Dani ki kahani - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

दानी की कहानी - 16

दानी की कहानी(मूल से प्यारा ब्याज़ )

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समय के गुजरने के साथ दानी हमें तो और भी सचेत लगती हैं | मम्मी कहती हैं ;

"हमने अपनी दादी-नानी को देखा ,इतनी उम्र में वो बिस्तर में माला लिए बैठी रहती थीं ,जो खाना मिल गया ,वो चुपके से खा लिया | और ये तुम्हारी दानी हर समय रसोईघर के चक्कर मारती रहती हैं | आज भी ज़बान चटकारे मारती है इनकी --!"

पता ही नहीं चलता --मम्मी इनसे क्यों नाराज़ रहती हैं | दानी सबको अच्छी बातें सिखाती हैं ,सब बच्चों से एक्स व्यवहार करती हैं ,सबको एक सी ही चीज़ें मंगाकर देती हैं | जब बच्चों में तक़रार होती है ,दादी कितने प्यार से उनमें सुलह करवाती हैं | आख़िर दानी माँगती क्या हैं उनसे जो मम्मी लोगों को दानी को देखकर चिढ़ लगती है | चीकू को अच्छी तरह याद है ,दानी पूरे घर के लिए सबकी मनपसंद सब्ज़ियाँ ,चाट और जो भी कोई कुछ कहता ,तुरंत बनाकर देतीं | जबकि मम्मी फ़ोन पर लगी रहती हैं | कुछ बनाने को बोलो तो कहती हैं ;

"मेरा राजा बेटा ! अभी मंगाकर देती हूँ --" उनका फ़ोन पर ऑर्डर बुक कर देना ,थोड़ी देर में चीज़ का दरवाज़े पर पहुँच जाना जहाँ हम बच्चों को मज़ा देता है वहीं कहीं न कहीं दानी से मम्मी की तुलना भी करवा देता है |

एक दिन हम सब बच्चों का चीज़-सैंडविच खाने का मन था | हम सब दानी के कमरे में बैठे उनसे कहानी सुन रहे थे | राजू भैया ने चीज़-सैंडविच की बात निकाली | मैंने सोचा मम्मी से कहता हूँ लेकिन दानी ने तुरंत कहा ;

"अरे! मैं बना देती हूँ न --चलो देखकर आओ रेफ़्रिजेटर में चीज़ है क्या ?"

हम भागते हुए गए और दौड़ते हुए आकर दानी को बताया कि चीज़ का पूरा पैक रखा था | दानी इतनी जल्दी उठकर खड़ी हो गईं कि हमें शर्म आई |
"अरे ! आप रहने दें दानी ,हम मम्मी से कहते हैं न !"

"क्यों ? मेरे हाथ की अच्छी नहीं लगती ?"उन्होंने मुस्कुराकर पूछा|

उन्हें मालूम था कि हमें बहुत सी चीज़ें कुक के हाथ व बाज़ार से अच्छी उनके हाथ की लगती हैं| हमें तो खूब मज़ा आएगा लेकिन दानी को इतनी तकलीफ़ देना हममें से किसी भी बच्चे को अच्छा नहीं लगता था |


दानी उठकर किचन में गईं | मम्मी तो अपने कमरे में ए. सी में सो रहीं थीं ,फ़ोन पर थीं या टी. वी पर पता नहीं | हम सब गर्मी की छुट्टियों में दानी को छोड़ते ही नहीं थे | उनके कमरे में ए.सी चलकर शैतानी करते ,कहानी सुनते या कभी दानी भी अपनी सुनाई गई कहानियों में से कोई कहानी हमें सुनाने को कहतीं ,फिर हमसे उनके संदेश पूछतीं | आज भी हमसे वो कहानी सुन रही थीं ,हमसे प्रश्नोत्तरी करना उनका खूब प्यारा शगल था |

बीच में ही चीज़-सैंडविच आ गए और हमारा ध्यान खाने में चला गया |

"तुम लोग क्यों गर्मी में आ रहे हो ? मैं आती हूँ न अभी ---"वो हमें बैठकर चली गईं और लगभग आधा घंटे के बाद अपने हाथ में सैंडविच पकड़े वापिस आईं |

हम सब बच्चे खुश हो गए थे लेकिन मेरे साथ शायद सबके मन में यही सवाल था कि क्या हमारी मम्मी अपने बच्चों के बच्चों को इतने प्यार से ,इतनी गरमी में उनकी पसंद की चीज़ें बनाकर देंगी क्या ?

"तुम अभी बहुत छोटे हो,यह सब मत सोचो --समय पर सबको मूल से ज़्यादा ब्याज प्यारा लगने लगता है ---" दानी ने मुस्कुराकर कहा |

हम सब एक-दूसरे के चेहरे देख रहे थे |

डॉ.प्रणव भारती

डॉ. प्रणव भारती

pranavabharti@gmail.com