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संक्षिप्‍त समीक्षात्‍मक वैचारिक टिप्‍पणी

आलेख

संक्षिप्‍त समीक्षात्‍मक वैचारिक टिप्‍पणी

आर. एन. सुनगरया,

साहित्यिक प्रिय मित्र श्री राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव के सौजन्‍य से प्राप्‍त शोधकृति ‘’राष्‍ट्रीय फलक पर स्‍वातंत्र्योत्तर बाल कविता का अनुशीलन’’ शोधार्थी डॉ. सुधा गुप्‍ता ‘’अमृत’’ को पढ़कर अनेक विचारों पर सकारात्‍मक अभिव्‍यक्ति की जिज्ञासा जागृत हुई। लेकिन निजि कारणों के कारण समयाभाव में तत्‍काल उत्‍पन्‍न विचार व्‍यक्‍त करने में असमर्थ रहा। इसका खेद रहेगा।

डॉ. श्रीमती सुधा गुप्‍ता जी, आपने बहुत ही उत्‍कृष्‍ठ एवं श्रमसाध्‍य विषय को चुना, अपने शोध के लिये। इसी से समाज एवं देश के प्रति उद्धेश्‍य का आभास होता है कि आपकी समग्र सोच मजबूत आधार या नीव की शिक्षा एवं संस्‍कारों के स्‍वस्‍थ्‍य बीज बोने की है। ताकि जन समुदाय की नई पौध सुसभ्‍य, संस्‍कारवान, सुसंस्‍कृत, सद्गुण सम्‍पन्‍न, देश का भविष्‍य निर्मित हो एवं उत्तरोत्तर विकास के शिखर की ओर अग्रसर होता रहे। सर्वसक्षम एवं सर्वशक्तिमान, दृढ़ स्‍तम्भ की भाँति खड़ा रहे, सदैव। ज्ञानोर्जा का संचार होता रहे जीवन पर्यन्‍त।

श्रीमती सुधा गुप्‍ताजी ने आजादी के बाद सन् २०१६ तक के कालखण्‍ड के बाल साहित्‍य एवं बाल साहित्‍यकारों के साक्षात अनुभवों एवं सारगर्भित शास्‍वत तत्‍वों के समावेश शोध ग्रन्‍थ में उढ़ेलने की कोशिश की है, जो बहुत ही सार्थक एवं उपयोगी बन पड़ी है।

बालक-बालिकाओं अथवा उनका बालपन, सामाजिक इमारत की बुनियाद होते हैं; यदि बुनियाद ही खोखली, पोची, पुलपुली अथवा कमजोर होगी, तो उस पर बनी इमारत का भविष्‍य सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। कभी भी ताश के पत्तों के महल की भॉंति भरभरा कर गिर जायेगी। तब पुन:निर्माण की प्रक्रिया कितनी दुष्‍कर होगी।

बाल साहित्‍य के माध्‍यम से बाल साहित्‍यकार, अपनी मूल जिम्‍मेदारी को निवाहने के संदर्भ में सम्‍पूर्ण बाल-परिवेश, बाल मनोविज्ञान, बाल-मन पर तात्‍कालिक पड़ने वाले प्रभाव-दुष्‍प्रभाव बच्‍चों की मनोदशा, जिज्ञासा, कल्‍पनाशीलता, परस्‍पर सम्‍बन्‍धों की समझ, संस्‍कृति, संस्‍कार, नैतिकता, मेल-जोल, भाई-चारा बात-व्‍यवहार, चाल-चलन, चरित्र, भावात्‍मकता का सम्‍प्रेषण, प्राकृतिक, पर्यावरण, जलवायु, प्रत्‍येक प्राणी के प्रति सहानुभूति, दया, सुरक्षा, दु:ख-दर्द, भूख-प्‍यास, इत्‍यादि-इत्‍यादि समग्र रूप में ब्रह्माण्‍ड के स्‍वरूप एवं मिथकों की सांकेतिक भाषा की जानकारी, सीमाओं के आर-पार से उत्‍पन्‍न जिज्ञासा का समाधान एवं निराकरण की प्रवृति प्रक्रिया के ज्ञान प्राप्‍त करने हेतु मस्तिष्‍क निर्माण का सिलसिला साहित्‍य के अन्‍त:करण से ही होकर तय होता है। बाल साहित्‍य के ही मुख्‍य तत्‍वों द्वारा, बाल-बालिकाओं को मानसिक तौर पर संतृप्ति मिलती है।

