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मोर पंख


रघुवन के मेरु मोर को जबसे पता चला है कि वो भारत देश का राष्ट्रीय पक्षी है तब से उसके स्वभाव की अकड़न कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी।
हर कोई उसके बदले हुए स्वभाव के कारण परेशान था। मेरु को अब हर जगह विशेष सम्मान मिलने की आशा रहती थी। वो जिधर भी जाता अन्य जीवों की परवाह किए बिना अपने काम करता और इससे उन्हें परेशानी होती। एक बार उसने बबली गिलहरी को नदी किनारे धक्का देकर गिरा दिया। बबली ने विरोध जताते हुए बोला "मेरु, तुम्हे मेरे हटने तक की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। मुझे धक्का क्यों मारा?"
मेरु बोला "मुझे अपने पंखों को धोकर सुखाना है, जिससे कि इनकी सुंदरता बनी रहे। तुम्हारे कारण मुझे विलंब हो रहा था।"

बात बबली को बुरी लग गई थी। पर उसने बात आगे नहीं बढ़ाई और वहां से चली गई।
रघुवन में शोर मचा हुआ था, मंगलू बन्दर चिल्लाता हुआ आ रहा था "भागो भागो बहेलिया आया है, सारे पक्षी अपनी अपनी जान बचा के दूर उड जाओ।"
मेरु के कान में बात पहुंची, उसने मंगलू को रोक कर पूछा "क्या हुआ कौन आ रहा है?"
मंगलू बोला "बहेलिया आया है, वो पक्षियों को पकड़ कर पिंजरे में बंद करके ले जाएगा, और बाज़ार में बेच देगा।"
मेरु बोला "क्या मेरे साथ भी ऐसा ही करेगा?"
मंगलू बोला "नहीं ...तुम्हें बेचेगा तो नहीं…"
मेरु थोड़ा निश्चिंत होता हुआ बोला "फिर क्या करेगा मेरे साथ?"
मंगलू बोला "वो तुम्हारे सुंदर पंख काट लेगा और बाज़ार में बेचेगा, सुना है तुम्हारे पंखों का अच्छा दाम मिलता है बाज़ार में। बचना चाहते हो तो उड़ के भाग जाओ।"
यह सुनते ही मेरु का रोना चालू हो गया "अरें मैं कहां इतना उड़ सकता हूं, मैं तो बस यहां वहां छोटी उड़ान ही भर सकता हूं। बहेलिया तो मेरा शिकार एक प्रयास में ही कर लेगा। मेरे यह सुंदर पंख किसी काम के नहीं हैं। बस यह दिखाने के लिए हैं। कैसे भी करके मुझे बचालो मंगलू।"
मंगलू बोला "ठीक है, तुम अगर अपने इन पंखों का अभिमान छोड़ दो तो मैं कुछ कर सकता हूं।"
मेरु झट से बोला " अभी से छोड़ दिया..बस तुम मेरी जान बचा लो.." और फिर रोने लगा।
मंगलू बोला "ठीक है तो तुम जाकर झाड़ के पीछे छिप जाओ और अपनी आंखें बंद कर लो। मैं बहेलिया से निपट कर आता हूं।"

मेरु जल्दी से झाड़ के पीछे चला गया और अपनी आंखें बंद कर लीं।

मंगलू कुछ दूर खड़ी बबली के पास गया और बोला " लो तुम्हारा काम हो गया, अब यह कभी अपने पंखों का घमंड नहीं करेगा।"
बबली और मंगलू जोर जोर से हंसने लगे। बहुत देर के बाद सबने इक्कठे होकर मेरु की आंखें खुलवाईं। उसके चेहरे पर अकड़न के भाव नहीं थे। गरुड़ राज उधर आकर बैठे और बबलू से बोले सच्ची सुंदरता मन के सुंदर होने में है, शरीर में नहीं।

"सात बरस सौ में घटैं इतने दिन की देह।
सुंदर आतम अमर है, देह खेइ की खेह॥"

मेरु ने सबसे क्षमा मांगी और हमेशा मीठा बोलने का वचन दिया।

फिर सबने मिलकर पार्टी करी।