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इस बरस के आम

चलो शुक्र है पापा घर आ गए, अब उनसे मिलने अस्पताल नहीं जाना होगा.....बहुत कष्ट झेला है वेंटिलेटर पर उन्होंने....उफ्फ...!! सारे शरीर पर इंजेक्शन ही इंजेक्शन.....वैसे वेंटिलेटर से बाहर आना भी भाग्य की बात है वो भी अस्सी की उम्र में.... सुशीला अपने आप से बातें करते-करते घर का काम निबटा रही थी।

विद्यासागर जी उसके पति अभी ऑफिस जा रहे थे। सुशीला ने कहा, ’’सुनिए आज ऑफिस से सीधे अस्पताल नहीं आइएगा, भैया का फ़ोन आया था, पापा आज डिस्चार्ज हो जाएंगें, हम लोग शाम को घर ही चलेंगे।

’’अच्छा!! उनकी हालत में सुधार तो है ना....!! कहीं तुम्हारे भैया को अस्पताल से छुट्टी कराने की जल्दी तो नहीं.....।’’

’’आप भी ना कैसी बातें करते हैं। भैया भला ऐसा क्यूं करेंगे, बेचारे इतनी सेवा कर रहे हैं....खैर, हम शाम को चलेंगे, मैं भी ऑफिस हो आती हूं....।’’ और वे दोनों चले गए।

सुशीला मन ही मन मुस्कुरा रही थी। ऑफिस में उसकी साथी विमला ने कहा, ’’लगता है अंकल कुछ ठीक हो रहे हैं....!!’’

’’हां विमला....तुम तो जानती हो पिछले पन्द्रह दिन से बस अस्पताल के चक्कर लग रहे हैं, पूरा घर परेशान है, उनके वेंटिलेटर की ख़बर सुनकर हमारे गांव से भी रिश्तेदार आ रहे हैं....भैया भाभी बेचारे पापा को तो देख ही रहे हैं....गांव से आए मामा, मौसी, बुआ, चाचा और उनके बच्चों के परिवारों की आवभगत करके अलग परेशान हैं....।’’

’’हम्म’’, विमला हां में हां मिला रही थी।

’’चल इस बहाने पापा से सारे रिश्तेदार मिल तो लिए।’’ ’’मिल लिए....’’!! वो तो पापा ने पिछले महीने मेरी नन्नु की सरकारी नौकरी लगने की खुषी में हवन कराया था और खाना रखवाया था......एक भी रिश्तेदार नहीं छूटा आने से...तुम जानती हो कितनी अच्छी पार्टी दी थी उन्होंने.....तुम तो आई थी....।’’

’’हां हां सबको पैसे भी दिए थे.....।’’

’’उसे ’नेग’ कहते हैं हमारे यहां.....पापा ने खाने का खर्च खुद उठाया....मेरे और विद्यासागर जीे के लाख मना करने पर ना माने, कहने लगे इस उम्र में बेटी दामाद से पैसे लेकर पाप सर चढ़ा लूं.....?’’

’’पापा, आप ये अब नन्नु की षादी पर कर लेना अभी हमें करने दो......’’ विद्यासागर जी बोले।

पपा ने कहा, नन्नु की शादी पर भी करूंगा....अभी मुझे खुशी से करने दो.....बहुत दिन बाद कोई खुशी घर आई है....अब तो बस मेरी परी जैसी नन्नु की शादी का सपना मन में बसाए बैठा हूं.....बड़े अरमान हैं नन्नु की शादी के.....’’ और पापा ने हम दोनों का मुंह बद कर दिया।

इतने में सुशीला की जीजी का फ़ोन आया। दोनों बहनें खिलखिलाकर हंस रहीं थीं। फोन रखते ही विमला ने हंसी का कारण पुछा....। सुशीला ने कहा ’’क्या बताऊं विमला.....जीजी बता रही थीं कि पापा से मिलने बड़ी बुआजी अस्पताल आई हैं और बाकी सबकी तरह वे भी आई सी यू में जाने की जिद्द करने लगीं....उन्होंने तो बकायदा डाॅक्टरों को लड़खड़ाती पर ताकतवर आवाज़ में डांट ही दिया,

’’डाक्टर! मैं गुहाने गांव ते आई सूं अपने भाई ने देखन....तने ना बेरा मैं सबसे बड़ी बहन सूं...मैं ता जांगी अंदर...मन्ने ना बेरा हैजीन फैजीन....’’ और वो आई सी यू में घुस गई। इतना ही नहीं वो हर मरीज़ को गौर से देखने लगी जैसे पहचान रही हों और कहती जातीं।

’’राम-राम....के हाल बाण दिया डाक्ट्रा ने....ना ये महारा भाई कोना....’’

