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तोहफा

बाते करे तोहफे की तो हम कुछ तोहफे याद के लिए तो कुछ रिवाज समझकर देते है ! पुराने ज़माने में जहा सिर्फ शादियों और जनम दिन की पार्टियों में गिफ्ट देने का कल्चर था, आजकल गृहप्रवेश से लेकर सगाई और फर्स्ट मीट से लेकर फेयरवेल मीट तक गिफ्ट्स का रिवाज़ है. राखी पर बहन को , करवाचौथ पर बीवी को और त्योहार पर बच्चो को तोहफे बड़े अच्छे लगते हैं।

ऐसे तो तोहफे खास मौकों पर दिए जाते है पर मेरा ये मानना है किसी भी दिन को खास बना दीजिए बस एक प्यारा सा तोहफा दे कर। यह कहानी है दो पति पत्नी की जिनकी नई शादी हुई और पहली सालगिरा आने वाली है दोनो खुश है पत्नी पति को कहती है की आप मुझे क्या दोगे पति कहता है जब दू तब देख लेना ऐशा कह कर ऑफिस चला जाता है शाम को आता है तो पत्नी अपनी सहेली से बातें कर रही होती है इनको तो टाइम नही मिलता ना बात करते इतने में पति कहता है मैं हमारे भविष्य के लिए ही तो मेहनत कर रहा हु पत्नी फोन रख कर खाना देने चली जाती है पति सोचता है क्या दू जिसे यह खुश हो जाए ।

कुछ दिनों बाद एनिवर्सी का दिन आता है पत्नी सोई रहती है देखती है पति नहीं है कहा गए वह तैयार हो कर नीचे जाति है देखती है की सारा काम हो चुका है पति नाश्ता ले कर उसका इंतजार कर रहा हैं ! उसकी पसंद का खाना और ऑफिस से कॉल पर की आज मुझे कॉल मत करना यह सुन कर पत्नी कहती है क्या हुआ ? ऑफिस नहीं जाना
पति " मुस्कराते हुई नही " तुम्हारे लिए आज दुनिया का सबसे खूबसूरत तोहफा है मेरे पास क्या ? वह सोचती हैं

मैं तुम्हे अब तू कर के नही आप बोलुगा और तुम्हारी इज्जत करुगा इज्जत से बड़ा तोहफा और क्या हो सकता है और वक्त दुगा भाग दौड़ भरी जिंदगी में तुम्हे कभी इग्नोर नहीं करूगा तुम ही मेरी जिंदगी का तोहफा हो में तुम्हे महंगी
चीज़ दे सकता हु पर वो सिर्फ देखने के लिए होगी और दिखावा होगा मैं बस वक्त से बड़ा तोहफा क्या हो सकता है भला पत्नी मुस्कराती है और उसे सोरी कहती है .


तोहफे का महत्व

ये कहानी आप में से कई लोगो को पता होगी की जब श्री कृष्ण के मित्र सुदामा सालो के बाद उनसे मिलने गए तो उनके लिए तोहफे के रूप में थोड़े से कच्चे चावल ले गए थे। इन चावलों की भेट स्वीकार करने के बाद ही प्रभु श्री कृष्ण ने उन्हें त्रिलोकी का साम्राज्य सौंप दिया था। हालाकि श्री कृष्ण के राजमहल और शानो शौकत को देखने के बाद सुदामा जी अपना तोहफा देने में हिचकिचा रहे थे पर भगवान के ये कहने पर की "मित्र, मेरे लिए कुछ भेट नहीं लाए क्या?", सुदामा जी ने सकुचाते हुए वो चावल की पोटली उनके सामने कर दी। कहते हैं कि इस पोटली से हर एक मुट्ठी चावल खाते हुए भगवान ने उन्हें एक एक लोक का राज्य सौंप दिया था।

ये कहानी यूं तो छोटी सी बात है पर गौर कीजिए तो जिसके पास कुछ भी नहीं था वो भी तोहफा लाया इतना ज़रूरी होता है तोहफा। सोचिए अगर सुदामा जी वो चावल ना भेट करते तो क्या श्री कृष्ण उनका दुख ना दूर करते। करते तो ज़रूर पर तब वो एहसान होता दोस्ती नहीं।

" तोहफा नही उसकी भावनाओं को समझिए"

" आसुओं का तोहफा किसी को न दीजिए "

आशा करते है आपको पसंद आई होगी आप भी मुझे तोहफे में अपना कुछ वक्त दे दीजिए गए वक्त निकाल कर यह कहानी की कृप्या रेटिंग दे और हमारा मनोबल बढ़ाए आपके साथ की जरूरत है हमे धन्यवाद पढ़ने के लिए 😊🙏