बालपन का मन-मस्तिष्‍क कोरे कागज के समान होता है, निर्मल, स्‍वच्‍छ सम्‍वेदनशील, भावनाओं में कोमलता, वाणी में मृदुलता, छल-कपट, स्‍वार्थ, साजिश से बिलकुल अछूता।

ऐसी नैशर्गिक अवस्‍था में बाल-साहित्‍यकार अपने रचनाओं में जैसी चित्रावली को गढ़ता है, उन्‍हें बाल-मन भोलेपन में सजीव मान लेता है। उसके हृदयॉंगन में वे दृश्‍य चरित्र अंकित हो जाते हैं। उनके अनुरूप आचरण-शिष्‍टाचार ग्रहण करने लगता है। उनमें दर्शाए गये संस्‍कार, संयम, नैतिकता इत्‍यादि का सम्‍पूर्ण खाका उसके कोरे अवचेतन पर मुद्रित होने लगता है। जो उसे सुसभ्‍य-सुसंस्‍कारी इन्‍सान बनाता है। जो स्‍थाई रूप से जीवन पर्यन्‍त व्‍यक्तित्‍व में रचा बसा रहता है। वह सुसभ्‍य समाज प्रगतिशील समाज की इकाई की भॉंति सम्मिलित हो जाता है।

डॉ. श्रीमती सुधा गुप्‍ता द्वारा अपने शोधप्रबन्‍ध में जिन बाल-साहित्‍यकारों का जिक्र किया है, उन्‍होंने बाल-मनोविज्ञान, बाल सुलभ छबि, बालक-बालिकाओं के मोहक कार्य कलापों, कोमल भावनाओं तथा समग्र बालपन-बचपन का अत्‍यन्‍त गम्‍भीरता पूर्वक अध्‍ययन, मनन, मंथन किया है। बालक-बालिकाओं के परिवेश को बारीकी, गहराई एवं निकट से अवलोकन करके, इस बालमन के विशाल समुन्‍दर में कल्‍याण के कमल खिलाये हैं, उन्‍हें दुनियादारी को परखने की दृष्टि प्रदान की है। प्रत्‍येक समस्‍या-उलझन के निवारण की विवेकी क्षमता की बौद्धिक शक्ति दी है। ये सब बाल-साहित्‍यकार ने अपने श्रमसाध्‍य , कुशल, उत्‍कृष्‍ठ दृष्टिकोण के माध्‍यम से रचना को मनोरन्‍जक रोचक और शिक्षाप्रद चित्रित करके बच्‍चों को प्रेरणादायी, कल्‍याणकारी साहित्‍य के प्रति अनुरागी बनाया है। तभी सत् साहित्‍य का उद्धेश्‍य पूर्ण होता है। जिसे डॉ. सुधा गुप्‍ता द्वारा इन्गित बाल साहित्‍यकारों के साहित्‍य अध्‍ययन द्वारा बालमन को सभी ज्ञानवर्धक तत्‍वों की पूर्ती होती है, ताकि वे व्‍यस्‍क होकर समाज के कर्णधारों में सम्मिलित होकर समाज को सही दिशा में अग्रसर करने एवं सुन्‍दर बनाने हेतु सक्षम एवं परिपूर्ण होते हैं।