और उस तरह जब वे पापा को देखकर निकलीं तो आई सी यू के बाहर बैठे बाकी रिश्तेदारों से लिपट के रोने लगीं कि उनका छोटा भाई अब कितना कमजोर हो गया है, खाने की नली लगी है, खाना क्या खाता है बस पानी पर जिंदा है, भला दूध दही मक्खन के बिना कोई खाना होता है, बिना घी की दाल तपेा पानी है.....वगैरह....वगैरह....।

डाक्टर और गार्डस के बार-बार मना करने पर भी कोई वहां से हिलता नहीं था। आखिर अस्पताल वालों ने चाल चली....वेटिंग रूम के बिजली के फैंस डाउन कर दिये....पापा के रिश्तेदारों ने बिजली ठीक करने का भरसक प्रयास किए पर हार गए.... बिना एसी कूलर के ज्यादा टिक ना पाए और ये कहकर चलते बने, ’’महारा गुहाना होता तो किसी की हिम्मत ना थी बिजली काटने की....रे सोहन....!! तने कोई भी तार ना मिला.....कहीं तो अटका लेता...!!’’

ये कहकर सुशीला हंसने लगी कि आज डाक्टर खुश हो जाएंगे क्योंकि हमारे गांव वालों ने तो अस्पताल ही सर पर उठा रखा था। इतना ही नहीं मेरे पापा कौन से कम हैं....एडमिट होते ही बोले....गिव माई वाॅच....। उन्हें आई सी यू में भी अपनी घड़ी लगानी थी, हर इंजेक्शन और दवा का जायजा खुद लेते थे और कल तो हद ही कर दी उन्होंने....एडवोकेट की तरह ऑर्डर ऑर्डर की जगह बोले, ’’डिस्चार्ज डिस्चार्ज डिस्चार्ज..’’ अच्छा....!!’’ ये सुन विमला भी खिलखिला दी।

ऑफिस का टाईम खत्म होने को आ ही रहा था कि सुशीला के भाई का फ़ोन आया कि पापा घर आ गए हैं....तुम लोग जल्द आ जाओ।

घर पहुंचते ही सुशीला अपने पति विद्यासागर जीे और बेटी के साथ पापा के घर के लिए निकल पड़ी। रास्ते में आम देखे तो कहा, ’’नन्नु...जरा अपने नाना के लिए आम तो ले ले। तुझे तो पता है तेरे नाना को आम कितने पसंद हैं....इस बार के आम तो चखे भी नहीं अब तक.....’’ मां की तरह दुबली-पतली गेारी पतले नाक नक़्श वाली नन्नु हंस दी, ’’मां आम किसी नहीं पसंद....आपको भी तो बहुत पसंद हैं....मगर नानाजी के साथ आम खाने का मज़ा ही कुछ और है....।’’

गाड़ी रूकी तो भैया दौड़ कर सुशीला से लिपट गए और जोर-जोर से रोने लगे। सुशीला ने कहा, ’’अरे पगले आ तो गई मैं रौ क्यूं रहा है?’’ अगले ही पल घर से रोने की आवाज़े सुन सुशीला को देर न लगी सच समझते। वह चिल्लाई, ’’तूने मुझे बताया क्यूं नहीं भाई.....’’और वो बेहोश हो गिर गई। सभी उसे सम्हालने को दौड़े। उसे होश में लाया गया, उसने फिर वही सवाल किया,

’’मुझे बताया क्यूं नहीं?’’

’’बताता तो क्या तुम आ पाती जीजी....?’’

सही कह रहा था भाई, उसे यहां तक लाना मुश्किल हो जाता। नन्नु के हाथ से आमों का थैला छूट चुका था, आम सड़क पर बिखर चुके थे, मटमैले आमों से उनके बदमज़ा होने का आभास हो रहा था। सुशीला आंसुओं की बाढ़ में डूब चुकी थी, ’’बिना बेटे की मां अब बिन बाप की भी हो गई.....आज पापा भी चले गए मेरे पप्पू के पास....।’’ सब जानते थे सुशीला ने पिछले ही बरस अपना जवान बेटा खोया है.....।

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