। मंदिर की गायें, कुत्ते बीच-बीच में खड़े हुए होते हैं। इनके बीच में ऑटो दौड़ते हैं। उनमें मीटर होने पर भी दस रुपये ज्यादा दो और बारगेनिंग करो कचरा ही कचरा... सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे..... पानी की कमी, पावर कट, सड़क पर औरतों के मंगलसूत्र को भी कतरने वाले पॉकेट मार आदि सब कुछ टूटे-फूटे यहाँ होते हैं ।

इन सबके बावजूद भी आप अमेरिका से अपने देश को कैसे बड़ा सोच सकते हैं।" रंजनी ने प्रश्न बहुत तीखा पूछा।

"बहुत ठीक बोल रही हो... उस देश की सफाई और शांति को देखकर सब ऐसे ही प्रश्न पूछने की सोचेंगे। परंतु मनुष्य जीवन के जीने के लिए नियम और कानून के हिसाब से ही काम नहीं चलता। उसके लिए मन खोल कर एक दूसरे से मिलना-जुलना बात करने में है, बड़ों का सम्मान करना इन सबसे बड़ा पाप, पुण्य से डरना बहुत कुछ है बेटा यहाँ ।

ऐसा कह रहा हूं तो वहां ऐसा कुछ नहीं है क्या ! मत पूछना। बहुत है परंतु यहां के गरीबी में जी सकते हैं परंतु वहां ऐसा नहीं है। वहां भीख मांगने वाले भी कोट-पेंट पहन कर ही रहते हैं। वह दूसरी तरह की दुनिया है बेटी।"

“भाषा और जाति ने आपको उनसे मिलने नहीं दिया। यहां पर इसकी परेशानी नहीं है। उसे आपको ऐसा कहना चाहिए मैं सोचती हूं।"

"हां बेटे.... तुम जो कह रही हो वह ठीक है। इसी समय सफाई के अलावा वहां कोई भी बड़ी चीज नहीं है। परंतु हम से सीखने के लिए उनको बहुत सारी बातें हैं। तुम जाकर वहां रहो तो तुम्हें समझ में आएगा। अपना शहर युवा काल में एक वर प्रसाद है बेटा। वहां 15 घंटे का दिन होता है। बड़ी बड़ी नदियां बहती है परंतु उस में उतर कर नहा नहीं सकते। यहां पर जुकाम-खांसी हो तो काढा घर पर ही पी सकते हैं। वहां डॉक्टर को डेढ़ सौ डॉलर कंसलटिंग फीस ही देनी पड़ेगी।"

वे बात करते जा रहे थे। "ठीक सर.. यहां पर आपका कोई रिश्तेदार नहीं है क्या... आपको यहां रहने की क्या जरूरत?"

"बहुत बढ़िया सवाल। पिछले 30-40 सालों में लोग एक ज्यादा हुआ तो दो से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं कर रहे हैं। इसलिए एक परिवार में 4 जने ही हो गए। एक को एक बड़ी बहन या एक छोटी बहन, नहीं तो एक बड़ा भाई, छोटा भाई ऐसा सिर्फ एक ही रिश्ता रह गया। हम लोग भी संकुचित हो गए। मैंने जो तकलीफ पाई वह मेरे बच्चों को नहीं होना चाहिए इसलिए उन्हें बहुत पढ़ा कर बहुत अच्छी तरह से जीवन जीना चाहिए इसीलिए उसे विदेश में रहना चाहिए सोचकर अपने एक बच्चे को भी विदेश में गौरव के लिए भेज देते हैं।

फिर यहां एक अकेलेपन में फंस जाते हैं। उस गलती को मैंने अकेले नहीं मेरे रिश्तेदारों ने भी की। फिर उन्हें शुगर, घुटनों में दर्द अच्छी नौकरानी के न मिलने से परेशानी होती हैं और कई तरह की कमियां हैं। आखिर में एक ही फैसला यह वृद्धाश्रम ही हो गया..…ऐसे समय में मैं किसके घर जाकर ठहरूं ?"

उनके जवाब को वह अस्वीकार नहीं कर सकी। अभी तक उसने इस तरह की एक बात पर विचार ही नहीं किया। सोचा भी नहीं।

"इसीलिए ज्यादा मत पढ़ाओ बोल रहे हो क्या...?"

"हां बेटा... मैं सब कलेक्टर का काम करता था। मेरा कर्मचारी अभी मुझसे ज्यादा खुश है बेटा। उस दिन ऑटो में मंदिर जाकर आते समय मैंने देखा। अपने पोते को स्कूटर से स्कूल में छोड़ कर लौट रहा था। पहले जो सम्मान मुझे देता था उसमें बिल्कुल कमी नहीं थी।"

'आप अच्छी तरह हो क्या सर' ऐसा उसने अच्छी तरह से पूछा। मैं एक बिना किसी उद्देश्य के जीवन जी रहा हूं बोलने का मेरा मन नहीं किया। 'बहुत बढ़िया हूं' ऐसा एक झूठ मैंने बोला।"

"कुछ भी हो बेटा... अब हमारा देश भी विदेशों जैसे ही बदल रहा है। पिज़्ज़ा, बर्गर बेकार के खाने.... पैदल बिल्कुल ना चलना सब अपने-अपने वाहनों पर चलते हैं यही जीवन है.... एक बात अच्छी है मंदिर में जाने की आदत में कमी नहीं आई। साधारण गली के नुक्कड़ के मंदिर में भी प्रदोषम के समय तिल रखने की भी जगह नहीं होती...…."

वे लगातार बोलते चले गए। उसी समय फोन पर बात करने गए रामास्वामी भी आ गए।

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