शोधार्थी डॉ. सुधागुप्‍ता ने अपने ग्रन्‍थ निर्माण में लगभग छै: दशक के बाल-साहित्‍य एवं साहित्‍यकारों द्वारा रचित व प्रकाशित पुस्‍तकों में स्‍थापित मानवीय मूल्‍यों तथा बाल-हृदय के अनछुये पहलुओं को उजागर किया है। उक्‍त साहित्यिक मनीषियों के साहित्‍य अध्‍ययन द्वारा, जिन बाल-साहित्‍यकारों का स्‍नेह, अनुराग सहृदयता, सहायता, मार्गदर्शन; अपने दीर्घकालिक अनुभवों का सारांश बाल साहित्‍य के अनेक उतार चढ़ाव, उनकी रचना प्रक्रिया में उत्तरोत्तर विकास की परम्‍परा, के साक्षी साहित्‍य पुरोधाओं का ज्ञान शोधार्थी को धरोहर के रूप में सहज ही प्राप्‍त हो गया।

उल्‍लेखित बाल-साहित्‍यकारों में से अनेक तो अपनी कालखण्‍ड में अद्वितीय रहे हैं। इनमें से कुछ नाम स्‍मरण करना आवश्‍यक है। जैसे सर्वश्री दामोदर अग्रवाल, सूर्य भानु गुप्‍त, डॉ. श्री प्रसाद, प्रयाग शुक्‍ल, उमाकॉंत मालवीय, योगेन्‍द्र कुमार लल्‍ला, कन्‍हैयालाल ‘’मत्त’’, बालकृष्‍ण गर्ग, डॉ. कृष्‍णचन्‍द तिवारी, ‘’राष्‍ट्रबन्‍धु’’, बालकवि वैरागी, हरीश निगम, सूर्य कुमार पॉंडेय, सुरेश विमल, देवेन्‍द्र कुमार, चन्‍द्रसेन विराट, हरीश दुबे, डॉ. रामशंकर चंचल, घनश्‍याम, मैथिल ‘’अमृत’’, डॉ. मालती बसंत, अनुपमा श्रीवास्‍तव ‘’अनुश्री’’ डॉ. राजेन्‍द्र सिंह, डॉ. गायत्री तिवारी, ममता कालिया, सरोज कुलश्रेष्‍ठ, बाबू गुलाबराय, डॉ. हरिकृष्‍ण देवसरे, बालशौरि रेड्डी, डॉ. श्रीप्रसाद.........से लेकर वर्तमान में बाल कवि अंशुमान दुबे, ऋषिराजा श्रीवास्‍तव, विनय श्रीवास्‍तव (सीहोर), चित्रांश बाघमारे, दिव्‍या प्रसाद, गरिमा अग्रवाल इत्‍यादि-इत्‍यादि।

समय परिवर्तनशील है, उल्‍लेखित बाल साहित्‍यकारों ने अपने-अपने तपोवन से बालक-बालिकाओं के लिये, जो फल-फूल उपलब्‍ध कराकर, जो मान्‍यताऍं, सिद्धान्‍त, अवधारणाऍं, परम्‍पराऍं, ज्ञान पिपासा के लिये स्‍थापित की थीं; उन्‍हें आज का डिजीटल संसार नजर अन्‍दाज करके अपना ज्ञानोदय अपनाने के लिये बाल-मन को विवश कर रहा है। विभिन्‍न प्रकार की शैलियों में आकर्षक प्रस्‍तुतियों का शिकन्‍जा अपने गिरफ्त में कसता जा रहा है। इन्‍फार्मेशन की ऑंधी को रोक पाना असम्‍भव है। फिर भी डॉ. सुधा गुप्‍ता का शोध ग्रंथ का अपना एक विशिष्‍ठ स्‍थान है। जो विद्यार्थियों को मार्गदर्शक की भॉंति उपयोगी होगा। प्रामाणिक सामग्री से अवगत करायेगा।

शोधार्थी ने अपनी कुशाग्र बुद्धि से परिश्रम पूर्वक बाल-साहित्‍य के समग्र पहेलुओं की खोज-परक जानकारी एकत्र की है। शोध को पठनीय, ज्ञानवर्धक, उपयोगी बनाकर अपनी विशेष प्रवृति का परिचय दिया है। बाल साहित्‍य की चर्चा में डॉ. सुधा गुप्‍ता की कृति अग्रिम पंक्ति में महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखती है। हार्दिक शुभकामनाऍं!

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय- समय

पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्‍वतंत्र

लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